भारत चीन समर्थित पोर्ट सिटी कोलंबो परियोजना में शामिल नहीं होगा, हितधारकों को चेताया
श्रीलंका सरकार ने सदन में जो इकोनॉमिक कमीशन बिल संशोधनों के साथ पास किया था, उसके मुताबिक कोलंबो पोर्ट सिटी का निर्माण होगा। ये 269 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाई जाएगी।
कोलंबो/नई दिल्ली, 13 जुलाई : श्रीलंका में चीन ने एक और इलाके में दबदबा बढ़ाना शुरू कर दिया है, जो कन्याकुमारी से महज 290 किलोमीटर दूरी पर है। ये ठिकाना है श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में बन रही पोर्ट सिटी। बता दें कि, श्रीलंकाई सदन से सुप्रीम कोर्ट तक के विरोधों के बावजूद वर्तमान 'राजपक्षे ब्रदर्स' की सरकार ने उस बिल को मंजूरी दे दी थी। चीन का श्रीलंका पर प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये विवादित बिल जब सदन में पास हुआ था और 24 मई को श्रीलंका पोर्ट सिटी के कंस्ट्रक्शन का ठेका एक चीनी कंपनी को दे दिया गया था।
PCC परियोजना को लेकर भारत ने क्या कहा जानें
भारत चीन समर्थित 14 अरब डॉलर की पोर्ट सिटी कोलंबो (पीसीसी परियोजना में शामिल होने को इच्छुक नहीं है। दिप्रिंट के मुताबिक, भारत ने प्राइवेट सेक्टर के हितधारकों (stakeholders) को बताया कि, इस प्रोजेक्ट में उनके किसी भी तरह की भागीदारी को प्रतिकूल रूप में देखा जाएगा।
क्या बनेगा यहां
CHEC पोर्ट सिटी कोलंबो प्राइवेट लिमिटेड की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस परियोजना की परिकल्पना दक्षिण एशिया के प्रमुख आवासीय, खुदरा और व्यावसायिक गंतव्य के रूप में की गई है। इसमें पांच अलग-अलग परिसर जिनमें ,वित्तीय जिला, केंद्रीय पार्क, द्वीप, मरीना और अंतर्राष्ट्रीय द्वीप शामिल होंगे।
269 हेक्टेयर क्षेत्र में बनेगा PCC
बता दें कि, श्रीलंका सरकार ने सदन में जो इकोनॉमिक कमीशन बिल संशोधनों के साथ पास किया था, उसके मुताबिक कोलंबो पोर्ट सिटी का निर्माण होगा। ये 269 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाई जाएगी। वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने संसद में ही कहा था कि कोलंबो पोर्ट सिटी से 5 साल में 2 लाख जॉब्स श्रीलंकाई नौजवानों को मिलेंगे। इससे डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा और इससे देश को फायदा होगा।
इस बिल का विरोध क्यों हुआ था?
इस
बिल
का
विरोध
क्यों
हुआ?
सरकार
ने
इस
पोर्ट
सिटी
को
बनाने
के
लिए
संसद
में
बिल
पेश
किया
था।
इसमें
कई
बातें
या
शर्तें
ऐसी
थीं
जो
सीधे
तौर
पर
श्रीलंका
को
चीन
का
भावी
उपनिवेश
या
गुलाम
बनाने
वाली
थीं।
लिहाजा
विपक्ष
ने
इसका
विरोध
किया।
सुप्रीम
कोर्ट
में
24
याचिकाओं
के
जरिए
इसे
चुनौती
दी
गई
थी।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
जनमत
संग्रह
और
बिल
में
संशोधन
का
सुझाव
दिया
था।
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