QUAD SUMMIT की बैठक में बना चीन के खिलाफ 'मास्टरप्लान'
QUAD की बैठक में चीन के खिलाफ क्या कदम उठाए गये हैं और क्वाड की बैठक से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को क्या फायदे होंगे?
नई दिल्ली/वाशिंगटन/टोकियो/कैनबरा: क्वाड देशों की पहली बैठक खत्म होने के बाद सवाल ये उठता है कि क्या इस बैठक में चीन के खिलाफ कुछ फैसला लिया गया है या फिर इंडो-पैसिफिक देशों की स्थिति और क्षेत्रीय शांति तक ही बात सीमित है? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्वाड से पहले चीन को दुनिया के लिए खतरा बताया था और भारत चीन से कितना परेशान है, ये स्थिति जगजाहिर है। और पिछले कुछ सालों में ऑस्ट्रेलिया की नाक में भी चीन ने दम कर रखा है। जापान के लिए भी चीन परेशानी का सबब रहा है। तो फिर शुक्रवार को क्वाड की पहली बैठक में चीन के रोकने के लिए क्वाड में क्या फैसला लिया गया है? आखिर चीन के खिलाफ किस मास्टरप्लान पर बात की गई है?
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क्वाड के दिमाग में चीन
क्वाड की बैठक में चारों देश इंडो पैसिफिक क्षेत्र यानि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और आजादी को लेकर एक सुर मत में दिखाई दिए। सभी देशों ने सामूहिक नेतृत्व और हिंद प्रशांत क्षेत्र में आजाद आवाजाही की वकालत करते हुए लोकतांत्रिक संबंधों को बढ़ावा देने का फैसला किया। इसके तहत इस मुद्दे पर सहमति जताई गई है कि 'हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कानून के मुताबित, आजाद, अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत व्यापक सुरक्षा की स्थापना, लोकतांत्रिक पद्धति और किसी भी खतरे से निपटने के लिए सभी देश एक साथ आएंगे'।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र की आजादी
क्वाड की बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का जिक्र बार-बार किया गया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए कई रणनीतियों पर काम करने का जिक्र किया गया। जैसे भारत में वैक्सीन बनाकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों तक वैक्सीन पहुंचाई जाएगी। लेकिन, वैक्सीन डिप्लोमेसी और फ्री ट्रेड के अलावा हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर किसी बड़े फैसले का जिक्र नहीं किया गया है। हालांकि, माना जा रहा है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए रणनीति पर काम किया जा रहा है और शुक्रवार को हुई बैठक में दुनिया के सामने ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि क्वाड को लेकर चारों देश काफी सीरियस हैं और आगे जाकर एशिया में क्वाड काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है।
भारत-चीन संबंध पर बात
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक क्वाड की बैठक में भारत-चीन संबंध में सीमा पर चीन की आक्रामत नीति को लेकर बात की गई है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि पिछले साल मई में दोनों देशों के बीच हुई हिंसक झड़प को लेकर भी क्वाड के प्लेटफॉर्म पर बात की गई है। बातचीत के दरम्यां चारों नेताओं ने तय किया कि वो इस साल के अंत में क्वाड को लेकर सभी नेता फिर से मिलेंगे और अगली बार क्वाड की बैठक वर्चुअल नहीं होकर आमने-सामने की जाएगी। इसके साथ ही चारों देशों के नेताओं ने 'फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक' का जिक्र कर चीन को एक संयुक्त संदेश देने की कोशिश की है।
आजादी और कानून का जिक्र
क्वाड की बैठक में बार बार 'फ्री' और 'लॉ' का इस्तेमाल किया गया है। जिसका मतलब सीधे सीधे चीन को संदेश और संकेत देना था। चारों देशों के नेताओं ने अपने बयान में फ्री और लॉ का जिक्र किया है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन पर ही अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं। इसके साथ ही क्वाड की बैठक में तय किया गया है कि चारों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून और वैश्विक विचार को बढ़ावा देने का काम करेंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्वाड की बैठक के बाद कहा है कि 'हम फिर से अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहना चाहते हैं कि हम क्षेत्रीय आजादी के पक्ष को बढ़ावा देने का काम करेंगे, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय कानून के हिसाब से सभी देश आगे बढ़ेंगे, जिसमें किसी का भी वर्चस्व नहीं होगा'
इंटरनेशनल रिलेशन एंड इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के फैकल्टी मनन चतुर्वेदी क्वाड की बैठक पर बताते हैं कि 'क्वाड के जरिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी संकेत दिए हैं कि उनका भी रास्ता डोनाल्ड ट्रंप के जैसा ही करीब करीब होगा। वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा है कि क्वाड सिर्फ चीन के खिलाफ एक गुट नहीं है बल्कि इसमें सामूहिक विचारधाराओं का मिश्रण हैं जिसके तहत विकास के काम होंगे, लेकिन क्या ये ग्रुप भी एशियान जैसे क्षेत्रीय गुट बनकर रह जाएंगे जिसके तहत जियोपॉलिटकल और जियोइकोनॉमिकल काम होंगे?'
भारत को क्वाड से फायदा
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि 21वीं सदी की दुनिया का विकास और भविष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र ही तय करेगा। लिहाजा भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्व काफी ज्यादा है। साथ ही चीन के साथ चले आ रहे बॉर्डर विवाद के बीच अगर क्वाड मजबूती से अपनी भूमिका निभाता है तो भारत बेहद आसानी से एलएसी पर चीन को रोकने में कामयाब हो सकता है। क्योंकि, क्वाड के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक और फ्रंट खोला जा सकता है और अगर ऐसा हुआ तो चीन लड़ाई करने की स्थिति में नहीं रहेगा। लिहाजा क्वाड के जरिए चीन को रोकने की कोशिश कामयाब तो हो सकती है लेकिन इसकी कामयाबी सदस्य देशों की प्रतिबद्धति पर निर्भर करती है। और इसकी कामयाबी को लेकर सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या गठबंधन के देश चीन को लेकर अपनी विचार खुले तौर पर जाहिर कर पाएंगे? क्योंकि देखा जाए तो चीन को लेकर अमेरिका का नया बाइडेन प्रशासन कनफ्यूजन की स्थिति में दिख रहा है। और अगला सवाल ये है कि क्या क्वाड के जरिए बहुआयामी फैसले लिए जाएंगे या फिर सिर्फ सैन्य फैसले होंगे। तो इंटरनेशनल रिलेशन एंड इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के फैकल्टी मनन चतुर्वेदी बताते हैं कि अगर क्वाड के जरिए हर फ्रंट पर काम होते हैं, तो इससे ज्यादा फायदा मिलेगा। सिर्फ सैन्य सहयोग से उतना फायदा नहीं होने वाला है।
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