पहली बार रुपया 80 पार, 2014 के बाद डॉलर के मुकाबले 25% गिरा, भारत सरकार ने कबूला
भारत की विदेश मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा कि, 31 दिसंबर 2014 को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 63.33 भारतीय रुपये थी।
नई दिल्ली, जुलाई 19: पहली बार ऐसा हुआ है, कि डॉलर के मुकाबसे रुपये की वैल्यू 80 पार चली गई है, यानि अब आपको एक डॉलर देने पर 80 रुपये मिलेंगे। यानि, डॉलर के मुकाबले रुपये का लगातार गिरना जारी है, वहीं, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा है कि, भारतीय रुपये के मूल्य में दिसंबर 2014 के बाद से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 25 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि, भारतीय वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि, हाल ही में आई गिरावट कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक कारकों की वजह से हैं। लेकिन, उसके बाद भी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में 25 प्रतिशत तक गिरावट आना कई सवाल खड़े करता है।
पहली बार रुपया 80 पार
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया मंगलवार को मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण 80 के स्तर तक गिर गया है, जिससे इसकी साल-दर-साल गिरावट लगभग 7 प्रतिशत हो गई है। घरेलू मुद्रा के शुरुआती कारोबार में एक दिन पहले ट्रेड 79.9775 पर बंद हुआ था और आज ये 80.0175 के निचले स्तर पर पहुंच गई है। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य बाजार रणनीतिकार आनंद जेम्स ने कहा कि, रुपया मंगलवार को डॉलर के मुकाबले 79.85-80.15 के दायरे में कारोबार कर सकता है। दिसंबर 2014 से डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्य में लगभग 25 प्रतिशत की गिरावट आई है और हाल ही में गिरावट कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक कारकों के कारण है, भारतीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की संसद में ये बात कबूल की है।
डॉलर के मुकाबले 25% की गिरावट
भारत की विदेश मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा कि, 31 दिसंबर 2014 को एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 63.33 भारतीय रुपये थी। लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में वित्त मंत्री द्वारा उल्लिखित आंकड़ों के अनुसार 11 जुलाई, 2022 को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79.41 पर आ गया है। वहीं, सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79.98 के नए निचले स्तर पर पहुंच गया। भारतीय रुपये की कीमत में लगातार सातवें दिन गिरावट आई है। लोकसभा में एक तारांकित प्रश्न के उत्तर में भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि, "रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक कारक, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और वैश्विक वित्तीय स्थितियों का सख्त होना, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण हैं।" हालांकि, उन्होंने संसद के निचले सदन को सूचित किया कि भारतीय मुद्रा अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुई है।
दूसरे देशों की करेंसी और गिरीं
भारतीय वित्त मंत्री ने कहा कि, "ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी मुद्राएं अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की तुलना में ज्यादा कमजोर हुई हैं और इसलिए, भारतीय रुपया 2022 में इन मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है।" अर्थव्यवस्था पर रुपये के मूल्य में मूल्यह्रास के प्रभाव पर भारत सरकार ने कहा कि, मुद्रा में उतार-चढ़ाव केवल एक कारक है जो अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। सरकार ने कहा कि, मुद्रा के मूल्यह्रास से निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ने की संभावना है जो बदले में अर्थव्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। सरकार ने कहा कि, मुद्रा का मूल्यह्रास आयात को और अधिक महंगा बनाकर प्रभावित करता है।
रिजर्व बैंक उठा रहा है कदम
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) नियमित रूप से विदेशी मुद्रा बाजार की निगरानी करता है और अत्यधिक अस्थिरता की स्थितियों में हस्तक्षेप करता है। उन्होंने कहा कि, भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल के महीनों में ब्याज दरों में वृद्धि की है, जिससे निवासियों और अनिवासियों के लिए भारतीय रुपया धारण करने का आकर्षण बढ़ गया है। वित्त मंत्री ने आगे कहा कि, विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी का बहिर्वाह भारतीय रुपये के मूल्यह्रास का एक प्रमुख कारण है। उन्होंने ये भी कहा कि, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने वित्त वर्ष 2022-23 में अब तक भारतीय इक्विटी बाजारों से करीब 14 अरब डॉलर की निकासी की है। वहीं, इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि, सिर्फ भारतीय रुपया ही नहीं, दुनिया के तमाम करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुए हैं और अन्य मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हुआ है और सिर्फ रुपया ही एकमात्र करेंसी नहीं है, जो कमजोर हुआ है, लिहाजा, ऐसी बात नहीं है, कि भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कोई समस्या है।
रुपये के गिरने की वजह
भारतीय अधिकारियों ने बताया कि, वैश्विक घटनाक्रमों की वजह से दुनियाभर के निवेशक सतर्क हो गये हैं, जिसका असर अलग अलग देशों की करेंसी पर पड़ रही है और रुपये के कमजोर होने का कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कोई समस्या नहीं है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अधिकारी ने कहा कि, "भारतीय रुपये के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती को एक अलग मामले के रूप में नहीं देखा जा सकता है।" उन्होंने कहा कि, "यह विश्व स्तर पर अमेरिकी डॉलर की ताकत को दर्शाता है,और डॉलर सभी मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो रहा है, चाहे वो विकसित हो या उभरती हुई हों।" उन्होंने कहा कि, डॉलर इंडेक्स में इस साल छह प्रमुख मुद्राओं, यूरो, पाउंड, येन, स्विस फ्रैंक, कैनेडियन डॉलर और स्वीडिश क्रोना के मुकाबले 13% की वृद्धि हुई है।
डॉलर के मुकाबले कम हुआ कमजोर
भारतीय अधिकारियों ने कहा कि, अमेरिकी मुद्रा डॉलर, रुपये के मुकाबले कम बढ़ी है, जो 2021 के अंत में 74.5 प्रति डॉलर से बढ़कर जून के अंत में 79.74 हो गई है, जो लगभग 7% मूल्यह्रास है। नतीजतन, यूरो, येन और पाउंड के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है। शुक्रवार को रुपया 79.88 प्रति डॉलर पर पहुंच गया था, जो पांचवीं सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली एशियाई मुद्रा के रूप में रैंकिंग में था। स्थानीय इकाई ने छह महीने में करीब 7.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। अधिकारियों ने कहा कि विदेशी निवेश का बहिर्वाह रुपये के मूल्यह्रास का एक प्रमुख कारण था। अधिकारियों ने कहा कि, वित्तवर्ष 2022 में 15 जुलाई तक विदेशी निवेशक भारत से 31.5 अरब डॉलर निकाल चुके हैं और यही वजह है, कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है।
रुपया गिरने का असर
अधिकारियों ने कहा कि, आरबीआई विदेशी मुद्रा बाजार की बारीकी से निगरानी कर रहा है और जरूरत पड़ने पर अपने भंडार का उपयोग कर रहा है। हस्तक्षेपों के बावजूद यह सहज स्तर पर बना हुआ है। वहीं, आपको बता दें कि, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना उद्योग जगत के लिए मिश्रित बैग बन रहा है, जिसका खामियाजा कुछ क्षेत्रों को भुगतना पड़ रहा है, जबकि कई उद्योग क्षेत्र, खासकर फ्टवेयर निर्यातक लगातार फायदा उठा रहे हैं। रुपया, जो डॉलर के मुकाबले मूल्यह्रास कर रहा है, वो एक डॉलर के मुकाबले 80 के मनोवैज्ञानिक बैंचमार्क के पास है और फेडरल रिजर्व द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ओवरटाइम काम करने की संभावना है, जो कि अमेरिका में एक ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है। रुपये के मूल्यह्रास का सबसे अधिक प्रभाव आयातित वस्तुओं या आयातित घटकों का उपयोग करने वाले सामानों पर पड़ेगा, और इस श्रेणी में सबसे अधिक मांग की जाने वाली वस्तु मोबाइल फोन है। यानि, मोबाइल फोन की खरीदारी और भी ज्यादा महंगी होती जाएगी।
अब भारतीय रुपये का क्या होगा? 20 सालों बाद डॉलर के सामने यूरो धड़ाम, आंखों के सामने आर्थिक मंदी?