इमरान खान ने शहबाज शरीफ को दी धोबी पछाड़, अपनी ही पार्टी की सरकार को किया भंग, समझें वजह
इमरान खान को पिछले साल अप्रैल महीने में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद से हटाया गया था और उसके बाद सले ही जल्द लोकसभा चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं, जबकि शहबाज शरीफ अभी चुनाव नहीं कराना चाहते हैं।
Imran Khan News: पाकिस्तान में जल्द चुनाव कराने की मांग को लेकर इमरान खान ने बहुत बड़ा राजनीतिक दांव खेला है और अपनी ही बहुमत वाली प्रांतीय सरकार को भंग कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा में प्रांतीय विधानसभा को भंग कर दिया गया है और पिछले एक हफ्ते से भी कम समय में इमरान खान का ये दूसरा बड़ा कदम है, क्योंकि पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान जल्द राष्ट्रीय चुनाव के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं।
खैबर पख्तूनख्वा विधानसभा भंग
खैबर पख्तूनख्वा के गवर्नर हाजी गुलाम अली ने बुधवार को प्रांतीय विधानसभा को "तत्काल प्रभाव से" भंग करने वाले एक पत्र पर दस्तखत कर दिए हैं। खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री की सिफारिश के बाद उन्होंने विधानसभा को भंग कर दिया है, जो खुद भी इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के ही सदस्य हैं। इससे पहले शनिवार को, पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत, पंजाब में विधानसभा को भी पीटीआई प्रमुख इमरान खान के एक आदेश के बाद भंग कर दिया गया था। इमरान खान, जिन्हें पिछले साल अप्रैल महीने में सत्ता से हटा दिया गया था, वो उसी वक्त से लगातार देश में फिर से चुनाव करवाने की मांग कर रहे हैं, जिसे इस साल अक्टूबर में निर्धारित किया गया है।
इमरान के फैसले का असर क्या?
पाकिस्तान का संविधान कहता है, कि अगर सदन अंतरिम सरकार स्थापित करने में विफल रहता है, तो प्रांतीय विधानमंडल के विघटन के तीन महीने के भीतर नए चुनाव होने चाहिए। लिहाजा, इमरान खान का दांव ये है, कि वो प्रातों में अपनी ही सरकार को भंग करके, केन्द्र की शहबाज शरीफ की सरकार पर जल्द से जल्द आम सभा चुनाव के लिए जोर बना सके। पाकिस्तान में अभी तक एक रिवाज रहा है, कि प्रांतों में विधानसभा चुनाव भी केन्द्रीय लोकसभा चुनाव के साथ ही होते हैं, लेकिन पाकिस्तान का संविधान अलग अलग चुनाव कराने की भी इजाजत देता है। लिहाजा एक्सपर्ट्स का मानना है, कि इन प्रांतों के लिए अलग से चुनाव करवाकर शहबाज शरीफ, इमरान खान को डबल झटका दे सकते हैं।
पाकिस्तान में राजनीतिक रस्साकसी तेज
खैबर पख्तूनख्वा विधानसभा भंग करने के बाद इमरान खान की पार्टी पीटीआई के नेता मुसर्रत जमशेद चीमा ने कहा, कि यह जरूरी है कि शहबाज सरकार अपने "स्वार्थों" से परे सोचे और जल्दी चुनाव कराए। आपको बता दें, कि पाकिस्तान में चार प्रांत हैं, जिनमें से अब दो बड़े प्रांत पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा की विधानसभाओं को भंग कर दिया है, यान करीब 65 प्रतिशत से ज्यादा पाकिस्तान में 3 महीने के भीतर चुनाव करवाने ही होंगे, ऐसे में शहबाज शरीफ की सरकार पर भी दबाव पढ़ गया है, कि वो अलग अलग प्रांतीय और केन्द्रीय चुनाल करवाए, या फिर एक ही साथ चुनाव करवाए। पाकिस्तान जिन आर्थिक हालातों से गुजर रहा है, उनमें बार बार चुनाव करवाना देश की अर्थव्यवस्था पर अतरिक्त बोझ डालना होगा।
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पाकिस्तान में आगे की संभावनाएं?
पीटीआई ने देश में आम चुनावों को फौरन करवाने के लिए विधानसभाओं को भंग करने का फैसला किया है। पीटीआई से जुड़े एक अधिवक्त महमूद खान का कहना है, कि "सत्तारूढ़ गठबंधन अभी भी हमारे प्रयासों को विफल करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि वे समय से पहले चुनाव नहीं कराना चाहते हैं। हम राजनीतिक और कानूनी मंचों पर उनकी सभी रणनीति से लड़ेंगे।" वहीं, लाहौर स्थित राजनीतिक विश्लेषक बेनजीर शाह ने कहा, कि इमरान खान तत्काल चुनाव पर जोर देकर लोगों के बीच अपनी बढ़ती लोकप्रियता का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, कि "अगर इमरान खान, दोनों प्रांतों और विशेष रूप से पंजाब में सरकार बना लेते हैं, तो उन्हें अगले आम चुनाव में भारी लाभ मिलेगा।" वहीं, एक्सपर्च्स का मानना है, कि शहबाज शरीफ इस बात को जानते हैं, लिहाजा वो ये भी नहीं चाहेंगे, कि प्रांतों में पहले चुनाव करा दिए जाएं।
शहबाज को इमरान खान ने किया मजबूर?
अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीतिक विश्लेषक बेनजीर शाह ने कहा, कि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास राजनीतिक संकट को हल करने के लिए काफी सीमित विकल्प हैं और इमरान खान ने उन्हें अपनी शर्तों पर खेलने के लिए मजबूर कर दिया है। उन्होंने कहा कि, "अगले तीन महीनों में, उन्हें (शहबाज शरीफ को) जल्दबाजी में एक चुनाव अभियान शुरू करना होगा, अपने मतदाताओं को लामबंद करना होगा और इमरान खान का मुकाबला करने के लिए एक प्रभावी चुनावी कहानी तैयार करनी होगी। इसमें से कुछ भी सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियों के लिए आसान नहीं होगा, जिन्होंने हाल ही में एक के बाद एक चुनावी हार झेली है और जिन्हें सेना का करीबी माना जा रहा है।"
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