पाकिस्तान के लिए 'भस्मासुर' बना तहरीक-ए-तालिबान, जिहादी जंग में कैसे बर्बाद हुआ जिन्ना का देश!
खरगोशों के साथ रेस लगाने और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करने की नीति पाकिस्तानी सेना ने ही तैयार की, जो अब उसे बहुत महंगी पड़ रही है। पाकिस्तान के दोगलेपन ने ही तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को जन्म दिया है।
Tehreek-e-Taliban in Pakistan: 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के साथ ही देश के शासकों ने भविष्य में भारत को भी मुस्लिम राष्ट्र बनाने के लिए हर हथकंडे अपनाए और 'गजवा-ए-हिंद' के जरिए भारत पर मुस्लिम शासन स्थापित करने के अपने मूल उद्येश्य के साथ पाकिस्तान की सरकार और सेना ने आतंकवादियों को पालना पोसना शुरू किया। लेकिन, भारत में कुछ दर्जन हमला करने के अलावा पाकिस्तान के ये पाले आतंकवादी कुछ ना कर सके और अब भारत दुनिया की टॉप-5 अर्थव्यवस्था में शामिल हो चुका है। लेकिन, बदनीयत पाकिस्तान अब उसी आतंकवाद की आग में बुरी तरह से झुलस रहा है और उसकी अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्ग हो चुका है। कल ही युद्धविराम को तोड़ते का ऐलान करते हुए तहरीक-ए-तालिबान ने क्वेटा में बड़ा बम धमाका किया है, जिसमें कई लोग मारे गये हैं।
पाकिस्तान ने कैसे बनाया तालिबान
भारत के साथ 1965 और 1971 का युद्ध लड़ने और हारने के बाद पाकिस्तान की सेना समझ गई, कि उसके लिए भारत जैसे विशालकाय सैन्य ताकत को सीधी लड़ाई में हराना नामुमकिन है, लिहाजा पाकिस्तान की सेना ने भविष्य में भारत से युद्ध लड़ने के लिए वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया। 1979 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर आक्रमण करने और उसके बाद के अगले चार दशकों के संघर्ष ने पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमा पर अपना प्रभाव बढ़ाने और भारत के साथ भविष्य के युद्ध की स्थिति में अफगान क्षेत्र को 'रणनीतिक जोन' में बदलने का प्रयास करने का मौका प्रदान किया। 1989 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान से बाहर हो जाने के बाद, पाकिस्तानी सेना ने दक्षिणी अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान के पश्तून कबीलों को एक दुर्जेय लड़ाकू बल के रूप में संगठित किया। पाकिस्तान ने अपने देश में चलने वाले मदरसों के हजारों छात्रों को इस्लाम का हवाला देकर बहकाया और 'मुजाहिदीन' की 'सेना' तैयार की, जिसे तालिबान नाम दिया गया, जिसका अर्थ पश्तो में छात्र होता है।
भारत के खिलाफ 'प्लान तालिबान'
1990 के दशक के मध्य में उभरे तालिबान ने पाकिस्तान की मदद से उत्तरी अफगानिस्तान की जनजातियों को हराया फिर 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया। और इस तरह से अफगानिस्तान अगले कुछ वर्षों के लिए पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों के लिए एक सुरक्षित आश्रय बन गया। काबुल में तालिबान राज स्थापित होने के बाद पाकिस्तान को कश्मीर में भारत के खिलाफ छद्म युद्ध को बढ़ावा देने में भारी मदद मिली। लेकिन, साल 2001 में अमेरिका पर हुए हमले के बाद स्थितियां पूरी तरह से बदल गई और अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अमेरिकी हमले के बाद तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा और पाकिस्तान, जिसने अमेरिका की सक्रिय मदद से अफगानिस्तान और अपने क्षेत्र में इस्लामी आतंकवादी समूहों का निर्माण किया था, वो अब खुद अब 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' में एक पश्चिमी देशों का सहयोगी बन गया और तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका की मदद करने लगा।
पाकिस्तान को महंगी पड़ी ये लड़ाई
खरगोशों के साथ रेस लगाने और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करने की यह नीति पाकिस्तानी सेना को बहुत महंगी पड़ी, क्योंकि उत्तर पश्चिम पाकिस्तान की पश्तून जनजाति, पाकिस्तान के दोगलापन के खिलाफ धीरे-धीरे एक होने लगी और फिर जन्म हुआ तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का, जिसे टीटीपी भी कहा जाता है। वैसे तो टीटीपी और अफगानिस्तान पर शासन करने वाले तालिबान को पाकिस्तान अलग अलग कहता है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है, कि ये दोनों जुड़वां भाई हैं। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), जिसे पाकिस्तान तालिबान भी कहा जाता है, उसने धीरे धीरे पाकिस्तान के खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी और पाकिस्तान को शरिया से चलने वाला पूर्ण मुस्लिम राष्ट्र बनाने के इरादों के साथ पाकिस्तान पर हमला करना शुरू कर दिया। पाकिस्तान, जिसने अपने देश की अवाम के नस में कट्टरवाद का जहर भर दिया है, वो पाकिस्तान तालिबान का भरपूर समर्थन करती है। साल 2006-07 से 2014-15 तक टीटीपी, पाकिस्तानी सेना के साथ एक क्रूर छापामार युद्ध में लगा रहा और और इस दौरान टीटीपी, अफगानिस्तान के साथ लगती पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा के विशाल क्षेत्र में अपना दायरा बढ़ाता रहा।
तहरीक-ए-तालिबान कितना मजबूत है?
शुरूआत में तो तहरीक-ए-तालिबान को पाकिस्तानी सेना से कोई मतलब नहीं था, लेकिन दोनों के बीच संघर्ष की शुरूआत उस वक्त हुई, जब अमेरिकी सैनिकों के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना ने पहाड़ी वजीरिस्तान क्षेत्र में अल-क़ायदा आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाना शुरू किया। अलकायदा में भी उसी समुदाय के लड़ाके शामिल थे, जो तहरीक-ए-तालिबान में थे, लिहाजा अब टीटीपी का पाकिस्तानी सेना के साथ संघर्ष शुरू हो गया। मध्य एशियाई आतंकवादी संगठन को इस दौरान अरब के आतंकियों के साथ साथ स्थानीय पश्तून जनजातियों का भारी समर्थन मिलने लगा और टीटीपी की शक्ति बढ़ने लगी। ये वो समुदाय है, जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान का विभाजन करने वाली डूरंड लाइन को मानने से इनकार करता है। इसने बाद में टीटीपी और लश्कर-ए-इस्लाम जैसे अन्य उग्रवादी संगठनों की स्थापना की। उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में चल रहे भीषण संघर्ष ने देश के संसाधन को बहुत कम कर दिया और इसकी अर्थव्यवस्था और जनशक्ति पर खतरनाक असर डाला। टीटीपी ने इस दौरान पेशावर में एक आर्मी पब्लिक स्कूल पर भीषण हमला किया और 150 से ज्यादा बच्चों और शिक्षकों को मौत के घाट उतार दिया, इसमें 134 छात्र शामिल थे, जिनमें ज्यादातर पाकिस्तानी आर्मी अफसरों के बच्चे थे।
पाकिस्तान बनाम तहरीक-ए-तालिबान
आर्मी स्कूल पर हुए हमले ने पाकिस्तान के साथ साथ पूरी दुनिया को दहलाकर रख दिया और फिर पाकिस्तान की सेना ने तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ खतरनाक ऑपरेशन चलाना शुरू किया, जिसकी वजह से टीटीपी की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। इसके सैकड़ों आतंकवादी मारे गये। लेकिन, सबसे दिक्कत ये है, जिहाद की थ्योरी ने इन आतंकी संगठनों को रक्तबीज की तरह बना दिया है। इन आतंकी संगठनों के पास आतंकियों की कोई कमी नहीं है, क्योंकि मदरसों में ऐसा जहर भरा जाता है, कि इन आतंकी संगठनों को नये लड़ाकों की खेप लगातार मिलती रहती है। टीटीपी के साथ भी यही हुआ। एक तरह इसके आतंकी मर रहे थे, तो दूसरी तरह इसमें सैकड़ों आतंकियों की भर्ती हो रही थी।
टीपीपी फिर हुआ शक्तिशाली
अफगानिस्तान से अमेरिका के निकलने के बाद पाकिस्तान को उम्मीद थी, कि तालिबान शासन में वो काफी आसानी से टीटीपी को कुचल देगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। तालिबान ने पाकिस्तान की मदद करने से इनकार कर दिया और जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में हवाई हमले शुरू किए, तो तालिबान ने साफ तौर पर धमकी दी, कि पाकिस्तान हमला उसकी संप्रभुता पर हमला है। यानि, पाकिस्तान अब फंस गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है, कि 2001 में अमेरिकी हमले के बाद वो टीटीपी ही था, जिसने तालिबान के आतंकियों को पनाह दी थी, लिहाजा सवाल ही नहीं उठता है, कि अफगान तालिबान, पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करे। वहीं, काबुल पर कब्जे के बाद अफगान तालिबान ने अफगानिस्तान के अलग अलग जेलों में बंद 1500 से ज्यादा पाकिस्तान तालिबान के कमांडरों को रिहा कर दिया। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान में करीब 30 हजार से 35 हजार लड़ाके हैं।
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पाकिस्तान के लिए भस्मासुर बना टीटीपी
अफगानिस्तान से निकलते वक्त अमेरिकी सेना ने करोड़ों रुपये के हथियार अफगानिस्तान में ही छोड़ दिए और अब अमेरिका के विशाल हथियार भंडार पर अफगान तालिबान और पाकिस्तान तालिबान का नियंत्रण है। लिहाजा, पाकिस्तानी सेना के लिए अब पाकिस्तान तालिबान से मुकाबला करना आसान नहीं है। अगस्त 2021 में जब से काबुल पर अफगान तालिबान का कब्जा हुआ है, उसके बाद से पाकिस्तान तालिबान ने पाकिस्तानी आर्मी के खिलाफ 250 से ज्यादा हमले किए हैं। इमरान खान की सरकार ने बातचीत के जरिए टीटीपी के साथ युद्धविराम का समझौता किया था, लेकिन पाकिस्तान में नये आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर ने जिस दिन (29 नवंबर) कार्यभार संभाला, उसी दिन टीटीपी ने युद्धविराम खत्म करने की घोषणा कर दी। यानि, अब पाकिस्तान अपने ही बनाए दलदल में धंस चुका है।
पाकिस्तान का क्या हाल होगा?
पाकिस्तान अपने सात दशकों के छोटे से इतिहास के शायद सबसे बड़े आर्थिक संकट में फंस चुका है, वहीं, पिछले दिनों देश के एक तिहाई हिस्से में आई विनाशकारी बाढ़ ने स्थिति को जटिल बना दिया है। वहीं, पाकिस्तान अब गुरिल्ला समूहों के साथ खूनी संघर्ष के एक और दौर में फंसने और लड़ने के लिए तैयार नहीं है। खैबर पख्तूनख्वा के दुर्जेय पहाड़ और जनजातीय क्षेत्र, जिसे FATA कहा जाता है, वो पाकिस्तानी सेना के लिए काल बन चुका है। हर दिन हमले हो रहे हैं। आज भी बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में आतंकी विस्फोट हुआ है, जिसमें दो लोगों की मौत और 24 लोग घायल हो गये हैं। जियो न्यूज के मुताबिक, आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया था, जिसमें एक पुलिसकर्मी और एक बच्चे की मौत हो गई। वहीं, दूसरी तरफ 26.6% के असंभव ऊंचाई तक पहुंचे महंगाई दर ने पाकिस्तान को अपने अस्तिव बचाने के लिए संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है।
पश्तूनों का मिल रहा टीटीपी को साथ
अफगान तालिबान हो या पाकिस्तान तालिबान, अगर इम्हें अलग अलग करके भी देखा जाए, फिर भी ये दोनों संगठन पश्तूनों के हैं और पश्तून आबादी पूरे पाकिस्तान में फैली हुई है। पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली कराची में भी सबसे ज्यादा अफगानिस्तान से आए विस्थापित पश्तून हैं। वहीं, पाकिस्तान के पंजाब से लेकर शहरों और कस्बों तक, पश्तूनों की उपस्थिति पूरे पाकिस्तान में है। जिसने टीटीपी को पूरे पाकिस्तान में हमला करने में सक्षम बना दिया है। लिहाजा, अब कराची और पंजाब में लगातार बम धमाके और आतंकी हमले होने लगे हैं। पिछले दिनों रावलपिंडी में भी सेना मुख्यालय के ठीक सामने एक आत्मघाती विस्फोट हुआ था, जिसमें पाकिस्तानी सेना के एक जनरल की मौत हो गई। ऐसे में सवाल ये उठ रहे हैं, कि क्या पाकिस्तान आने वाले तूफान से बच पाएगा? या फिर पाकिस्तान 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के टूटने के समान एक और विघटन का शिकार होगा?
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