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तब्दीली... रियासत-ए-मदीना, नया पाकिस्तान... क्यों हारे इमरान खान? पांच धुरंधरों ने कैसे चटाई धूल?

इमरान खान को पाकिस्तानी संसद में साधारण बहुमत हासिल थी और विपक्ष ने इसे सेना का आशीर्वाद बताया था, लेकिन इमरान खान ने बहुमत की अवहेलना की और गैर- लोकतांत्रिक ताकतों के आगे घुटने टेक दिए।

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इस्लामाबाद, अप्रैल 10: बीती रात पाकिस्तान के नेशनल असेंबली में एक ऐसा वक्त आया, जब ऐसा लगा, कि देश के तमाम स्तंभों के बीच प्रलयंकारी टक्कर हो रही है। ऐसा लग रहा था, कि मानो देश के तमाम संस्थान एक दूसरे के सामने टकराने के लिए खड़े हों। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान... 'आखिरी गेंद तक खेलेंगे' की जिद में न्यायपालिका, आर्मी, विधायिका, कार्यपालिका...और एक असाधारण संसदीय प्रक्रिया को एक तमाशा में बदलने के लिए तैयार हैं, लेकिन 'कप्तान' अंत में हार गया। राजनीति के पुराने धुरंधरों ने कप्तान खान को पराजित कर दिया। लेकिन कैसे....?

पराजित हो गया ‘कप्तान’

पराजित हो गया ‘कप्तान’

पाकिस्तानियों की घड़ी में 12 बजने में कुछ वक्त का देर था और आखिरकार तय हो गया, कि कप्तान विदा होने वाला है। आखिरकार विपक्ष ने संसद को अपनी बात सुनने के लिए मजबूर कर ही दिया। और इस प्रकार, पाकिस्तान के संविधान दिवस के शुरुआती घंटों में, पीटीआई सरकार एक धमाके के साथ नहीं, बल्कि रात के अंधेरे में कानाफूसी के साथ गिर गई। जब साल 2018 में तहरीक-ए-इंसाफ सत्ता में आई थी, और देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, तो इमरान खान ने पाकिस्तान की फिजाओं में ताजी हवा की सांस लाने का वादा किया था। लेकिन, राजनीतिक इंजीनियरिंग और एक 'दोषपूर्ण' प्रणाली ने इमरान खान की जीत की वैधता को कम कर दिया था। लेकिन, देश का आम नागरिक, जो सियासी जमातों से थक चुका था, वो अपने इतिहास के महान कप्तान को एक मौका देने के लिए तैयार था। लेकिन, वक्त बीता और... तहरीक-ए-इंसान ने अपने ही बनाए आदर्शों को खत्म करना शुरू कर दिया।

क्यों नाकाम होते गये इमरान खान?

क्यों नाकाम होते गये इमरान खान?

इमरान खान को पाकिस्तानी संसद में साधारण बहुमत हासिल थी और विपक्ष ने इसे सेना का आशीर्वाद बताया था, लेकिन इमरान खान ने बहुमत की अवहेलना की और गैर- लोकतांत्रिक ताकतों (जैसे- तहरीक-ए-लब्बैक) के आगे घुटने टेकने शुरू कर दिए। एक तरफ इमरान खान सरकार कट्टरपंथी ताकतों के आगे हथियार डाल रही थी, तो दूसरी तरफ अनुभवहीनता की वजह से अपने मंत्रिमंडल में लगातार फेरबदल कर रही थी। इमरान खान के मंत्री हर वक्त खुद को खतरे में महसूस कर रहे थे। सिर्फ साढ़े तीन साल के शासन में इमरान खान ने पांच बार वित्तमंत्री बदलकर जनता में ये संदेश दे दिया, कि सरकार को अर्थव्यवस्था का ज्ञान नहीं है।

आत्मनिरिक्षण की जगह घमंड

आत्मनिरिक्षण की जगह घमंड

ये पाकिस्तान का दुर्भाग्य ही था, कि जिस नेता को जनता नायक मान रही थी, वो अपनी गलती से आत्मनिरिक्षण करने के बजाए अपनी कमियों के लिए कभी विपक्ष को.. तो कभी जनता को ही जिम्मेदार ठहरा रहा था। इमरान खान ने यहां तक कह दिया, कि वो जो बदलाव लाना चाहते हैं, उस बदलाव के लिए जनता तैयार ही नहीं है। जिस इमरान खान को आर्मी सत्ता में लेकर आई थी, उस इमरान खान ने सेना के 'मार्गदर्शन' को अपने अधिकारों में उल्लंघन माना और धीरे धीरे सेना को ही अपने खिलाफ कर लिया और आकिरकार सेना को खिलाफ करना इमरान सरकार के लिए घातक साबित हो गया। सेना ने सरकार से अपनी बैसाखी छीन ली थी और इमरान खान राजनीतिक अपंग हो गये।

राजनीति धुरंधरों ने पछाड़ा

राजनीति धुरंधरों ने पछाड़ा

साढ़े तीन साल बीतते बीतते पाकिस्तान की न्यूट्रल आबादी के बीच इमरान खान ने अपनी छवि एक ऐसे नेता की बना ली, जो तानाशाही विचार का है। जनता इमरान खान को घमंड से चूर एक ऐसा नेता मानने लगी, जिसकी नजर में ना संविधान की अहमियत है, ना संसद की और ना ही जनता के वोट की। प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान ने जिस लहजे का इस्तेमाल किया, वो प्रधानमंत्री की गरिमा के खिलाफ था। उन्होंने अपने विरोधियों को चोर, डकैत, लुटेरा, गद्दार कहना शुरू कर दिया। प्रमुख नेता फजर्रूहमान को तो इमरान खान सार्वजनिक तौर पर 'डीजल' बुलाते थे, तो दूसरी तरफ खतरनाक कानूनों के जरिए तमाम विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंसना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से पाकिस्तान का विपक्ष एकजुट होने लगा, लेकिन इमरान खान नहीं माने और उन्होंने विपक्ष की एकजुटता भंग करने की एक भी कोशिश नहीं की, बल्कि वो ये मानते रहे, कि ये कुछ नहीं कर सकते हैं। आईये जानते हैं उन धुरंधरों बारे में, जिन्होंने इमरान की सत्ता को उखाड़ फेंका।

शहबाज शरीफ....

शहबाज शरीफ....

तीन बार के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ, जिन्हें इमरान खान ने अपने कानूनों में फंसाकर फिर से प्रधानमंत्री बनने के लिए अयोग्य ठहरा दिया था, उनके भाई ने इमरान के खिलाफ सबसे बड़ा मोर्चा खोला और विपक्ष को एकजुट करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। लंदन में बैठे नवाज शरीफ राजनीतिक रणनीति बनाने में माहिर हैं, तो शहबाद शरीफ सेना के काफी करीबी रहे है। 70 साल के शहबाज शरीफ अपने आप में एक राजनीतिक दिग्गज हैं। और उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर पंजाब में अपने लिए बड़ा जनाधार बना रखा है, उन्होंने इमरान सरकार को फंदे में घेरना शुरू किया। शहबाज शरीफ को अपने भाषणों और कविताओं के जरिए लोगों को अपनी तरफ करना बखूबी आता है और पंजाब प्रांत में वो काफी लोकप्रिय हैं।

आसिफ अली जरदारी

आसिफ अली जरदारी

आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के रहने वाले हैं और काफी अमीर परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो अपनी प्लेबॉय छवि के लिए अभी भी जाने जाते हैं। उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से शादी की थी। आसिफ अली जरदारी को एक भ्रष्ट नेता माना जाता है और उन्हें 'मिस्टर 10%' के नाम से भी जाना जाता है। आसिफ अली जरदारी पर भ्रष्टाचार, नशीली दवाओं की तस्करी, हत्या में शामिल होने जैसे आरोप हैं, जिनकी वजह से उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा, लेकिन अपनी राजनीतिक रसूख के चलते उन्हें कभी भी मुकदमे का सामना नहीं करना पड़ा। साल 2007 में बेनजीर भुट्टो हत्याकांड के बाद वो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सह-अध्यक्ष बने और एक साल बाद पीएमएल-एन के साथ गठबंधन कर देश के राष्ट्रपति बने।

बिलावल भुट्टो जरदारी

बिलावल भुट्टो जरदारी

बेनजीर भुट्टो और आसिफ जरदारी के बेटे बिलावल भुट्टो जरदारी राजनीतिक राजघराने हैं और अपनी मां की हत्या के बाद महज 19 साल की उम्र में पीपीपी के अध्यक्ष बने। ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई करने वाले बिलावल भुट्टो 33 साल के हैं और अपनी मां की तरह एक प्रगतिशील नेता माने जाते हैं। बिलावल भुट्टो अकसर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर बात करते रहते हैं और चूंकी पाकिस्तान की आधी से ज्यादा आबादी 22 वर्ष या उससे कम आयु की है, लिहाजा बिलावस भुट्टो की सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को खुद से जोड़कर रखते हैं। हालांकि उर्दू, जो पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा है, उसपर कमजोर पकड़ की वजह से उनका अक्सर मजाक उड़ाया जाता है।

मौलाना फजलुर रहमान

मौलाना फजलुर रहमान

एक तेजतर्रार इस्लामवादी कट्टरपंथी के रूप में राजनीतिक करियर शुरू करने के बाद, मुस्लिम मौलवी ने वर्षों से अपनी सार्वजनिक छवि को एक लचीलेपन के साथ नरम किया है और उन्होंने देश की वामपंथी पार्टियों के साथ...और धर्मनिरपेक्ष दलों के साथ भी गठबंधन किया है। मौलाना फजलुर रहमान, पाकिस्तान में हजारों मदरसा चलाते हैं और उन्होंने तालिबान के सैकड़ों जिहादियों को भी अपने मदरसे में तालीम दी है, लिहाजा तालिबान में भी उनकी काफी पकड़ है। उनकी पार्टी का नाम जमीयतुल उलेमा-ए-इस्लाम है और उनके साथ पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी हमेशा रही है। हालांकि, वो अकेले दम पर सरकार बना नहीं सकते हैं, लेकिन किसी भी सरकार से जुड़कर उसे मजबूकी देने में काफी काबिल हैं। मौलाना फजलुर रहमान की इमरान खान के साथ गहरी दुश्मनी रही है और उन्होंने यहूदी लड़की जेमिमा गोल्डस्मिथ के साथ शादी को लेकर इमरान खान की गहरी आलोचना की थी, जबकि प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान मौलाना फजलुर रहमान को 'डीजल' कहकर संबोधित करते थे।

मरियम नवाज

मरियम नवाज

मरियम नवाज भी पाकिस्तान के युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं और वो पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी हैं। मरियम नवाज ने साल 2012 में काफी देर से राजनीति में एंट्री ली। देश की राजनीति में आने से पहले मरियम नवाज शरीफ परिवार के एक फाउंडेशन का कामकाज संभाल रही थीं। साल 2012 में पिता की राजनीतिक विरासत संभालने के बाद मरियम नवाज ने उनके पक्ष में काफी प्रचार किया और साल 2013 में जब नवाज शरीफ फिर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, तो उनकी जीत में मरियम ने काफी अहम भूमिका निभाई थी। वहीं, जब पनाना पेपर्स लीक मामले ने नवाज शरीफ की राजनीति को खत्म कर दिया, तो मरियम नवाज ने अपने चाचा शहबाज शरीफ के साथ मिलकर पार्टी संभाली। हालांकि, मिल्स भ्रष्टाचार मामले को लेकर मरियम को जेल भी जाना पड़ा और उनके ऊपर 10 सालों तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है। इस वक्त मरियम नवाज को लाहौर हाईकोर्ट से बेल मिली हुई है।

पाकिस्तान में एक भी प्रधानमंत्री क्यों पूरे नहीं कर पाया पांच साल का शासन? क्या संविधान में है गलती?पाकिस्तान में एक भी प्रधानमंत्री क्यों पूरे नहीं कर पाया पांच साल का शासन? क्या संविधान में है गलती?

English summary
Why did Imran Khan lose despite slogans of noble intentions and change? Know how the five stalwart leaders made the captain wash away?
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