क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

अब बस पिता की याद में चल रही है हैदराबाद की महबूब रेडियो सर्विस

Google Oneindia News
Provided by Deutsche Welle

नई दिल्ली, 20 नवंबर। रेडियो का भी एक जमाना था. खबर और मनोरंजन का एकमात्र साधन. दीवानगी इतनी थी कि हर प्रोग्राम के अपने खास श्रोता होते थे. रेडियो सजा कर आलमारी पर रखा जाता और लोग उसके इर्द-गिर्द झुंड बना कर सुना करते. क्रिकेट कमेंटरी हों या फिर दूर-दराज, देश-विदेश के स्टेशन, सबको सुनने के लिए लोग उत्साहित रहते थे. किसी भी खबर की पुष्टि के लिए दुहाई दी जाती थी, हमने ये बात रेडियो पर सुनी है.

वक्त बदला, रेडियो का जमाना खत्म तो नहीं हुआ, लेकिन वो दीवानगी नहीं रही. मनोरंजन और खबरों के कई साधन आ गए. अब सब कुछ मोबाइल पर हो गया है. रेडियो अब शहरों में एफएम तक ही सीमित रह गया है. अब रेडियो का उपयोग गाड़ी में एफएम पर गानों और यदा-कदा समाचार सुनने तक सीमित हो है.

सारे पुराने रेडियो गए कहां?

भारत के दक्षिणी राज्य तेलंगाना के हैदराबाद शहर में ऐतिहासिक चारमीनार से कुछ दूरी पर छत्ता बाजार है. अभी भी छत्ता बाजार काफी इतिहास समेटे हुए हैं. रोड पर दुकानें भले नयी बन गई हों, बीच सड़क पर बने हुए गेट पुराने वक्त की याद दिलाते हैं.

इन नई दुकानों के बीच मौजूद है 'महबूब रेडियो सर्विस' नाम की दुकान. इस दुकान पर आने पर आपको अहसास होगा कि वक्त थम सा गया है और आप एक म्यूजियम में हैं. इस दुकान पर मर्फी, रेडियो कॉपोरेशन ऑफ अमेरिका, एचएमवी, मार्कोनी, फिलिप्स, ब्रिटेन का प्ले रेडियो, जर्मनी का ग्रुंडिष रेडियो, वेस्टिंग्स हाउस रेडियो, बुश और भी तमाम कंपनियों के रेडियो रखे हुए हैं. इनमें से कुछ चालू हालत में भी हैं.

मोहम्मद मोइनुद्दीन चलाते हैं अपने पिता की दुकान

हैदराबाद में यह एकमात्र दुकान ऐसी बची है जहां पर पूरे देश और विदेशों से लोग अपने पुराने रेडियो ठीक कराने आते हैं. बड़े बड़े रेडियो, ड्राई बैटरी वाले, वॉल्व सिस्टम वाले और न जाने कैसे-कैसे रेडियो यहां ठीक किए जाते हैं.

दुकान पर रखे हुए रेडियो देखने से एक झलक इसकी भी मिलती है कि कैसे तकनीक ने तरक्की की है. पहले के रेडियो में बड़े-बड़े स्पीकर, कुछ में स्पीकर अलग रखे हुए , रेडियो पर फ्रीक्वेंसी के अलावा स्टेशन का नाम भी जैसे रेडियो सीलोन, वॉइस ऑफ अमेरिका इत्यादि भी लिखा रहता है. किसी रेडियो की बैटरी अलग रखी जाती थी, कुछ की बैटरी बदलनी पड़ती थी, कुछ ड्राई सेल प्रयोग करते थे. कई तो ऐसे कि वजन 10 किलो से ज्यादा है.

महबूब रेडियो का इतिहास

दुकान के मालिक मोहम्मद मोइनुद्दीन भी पुराने स्टाइल में रहते हैं. मोबाइल फोन रखते नहीं हैं, सिर्फ बेसिक लैंडलाइन फोन है जो अक्सर खराब रहता है. नमाज के वक्त वह दुकान का शटर गिरा कर चले जाते हैं लेकिन ताला लगाने की जरुरत नहीं महसूस होती.

मोइनुद्दीन बताते हैं कि यह दुकान उनके पिता शेख महबूब ने 1910 में मोहल्ला दबीरपुरा में शुरू की थी. 1948 में इसे छत्ता बाजार में स्थानांतरित कर दिया गया. उस समय हैदराबाद में निजाम का शासन था. शेख महबूब नल के पाइप का व्यापार करते थे. महाराष्ट्र के बम्बई (अब मुंबई) से वह पाइप लाते और हैदराबाद में बेच देते थे.

छत्ता बाजार में है महबूब रेडियो सर्विस

वहां उनको एक दुकानदार ने एक रेडियो दिया जिसके पीछे इरादा यही था कि अगर बिक जाता है तो बेच दें वरना वापस कर दें. इस प्रकार शेख महबूब अपने साथ 40 किलो का एक रेडियो ले आए. हैदराबाद में वह रेडियो बिक गया और ये सिलसिला शुरू हो गया.

इस काम में इनको साथ मिला महबूब अली खान का जो वैसे अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के थे लेकिन अपनी ससुराल हैदराबाद में रहते थे. उन्हें रेडियो का ज्ञान अच्छा था और वो अपने वक्त में माने हुए रेडियो मैकेनिक थे. दोनों महबूब ने मिल कर ये दुकान खोली.

मोइनुद्दीन बताते हैं कि उस समय उनकी दुकान सुबह सात बजे से देर रात तक खुली रहती थी. इसका कारण था कि रेडियो लोकप्रिय हो चुका था और लोग बढ़-चढ़ कर इसको खरीद रहे थे. यही नहीं पुराने रेडियो भी ठीक करवाने के लिए भी लोग काफी आते थे.

मोइनुद्दीन के बड़े भाई मुजीबुद्दीन भी अपने पिता के काम में का हाथ बंटाने लगे. मोइनुद्दीन के अनुसार वह समय ऐसा था कि महबूब मैकेनिक से रेडियो बनाना सीखने के लिए बहुत युवा आते थे क्योंकि रेडियो ठीक करना आ जाता तो कहीं भी रोजगार मिल जाता था.

शाही थी दुकान की शान

मोइनुद्दीन के अनुसार उनके पिता कभी निजाम हैदराबाद का भी रेडियो ठीक किया करते थे. अक्सर रेडियो बनाने उनके महल जाते और नजराना मिलता जिसके साथ मेवा भी होता था. वो नजराना तब के समय के 5-7 रुपये होता था जिसे महल में चुपचाप लेकर दुकान पर आकर देखना होता था. अभी भी मोइनुद्दीन ने अपनी दुकान पर अपने पिता और तत्कालीन निजाम की फोटो लगा रखी है.

अब जर्जर हालत में लेकिन इतिहास समेटे है ये दुकान

महमूद इंजीनियर हैदराबाद में कॉर्पोरेटर हैं. वह बताते हैं कि ये दुकान महबूब रेडियो सर्विस अब शहर की धरोहर है. लोग अब भी दूर दराज से संपर्क करते हैं. जिनके पास पुराने रेडियो हैं और वे उसकी मरम्मत करवाना चाहते हैं, खोजते हुए यहां आते हैं.

असल में पुराने रेडियो में हर पुर्जा बदला जा सकता है. इस कारण इस दुकान पर कोई न कोई पुर्जा किसी न किसी पुराने रेडियो से मिल ही जाता है. दुकान में भरे हुए पुराने टूटे फूटे रेडियो भले दूर से कबाड़ दिखें लेकिन इनमें से हर रेडियो एक इतिहास समेटे हैं.

घटता महत्व

धीरे धीरे इस ऐतिहासिक दुकान का महत्व कम हो रहा है, कद्रदान घट रहे हैं और दुकान पर रेडियो रिपेयरिंग का काम सिमट रहा है. लेकिन फिर भी अक्सर मोइनुद्दीन के पास से कोई न कोई विदेशी या देश का ही नागरिक पहुंच जाता हैं. बहुत बार तो वो रेडियो की फोटो लेकर आते हैं और यहां उनको रिपेयरिंग के बारे में बताया जाता हैं. अक्सर लंदन, अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों के लोग यहां पहुंचते हैं.

मोइनुद्दीन अब सत्तर वर्ष से अधिक के हो चुके हैं. अब इस काम को वह अपने पिता की याद में जारी रखे हैं और कहते हैं कि जब तक सेहत साथ देगी, अपने पिता को यूं ही रोज याद करते रहेंगे.

Source: DW

English summary
Mehboob Radio Service of Hyderabad
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X