पाकिस्तान में चीनी नागरिकों पर हो रहे हमलों से क्या सुस्त हुई सीपेक परियोजना?
बीबीसी को चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या सीपेक के एक प्रतिनिधि ने बताया कि चीनी नागरिकों पर हमलों के बाद चीन के लोग लौट रहे हैं. क्या कहना है पाकिस्तान सरकार का?
पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में चीनी नागरिकों पर बलूचिस्तान के उत्तर पश्चिम में बलोच अतिवादियों के हमलों के बाद कहा जा रहा है कि चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या 'सीपेक' पर काम की रफ़्तार पर असर पड़ा है.
इसके बारे में 'सीपेक' से जुड़े एक प्रतिनिधि ने बीबीसी को बताया है कि हाल के हमलों के बाद चीनी व्यक्ति, और ख़ास तौर से वे जिनका संबंध सीपेक परियोजना से है, उन्हें उनके देश वापस भेजा गया है और जिन परियोजनाओं पर हाल तक काम जारी है वहां कामगारों की संख्या कम करने का फैसला किया गया है.
केंद्रीय मंत्री अहसन इक़बाल ने चीनी प्रशासन की ओर से लिये गये इस फैसले की ख़बर का खंडन किया है. उन्होंने कहा है कि हमें तो ऐसी कोई सूचना नहीं मिली बल्कि यह ज़रूर है कि चीनी अब नई योजनाओं पर काम करना चाहते हैं.
बीबीसी से बात करते हुए अहसन इक़बाल ने कहा कि 'पिछली सरकार की ओर से गुप्तचर एजेंसियों का राजनैतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया जिसके कारण ऐसे तत्वों (अतिवादियों) ने सिर उठाना शुरू कर दिया.' उन्होंने कहा कि 'चीन की ओर से अपनी सुरक्षा खुद करने के बारे में कोई पत्र या सन्देश प्राप्त नहीं हुआ है.'
अहसन इक़बाल ने ये भी कहा है कि चीन ने पाकिस्तान से अपने नागरिकों को कम नहीं किया बल्कि वे तो और नई परियोजनाओं पर बातचीत कर रहे हैं.'
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26 अप्रैल, 2022 को कराची आत्मघाती बम धमाके में तीन चीनी नागरिकों की मौत
14 जुलाई, 2021 को ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में बम धमाके में दस चीनी नागरिकों की मौत
14 जुलाई, 2021 को ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में बम धमाके में 26 अन्य चीनी नागरिक घायल हुए
28 जुलाई, 2021 में कराची में चीनी नागरिक की गाड़ी पर गोलियां बरसाई गईं
11 मई, 2019 को ग्वादर के पांच सितारा होटल पर चरमपंथियों का हमला हुआ जिसमें चीनी लोग ठहरे हुए थे
23 नवंबर, 2018 में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला, चार लोगों की मौत
11 अगस्त, 2018 में दालबंदीन, बलुचिस्तान में हुए आत्मघाती में तीन चीनी इंजीनियर घायल हुए
फरवरी - 2018 में कराची में दो चीनी नागरिकों पर गोलियां चलाई गयीं, एक चीनी नागरिक की सिर पर गोली मारकर हत्या
मई - 2017 में क्वेटा से अगवा करने के बाद चीनी दंपति की हत्या
जुलाई - 2007 में पेशावर में तीन चीनी नागरिकों की हत्या
कैसे प्रभावित हुई सीपेक परियोजना
दूसरी और 'सीपेक' की परियोजना से जुड़े प्रतिनिधि ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि 'सीपेक' की जारी परियोजनाओं पर हाल के हमलों का तीन तरह से प्रभाव पड़ा है.
'पहला यह कि लोगों में डर बैठ गया है जिसके कारण उन्होंने अपनी आशंकाएं व्यक्त की हैं. दूसरा यह कि वर्तमान योजनाओं के दूसरे चरण के लिए अब लोगों की जरूरत है और उनमें यहां आने को लेकर डर है.'
'तीसरी' बात यह है कि लोगों की आवाजाही को सीमित कर दिया जाता है जिसके कारण काम करने के घंटे पूरे नहीं हो पाते और इससे परियोजनाओं को पूरा करने में पहले से ज्यादा समय लगता है.'
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'सीपेक' के तहत कितनी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं?
'सीपेक' से संबंधित सरकार की वेबसाइट के अनुसार इस समय सीपेक के तहत परियोजनाओं की संख्या 21 है, जिनमें से 10 पर काम पूरा हो चुका है. इसके अलावा छह परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं जबकि अन्य विचाराधीन हैं.
इन सभी निर्माणाधीन या विचाराधीन परियोजनाओं में बिजली (हाइड्रो पावर, सोलर, थर्मल और विंड पावर) की परियोजनाओं की संख्या ज्यादा है.
इन परियोजनाओं में 70 प्रतिशत पूंजी बिजली में लगायी गयी है और अभी अपूर्ण व विचाराधीन परियोजनाओं में भी बिजली की परियोजनाएं अधिक हैं.
'सीपेक' परियोजनाओं की कुल संख्या के संबंध में सरकार ने एक विज्ञप्ति जारी करते हुए बताया था कि इन परियोजनाओं पर लगने वाली राशि 49 अरब डॉलर है.
इससे पहले कई बार यह राशि 62 अरब डॉलर बताई गई थी लेकिन कुछ परियोजनाओं के कम होने के कारण सरकार ने स्पष्ट किया कि यह रकम 49 अरब डॉलर है.
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'पिछले तीन साल में किसी नई परियोजना पर काम शुरू नहीं हुआ'
हाल के दिनों में केंद्र सरकार की ओर से पाकिस्तान के बजट के बारे में बताते हुए लगभग 14 बिंदुओं पर विशेष जोर दिया गया था.
इनमें से एक बिंदू सीपेक' के तहत नई परियोजनाएं शुरू करने के बारे में था, जिसके बारे में सरकार की ओर से बताया गया था कि इन परियोजनाओं के लिए और राशि जारी की जाएगी और उन पर जल्द काम शुरू किया जाएगा.
लेकिन सीपेक' की परियोजनाओं पर काम करने वाले केंद्रीय सरकार के एक प्रतिनिधि ने बताया कि चीनी अधिकारियों ने साफ तौर पर सरकार से कहा है कि 'वे पहले से जारी परियोजनाओं को पूरा करने के बाद ही किसी नई परियोजना पर बात करेंगे.'
इस प्रतिनिधि का कहना है कि 'पिछले तीन वर्षों में किसी नई परियोजना पर काम शुरू नहीं किया गया और यह बात कि सरकार किसी नई परियोजना के लिए राशि जारी करेगी या नहीं, वह जॉइंट कोआर्डिनेशन कमेटी यानी जेसीसी की शीर्ष बैठक में ही तय होगी.'
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चीनी अधिकारी रक्षात्मक मुद्रा में क्यों?
इस प्रतिनिधि ने बताया कि इस रक्षात्मक रवैये की एक साफ कड़ी हाल के महीनों में चीनी नागरिकों पर होने वाले हमलों से जुड़ती है.
इस साल जनवरी से बलोच अतिवादियों की ओर से जारी हमलों में से एक हमला कराची यूनिवर्सिटी में चीनी संस्थान पर अप्रैल में हुआ था.
इस प्रतिनिधि का कहना है कि 'इन हमलों का एक प्रभाव इस बात पर पड़ा कि परियोजनाओं पर काम करने वाले चीनी मजदूरों या इंजीनियरों को तत्काल पाकिस्तान से वापस चीन भेजा गया और अफसरों को इस्लामाबाद तक सीमित रहने का निर्देश दिया गया.'
इस प्रतिनिधि ने बताया कि 'चीनी लोग अपनी सुरक्षा के बारे में बहुत परेशान हैं और हर हमले के बाद चीनी अधिकारी एक नई रेड लाइन बढ़ा देते हैं.'
'इस बार उन्होंने अपनी सुरक्षा की व्यवस्था खुद करने की बात भी कही है लेकिन अब तक पाकिस्तान की सरकार ने उनकी यह मांग मंज़ूर नहीं की है.'
'सीपेक' से जुड़े एक और अफसर ने बताया कि 'चीनी अधिकारियों और पाकिस्तान के बीच सुरक्षा मामलों को लेकर विशेष बातचीत हुई है लेकिन हम उनसे उम्मीद नहीं कर सकते कि वे अपने लोगों को यहां मरने के लिए छोड़ दें.'
'इसलिए यह बात सही है कि एक बड़ी संख्या यहां से गई है और कारण यही है कि काम की जगह पर चीनी लोग कम से कम नजर आएं और इसका नतीजा यह है कि परियोजनाओं की जो गति होनी चाहिए थी, वह नहीं है.'
इस सिलसिले में ग्वादर और लसबेला से राष्ट्रीय एसेंबली के सदस्य असलम भूतानी ने बीबीसी को बताया कि 'बलोच अतिवादियों की ओर से हमलों के बाद 'सीपेक' की जारी परियोजनाओं पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ा है.'
'अब तक प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ दो बार ग्वादर का दौरा कर चुके हैं और 'सीपेक' की परियोजनाओं के संबंध में कई बार बात की गई है. बताया गया है कि इस बार ये परियोजनाएं समय पर पूरी की जाएंगी. यह बात वह किस कारण कर रहे हैं... उन्हें चीन की ओर से विश्वास दिलाया गया होगा.'
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शरीफ़ सरकार की दिलचस्पी की वजह
पाकिस्तान की वर्तमान सरकार जिसमें मुस्लिम लीग (नवाज़) भी शामिल है, 'सीपेक' की परियोजनाओं में ख़ास दिलचस्पी इसलिए भी लेती है क्योंकि इसी परियोजना की शुरूआत उनके सरकारी दौर यानी सन 2013 में हुई थी.
इससे पहले प्लानिंग डिविज़न और स्पेशल इनीशिएटिव के मंत्री अहसन इक़बाल ने 6 मई को 'सीपेक' परियोजनाओं की सुरक्षा का जायजा लेते हुए अफसोस जताया था कि ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप (जेसीसी) की मीटिंग में जिस रफ्तार से सुरक्षा के उपायों पर बात होनी चाहिए थी वैसी पिछले चार साल में नहीं हुई.
अहसन इक़बाल ने यह भी कहा था कि कराची में हमले के बाद जहां चीनी लोगों की सुरक्षा की अचूक योजना बनाई गई है, वहीं बलोच युवाओं से भी बातचीत जारी रखने के लिए कदम उठाये गए हैं.
जबकि उस बैठक में शामिल गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि को भी बताया गया था कि जो सुरक्षा प्रोटोकॉल 'सीपेक' पर काम करने वाले लोगों के लिए तय किए गए हैं वो उन उपायों पर अमल भी करवाएं.'
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कड़े किए गए सुरक्षा के नियम
दूसरी और कराची यूनिवर्सिटी में चीनी इंस्टीट्यूट में हमले के बाद पंजाब और दूसरे राज्यों के शिक्षण संस्थानों में सुरक्षा के कदम कड़े कर दिए गए हैं.
पंजाब यूनिवर्सिटी के चीफ़ सिक्योरिटी अफसर कर्नल उबैद ने बीबीसी को बताया कि 'सुरक्षा के उपाय करने का मतलब यह हरगिज़ नहीं कि हम सब को शक की निगाह से देख रहे हैं लेकिन हम यह अधिकार रखते हैं कि जांच पड़ताल करें और यहां पर आने वाले हर विद्यार्थी और शिक्षक की सुरक्षा को सुनिश्चित करें.'
दूसरी ओर 'सीपेक' से संबंधित परियोजनाओं पर काम जहां धीमी गति का शिकार है. वहीं, सरकार इस बारे में किसी प्रकार के प्रोपेगैंडा को भी रोकने में लगी हुई है.
सरकारी प्रवक्ता ने इसके बारे में कहा कि 'चीनी लोग इस बात के लिए बाध्य नहीं कि वे यहीं रहें और खुद पर होने वाले हमलों का सामना करते रहे. सरकार उन्हें बहुत अच्छी सुरक्षा उपलब्ध करा रही है लेकिन हमें यह बात भी याद रखनी चाहिए कि चीन पाकिस्तान के अलावा दूसरे देशों में परियोजनाएं चला रहा है तो चीन के लोग कहीं भी जा सकते हैं और चाहें तो अपनी संख्या बल यहां से कम करने का अधिकार भी रखते हैं.'
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