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पाकिस्तान: परदे के पीछे सरकार और सेना का 'महाभारत'

पाकिस्तान में शनिवार को हिंसा भड़कने से पहले इस्लामाबाद में पिछले तीन हफ्तों से अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था.

By BBC News हिन्दी
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पाकिस्तान में शनिवार को हिंसा भड़कने से पहले इस्लामाबाद में पिछले तीन हफ्तों से अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था.

कई लोग इसके लिए सरकार को कसूरवार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने प्रदर्शनकारियों को बड़ी तादाद में इकट्ठा होने की इजाजत दी जिससे देश भर में उनके आंदोलन के लिए माहौल बन गया.

जब प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ क़दम उठाया गया तो ऐसा लगा कि उन पर क़ाबू पाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है.

पुलिस प्रदर्शन के अगुवा लोगों को गिरफ़्तार कर पाने में नाकाम रही. और जब इस विरोध प्रदर्शन की हवा दूसरे शहरों में फैलने लगी तो उन्होंने उस विवादास्पद नीति का सहारा लिया जिसके तहत न्यूज़ चैनलों पर लाइव प्रसारण की रोक और सोशल मीडिया पर पाबंदी लगा दी जाती है.

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नवाज़ का जनाधार

लेकिन पाकिस्तान जैसे देश में ये हालात कोई बहुत अप्रत्याशित नहीं कहे जा सकते जहां हर दो-चार साल पर चुनी हुई सरकारों के क़दमों के नीचे से ज़मीन खिसक जाती है. भ्रष्टाचार के मुकदमों का इस्तेमाल अदालतों के ज़रिए सरकार गिराने के लिए किया जाता है.

ऐसे मामले भी देखे गए हैं जब मजहब के नाम पर इकट्ठा हुए लोग शहरी इलाक़ों में उत्पात मचाकर चुनी हुई सरकारों की हैसियत को चुनौती देते हैं. कुछ लोग तो ये अंदेशा भी जताते हैं कि इन सब के पीछे कहीं फ़ौज का हाथ तो नहीं! लेकिन पाकिस्तान की आर्मी इन आरोपों से इनकार करती है.

जुलाई में भ्रष्टाचार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले के बाद नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था. इसके बाद ये माना जा रहा था कि नवाज़ शरीफ़ की पार्टी का जनाधार सिकुड़ेगा लेकिन ऐसा होते हुए दिख नहीं रहा है.

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दक्षिणपंथी संगठन

और अब तो ये भी कहा जा रहा है कि नवाज़ शरीफ़ की पार्टी अगले बरस होने वाले आम चुनावों में फिर से जीत का परचम फहरा सकती है. पंजाब सूबे के दक्षिणपंथी मजहबी मतदाताओं पर नवाज़ शरीफ़ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की अच्छी पकड़ रही है.

लेकिन शनिवार की हिंसा के बाद कई लोग ये मानते हैं कि धुर दक्षिणपंथी संगठन 'तहरीक लब्बैक या रसूल-उल-उल्लाह' (टीएलवाईआरए) के विरोध प्रदर्शन का मक़सद पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के कुछ समर्थकों को अपनी ओर खींचना है.

शनिवार को इस मामले में सेना भी उस वक्त जुड़ गई जब उसके प्रवक्ता ने ट्विटर पर कहा, "आर्मी चीफ़ ने प्रधानमंत्री शाहिद खकान से अब्बासी से बात की है और कहा है कि 'दोनों पक्षों को हिंसा से दूर रहकर' प्रदर्शनकारियों का मुद्दा सुलझाना चाहिए..."

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  • आर्मी का ट्वीट

    सेना के इस बयान पर कई सवाल उठे हैं. अंग्रेजी अख़बार 'डॉन' ने अपने संपादकीय में लिखा है, "सरकार और प्रदर्शनकारियों की ग़लत तरीके से एक दूसरे से तुलना की जा रही है." कुछ लोगों ने सेना के इस ट्वीट की टाइमिंग पर चिंता ज़ाहिर की है. उन्हें डर है कि इससे प्रदर्शनकारियों को बढ़ावा मिलेगा.

    इस ट्वीट के कुछ ही घंटों के भीतर सरकार ने नागरिक प्रशासन की मदद के लिए सेना बुलाने का फैसला कर लिया. लेकिन सुरक्षा विशेषज्ञों की राय में सेना केवल सरकारी इमारतों और दूसरी संपत्तियों पर किसी संभावित हमले की सूरत में उनकी हिफ़ाजत कर सकती है.

    इस बात की संभावना कम ही है कि सेना प्रदर्शनकारियों से सीधे उलझे. पाकिस्तान में ऐसी समझ बनती हुई दिख रही है कि सरकार को पहले से इन हालात का अंदेशा था, इसलिए वो शुरुआत में प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कोई सख्त क़दम उठाने से हिचक रही थी लेकिन न्यायपालिका के दबाव में उन्हें कार्रवाई करनी पड़ी.

    दो हफ्ते पहले ही इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने हाइवे पर धरना देने पर पाबंदी लगा दी थी.

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    तेज़ी से बिगड़े हालात

    पिछले हफ्ते कोर्ट ने धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाने में प्रशासन की नाकामी को लेकर हाई कोर्ट ने आला अधिकारियों को अवमानना का नोटिस भी जारी किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू करते हुए सरकार से कहीं आने-जाने के आम लोगों के हक को बहाल करने के लिए कहा था.

    शुरू में इस विरोध प्रदर्शन को मीडिया में ज़्यादा कवरेज नहीं मिल रहा था. एक तो प्रदर्शनकारियों की तादाद कोई बहुत ज़्यादा नहीं थी और दूसरा ये कि विरोध के नाम पर सड़क ब्लॉक करने का तरीका पाकिस्तान में अब रोजमर्रा की बात हो गई है. लेकिन शनिवार को हालात जिस तेज़ी से बिगड़े, उससे चीज़ें बदल गईं.

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    AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
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    सरकार और सेना पर दबाव

    सरकार और सेना दोनों पर ही दबाव बढ़ने लगा और ये तय करना मुश्किल हो गया कि हालात किस करवट लेंगे.

    ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगा दी गई, टेलीविजन चैनलों का प्रसारण बंद कर दिया गया और किसी तरह का सीधा प्रसारण करने पर रोक लगा दी गई.

    इस बीच पाकिस्तान के पंजाब सूबे में स्कूलों को सोमवार और मंगलवार के लिए बंद रखने का आदेश दिया गया है. यहां मुल्क की 50 फ़ीसदी आबादी बसती है.

    पंजाब सूबा नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) का गढ़ माना जाता है. अगले साल के चुनावों में नवाज़ शरीफ़ का भविष्य पंजाब ही तय करने वाला है.

  • BBC Hindi
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    English summary
    Pakistan Government and army behind the scenes Mahabharata
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