क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

कनाडा में खालिस्तान की आवाज़, कितनी असरदार?

जिस तरह से भारत में बैसाखी मनाई जाती है, उसी तरह कनाडा के शहरों में भी बैसाखी की धूम होती है.

कनाडा में बसे भारतीय मूल के लोगों की संख्या 13 लाख से अधिक है.

भारत से कनाडा गए लोगों में विशेष रूप से पंजाब से जा बसे लोग हैं और इनमें भी अधिकतर सिख समुदाय के हैं.

कनाडा के कई शहरों के कुछ इलाक़ों में कई बार यह एहसास होता है कि कहीं आप लुधियाना या जालंधर में घूम रहे हों.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

जिस तरह से भारत में बैसाखी मनाई जाती है, उसी तरह कनाडा के शहरों में भी बैसाखी की धूम होती है.

कनाडा में बसे भारतीय मूल के लोगों की संख्या 13 लाख से अधिक है.

भारत से कनाडा गए लोगों में विशेष रूप से पंजाब से जा बसे लोग हैं और इनमें भी अधिकतर सिख समुदाय के हैं.

कनाडा के कई शहरों के कुछ इलाक़ों में कई बार यह एहसास होता है कि कहीं आप लुधियाना या जालंधर में घूम रहे हों.

वैंकूवर में रह रहे पत्रकार बक्शिंदर सिंह बताते हैं, "वैंकुवर का एक इलाका है सरी, ये जगह ही पंजाबियों की है. हर तीसरा आदमी यहाँ पगड़ी वाला मिलेगा.

मान लीजिए कि अगर एक लेन में दस घर हैं तो उनमें से एक दो ही किसी दूसरे देश वाले के होंगे, बाकी सभी इन्हीं के होंगे."

कनाडा
KIM STALLKNECHT/AFP/Getty Images
कनाडा

ब्रितानी हुक़ूमत के दौरान छोड़ा भारत

सिखों के कनाडा जाने और वहां बसने का सिलसिला दरअसल बीसवीं शताब्दी में शुरू हुआ. उस समय भारत में ब्रिटिश हुक़ूमत थी.

कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में रह रहे पत्रकार गुरप्रीत सिंह बताते हैं कि कनाडा में सिखों के इतने प्रभावशाली होने की जड़ें इनके इतिहास में हैं.

गुरप्रीत सिंह कहते हैं, "उस समय भारत में ब्रिटेन की हुक़ूमत थी, तब पंजाब के लोगों के पास दो विकल्प थे, या तो वो फ़ौज में चले जाएं या फिर बाहर कहीं चले जाएं. कुछ सैनिक, जब वो किसी अभियान के दौरान यहाँ पहुंचे तो उन्हें यहाँ की आबो-हवा बस जाने के लिए अच्छी लगी.''

उन्होंने कहा, ''दूसरे वो लोग थे जो पंजाब में खेती करते थे पर लगान और फिर ख़राब परिस्थितियों के चलते पलायन कर गए."

उन्होंने बताया, "यहाँ आकर उन्होंने ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ आवाज़ बुंलद की. इनमें से एक घटना कामागाटामारु की भी है जब उन्होंने इस जहाज को कनाडा में नहीं उतरने दिया. इसी तरह लाला हरदयाल की गदर पार्टी को ब्रिटिश कोलंबिया में भरपूर समर्थन मिला."

प्रवासी भारतीय
BBC
प्रवासी भारतीय

भारतीयों का दबदबा

आज कनाडा में हर स्तर पर भारतीयों की मौजूदगी महसूस की जा सकती है. आज न सिर्फ़ वो राज्यों में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

सासंद बन रहे हैं, बल्कि पहली बार सिख समुदाय के हरजीत सिंह सज्जन कनाडा के रक्षा मंत्री भी हैं.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो साल पहले यानी 2015 के अप्रैल महीने में जब कनाडा के दौरे पर पहुंचे तो वो वैंकुअर के गुरुद्वारा खालसा दीवान में सिख समुदाय के बीच में थे.

उन्होंने कनाडा में रह रहे सिखों की तारीफ़ में कसीदे पढ़े.

कनाडा में सिख ना सिर्फ़ एक समुदाय के रूप में बेहद मज़बूत हैं बल्कि देश की राजनीति की दिशा को भी तय कर रहे हैं.

लेकिन कनाडा के सिख समुदाय का एक और तार भी है जो कि उन्हे अलग खालिस्तान की अवधारणा से जोड़ता है. इस समुदाय का एक गुट खुद को खालिस्तान समर्थक कहता है.

दिल थामकर देखिए ट्रूडो और मैक्रों की तस्वीरें

जब बेटे के साथ दफ़्तर पहुंचे कनाडाई पीएम ट्रूडो

सिखों के मुद्दे

जिस तरह ऑपरेशन ब्लू स्टार, 1984 के सिख दंगे भारत समेत पूरी दुनिया में सिखों के लिए मुद्दे हैं उसी तरह कनाडा में रह रहे सिखों के लिए भी ये बड़े मुद्दे हैं.

कनिष्क विमान दुर्घटना, इतिहास का एक काला पन्ना जिसमें मांट्रियाल से नई दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क 23 जून 1985 को हवा में ही बम से उड़ा दिया गया था.

हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक थे.

बताया जाता है कि 1984 में स्वर्ण मंदिर से भिंडरावाले के समर्थक चरमपंथियों को निकालने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इसे अंजाम दिया गया था.

सिख अलगाववादी गुट बब्बर खालसा के सदस्य इस हमले के मुख्य संदिग्धों में शामिल थे.

सिख समुदाय
NARINDER NANU/AFP/Getty Images
सिख समुदाय

सिख चरमपंथियों को शहीद का दर्जा

हर साल बैसाखी जैसे मौकों पर आयोजित समारोहों में सिख चरमपंथियों को शहीद का दर्जा देकर उन्हें याद किया जाता है.

पर बैसाखी जैसे आयोजन में जहाँ खालिस्तान के नारे लगते हैं. सवाल है कि अलग खालिस्तान का जो मुद्दा भारत में नहीं रहा वो कनाडा में कैसे रह रहकर ज़िंदा हो जाता है.

गुरप्रीत सिंह कहते हैं, "खालिस्तान की मूवमेंट जब भारत में ही दम तोड़ चुकी है तो बाहर से सिर्फ प्रोपेगंडा के स्तर पर ही काम चल रहा है. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि इस पृथकतावादी सोच का यहाँ के गुरुद्वारों और कई गुटों पर इनका नियंत्रण है, इसके चलते इनकी ताकत को दरकिनार नहीं कर सकते."

पर बैसाखी के इस आयोजन में स्थानीय सासंद और कनाडा के राजनीतिक दलों के नेता, सांसद भी इनमें हिस्सा लेते हैं.

तो वहाँ के स्थानीय नेताओं को क्या उन्हें खालिस्तान के अलगाववादी आंदोलन के बारे में पता नहीं है या फिर वो इसे मान्यता देते हैं.

खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे

इस सवाल पर गुरप्रीत सिंह कहते हैं कि उन्हें सिख समुदाय का वोट चाहिए इसलिए इन मंचों पर वो नज़र आ जाते हैं. साथ ही उनका एक और तर्क होता है कि समुदाय के आयोजन में उनका जाना ज़रूरी है.

हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने टिप्पणी की कि कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन सहित जस्टिन ट्रूडो सरकार के 5 मंत्री 'खालिस्तान समर्थक हैं. उनकी इस टिप्पणी पर बवाल मच गया.

यही नहीं अमरेंद्र सिंह ने भारत दौरे पर आए कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन से मुलाकात का समय भी नहीं निकाला..

दरअसल कैप्टन अमरिंदर सिंह जब विपक्ष में थे तो उनके कनाडा दौरे का विरोध हुआ था और खालिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगे थे.

कनाडा में बसे भारतीय सिख आर्थिक रुप से तो मज़बूत हैं ही, राजनीतिक रुप से भी मज़बूत हैं तो कनाडा की राजनीति में वो कितना योगदान दे पाते हैं.. वहाँ के राजनीतिक दल क्यों सिखों का साथ चाहते हैं.. रचना सिंह हाल ही में ब्रिटिश कोलंबिया में एमएलए चुनी गई हैं.. वो कहती हैं ....

सारे राजनीतिक दलों को इस बात का अंदाज़ा है कि कनाडा में पंजाबी सिखों की तादाद कितनी ज़्यादा है. सारे दल भारतीयों के वोट को रिझाना चाहते हैं.

( ये रिपोर्ट 2017 में पहले प्रकाशित की जा चुकी है)

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Khalistans voice in Canada how effective
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X