Coronavirus: सन् 1918 में भी चीन की वजह से दुनिया में फैली थी महामारी, मारे गए थे 5 करोड़ लोग!
नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने अब तक पूरी दुनिया में करीब 28,000 लोगों की जान ले ली है। लगभग हर देश आज इस महामारी से जूझ रहा है। सन् 1918 में स्पेनिश फ्लू या फ्लू आखिरी महामारी थी जिसमें करीब पांच करोड़ लोग मारे गए थे। आज भी चीन संदेह के घेरे में है और 102 साल पहले भी चीन शक के घेरे में था। इतिहासकारों का दावा है कि उस महामारी की वजह भी चीन ही था। वे मानते हैं कि एक सदी पहले चीनी मजूदरों की वजह से कई लोगों की जिंदगियां इस बीमारी की वजह से चली गई थीं। नेशनल जियोगाफिक की तरफ से आई एक रिपोर्ट में यह बात कई इतिहासकारों के हवाले से कही गई है।
एक तरफ युद्ध, एक तरफ महामारी
कई दशकों तक वैज्ञानिक इस बात को लेकर संदेह करते रहे कि आखिर महामारी कहां से शुरू हुई थी। कई लोगों ने कहा कि यह फ्रांस से निकली थी, कुछ ने चीन तो कुछ ने अमेरिका और कुछ और देशों पर शक जताया। बीमारी की जगह के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं मिली और वैज्ञानिकों के पास उन स्थितियों के बारे में भी पूरी सूचना नहीं जिसकी वजह से बीमारी फैली। लेकिन उस समय ही उन्हें यह बात पता लग गई थी कि इस तरह की महामारी आने वाले समय में भी दुनिया को अपना निशाना बनाएगी। जिस समय फ्लू फैला उस समय दुनिया पहले वर्ल्ड वॉर से भी गुजर रही थी। यह युद्ध उसी वर्ष खत्म हो गया था।
चीनी मजदूरों पर हुआ सबको शक
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कनाडा में पूरी तरह से सील ट्रेनों में कुछ चीन मजदूर भेजे गए थे। पिछले कुछ दिनों में हुई रिसर्च में इस बात की तरफ ही इशारा मिला है। कनाडा की मेमोरियल यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूफाउंडलेंड में इतिहासकार मार्क हंफ्रीज ने बताया कि नए रिकॉर्ड्स से इस बात की पुष्टि होती है कि युद्ध के दौरान 96,000 चीनी मजदूर ब्रिटेन और फ्रांस के साथ काम करने के लिए आए थे। ये मजदूर ही उस महामारी की वजह हो सकते हैं। हंफ्रीज ने वॉर इन हिस्ट्री इस टाइटल के साथ जनवरी के अंक में लिखा था कि फ्लू मरीजों से मिले वायरल सैंपल्स का इंतजार हो रहा है और उसके बात उनकी परिकल्पना को मान्यता मिल सकेगी। इस तरह के सुबूतो से जगह के बारे में सटीक जानकारी हो जाएगी।
चीन में मौतों का आंकड़ा था कम
सन् 1918 में फ्लू महामारी तीन दौर में दुनिया में फैली थी। इस महामारी का पहला दौर उस वर्ष में बसंत ऋतु के दौरान हुआ था। उस समय महामारी ने युवा और स्वस्थ लोगों की जान भी ले ली थी। पहले भी चीनी मजदूरो को इस बीमारी की वजह बताया जा चुका है। इतिहासकार क्रिस्टोफर लैंगफोर्ड के मुताबिक स्पेनिश फ्लू की वजह से दुनिया के बाकी देशों में रिकॉर्डतोड़ मौतें हो रही थीं तो चीन का आंकड़ा काफी कम था। हंफ्रीज को इस बात के प्रमाण भी मिले फ्लू से पहले उत्तरी चीन के के शांक्सी प्रांत में नवंबर 1917 में कि सांस से जुड़ी बीमारी देखी गई थी। बाद में चीनी हेल्थ अधिकारियो ने उसे स्पेनिश फ्लू के जैसा ही बताया था।
25,000 चीनी मजदूर पहुंचे थे कनाडा
हंफ्रीज को इस बात के मेडिकल रिकॉर्ड्स भी मिले कि 25,000 में से चीनी मजदूरों को यूरोप के रास्ते कनाडा भेजा गया था। मजदूर साल 1917 में कनाडा की तरफ जाना शुरू हुए थे और कई मजदूरों को फ्लू जैसी बीमारी की वजह से क्वारंटाइन में रखना पड़ गया था। स्पेनिश फ्लू अक्टूबर तक अपने चरम पर पहुंचा था मगरर साल 1920 तक इसने कई लोगों को अपना शिकार बनाकर रखा था।
भारत में मारे गए थे 1.4 करोड़ लोग
अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में स्पेनिश फ्लू एक साथ फैला था। लेकिन तीनों ही देशों ने मीडिया को इसकी भनक तक नहीं लगने दी थी। इसलिए यह मत सोचिएगा कि इस फ्लू का नाम स्पेनिश फ्लू इसलिए पड़ा क्योंकि यह स्पेन से निकला था। मगर इस फ्लू के बारे में सबसे पहले स्पेन की मीडिया ने रिपोर्ट दी थी, इसलिए इसे स्पेनिश फ्लू कहा गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दादा की मौत भी इसी बीमारी में हुई थी। इस महामारी की वजह से भारत में करीब डेढ़ करोड़ लोगों की जान चली गई थी।