पाकिस्तान: पूर्व मंत्री के 'सभी धर्म बराबर हैं' कहने पर हुई ईशनिंदा की शिक़ायत
नवाज़ शरीफ़ की पार्टी के नेता के ख़िलाफ़ ईशनिंदा की शिक़ायत हुई है. उन्होंने संसद में धर्मनिरपेक्षता पर बयान दिया था.
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक़े-इंसाफ़ के एक स्थानीय नेता ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ के ख़िलाफ़ ईश-निंदा की शिक़ायत की है.
ख़्वाजा आसिफ़ ने हाल ही में राष्ट्रीय असेंबली में धर्मनिरपेक्षता पर एक बयान दिया था.
बीते सप्ताह संसद में दिये इस षण में ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा था, "पाकिस्तान 22 करोड़ लोगों का देश है और यह मायने नहीं रखता कि किसका धर्म क्या है. कोई धर्म किसी दूसरे धर्म से बेहतर नहीं है."
ख़्वाजा आसिफ़ ने कहा कि "जो लोग इस्लामाबाद में मंदिर बनने का विरोध कर रहे हैं, ये वही लोग हैं जिन्होंने देश के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को भी काफ़िरे-आज़म कहा है."
ख़्वाजा आसिफ़ ने ये भी कहा कि "वो उन मूल्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जिनमें जिन्ना विश्वास करते थे. अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना एक इस्लामिक परंपरा है. इस्लामी शासनकाल में अल्पसंख्यक कभी असुरक्षित नहीं रहे हैं."
इस दौरान उन्होंने कहा कि "1980 के दौर के कट्टरपंथ ने पाकिस्तान की परंपरा को भी बर्बाद कर दिया है."
उन्होंने कहा कि "ये नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि वो समाज में सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा दें."
ख़्वाजा आसिफ़ के ख़िलाफ़ क्या है शिकायत?
शिकायतकर्ता क़मर रियाज़ नारोवाल ज़िले के रहने वाले हैं और पेशे से वकील हैं. वो पाकिस्तान तहरीक़े-इंसाफ़ पार्टी के एक स्थानीय कार्यकर्ता भी हैं.
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि "उन्होंने टीवी पर पूर्व केंद्रीय मंत्री का बयान सुना और उन्हें सभी धर्मों को संविधान के तहत बराबर बताये जाने से हमें चोट पहुँची है."
उन्होंने कहा, "क़ुरान साफ़तौर पर कहता है कि इस्लाम बाकी धर्मों से बेहतर है और ये कहना कि सभी धर्म बराबर हैं, मेरी नज़र में इस्लाम के ख़िलाफ़ है."
क़मर रियाज़ कहते हैं कि वो सभी धर्मों की स्वतंत्रता में यक़ीन रखते हैं उनकी शिकायत का किसी अल्पसंख्यक धर्म के ख़िलाफ़ नहीं है.
वो कहते हैं, "जो पूर्व मंत्री ने कहा वो मेरी नज़र में आपत्तिजनक है. ये शरिया क़ानून के ख़िलाफ़ है. उन्होंने मुसलमानों को विधर्मियों के बराबर ठहराया है. इससे मुसलानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची है."
अपनी शिकायत में क़मर रियाज़ ने क़ुरान की कई आयतों का भी ज़िक्र किया है. उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के कथनों का ज़िक्र करते हुए तर्क दिया है कि "इस्लाम धर्म दूसरे धर्मों से बेहतर है."
वहीं जफ़रवाल थाने के एसएचओ फ़रयाद अली ने बीबीसी को बताया कि ये घटना इस्लामाबाद में हुई है और ये उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आता है. उन्होंने अभी शिकायत को दर्ज नहीं की है.
उन्होंने कहा, "मैंने शिकायत के बारे में ज़िले के पुलिस अधिकारियों को बता दिया है और इस पर चर्चा के लिए शिकायतकर्ता को बुलाया है. अभी हमने इसे दर्ज नहीं किया है."
शिकायतकर्ता का कहना है कि "वो स्थानीय प्रेस क्लब के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे थे लेकिन पुलिस अधिकारी के बुलाने के बाद उन्होंने फिलहाल इसे टाल दिया है."
उन्होंने कहा कि "अगर पुलिस ख़्वाजा आसिफ़ के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज नहीं करेगी तो वो अदालत का रुख करेंगे."
क्या है प्रतिक्रिया?
बीबीसी ने ख़्वाजा आसिफ़ से बात करके उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही लेकिन लेख लिखे जाने तक वो उपलब्ध नहीं हो सके.
हालांकि पीएमएल-एन के अध्यक्ष ने ट्विटर पर इस विवाद पर टिप्पणी करते हुए ख़्वाजा आसिफ़ का समर्थन किया है.
उन्होंने लिखा, "हमारे महान धर्म इस्लाम में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की विस्तृत व्याख्या है. बराबरी पाकिस्तान के संविधान की मूल भावना है. ख़्वाजा आसिफ़ ने राष्ट्रीय सदन में जो कहा है वो इस्लाम की शिक्षा और संविधान के प्रावधानों से ही प्रेरित है."
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमरीका के आयोग ने भी इस घटनाक्रम पर चिंता ज़ाहिर की है और कहा है, "यूएससीआईआरएफ़ संसद ख़्वाजा आसिफ़ के ख़िलाफ़ ईशनिंदा की शिकायत से चिंतित है. उन्होंने राष्ट्रीय सदन में सभी धर्मों को बराबर बताया था जिसके बाद ये शिकायत की गई है. यूएससीआईआरएफ़ पाकिस्तान से ईशनिंदा के सभी मामलों की समीक्षा करने की अपील करता है."
इसके पीछे क्या है मुद्दा?
इसी महीने इस्लामाबाद विकास प्राधिकरण ने हिंदू समुदाय से मंदिर की चारदीवारी के काम को रोकने के लिए कहा था.
हिंदू मंदिर के लिए दी गई ज़मीन पर विवाद हो जाने के बाद ये क़दम उठाया गया था.
कई धर्म गुरुओं और पाकिस्तानी नेताओं ने तर्क दिया था कि पाकिस्तान एक इस्लामी देश है और यहाँ किसी मंदिर के निर्माण को अनुमति नहीं दी जा सकती है. उनका कहना था कि मंदिर बनना ग़ैर इस्लामी है और इस्लामी सरकार के शासन में मंदिर नहीं बनना चाहिए.
इस्लामाबाद में कृष्णा कांप्लेक्स के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने दस करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता दी है.
लेकिन मुस्लिम धर्मगुरुओं के विरोध के बाद उनकी सरकार ने इस्लामी विचारधारा परिषद से राय मांगी है.
वहीं कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी का कहना है कि "मंदिर का निर्माण इसलिए रोका गया है क्योंकि अभी हिंदू समुदाय की ओर से कोई बिल्डिंग प्लान पेश नहीं किया गया है और राजधानी इस्लामाबाद में प्राधिकरण की मंज़ूरी के बिना कोई भी निर्माण करना ग़ैर क़ानूनी है."