जय हो: चीन को ललकारने साउथ चायना सी पहुंचा नौसेना का INS ऐरावत, खोला नया फ्रंट!
भारतीय नौसेना ने ऐरावत को साउथ चायना सी में भेजकर चीन को दिखा दिया है कि अगर वह हिंद महासागर में अपने प्रभाव क्षेत्र में घुसपैठ कर सकता है, तो भारतीय युद्धपोत भी कभी भी दक्षिण चीन सागर की गहराई तक पहुंच सकते हैं।
कैमरान्ह बे/वियतनाम, जून 21: लद्दाख में भारत को उलझाने की कोशिश कर रहे चीन को अबकी बार भारत ने साउथ चायना सी में घुसकर करारा जवाब दिया है। हिंद महासागर में घुसने की फिराक में लगे ड्रैगन को इस बार भारत ने साउथ चायना सी में घुसकर करारा जवाब दिया है। भारतीय नौसेना ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर दक्षिण चीन सागर से अरब सागर की तरफ से फुफकारते चीनी ड्रैगन को सख्त जवाब दिया है।
साउथ चायना सी में नौसेना का एरावत
भारतीय नौसेना के युद्धपोत INS ऐरावत पर सवार सैनिकों ने वियतनाम के कैमरान्ह खाड़ी क्षेत्र में योग किया है। नौसेना ने इस मौके पर कहा कि युद्धपोत ऐरावत को कैमरून खाड़ी क्षेत्र में तैनात किया गया है। भारतीय युद्धपोत दक्षिण चीन सागर में ऐसे समय पहुंचा है जब चीन का अपने पड़ोसी देशों, वियतनाम, मलेशिया से विवाद काफी बढ़ गया है। वहीं हिंद महासागर में चीनी जहाजों की घुसपैठ लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके जवाब में अब भारतीय नौसेना ने चीन के खिलाफ एक तरह से नया फ्रंट खोल दिया है।
साउथ चायना सी में सीधी चुनौती
भारतीय नौसेना ने ऐरावत को साउथ चायना सी में भेजकर चीन को दिखा दिया है कि अगर वह हिंद महासागर में अपने प्रभाव क्षेत्र में घुसपैठ कर सकता है, तो भारतीय युद्धपोत भी कभी भी दक्षिण चीन सागर की गहराई तक पहुंच सकते हैं। इससे पहले भारत ने गलवान घाटी हिंसा के बाद भी साउथ चायना सी में अपना एक युद्धपोत तैनात किया था। भारतीय नौसेना ने अपना युद्धपोत उस क्षेत्र में तैनात किया गया है, जहां चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना ने किसी अन्य बल की मौजूदगी पर आपत्ति जताई थी। यानि, एक तरह से देखा जाए तो पहली बार साउथ चायना सी में चीन को एक तरफ से अमेरिका तो दूसरी तरफ से भारत ने कड़ी चुनौती देनी शुरू कर दी है।
साउथ चायना सी में बेचैन हुआ ड्रैगन
साउथ चायना सी में भारतीय नौसेना के युद्धपोत की तत्काल तैनाती ने चीनी नौसेना को बेचैन कर दिया था। चीनी नौसेना ने भारतीय पक्ष के साथ राजनयिक स्तर की वार्ता में भारतीय युद्धपोत की मौजूदगी की शिकायत भी की थी। सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी नौसेना ने भी दक्षिण चीन सागर में अपने विध्वंसक युद्धपोतों की तैनाती की थी और चीन हरगिज नहीं चाहता है कि साउथ चायना सी में उसे चुनौती मिले। लिहाजा, एक बार फिर से चीन का बेचैन होना तय माना जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, उस वक्त बिना किसी शोर-शराबे और ऐलान के पूरे मिशन को बेहद गोपनीय तरीके से अंजाम दिया गया था। इतना ही नहीं, भारतीय नौसेना ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास मलक्का स्ट्रीट में चीनी नौसेना की गतिविधि पर नजर रखने के लिए अपने अग्रिम पंक्ति के जहाजों को तैनात किया था। इसी रास्ते से चीनी नौसेना हिंद महासागर में प्रवेश करती है। इसके अलावा, कई चीनी जहाज अन्य महाद्वीपों से भी तेल या व्यापारिक शिपमेंट के साथ आते हैं और इसी समुद्री मार्ग से गुजरते हैं। इसके माध्यम से भारतीय नौसेना ने ड्रैगन को संदेश दिया था कि वह पूर्वी या पश्चिमी मोर्चे पर अगर चीन दुस्साहस करता है, तो उसे उसी वक्त माकूल जवाब दिया जाएगा।
हिंद महासागर में निगरानी तेज
भारतीय नौसेना ने मलक्का स्ट्रेट से हिंद महासागर में चीनी नौसैनिक जहाजों की आवाजाही की निगरानी के लिए पानी के अंदर भी जहाजों की तैयाती कर दी है। इसके अलावा जिबूती इलाके के आसपास मौजूद चीनी जहाजों पर भी भारतीय नौसेना की पैनी नजर है। दरअसल, चीन के लिए दक्षिण चीन सागर उसकी वो नस है, जिसे दबाने से ड्रैगन बिलबिला उठता है। चीन दावा करता है कि दक्षिण चीन सागर का अधिकांश भाग उसके क्षेत्र में आता है। इसी वजह से उसका वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों को दबाने की कोशिश की है। इस तनाव को देखते हुए अमेरिकी नौसेना लगातार साउथ चायना सी में गश्त करती रहती है ताकि जरूरत पड़ने पर ड्रैगन के दुस्साहस का फौरन सख्ती से जवाब दिया जा सके।
क्यों महत्वपूर्ण है साउथ चायना सी?
दरअसल, दक्षिण चीन सागर यानि साउथ चायना सी में जिस क्षेत्र पर चीन की नजर है, वह खनिज और ऊर्जा संसाधनों का भंडार है। अन्य देशों के साथ चीन का संघर्ष तेल से भरे क्षेत्रों को लेकर भी होता रहता है। चीन ऊर्जा के असीमित भंडार से किसी भी कीमत पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं करना चाहता है। कभी गैस तो कभी मछली के नाम पर चीन छोटे देशों को दबाने की कोशिश करता है। चीन 'U' आकार की 'नौ डैश लाइन' के आधार पर इस क्षेत्र पर अपना दावा करता है। इसमें वियतनाम के स्पेशल इकोनॉमिक जोन, परसल द्वीप समूह, स्प्रैटली द्वीप समूह, ब्रुने, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और ताइवान के स्पेशल इकोनॉमिक जोन भी शामिल हैं। फिलीपींस द्वारा दायर एक मामले में हेग स्थित एक न्यायाधिकरण ने 2016 में कहा गया था, कि चीन के पास इस क्षेत्र पर कोई ऐतिहासिक अधिकार नहीं है।
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