हंगरी को फंसाने की कोशिश में लगे चीन के खिलाफ फूटा आक्रोश, हजारों लोग सड़क पर उतरे
हंगरी में चीन के खिलाफ गुस्सा पिछले काफी समय से पनप रहा था लेकिन अचानक लोगों का आक्रोश चीन द्वारा बुडापेस्ट में एक यूनिवर्सिटी बनाने को लेकर फूटा है।
बुडापेस्ट, जून 06: हंगरी के लोगों में चीन के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा फूट पड़ा है और हजारों लोग चीन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। हंगरी के लोगों का कहना है कि चीन उनके देश को कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है और फिर उनके देश पर प्रभाव बनाना चाहता है। हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट की सड़कों पर हजारों लोग उतरे हुए हैं और राजधानी में चीन द्वारा एक यूनिवर्सिटी खोलने का विरोध कर रहे हैं।
चीन के खिलाफ फूटा गुस्सा
हंगरी में चीन के खिलाफ गुस्सा पिछले काफी समय से पनप रहा था लेकिन अचानक लोगों का आक्रोश चीन द्वारा बुडापेस्ट में एक यूनिवर्सिटी बनाने को लेकर फूटा है। राजधानी में चीनी यूनिवर्सिटी खोलने को लेकर भारी विरोध किया जा रहा है और हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आए हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चीन की कम्यूनिस्ट सरकार हंगरी पर अपना प्रभुत्व बनाने की कोशिश में है और हंगरी की शिक्षा व्यवस्था को खत्म करना चाहती है, ताकि हंगरी के युवाओं में चीन के प्रति सहानुभूति लाया जा सके और उनके अंदर चीनी कल्चर भरा जा सके। आपको बता दें कि हंगरी में इस वक्त जो सरकार है, उसे दक्षिणपंथी विचारधारा का माना जाता है हंगरी के प्रधानमंत्री का नाम विक्टर ऑर्बन है, लेकिन लोगों का कहना है कि विक्टर ऑर्बन चीन के काफी करीबी हो गये है और उन्होंने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में चीनी सरकार को यूनिवर्सिटी खोलने की इजाजत दे दी है।
क्या कहते हैं हंगरी के छात्र ?
हंगरी की दूसरी राजनातिक पार्टियों का मानना है कि हंगरी में बीजिंग अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना चाहता है और उसके लिए यूनिवर्सिटी के अंदर छात्रों को चीनी शिक्षा देने से बेहतर और क्या बात हो सकती है, लेकिन प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन चीन के इतने करीबी हो चुके हैं कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए 22 साल के छात्र ने कहा कि 'मैं अपने देश के चीन के साथ मजबूत होते सामंती संबंध को सही नहीं मानता हूं।' 22 वर्षीय छात्र ने कहा है 'हंगरी की सरकार को देश में यूनिवर्सिटी और शिक्षा के विकास के लिए बजट बढ़ाना चाहिए, ना कि चीन को हंगरी में यूनिवर्सिटी बनाने की इजाजत दी जाए'। आपको बता दें कि हंगरी की सरकार ने इसी साल अप्रैल में शंघाई स्थिति फुडन यूनिवर्सिटी के साथ बुडापेस्ट में यूनिवर्सिटी खोलने का करार किया है। हंगरी की सरकार ने चीनी यूनिवर्सिटी को यूनिवर्सिटी कैंपस बनाने की इजाजत उस जगह पर दी है, जहां पर हंगरी के छात्रों के लिए एक डॉरमेट्री छात्रावास बनाया जाना प्रस्तावित था।
सरकार ने विरोध प्रदर्शन पर क्या कहा ?
हंगरी की सरकार ने हजारों छात्रों के विरोध प्रदर्शन को व्यर्थ और बेवजह बताया है। सरकार के शिक्षा मंत्री का कहना है कि फुडन यूनिवर्सिटी एक वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी है और इससे छात्र काफी कुछ सीख पाएंगे। हंगरी की न्यूज एजेंसी एमटीआई ने डिप्टी गवर्नंमेंट मिनिस्टर तमस चंदा के हवाले से लिखा है कि 'छात्रों का प्रदर्शन बेवजह और निरर्थक है'। इसके साथ ही उन्होंने इस बात से भी इनकार कर दिया है कि 'चीन के द्वारा सरकार और नेताओं को फंड दिया गया है'। दरअसल, हंगरी के कुछ मीडिया एजेंसियों ने दावा किया है कि चीन के द्वारा हंगरी के कुछ नेताओं और पॉलिटिकल पार्टियों को फंडिंग दी गई है, ताकि हंगरी में चीन का वर्चस्व स्थापित हो सके और चीन इसका फायदा यूरोपीयन यूनियन में उठा सके। रिपोर्ट के मुताबिक हंगरी में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए चीन 1 अरब 80 करोड़ डॉलर खर्च करने जा रहा है। और ये पैसा मुफ्त में नहीं, बल्कि लोन के तौर पर होगा।
क्षिणपंथी सरकार, वामपंथी भाषा
हंगरी की सरकार को दक्षिणपंथी विचारधारा का माना जाता है जबकि चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की विचारधारा वामपंथी है, लेकिन हंगरी के प्रधानमंत्री चीन की तारीफ करते हुए नही अघा रहे हैं। हंगरी की सरकार चीन के इतने करीब पहुंच चुकी है कि जब पिछले महीने यूरोपीयन यूनियन ने हांगकांग को लेकर चीन की आलोचना की, तो हंगरी ने यूरोपीयन यूनियन के उस बयान को अपने देश में ब्लॉक कर दिया। हंगरी के छात्रा का कहना है कि प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन खुद को दक्षिणपंथी कहते हैं लेकिन असलियत ये है कि कम्यूनिस्टों के साथ उनकी काफी गहरी दोस्ती है।
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चीनी अत्याचारों के खिलाफ प्रदर्शन
हंगरी के लोगों ने चीन का विरोध करने के लिए उसके अत्याचारों के नाम पर देश की सड़कों का नाम रखना शुरू कर दिया है। चीन को चिढ़ाने के लिए वहां के लोगों ने एक सड़क का नाम दलाई लामा सड़क रख दिया है, वहीं हंगरी के लोगों ने एक और सड़क का नाम बदलकल उइगर सड़क रख दिया है। हंगरी के लोगों का कहना है कि इस सड़क का नाम उइगर इसलिए रखा गया है ताकि लोगों को चीन का अत्याचार बार-बार याद आता रहे और लोग समझें कि चीन मानवाधिकार का कितना बड़ा दुश्मन है। वहीं, हंगरी में एक और सड़क का नाम हांगकांग के नाम पर रखा गया है, ताकि हंगरी के लोगों को हांगकांग में चीन द्वारा की जा रही दादागिरी की याद दिलाए। हंगरी की राजधानी में लगातार सड़कों के नामों का बदलने का सिलसिला जारी है और आगे भी कई सड़कों के नाम बदले जाएंगे।