क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

चीन के पाले से नेपाल को वापस खींच पाएगा भारत?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा से लौटे हैं. दो दिन के इस दौरे की शुरुआत उन्होंने दक्षिणी नेपाल के जनकपुर क़स्बे से की थी.

यह बात छिपी नहीं है कि 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद नेपाल और भारत के रिश्तों में खटास आ गई थी और अन्य पड़ोसी मुल्कों के बीच भी भारत का पहले जैसा औहदा नहीं रहा.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
मोदी
Getty Images
मोदी

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा से लौटे हैं. दो दिन के इस दौरे की शुरुआत उन्होंने दक्षिणी नेपाल के जनकपुर क़स्बे से की थी.

यह बात छिपी नहीं है कि 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद नेपाल और भारत के रिश्तों में खटास आ गई थी और अन्य पड़ोसी मुल्कों के बीच भी भारत का पहले जैसा औहदा नहीं रहा.

नेपाल में बिताए लगभग तीस घंटों में नरेंद्र मोदी यहां के मुख्य मंदिरों में भी गए. ख़ास बात यह रही कि नरेंद्र मोदी ने पूरी यात्रा के दौरान भारत और नेपाल के प्राचीन सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर ज़ोर दिया.

उन्होंने जनकपुर और अयोध्या के बीच बस सेवा भी शुरू की. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस तरह की कोशिशें दक्षिण एशियाई देशों और ख़ासकर नेपाल के साथ भारत के संबंधों में मिठास ला पाएंगी?

मोदी
Getty Images
मोदी

इस यात्रा का मक़सद

इस पूरी यात्रा के दौरान इस तरह की चर्चा सुनाई दी कि नरेंद्र मोदी का यह दौरा सांस्कृतिक था. लेकिन नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे बताते हैं कि इस यात्रा के ज़रिए नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि सुधारने की भी कोशिश और भारत-नेपाल रिश्तों को बेहतर करने का भी प्रयास किया.

युवराज कहते हैं, "नेपाल में जो तीन साल पहले आर्थिक नाकेबंदी हुई थी, उसके बाद नेपाल में नरेंद्र मोदी को लेकर काफी निराशा आ गई थी. इस दौरे ने उनकी पर्सनल इमेज को थोड़ी लोकप्रियता दी है."

मोदी
Getty Images
मोदी

वह बताते हैं, "मोदी सरकार की इस बात को लेकर भी आलोचना हो रही है कि दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों के बीच उसने अपनी हैसियत गंवाई है और वे देश चीन के क़रीब हो रहे हैं. तो यह एक कोशिश थी कि कैसे उनको वापस भारत के क़रीब लाया जाए."

'मोदी नॉट वेलकम' क्यों कह रहे हैं कुछ नेपाली?

रिश्ते ख़राब होने का कारण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या और जनकपुर के बीच बस सेवा को हरी झंडी दिखाई और कहा कि सदियों पहले राजा दशरथ ने अयोध्या और जनकपुर ही नहीं बल्कि भारत-नेपाल मैत्री की भी नींव रख दी थी.

आख़िर नेपाल के साथ भारत के रिश्ते इतने ख़राब कैसे हो गए जो भारतीय प्रधानमंत्री को बार-बार भारत और नेपाल के पुराने और ऐतिहासिक संबंधों की याद दिलानी पड़ी? नेपाल मामलों के जानकार आनंद स्वरूप वर्मा इसके लिए भारत की कुछ ग़लतियों को ज़िम्मेदार मानते हैं.

मोजी
AFP
मोजी

आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं, "नेपाल तीन ओर से भारत से घिरा हुआ है. जैसे लैंड लॉक्ड कहते हैं, उस तरह से कहा जा सकता है कि यह इंडिया लॉक्ड है. तीन तरफ़ से यह भारत से घिरा है और एक तरफ़ चीन है. मगर चीन की तरफ़ पहाड़ हैं और मौसम ऐसा है कि नेपाल चीन पर निर्भर नहीं रह सकता.'"

"अगर तीन तरफ से नाकेबंदी होगी तो नेपाल चीन की तरफ ही देखेगा. नाकेबंदी के दौरान यही हुआ था. 20 दिन बाद उसने पेट्रोल लेने के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ाया था. उस समय ओली की सरकार थी और आज भी वह पीएम हैं. सर्दियों के उस मौसम में अगर वे चीन से मदद नहीं मांगते तो भूखों मर जाते. वह चीन के लिए अच्छा अवसर था और उसने खूब मदद की. आज भी चीन मदद कर रहा है."

नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे भी मानते हैं आर्थिक नाकेबंदी के बाद से नेपाल को विचार करना पड़ा है कि फिर वैसी नौबत आए तो एक विकल्प होना चाहिए.

वह बताते हैं, "नाकेबंदी के बाद नेपाल ने कहा कि ट्रेड और ट्रांजिट के लिए सिर्फ भारत पर निर्भर करना मुश्किल है. हमें चीन के साथ भी ट्रेड और ट्रांजिट बढ़ाना चाहिए ताकि दोबारा ऐसे हालात बनने पर वैकल्पिक मार्ग बने. नेपाल की जनता इससे खुश है और उसने ओली सरकार हो या कोई और, इस मुद्दे पर उसका समर्थन किया है."

भारत की नेबरहुड पॉलिसी

प्रधानमत्री मोदी ने कहा कि भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी में नेपाल सबसे पहले आता है. भारत इस नीति की चर्चा बहुत पहले से करता है, फिर भी पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों में खटास क्यों आई? वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा बताते हैं कि भारत के शासक वर्ग की औपनिवेशक मानसिकता के कारण ही पड़ोसी देशों से उसके रिश्ते अच्छे नहीं.

वह कहते हैं, "नेबरहुड पॉलिसी राजीव गांधी के भी समय थी. भारत की नेपाल ही नहीं, पड़ोसी देशों के प्रति भी कुछ ऐसी नीति रही है कि इनके छोटे होने के कारण, छोटी आर्थिक हैसियत होने के कारण वह इन्हें अपनी सैटलाइट कंट्री मानता रहा है. इसी कारण किसी भी पड़ोसी देश के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं."

नेपाल में भारत के 500-1000 वाले पुराने नोटों का क्या होगा

चीन के मुक़ाबले नेपाल में बढ़ेगा भारत का असर?

मोदी
Getty Images
मोदी

वह कहते हैं, "अगर कोई यह कहे कि भारत के संबंध भूटान के साथ अच्छे हैं, तो यह भूटान की मजबूरी है. भूटान काफ़ी हद तक भारत की मदद पर निर्भर है, लेकिन वह विरोध नहीं कर पाता. भूटान की जनता इसे महसूस करती है. पिछले चुनाव में उन प्रधानमंत्री को हारना पड़ा, जिन्होंने चीन के प्रधानमंत्री से रियो डी जेनेरो में मुलाकात की थी और भारत नाराज़ था."

ऐसा कैसे हुआ, इस बारे में आनंद स्वरूप वर्मा दावा करते हैं, "चुनाव के समय भारत ने मिट्टी के तेल और गैस पर सब्सिडी रोक दी और संकेत दिया कि इस प्रधानमंत्री को अगर विजय मिली तो आपको ऐसे ही हालात से दो-चार होना होगा. इस कारण जनता ने जानते हुए भी आने वाली मुसीबतों से बचने के लिए झुकना पसंद किया. मैं समझता हूं कि यहां के शासक वर्ग की जो औपनिवेशिक मानसिकता है, इसके पीछे वही काम करती है."

नेपाल की चिंता क्या?

भूटान ही नहीं, नेपाल में इस बात को लेकर चिंता रहती है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है. नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे बताते हैं कि आखिर नेपाल में भारत की किस बात को लेकर नाराज़गी है.

मोदी
Getty Images
मोदी

वह कहते हैं, "नेपाल में गरीबी हो सकती है, पिछड़ापन हो सकता है, अशिक्षा हो सकती है लेकिन वह अपनी आजाद बने रहने, किसी का उपनिवेश न बनने की बात पर गर्व करता है. जब कोई उसकी संप्रभुता को कम करके आंकता है तो उसे आक्रोश आता है. खासकर यहां ऐसी धारणा है कि भारत साल 2006 के बाद नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप की कोशिश कर रहा है."

संप्रभुता का सम्मान ज़रूरी

फिर भारत नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों का भरोसा और दिल किस तरह से जीत सकता है? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं कि इसके लिए ज़रूरी है कि पड़ोसी देशों की संप्रभुता का सम्मान किया जाए.

मोदी
Getty Images
मोदी

वह कहते हैं, "भारत कुछ न करे, कम से कम पड़ोसियों, नेपाल की जनता के प्रति सम्मान का प्रदर्शन करे. इसके लिए छोटा सुझाव यह है कि जितने भी चेक पोस्ट हैं भारत और नेपाल के बीच, ऐसी व्यवस्था की जाए कि वहां नेपाली अपमानित न हो. वहां जिस तरह से भारत आने वाले या भारत से जाने वाले पढ़े-लिखे नेपालियों को भी पुलिसकर्मियों द्वारा अपमान का सामना करना पड़ता है, वे उसे बर्दाश्त नहीं कर पाते."

"दूसरी बात यह है कि भारत छोटा देश और बड़ा देश की बात को दिमाग से निकाल दे और हर देश की संप्रभुता को बराबर माने. अगर हम भारत के लोग यह बात दिमाग से निकाल देंगे कि हमारी संप्रभुता नेपाल और भूटान से बड़ी है तो उन देशों की जनता के साथ सद्भावनापूर्ण संबंध स्थापित हो पाएंगे."

मोदी नेपाल में 'तीर्थयात्रा' पर थे या चुनावी एजेंडे पर?

असल मुद्दों का हल ज़रूरी

नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज भी मानते हैं कि जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की, उस तरह की यात्राएं बार-बार होने पर सकारात्मक माहौल तो बन सकता है, लेकिन असल मुद्दों पर बात करना भी ज़रूरी है.

मोदी
Getty Images
मोदी

वह कहते हैं, "एक यात्रा से खटास दूर नहीं हो पाएगी लेकिन इस तरह की यात्राएं बार-बार होंगी तो माहौल बन सकता है. उन्होंने समस्याओं को संबोधित नहीं किया, उन्हें स्वीकार ही नहीं किया. उन्होंने तीर्थयात्री का रूप तो दिखाया लेकिन उनकी सारी डीलिंग सरकार के साथ हुई, जनता के साथ नहीं हुई. दूसरा भारत ने नेपाल में जो भी प्रॉजेक्ट लिए हैं, अगर वे समय पर पूरे नहीं होंगे तो भारत की विश्वसनीयता पर सवाल बने रहेंगे."

क्या भारत को अपने पड़ोसी देशों पर नेपाल के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चिंता होनी चाहिए, इसे लेकर आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं, "एक चीज साफ है कि चीन की भारत से प्रद्वंद्विता नहीं है. अंतरराष्ट्रीय रूप से अमरीका उसका राइवल है. भारत से उसकी कोई कटुता अगर दिखती भी है तो वह इसलिए कि भारत एक तरह से अमरीका का जूनियर पार्टनर बनकर घूमता है. अगर नेपाल चीन की तरफ रुख़ करता है तो यह भारत की नेपाल नीति की विफलता का ही प्रमाण होगा."

जानकारों का मानना है कि भारत अपने पड़ोसी देशों का भरोसा तभी जीत सकता है, जब वह उनसे किए अपने वादों को पूरा करे और उन्हें उसी रूप में स्वीकार करे, जैसे वे हैं - स्वतंत्र और संप्रभु पड़ोसी राष्ट्र.

सिर तक आ गई चीन की सड़क तो क्या करेगा भारत?

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
India will pull Nepal back to China
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X