सच में मनहूस है बेशकीमती कोहिनूर? जिसके पास भी पहुंचा, उसके साम्राज्य का हो गया सत्यानाश!
कोहिनूर के श्रापित होने की बात 13वीं सदी से कही चली आती है। ऐसा कहा जाता है कि जिस-जिस के पास यह हीरा पहुंचा उसके साम्राज्य का अंत हो गया।
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कोहिनूर हीरे की एक बार फिर से चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल कोहिनूर हीरे को 'विजय के प्रतीक' के तौर पर टावर ऑफ लंदन में प्रदर्शित किया जाएगा। 26 मई से इसे आम लोग भी देख सकते हैं। इस साल मई में ब्रिटेन में किंग चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी होनी है। इस दौरान उनकी पत्नी क्वीन कंसॉर्ट कैमिला ने कोहिनूर को धारण नहीं करने का फैसला किया है। अभी इसे शाही खजाने में रखा गया है। ब्रिटेन में पैलेस को मैनेज करने वाली चैरेटी हिस्टॉरिक रॉयल पैलेसेज ने के मुताबिक कोहिनूर को प्रदर्शित करने के साथ ही कई वीडियो और प्रेजेंटेशन्स के जरिए लोगों को इसका इतिहास भी बताया जाएगा।
कोहिनूर है मनहूस?
भारत में कोहिनूर अपनी अनूठी कहानियों की वजह से बेहद चर्चित रहा है। इन कहानियों में ही कोहिनूर को मनहूस भी बताया जाता है। कहा जाता है कि कोहिनूर जिस सुल्तान के पास पहुंचा, उसकी सल्तनत खत्म हो गई। उसके विरासत में उसका नामलेवा तक न बचा। क्योंकि इतिहास तो यही कहता है कि कोहिनूर मामूली नहीं बल्कि बेहद ताकतवर लोगों के हाथों तक पहुंचा लेकिन जल्द ही उनके साम्राज्य का अंत हो गया। कोहिनूर के बारे में यह कहा जाता है कि वह आज के आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के पास, कुल्लूर की खदानों में मिला था। हालांकि अंग्रेजों ने यह दर्ज किया है कि लोग यह मानते थे कि यह हीरा कोई 5000 वर्ष पहले महाभारत काल में मिला था।
बाबर ने आत्मकथा में किया जिक्र
हालांकि इस हीरे का सबसे पहला रिकॉर्ड अंग्रेज नहीं बल्कि बाबर की आत्मकथा 'बाबरनामा' में मिलता है। बाबरनामा में बाबर ने यह जिक्र किया है कि हुमायूं ने पानीपत युद्ध के बाद इस हीरे को हासिल किया था और अपने पिता बाबर को भेंट दी थी। बाबर ने कोहिनूर के बारे में कहा था कि जिसके हाथ में हीरा होगा उसके हाथ में ही सबसे अधिक ताकत होगी। ऐसी कहानी है कि हुमायूं ने ग्वालियर के महाराज विक्रमादित्य सिंह तोमर की विधवा की इज्जत लूटने से बचाई थी जिसके बाद महारानी ने अहसान मानते हुए उसे ये हीरा उपहार में दिया।
हुमायूं के शासन का भी अंत
इतिहास की तारीखें खंगालिए तो पानीपत का युद्ध नवंबर 1526 में हुआ था और कोहिनूर हासिल करने के चार साल के भीतर ही बाबर की मौत हो गई। ऐसा कहा जाता है कि इससे पहले ये हीरा काकतीय वंश के पास था। हीरा हासिल करने के बाद ही काकतीय राजा की हर युद्ध में हार होने लगी और धीरे-धीरे काकतीय साम्राज्य का अंत हो गया। काकतीय वंश के बाद ये तुगलत वंश के पास आया और उसकी सल्तनत भी जाती रही। इसके बाद कोहिनूर हुमायूं के पास पहुंचा वह भी अधिक समय तक राज नहीं कर सका। इसके बाद कोहिनूर शेरशाह सूरी के पास पहुंचा। सूरी भी एक तोप के गोले से जल कर मर गया। उसका पुत्र व उत्तराधिकारी जलाल खान अपने साले द्वारा हत्या को प्राप्त हुआ।
शाहजहां के भी राज का अंत
अकबर को इस हीरे के शापित होने का अहसास था इसलिए कभी भी उसने इसे अपने पास नहीं रखा। इसके बाद अकबर के बेटे शाहजहां ने बड़े ही शौक से कोहिनूर हीरे को अपने मयूर सिंहासन में जड़वाया लेकिन इसका अंजाम भला नहीं हुआ। शाहजहां को पहले तो पत्नी ने छोड़ा, फिर बेटे में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई। और एक दिन बेटे ने शाहजहां को नजरबंद कर सत्ता हथिया ली। औरंगजेब को इसकी मनहूसियत के बारे में पता था इसलिए उसने इस हीरे को लाहौर की बादशाही मस्जिद में रखवा दिया। इस तरह वो कोहिनूर के मनहूस साए की जद में आने से बच गया।
नादिर शाह का साम्राज्य भी बिखरा
एक से दूसरे साम्राज्य नादिर शाह के पास पहुंचा। कोहिनूर को पहले सामंतिक मणि के नाम से जाना जाता था। नादिरशाह ने ही इसे कोह-ए-नूर यानी कि प्रकाश का पर्वत का नाम दिया। कोहिनूर को पर्शिया ले जाने के कुछ साल बाद नादिर शाह की हत्या कर दी गई। नादिर शाह के बाद कोहिनूर दुर्रानी वंश के पास आया, लेकिन इनका भी साम्राज्य तबाह हो गया। शुजा दुर्रानी के पास से यह हीरा महाराजा रंजीत सिंह के पास पहुंचा। कुछ ही साल बाद रंजीत सिंह की भी मौत हो गई। इसके शापित होने की खबर से डरकर अंग्रेजों ने यह नियम बनाया कि इसे कोई भी पुरुष नहीं पहनेगा। हालांकि इसे पहनने के बाद किसी अंग्रेज रानी को दुर्दिन नहीं देखने पड़े लेकिन इससे कोहिनूर हीरे की मनहूसियत खत्म नहीं हुई और दुनिया भर में फैली अंग्रेजों की हुकूमत का अंत हो गया।
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