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ईरान में अमेरिका का वो ऑपरेशन जिस पर जिमी कार्टर को रहा अफ़सोस

1979 में ईरानी क्रांति के बाद ईरानी लोगों ने तेहरान में अमरीकी दूतावास पर कब्ज़ा कर 53 अमरीकियों को बंधक बना लिया. जब उन्हें छुड़ाने के सारे प्रयास विफल हो गए तो जिमी कार्टर ने सैनिक विकल्प का सहारा लिया. 41 वर्ष पूर्व 24 अप्रैल को इस अभियान में क्या क्या हुआ बता रहे हैं रेहान फ़ज़ल विवेचना में.

By BBC News हिन्दी
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एक ज़माने में अमेरिका और ईरान के बीच गहरी दोस्ती हुआ करती थी. मामला तब बिगड़ा जब ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद वहाँ के शाह ने 16 जनवरी, 1979 को अपना देश छोड़ दिया और सालों से फ़्रांस में निर्वासित जीवन जी रहे अयातुल्लाह ख़ुमैनी की वतन वापसी हुई.

22 अक्तूबर, 1979 को दुनिया में दर दर भटक रहे ईरान के शाह को अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने कैंसर का इलाज कराने के लिए अमेरिका आने की अनुमति दे दी.

दो नवंबर को तेहरान समय के अनुसार सुबह साढ़े दस बजे अमेरिकी दूतावास की पॉलिटिकल ऑफ़िसर एलिज़ाबेथ ऐन स्विफ़्ट ने वॉशिंगटन डी सी में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के ऑप्रेशन्स सेंटर को एक इमर्जेंसी फ़ोन लगा कर सूचित किया कि 'ईरानियों की एक बड़ी भीड़ अमेरिकी दूतावास की दीवार लांघकर कर उसके अहाते में दाख़िल हो गई है.

'दूतावास पर कभी भी भीड़ का कब्ज़ा हो सकता है, इसलिए हमारे स्टाफ़ ने सभी गुप्त दस्तावेज़ों को जलाना शुरू कर दिया है.' दोपहर होते होते ईरानियों ने दूतावास की पहली मंज़िल में आग लगा दी थी ताकि सभी कर्मचारी डर कर बाहर निकल आएं.

बारह बज कर बीस मिनट पर दूतावास के स्टाफ़ को मुख्य द्वार खोल देने के लिए मजबूर होना पड़ा. फ़ोन से अमेरिकी विदेश मंत्रालय से लगातार संपर्क में रही स्विफ़्ट के आख़िरी शब्द थे, 'वी आर गोइंग डाउन.' थोड़ी देर बाद पूरी दुनिया ने अमेरिकी राजनयिकों की आँख पर पट्टी और पीठ के पीछे हाथ बाँध कर हज़ारों लोगों के सामने परेड कराने का विचलित कर देने वाला दृश्य देखा.

ईरान पर अमेरिकी दबाव का कोई असर नहीं

अमेरिकी राषट्रपति जिमी कार्टर ने 53 अमेरिकी बंधकों को छुड़वाने के हर संभव प्रयास किए लेकिन उन्हें असफलता ही हाथ लगी.

जिमी कार्टर ने अपनी आत्मकथा 'अ फ़ुल लाइफ़ रेफ़्लेक्शन एट नाइंटी' में लिखा, 'मैंने अयातुल्लाह को आगाह किया कि अगर एक भी बंधक को नुकसान पहुंचाया गया तो मैं ईरान का बाहरी दुनिया से संपर्क समाप्त करवा दूँगा. अगर ईरान ने किसी बंधक को मारने की जुर्रत की तो अमेरिका ईरान पर हमला बोल देगा.

उन्होंने मेरी चेतावनी को गंभीरता से लिया और अमेरिकी बंधकों की देखभाल में पूरी सावधानी बरती. एक बंधक की बाँह में जब लकवा मार गया तो ईरानियों ने उसे तुरंत रिहा कर दिया.' जब सभी बंधकों को रिहा कराने के सभी प्रयास विफल हो गए तो कार्टर ने उन्हें छुड़ाने के लिए सैनिक विकल्प चुना. इस अभियान को 'ऑपरेशन ईगल क्लॉ' का नाम दिया गया.'

'इस अभियान का प्रमुख बनाया गया कर्नल चार्ली बेकविद को. बाद में इस अभियान दल के एक सदस्य वेड इशीमोतो ने एक इंटरव्यू में कहा, 'निजी तौर पर मेरा मानना था कि इस अभियान के सफल होने की बहुत कम उम्मीद थी. लेकिन मैंने इसे सार्वजनिक नहीं किया, क्योंकि जब अमेरिका का राष्ट्रपति आपसे कहता है 'जाइए' तो आप जाते हैं.'

रात के अँधेरे में हरकुलिस विमान को ईरान के रेगिस्तान में उतारा गया

24 अप्रैल, 1980 को अमेरिकी वायुसेना के सी 130 हरकुलिस विमान ने ओमान के मसीराह द्वीप से उड़ान भरी. इस विमान को काले रंग से पेंट किया गया था. इसलिए वो काली रात और समुद्र के काले पानी के ऊपर उड़ान भरता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था.

मार्क बाउडेन अपनी किताब 'गेस्ट्स ऑफ़ द अयातुल्लाह' में लिखते हैं, 'विमान की कोई भी बत्ती नहीं जल रही थी. अंदर अमेरिकी सेना के 74 मेरीन विमान के फ़र्श पर पसरे हुए थे. सिर्फ़ विमान के 11 सदस्यीय चालक दल को बैठने के लिए सीट दी गई थी. विमान में सैनिकों के अलावा एक जीप, पाँच मोटरसाइकिलें, भारी अल्युमीनियम की पाँच बड़ी शीटें भी लदी हुई थीं. इस विमान ने 250 फ़ीट की ऊँचाई पर ईरान के तट को पार किया ताकि वो ईरानी रडार की पकड़ में न आ सके. तट पार करते ही विमान 5000 फ़िट की ऊँचाई पर पहुंच गया.

हर सैनिक के पास थे दस हज़ार डॉलर मूल्य के ईरानी रियाल

एक घंटे बाद उसी जगह से तीन और सी 130 विमानों ने उड़ान भरी. उनमें से एक विमान में बेकविद की टुकड़ी के बाकी सैनिक सवार थे. कुल सैनिकों की संख्या अब 132 हो गई थी. बाकी के चार विमानों में रबड़ के गुब्बारों में 18000 गैलन ईधन भरा हुआ था.

जस्टिन विलियमसन अपनी किताब 'ऑप्रेशन ईगल क्लॉ द डिसास्टरस बिड टु एंड द ईरान होस्टेज क्राइसेस' में लिखते हैं, 'हर सैनिक को नक़ली पासपोर्ट और वीज़ा दिए गए थे.

ये इसलिए था कि अगर अभियान असफल हो जाता है तो ये लोग अपने बल पर ईरान से बाहर निकल सकें. इन सैनिकों ने जानबूझ के अपनी वर्दी नहीं पहन रखी थी. इनमें से ज़्यादातर की लंबे बाल और दाढ़ी बढ़ी हुई थी. इन्होंने नीले रंग की जीन्स पर ख़ाकी या काली कमीज़े पहन रखी थीं.

कमीज़ के ऊपर उन्होंने काले रंग की जैकेट पहन रखी थी जिस पर छोटा सा अमेरिकी झंडा बना हुआ था जिसे काले रंग के इलेक्ट्रिक टेप से छिपा दिया गया था. उन्हें आदेश थे कि अभियान समाप्त होने के बाद वो उस टेप को हटा दें ताकि झंडा दिखाई देने लगे. हर सैनिक को कार-15 राइफ़ल और .45 केलेबर की एम 1911 पिस्टल दी गई थी.

उनमें से हर एक के पास केलर आर्म्ड वेस्ट, एक चाकू, बोल्टकटर, मास्क, राशन और ईरानी मुद्रा रियाल में दस हज़ार अमेरिकी डॉलर थे.' इस दल में दो पूर्व ईरानी जनरल, छह ईरानी ट्रक ड्राइवर और सात फ़ारसी बोलने वाले अमेरिकी ड्राइवरों को भी शामिल किया गया था.

अयातुल्लाह ख़ुमैनी
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अयातुल्लाह ख़ुमैनी

अचानक पहुँची बस पर ग्रेनेड फेंक कर उसका टायर पंक्चर किया गया

हरकुलिस विमान ने तय जगह पर रात 10 बज कर 45 मिनट पर बहुत आराम से लैंड किया. अमेरिकी दल के एक कमांडर लोगान फ़िथ ने उड़ रही धूल से बचने के लिए अपनी आँखों पर अपना हाथ रखने की कोशिश की. तभी उन्होंने दाहिनी तरफ़ देखा कि न जाने कहाँ से एक बस उनकी तरफ़ दौड़ी चली आ रही है.

उसके ऊपर सामान लदा हुआ था और उसके अंदर 44 यात्री बैठे हुए थे. अमेरिकी सैनिकों ने बस के सामने 40 एमएम का ग्रेनेड फेंक कर उसका अगला दाहिना टायर पंचर कर दिया. जैसे ही बस रुकी सभी यात्रियों को नीचे उतार लिया गया. इसके कुछ मिनटों के बाद उन्हें एक ईधन टैंकर अपनी तरफ़ आता हुआ दिखाई दिया. जब उनके चिल्लाने पर भी टैंकर नहीं रुका तो उस पर कंधे के ऊपर रखे रॉकेट से फ़ायर किया गया.

इससे टैंकर में बैठे एक व्यक्ति की मौत हो गई लेकिन ड्राइवर टैंकर से बाहर निकल कर भागने में सफल हो गया. जैसे ही रॉकेट टैंकर से टकराया उसमें भरे 3000 गैलन ईधन में आग लग गई और ऐसा लगा कि रात में सूरज उग आया हो

आठ हेलिकॉप्टरों ने भी ईरान के लिए उड़ान भरी

उधर ईरानी तट के 58 किलोमीटर दक्षिण से अमेरिकी विमानवाहक पोत यूएसएस निमिट्ज़ से लेफ़्टिनेंट कर्नल एडवर्ड सीफ़र्ट के नेतृत्व में आठ हैलिकॉप्टरों ने उड़ान भरी. उन्होंने चाबहार के साठ मील पश्चिम में सिर्फ़ 200 फ़ीट की ऊँचाई पर उड़ते हुए ईरानी वायुसीमा को पार किया.

ईरान की सीमा के 140 किलोमीटर अंदर ब्लूबर्ड 6 के इंजन में समस्या शुरू हो गई. ब्लेड इंस्पेक्शन मेथड की चेतावनी लाइट जलते ही पता चला कि हेलिकॉप्टर के पंखों में प्रेशराइज़्ड नाइट्रोजन लीक करने लगी थी जिससे उसके दुर्घटनाग्रस्त होने का ख़तरा बढ़ गया था.

यूएसएस निमिट्ज़
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यूएसएस निमिट्ज़

मजबूरन ब्लूबर्ड-6 को ईरानी धरती पर नीचे उतारना पड़ गया. उसके पीछे पीटे ब्लूबर्ड -8 भी नीचे उतरा. ब्लूबर्ड-6 में सवार सैनिक ब्लूबर्ड-8 में सवार हुए और अपने लक्ष्य की तरफ़ बढ़ने लगे. मार्क बाउडेन अपनी किताब 'गेस्ट्स ऑफ़ अयातुल्लाह' में लिखते हैं, 'ईरान की सीमा के 200 किलोमीटर अंदर उड़ रहे सातों हैलिकॉप्टर्स ने अपने सामने टेलकम पाउडर की एक दीवार सी देखी.

इसे फ़ारसी में 'हुबूब' कहते हैं. सीफ़र्ट अपने हेलिकॉप्टर को इस दीवार के अंदर ले गए. अंदर घुस कर जब उन्होंने धूल के कणों को अपने दाँतों के अंदर महसूस किया तब उन्हें अंदाज़ा हुआ कि वो हवा में रुकी हुई धूल के अंदर चले आए हैं.

अचानक हेलिकॉप्टर के अंदर का तापमान बढ़ कर 100 डिग्री तक पहुंच गया. थोड़ी देर में ये धूल अचानक उसी तरह ग़ायब हो गई जिस तरह वो आई थी.'

एक और बड़े 'हुबूब' में सभी हैलिकॉप्टर फंसे

सीफ़र्ट को अंदाज़ा नहीं था कि करीब 50 मील आगे एक और कहीं बड़ा हुबूब उनका इंतज़ार कर रहा था. इस बार धूल पहले से कहीं घनी थी और करीब 100 किलोमीटर इलाके में फैली हुई थी. जस्टिन विलियमसन लिखते हैं, 'नाइट विजन चश्में लगाए रहने के बावजूद हेलिकॉप्टरों के चालक दल के सदस्यों को कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था.

उन्हें अपने साथ चल रहे हेलिकॉप्टर भी दिखना बंद हो गए. चूँकि चालक आपस में रेडियो पर बात नहीं कर सकते थे इसलिए उनको एक दूसरे की स्थिति का पता नहीं चल पा रहा था. तभी कर्नल चक पिटमैन के नेतृत्व में उड़ रहे ब्लूबर्ड- 5 का इलेक्ट्रिकल सिस्टम फ़ेल हो गया.

हेलिकाप्टर ने काफ़ी ऊपर जाने की कोशिश की लेकिन हुबूब ने उसका पीछा नहीं छोड़ा. दुर्घटना के जोखिम से बचने के लिए उन्होंने वहीं अपना हेलिकॉप्टर निमिट्ज़ की तरफ़ वापस मोड़ दिया जहाँ से वो उड़ कर आए थे. उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं लग पाया कि अगर वो 25 किलोमीटर और आगे जाते तो उन्हें साफ़ आसमान मिल सकता था.'

कमांड सेंटर की कमी खली

बाक़ी बचे हेलिकॉप्टर जब आठ हज़ार फ़िट की ऊँचाई पर गए तो धूल के बादलों से उनका पीछा छूटा और अचानक हेलिकॉप्टरों के अंदर तापमान बहुत ठंडा हो गया. नीचे सी-130 विमानों से आए सैनिक हेलिकाप्टरों के नीचे उतरने का इंतज़ार कर रहे थे. जैसे जैसे सुबह का समय नज़दीक आ रहा था उनके दिल की धड़कनें बढ़ रही थीं.

उनकी जान में जान आई जब एक बजे से कुछ मिनट पहले उन्हें हेलिकॉप्टरों की आवाज़ सुनाई दी. ऊपर से सीफ़र्ट को जलता हुआ टैंकर नज़र आया. वो समझे कि एक सी-130 दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. जब उन्होंने पूरे इलाके का चक्कर लगाया तब उन्होंने देखा कि चारों सी - 130 नीचे सुरक्षित खड़े हैं.

नीचे उतरते ही हेलिकॉप्टरों में ईंधन भरा जाने लगा. अब ईरान के रेगिस्तान में छह हेलिकॉप्टरों सहित दस विमान खड़े थे और कानों को बहरा कर देने वाला शोर, अँधेरा और उड़ता हुआ रेत एक अजीब सा माहौल पैदा कर रहा था. वहाँ पर न तो कोई कमाँड सेंटर था और सैनिकों के वर्दी न पहने होने की वजह से ये पता नहीं चल पा रहा था कि इनचार्ज कौन है. तभी अचानक एक हेलिकॉप्टर ब्लूबर्ड- 2 के पंखों ने घूमना बंद कर दिया.

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अचानक एक हेलिकॉप्टर ख़राब हुआ

जब कर्नल जेम्स किली ने हेलिकॉप्टर के चालकों से बात की तो उन्होंने उन्हें ख़बर दी कि वो हेलिकॉप्टर अब उड़ने की स्थिति में नहीं है. बाद में कर्नल जेम्स किली ने जॉन रॉबर्ट्स एडिसन के साथ मिल कर किताब लिखी 'द गट्स टु ट्राई' जिसमें उन्होंने लिखा कि 'हायड्रौलिक सिस्टम के खराब हो जाने के कारण हैलिकॉप्टर अब असुरक्षित हो गया था लेकिन बेकविद अभी भी चाहते थे कि पायलट उसे उड़ाने का प्रयास करें, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी.

अब सिर्फ़ पाँच हेलिकॉप्टर बचे थे और ये पहले से तय था कि अगर हमारे पास छह से कम हेलिकॉप्टर होते हैं तो हम अभियान को आगे नहीं बढ़ाएंगे. जब जनरल जेम्स वॉट ने वॉशिंगटन को ये ख़राब ख़बर दी तो वहाँ बैठे जनरल जोंस को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. जब राष्ट्पति कार्टर और उनके सुरक्षा सलाहकार ब्रिज़ेंस्की को इसका पता चला तो उन्होंने पूछा कि क्या पाँच हेलिकाप्टरों से ही इस अभियान को जारी रखा जा सकता है?'

कर्नल जेम्स किली
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कर्नल जेम्स किली

जस्टिन विलियमसन लिखते हैं, 'मौक़े पर मौजूद बेकविद इस बात पर नाराज़ हो रहे थे कि इस मामले पर इतनी बातचीत क्यों हो रही है. उन्होंने तीन महीने पहले जनवरी में ही जनरल वॉट को स्पष्ट कर दिया था कि छह हेलिकॉप्टरों के बिना अभियान को आगे नहीं बढ़ाया जा सकेगा. आख़िर में बेकविद को चिल्ला कर कहना पड़ा, 'नो वे.

अगर हम पाँच हेलिकॉप्टरों के साथ जाते हैं तो हमें बीस बंधकों को तेहरान में ही छोड़ कर आना पड़ेगा. हमें ये बता दीजिए हम किन किन को छोड़ कर आएं ?'' आख़िर में जनरल जोंस ने झिझकते हुए जनरल वॉट से कहा 'हम आपके अभियान समाप्त करने के फैसले से सहमत हैं.'

उड़ता हुआ हेलिकॉप्टर विमान पर गिरा

हेलिकॉप्टर
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हेलिकॉप्टर

तभी एक और दुर्घटना घटी. उड़ने की कोशिश कर रहे एक हेलिक़प्टर का पंख नीचे खड़े हुए विमान से टकराया. डेल्टा के एक सार्जेंट माइक वाइनिंग ने जस्टिन विलियमसन को बताया, 'मुझे एक ज़ोर का धमाका सुनाई दिया. हेलिकॉप्टर सबसे पहले विमान के इंजन एक और दो से टकराया और फिर विमान के कॉकपिट के ऊपर बाईं तरफ़ आकर टिक गया.

इससे लगी आग तीन सौ फ़िट ऊपर तक जा रही थी. विमान में उस समय हमारे 33 साथी और 8 लोगों का चालक दल बैठा हुआ था.

जब विमान का पिछला दरवाज़ा खोला गया तो अंदर आई हवा की वजह से आग की लपटें और तेज़ हो गईं. मैं जलते हुए विमान से नीचे कूदा. मेरा हाथ किसी धातु से टकराया और मेरी उंगलियाँ जल गईं. आखिर में विमान में बैठे 41 लोगों में से 38 को बचा लिया गया. मैंने अपनी आँखों से देखा कि एक रेड आई मिसाइल विमान की दीवार को चीरती हुई बियाबान रेगिस्तान में उड़ गई.'

कार्टर का मुँह सफ़ेद हुआ

उधर अभियान समाप्त किए जाने से हिले हुए राष्ट्रपति जिमी कार्टर के पास जब जनरल जोंस का दोबारा फ़ोन आया तो उनकी आवाज़ सुनते ही उनका चेहरा सफ़ेद पड़ गया. उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं. जब उन्होंने पूछा 'क्या कुछ लोगों की मौत भी हुई है' तो कार्टर के अगलबग़ल बैठे लोग समझ गए कि 'ऑप्रेशन ईगल क्लॉ' असफल रहा है.

ये समाचार मिलने से पहले ही इस्तीफ़ा दे चुके विदेश मंत्री साइरस वाँस ने कहा, 'मिस्टर प्रेसिंडेंट आईएम वेरी वेरी सॉरी.' वाइट हाउज़ के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ हैमिल्टन जॉर्डन ने दौड़ कर राष्ट्रपति का बाथरूम खोला और उनके वॉश बेसिन में उल्टी कर दी.

एक बजे रात को वाइट हाउज़ से इस असफलता के बारे में एक वकतव्य जारी कर कहा गया कि 'ये अभियान ईरान या उसके लोगों के खिलाफ़ नहीं था. हमारा देश उन सैनिकों का आभारी है जिन्होंने हमारे बंधकों को छुड़ाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी.' 27 अप्रैल को कार्टर और ज़िगनिऊ ब्रेज़ेंस्की इस अभियान में भाग लेने वाले सैनिकों से मिलने कैंप पेरी, वरजीनिया गए. वहाँ आँसू भरी आँखों से कर्नल बेकविद ने कार्टर से माफ़ी माँगते हुए कहा, 'आई एम सॉरी. वी लेट यू डाउन.'

पाँच दिन बाद इस अभियान में मारे गए आठ अमेरिकी सैनिकों के पार्थिव शरीर ले कर अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रास का विमान जिनीवा पहुंचा.

आखिर में 444 दिन बंधक रखने के बाद 20 जनवरी, 1981 को इन 52 बंदियों को ईरान ने रिहा कर दिया. बाद में किसी ने जब भी जिमी कार्टर से पूछा कि आप अपने राष्ट्रपति काल की कौन से कोई एक चीज़ बदलना चाहेंगे? तो कार्टर का जवाब होता था, 'काश मैंने इस अभियान में एक और हेलिकॉप्टर भेजा होता.'

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English summary
Jimmy Carter regrets america's operation in Iran in 1979
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