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तालिबान के खिलाफ एकजुट हो रही हैं कई शक्तियां, सुनी जा रही अफगानिस्तान में बड़े संघर्ष की आहट

तालिबान ने पिछले साल एक अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की थी, लेकिन आज तक तालिबान अपनी सरकार में सभी पक्षों, धर्मों और समुदायों को शामिल करने में नाकाम रहा है, लिहाजा बाकी गुटों की नाराजगी कम नहीं हुई है।

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काबुल, अगस्त 18: सिर्फ तीन पहले ही तालिबान ने अफगानिस्तान में अपने शासन के एक साल पूरा होने पर वर्षगांठ मनाई थी, लेकिन बुधवार को काबुल के कोटल खैरखाना में एक मदरसे में हुए भीषण विस्फोट में कम से कम 21 लोग मार दिए गए और करीब 40 लोग घायल हो गए। ये धमाके असल में अफगानिस्तान में आने वाले दिनों में शुरू होने वाले एक और भीषण संघर्ष से पहले की आहट है, जिसे अफगानिस्तान की धरती पर काफी आसानी से महसूस किया जा सकता है। एक खुफिया अधिकारी ने इंडिया टुडे टीवी को बताया, कि विस्फोटक उस इलाके में रखा गया था, जहां से मस्जिद के इमाम नमाज अदा करते हैं और धमाके में उनकी भी जान चली गई। ये मौलवी आमिर काबली तालिबान के प्रमुख मौलवियों में से एक थे और पिछले 15 दिनों में काबुल शहर हुआ यह तीसरा बड़ा धमाका है, जिसमें विशेष रूप से मौलवियों को निशाना बनाया गया है।

सबसे बड़ी चुनौती बनी आईएसआईएस

सबसे बड़ी चुनौती बनी आईएसआईएस

इंडिया टुडे टीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक चश्मदीद ने बताया कि, मारे गए और घायल लोगों में से कुछ तालिबान मुजाहिदीन के सदस्य माने जाते हैं और ये मदरसा एक तालिबानी मौलवी ही चला रहा था और इस मदरसे को जान- बूझकर निशाना बनाया गया है। तालिबान ने पिछले साल अगस्त में अमरुल्ला सालेह और अहमद मसूद के नेतृत्व वाले प्रतिरोध मोर्चे को कुचल दिया था और फिर अफगानिस्तान की सत्ता पर पूरी तरह से कब्जा हासिल कर लिया था, हालांकि पंजशीर पर तालिबान आखिर तक कब्जा नहीं कर पाया। लेकिन, ज्यादातर प्रतिरोध मोर्चा के लड़ाके या तो मारे गए या फिर ताजिकिस्तान भाग गए। कई लोगों ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उसकी सेना में शामिल हो गए। लेकिन, ये मोर्चा एक बार फिर से बनने लगा है। अब करीब एक साल बाद ताजिकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में तालिबान लड़ाकों और अहमद मसूद के वफादारों के बीच कुछ झड़पों की खबरें आ रही हैं। हालांकि, तालिबान ने उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया है, लेकिन पंजशेर में तालिबान समर्थकों में से एक ने इंडिया टुडे टीवी को बताया कि, वर्तमान में डेयर पंजशेर के कुछ इलाकों में कुछ प्रतिरोध है।

फिर से संगठित हो रहे हैं अलग अलग गुट

फिर से संगठित हो रहे हैं अलग अलग गुट

तालिबान ने पिछले साल एक अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की थी, लेकिन आज तक तालिबान अपनी सरकार में सभी पक्षों, धर्मों और समुदायों को शामिल करने में नाकाम रहा है, लिहाजा बाकी गुटों की नाराजगी कम नहीं हुई है। वहीं, आईएसआईएस अलग ही मकसद से धमाके कर रहा है, जिसका मकसद अफगानिस्तान में अपनी सत्ता हासिल करनी है और वो तालिबान को उसी की सुई चुभो रहा है। तालिबान लाख कोशिश के बाद भी आईएसआईएस को रोकने में कामयाब नहीं होगा, क्योंकि आईएसआईएस को भी कई कट्टर समुदायों का समर्थन प्राप्त है। वहीं, दक्षिण एशिया में व्यापक अनुभव वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससी) के अधिकारी लिसा कर्टिस के अनुसार, अफगान तालिबान के खिलाफ ये गुट धीरे धीरे मजबूत हो रहे हैं और ये लगातार मजबूत ही होंगे, और तालिबान के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलन को मजबूत होता जाएगा, क्योंकि तालिबान शासन आने के बाद अफगानिस्तान के आम लोगों की जिंदगी काफी खराब हो गई है।

उभर रहे हैं कई कट्टरपंथी गिरोह

उभर रहे हैं कई कट्टरपंथी गिरोह

अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के एक साल पूरे होने पर दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में कर्टिस ने कहा कि, तालिबान की वापसी के बाद अफगानिस्तान के अंदर अचानक से कई और अराजक और कट्टरपंथी विद्रोही समुह उभरने लगे हैं। हालांकि, तालिबान ने एक उदारवादी शासन की स्थापना का वादा किया था, लेकिन कई एक्सपर्ट्स का मानना है, कि कई आतंकवादी संगठनों को पनाह देना अब तालिबान की मजबूरी है, क्योंकि लड़ाई में उन संगठनों ने तालिबान की मदद की थी, जिसमें अलकायदा काफी सक्रिय है, जिसका प्रमुख आतंकवादी जवाहिरी तालिबान शासन में काबुल में आकर रहने लगा था और अमेरिकी हमले में मारा गया। वहीं, महिलाओं की शिक्षा को लेकर भी तालिबान दो गुटों में बंटा हुआ है और एक गुट महिलाओं के हाथ में किताब किसी भी तरह से नहीं देखना चाहता, जबकि दूसरा गुट महिलाओं के लिए थोड़ी आजादी चाहता है, इसीलिए तालिबान नेतृत्व आज तक तय महिलाओं की शिक्षा पर आखिरी फैसला नहीं ले पाया है।

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English summary
Many forces are beginning to organize in Afghanistan against the Taliban, due to which the sound of conflict is being heard.
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