भारत पर बनी वो फ़िल्म जो चीन में हुई सुपरहिट
फ़िल्म एक चीन के कैंसर मरीज पर आधारित है, वो भारत आता है, फिर क्या होता है?कैंसर की दवाएं, भारत और चीन, इन तीन चीजों के इर्दगिर्द घूमती एक फ़िल्म चीन में जबरदस्त हिट हो गई है.इस फ़िल्म का हिट होना वहां कई लोगों को हैरान भी कर रहा है. लेकिन, ये चीन में कैंसर की महंगी दवाओं के कारण आम लोगों की परेशानी को दिखाता है
कैंसर की दवाएं, भारत और चीन, इन तीन चीजों के इर्दगिर्द घूमती एक फ़िल्म चीन में जबरदस्त हिट हो गई है.
इस फ़िल्म का हिट होना वहां कई लोगों को हैरान भी कर रहा है. लेकिन, ये चीन में कैंसर की महंगी दवाओं के कारण आम लोगों की परेशानी को दिखाता है.
साथ ही किस तरह भारतीय दवाइयों पर चीनी लोगों की निर्भरता बढ़ रही है इसे भी बताता है.
ये फ़िल्म एक कैंसर रोगी पर बनी है जो भारत से सस्ती दवाएं ख़रीदने के लिए गिरफ़्तार होने तक का जोख़िम उठाता है.
'डाइंग टू सर्ववाइव' अमरीकी फ़िल्म 'डलास बायर्स क्लब' की रीमेक है.
ये फ़िल्म 6 जुलाई को रिलीज हुई थी और ये कैंसर के एक मरीज लू योंग की असल ज़िंदगी पर बनी है.
लू पूर्वी जिआंगसू प्रांत के एक टेक्स्टाइल व्यापारी हैं. उन्हें क्रॉनिक मेलॉइड ल्यूकेमिया (कैंसर का एक प्रकार) है. उन्हें चीन में कैंसर के मरीजों को भारत से नकली दवाइयां बेचने के आरोप में 2013 में गिरफ़्तार किया गया था.
दो साल बाद उन्हें साल 2015 में रिहा कर दिया गया था.
लू ने इस जेनरिक दवाई से सैकड़ों मरीजों की मदद की थी. ये दवाई भारत की नेटको फार्मा कंपनी बनाती है.
भारत के साथ समझौता
कैंसर की महंगी दवाइयों से राहत के लिए चीन कई तरह के क़दम भी उठा रहा है.
फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद चीन ने 9 जुलाई को कहा था कि उसका भारत के साथ दवाइयों और ख़ासकर कैंसर रोधी दवाइयों के आयात को लेकर समझौता हुआ है.
इससे पहले मई में कुछ कैंसर रोधी दवाइयों के आयात पर टैरिफ़ भी हटाया गया था.
https://twitter.com/weier1231997/status/1015981655842910208
इसके अलावा कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन विदेशी फार्मा कंपनियों के साथ भी दवाइयों की क़ीमत कम करने को लेकर बातचीत करने वाला है.
हाल के सालों में, चीन ने देश में निर्मित जेनरिक दवाओं के ज़्यादा सुरक्षित और सस्ता बनाने को मंजूरी देने में तेजी ला रहा है.
भारतीय दवाइयां ज़्यादा प्रचलित
साइंस और टेक्नोलॉजी की सरकारी अख़बार ने कहा है कि कुछ मरीजों को जेनरिक दवाओं को लेकर चिंताएं हैं और चीन की घरेलू दवा बनाने वाली कंपनियां कम मुनाफ़े के चलते इन दवाइयों को बनाने से बचती भी हैं.
अख़बार लिखता है कि एक और समस्या ये है कि जिन अस्पतालों के पास फंड की कमी है वो अपनी लागत पूरी करने के लिए दवाओं को महंगे दामों पर बेचते हैं.
'ग्लोबल टाइम्स' अख़बार के मुताबिक चीन में मिलने वाली भारतीय दवाओं में ज़्यादातर कैंसर रोधी दवाइयां हैं. ये दवाइयां ज़्यादा असरदार होने के कारण चीन की स्वेदश निर्मित दवाइयों से अधिक प्रचलित हैं.
अख़बार में ये भी लिखा है कि यहां तक कि चीन में एजेंट्स भारतीय जेनरिक दवाएं बेच रहे हैं जो चीन के सर्च इंजन बेडु और ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म टाओबो पर आसानी से मिल जाती हैं.