भारत के साथ बिजनेस बढ़ाने के मकसद से डोनाल्ड ट्रंप भेजेंगे केनेथ जस्टर को!
वॉशिंगटन। छह माह के बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत में अपने नए राजदूत के लिए केनेथ जस्टर को नामित किया है। अमेरिकी मीडिया मान रही है कि जस्टर के नाम का ऐलान बस औपचारिकता रह गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 जून को अमेरिकी दौरे के लिए रवाना होंगे और 26 जून को उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात होनी है। कहा जा रहा है कि इस मुलाकात के बाद ही जस्टर के नाम पर आखिरी मोहर लग जाएगी। जस्टर को राजदूत के तौर पर चुनकर राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला है जो दोनों देशों में उनके आलोचकों को काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा है।
भारत में जस्टर का बड़ा निवेश
केनेथ जस्टर ने हाल ही में भारत में बड़े स्तर पर निवेश करना शुरू किया है। भारत में उनके एक प्राइवेट इक्विटी फर्म के साथ गहरे ताल्लुकात हैं। बुधवार को जस्टर के नामांकन को मंजूरी दी गई है। जस्टर, अमेरिका के नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के डायरेक्टर गैरी कोहन के टॉप डिप्टी हैं। अगले दो हफ्तों के अंदर उनके नाम को फाइनल कर दिया जाएगा।
एक वकील हैं वारबर्ग
जस्टर एक वकील हैं और उन्होंने वारबस पिनकस नामक एक इनवेस्टमेंट फर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर के तौर पर काम किया है। वह वर्ष 2010 से लेकर इस वर्ष जनवरी तक इस कंपनी के एमडी थे। जनवरी में वह ट्रंप प्रशासन का हिस्सा बने और फिर उन्होंने इस पद को छोड़ दिया।
भारत की कंपनियों पर लगाया पैसा
डेली बीस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक प्राइवेट इक्विटी फर्म के साथ जस्टर के संबंधों पर काफी सवालिया निशान हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस फर्म के एमडी के तौर पर जस्टर जुड़े थे उसने भारतीय कंपनियों पर पैसों की बरसात की है। रिपोर्ट की मानें तो वारबर्ग पिनकस ने भारतीय कंपनियों में जिस तरह से अपना निवेश बढ़ाया वह काफी नाटकीय था।
हार्वर्ड की डिग्री वाले जस्टर
जस्टर 90 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी विदेश विभाग में कार्यवाहक काउंसलर के तौर पर काम कर चुके हैं। इससे पहले वह अमेरिकी विदेश सचिव लॉरेंस एस इगलबर्गर के डिप्टी सेक्रेटरी रह चुके हैं। जस्टर के पास हार्वर्ड लॉ स्कूल से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स डिग्री है और इसके अलावा हार्वर्ड कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की है।
नियमों की अनदेखी का आरोप
अमेरिकी मीडिया के मुताबिक अभी तक इस बात का कोई संकेत नहीं मिला है कि क्या वारबर्ग के निवेश फैसले का जस्टर के नामांकन से कोई लेना देना है या नहीं। लेकिन जिस तरह से फर्म अपने भारत के पोर्टफोलियों को मजबूत करती जा रही थी उससे कहीं न कहीं नियमों की अनदेखी की गई।
भारत में कामकाज देख रहे जस्टर
व्हाइट हाउस फाइनेंशियल डिस्क्लोजर फॉर्म के मुताबिक भारत में वारबर्ग के कामकाज में जस्टर खुद शामिल थे। उन्होंने कंपनी के आठ भारतीय पोर्टफोलियों को एक डिस्क्लोजर फॉर्म में सूचीबद्ध किया था। कैंपेन लीगर सेंटर के लैरी नोबेल कहते हैं कि निश्चित तौर पर यह सवाल है कि कहीं वारबर्ग के भारत में बढ़ते निवेश की वजह से ही उन्हें भारत के राजूदत के तौर पर नामित तो नहीं किया गया?
टाटा में 360 मिलियन डॉलर
व्हाइट हाउस ने इस तरह के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया है। पिछले हफ्ते ही वारबर्ग ने टाटा ग्रुप की तीन सहायक कंपनियों में निवेश किया है। डेली बीस्ट के मुताबिक 360 मिलियन डॉलर की यह डील टाटा टेक्नोलॉजी के 43 प्रतिशत हिस्सेदारी और टाटा मोटर्स और टाटा कैपिटल में बड़ी हिस्सेदारी के लिए हुई।
300मिलियन डॉलर का एक और निवेश
वारबर्ग के मुंबई में कई ऑफिस हैं और इस कंपनी ने आईसीआईसीआई बैंक से जुड़ी एक इंश्योरेंस कंपनी के भी शेयर खरीदे हैं। इसके अलावा टाटा के एक फॉर्मर टॉप एग्जिक्यूटिव के मालिकाना हक वाली मीडिया और टेलीकम्युनिकेशन फर्म में भी कंपनी ने 300 मिलियन डॉलर की रकम निवेश की है।
18 भारतीय कंपनियों में निवेश
जून में वारबर्ग ने भारत के एक थियेटर चेन में निवेश किया है। इसके अलावा वर्ष 2007 से वारबर्ग 18 भारतीय कंपनियों में इनवेस्ट कर चुकी हैं। इस वर्ष कंपनी अगले 10 वर्षों के लिए करीब आठ बिलियन डॉलर की पूंजी भारत में निवेश करेगी। अमेरिकी मीडिया के मुताबिक जस्टर के इन वेंचर्स ने ही ट्रंप प्रशासन के विदेश नीति से जुड़ी फैसलों को प्रभावित किया है।