भारत विरोध की बातें कर फिर नेपाल जीत रहे केपी शर्मा ओली? जानिए कैसे दे रहे राष्ट्रवाद को हवा
नेपाल में आम चुनाव के अब दो सप्ताह से भी कम समय का वक्त बच गया है। 20 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस लिया है।
नेपाल में आम चुनाव के अब दो सप्ताह से भी कम समय का वक्त बच गया है। 20 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है। बीते शुक्रवार को प्रमुख विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने दारचुला जिले से संसदीय और प्रांतीय चुनावों के लिए अपनी पहली प्रचार रैली आयोजित करके आधिकारिक तौर पर अपना चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। केपी शर्मा ओली अकेले दम पर यह चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में वह हर चाल चल लेना चाहते हैं जिससे उन्हीं जीत नसीब हो। दार्चुला से केपी शर्मा ओली के 2022 के चुनावी अभियान की शुरुआत करने के पीछे भी एक खास मकसद बताया जा रहा है।
दार्चुला के करीब हं लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी
दार्चुला नेपाल के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित है। यही वह इलाका है जो लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी इलाके से जुड़ा हुआ है। नेपाल कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपना हिस्सा बताता है। नेपाल का मानना है कि भारत ने इस इलाके पर जबरन कब्जा कर रखा है। नेपाल का दावा है कि महाकाली नदी लिम्पियाधुरा से निकलती है, इसलिए लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी नेपाल का हिस्सा है तो वहीं भारत का दावा है कि महाकाली नदी कालापानी गांव (उत्तराखंड) से निकलती है, इसलिए ये भारत का हिस्सा है। महाकाली नदी की धाराएं बदलती रहती हैं इसलिए दोनों ही देश समस्या का समाधान निकालने में असमर्थ हैं। दोनों ही देशों को सही रूप में यह नहीं पता है कि महाकाली नदी का उद्नम कहां से है, इसलिए दोनों देशों के बीच यह सीमा विवाद रहता है।
भारत-नेपाल सीमा विवाद का फायदा उठाना चाहते हैं ओली
केपी
शर्मा
ओली
इसी
विवाद
का
फायदा
उठाना
चाहते
हैं।
भारत
ने
नवंबर
2019
में
जम्मू-कश्मीर
को
दो
केंद्र
शासित
प्रदेश
बनाए
जाने
के
बाद
अपना
नक्शा
अपडेट
किया
था।
इस
नक्शे
में
ये
तीनों
क्षेत्र
भारतीय
हिस्से
में
दिखाए
गए
थे।
इसके
बाद
नेपाल
ने
20
मई
2020
को
अपना
नया
नक्शा
जारी
किया
था
जिसमें
लिपुलेख,
लिम्पियाधुरा
और
कालापानी
को
अपना
इलाका
दिखाया।
तब
केपी
शर्मा
ओली
नेपाल
के
पीएम
थे।
उन्होंने
9
जून,
2020
को
संसद
ने
सर्वसम्मति
से
देश
के
राजनीतिक
मानचित्र
में
बदलाव
के
लिए
नेपाल
के
संविधान
को
संशोधित
करने
के
लिए
एक
विधेयक
का
समर्थन
किया।
2015 में भारत-नेपाल संबंध हुए खराब
केपी शर्मा पहली बार अक्टूबर 2015 में नेपाल के प्रधानमंत्री बने। यह वह दौर था जब भारत-नेपाल के संबंध कुछ ठीक नहीं चल रहे थे। नेपाल के संविधान की घोषणा के बाद मधेसी समुदाय बेहद नाराज था देश एक जबरदस्त नाकाबंदी के दौर से गुजर रहा था। ऐसा दावा किया जाता कि भारत ने ही मधेशी लोगों के हितों की रक्षा के लिए नेपाल पर पांच महीने लंबे अनौपचारिक नाकेबंदी कर दी थी। भारतीय नाकाबंदी ने उन लाखों नेपालियों के लिए दर्द बढ़ा दिया था, जो अभी तक 2015 के भयानक भूकंप की पीड़ा से उबर नहीं पाए थे। प्रधानमंत्री के रूप में, ओली ने नाकाबंदी हटाए जाने तक भारत की यात्रा करने से इनकार कर दिया।
भारत विरोध का नारा लगा कर चुनाव जीते ओली
भारतीय नाकाबंदी के खिलाफ केपी शर्मा ओली रुख ने उन्हें एक राष्ट्रवादी आवाज के रूप में लोकप्रिय होने में मदद की। भारत विरोधी बयानों ने केपी शर्मा को खूब फायदा पहुंचाया। इसके ठीक 2 साल बाद 2017 में हुए नेपाल में हुए चुनावों में पार्टी केपी शर्मा ओली की पार्टी को जबर्दस्त जीत मिली। यूएमएल न केवल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, बल्कि माओवादी केंद्र के साथ उसके वाम गठबंधन ने प्रतिनिधि सभा में करीब दो-तिहाई बहुमत के हासिल कर लिया। इसके साथ-साथ वाम गठबंधन के पास सात में से छह प्रांतों में सत्ता मिल गई।
राष्ट्रवाद की हवा देकर चुनाव जीतना चाहते हैं ओली
अब ठीक पांच साल के बाद होने वाले संघीय और प्रांतीय चुनावों में केपी शर्मा ओली उसी राष्ट्रवादी जहाज पर सवारी करना चाह रहे हैं। हालांकि, राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ओली के नेतृत्व वाली तत्कालीन पिछली सरकार के पास जनता से किए गए वादों को पूरा करने और उन्हें पूरा करने का एक बड़ा अवसर था, लेकिन उन वादों को पूरा करने में केपी शर्मा पूरी तरह से विफल रहे। ऐसे में केपी शर्मा ओली के पास इस बार राष्ट्रवाद के अलावा और कोई एजेंडा नहीं है।
केपी शर्मा ओली का दांव होगा फेल
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, केपी शर्मा ओली लगभग साढ़े तीन साल तक सत्ता में रहे, जो कि किसी भी नेपाली प्रधानमंत्री के 1990 के बाद सबसे लंबे कार्यकाल में से एक है, फिर भी उनकी सरकार पिछले चुनावों से अपने वादों को पूरा करने के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नहीं कर सकी। नतीजतन, केपी शर्मा ओली अब एक नए नक्शे को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि कुछ विश्लेषकों का दावा है कि केपी शर्मा का ये राष्ट्रवाद के नाम पर वोट लेने का प्रयास फुस्स होने जा रहा है, क्योंकि लोग जान चुके हैं कि ओली भारत विरोध के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करता हैं मगर भारत के साथ भीतरी संबंध बनाए रखते हैं।