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दक्षिण चीन सागर में भीषण युद्ध का खतरा, चीन ने लागू किया विवादित समुद्री कानून, जहाजों को उड़ाने का आदेश

साउथ चायना सी विवाद का नया अड्डा बन गया है। चीन 90 प्रतिशत हिस्से पर दावा करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सरेआम उल्लंघन है। वहीं, छोटे देशों को डराने के लिए चीन लगातार अपने एयरक्राफ्ट भेजता रहता है।

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बीजिंग, सितंबर 05: साउथ चायना सी में विवाद काफी बढ़ गया है और माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में साउथ चायना सी में भारी लड़ाई हो सकती है। इसकी वजह है चीन द्वारा नये समुद्री कानून को लागू कर देना। चीन ने साउथ चायना सी में जिस कानून को लागू किया है, वो अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून का पूरी तरह से उल्लंघन करता है। चीन के नये कानून को नहीं मानने वाले जहाजों को उड़ा दिया जाएगा।

चीन का नया समुद्री कानून

चीन का नया समुद्री कानून

चीन ने बुधवार को समुद्री यातायात सुरक्षा कानून लागू कर दिया है। इससे चीन की समुद्री सीमा में प्रवेश करने वाले विदेशी जहाजों को अब चीनी अधिकारियों को अपनी मौजूदगी की जानकारी निश्चित तौर पर देनी होगी। चीन के समुद्री क्षेत्र में जो जहाज बगैर इजाजत दाखिल होंगे, चीन के अधिकारियों को जहाज को लेकर हर एक जानकारी नहीं देंगे, तो फिर उस जहाज तो चीन उड़ा देगा। चीन के इस कानून के बाद बवाल मचना इसलिए तय माना जा रहा है, क्योंकि चीन 90 प्रतिशत से ज्यादा साउथ चायना सी को अपना हिस्सा मानता है, जबकि उसपर ताइवान, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई का भी हिस्सा है, जिसे मानने से चीन इनकार करता है।

...तो हो जाएगा युद्ध

...तो हो जाएगा युद्ध

ताइवान के अखबार ताइपे टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का ये कदम 'टाइम बम' की तरह साबित हो सकता है। क्योंकि इससे दक्षिण चीन सागर, जिसे साउथ चायना सी भी कहा जाता है, उससे गुजरने वाले विदेशी मालवाहक जहाजों के लिए काफी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत साउथ चायना सी के एक ही हिस्से पर चीन का हक है, जिसे चीन खारिज करता है, लिहाजा नये कानून के बाद दूसरे देशों के साथ चीन के संघर्ष काफी ज्यादा बढ़ जाएंगे। अगर चीन हठधर्मिता दिखाता है, तो साउथ चायना सी में चीन की जबरदस्ती युद्ध का रूप भी ले सकता है। चीन की संसद, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने समुद्री सुरक्षा से संबंधित कानून में अप्रैल महीने में संशोधन किया था। इस संशोधन में समुद्री सीमा के भीतर की गतिविधियों को तय किया गया है। इसके तहत अगर चीन किसी जहाज को अपने लिए खतरा मानता है, तो वह उसकी समुद्री यात्रा पर रोक लगा सकता है या उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।

अमेरिका से तनाव और बढ़ेगा

अमेरिका से तनाव और बढ़ेगा

साउथ चायना सी में अमेरिका और ब्रिटेन फ्री नेविगेशन के तहत अपने एयरक्राफ्ट्स को अकसर भेजता रहता है। डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल के बाद अमेरिकी एयरक्राफ्ट लगातार साउथ चायना सी में मौजूद रहते हैं। खासकर ताइवान पर चीन कब्जा ना कर ले, लिहाजा ताइवान को बचाने के लिए अमेरिका ने अपना एयरक्राफ्ट कैरियर की परमानेंट नियुक्ति साउथ चायना सी में कर रखी है। चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले जर्नलिस्ट कायले मज्जर के मुताबिक, ''यदि चीन दक्षिण चीन सागर में इस कानून को लागू करता है, तो यह समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का उल्लंघन होगा।''। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में चीन और अमेरिका के बीच साउथ चायना सी में काफी ज्यादा विवाद बढ़ सकता है।

भारत भी भेज रहा है जहाज

भारत भी भेज रहा है जहाज

आपको बता दें कि हिंद महासागर में चीन एंट्री नहीं कर सके, लिहाजा पिछले कुछ महीनों में भारत ने भी अपने सैन्य जहाजों को साउथ चायना सी में भेजना शुरू कर दिया है, जिसको लेकर चीन लगातार भारत से नाराजगी जता रहा है। लेकिन, भारत ने फ्री नेविगेशन और समुद्री कानून का हवाला देकर चीन की बात को मानने से इनकार कर दिया है। पिछले महीने भी भारत ने इंडोनेशिया के साथ मिलकर साउथ चायना सी में युद्धाभ्यास किया है। वहीं, पिछले कुछ सालों में अमेरिका और ब्रिटेन के विमानवाहक पोत लगातार चीन की चेतावनियों को दरकिनार करते हुए दक्षिण चीन सागर में सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। अब अगर फिर से अमेरिका या फिर ब्रिटेन या फिर भारत अपने जहाज को साउथ चायना सी में भेजता है, तो फिर टकराव की स्थिति बन सकती है।

साउथ चायना सी में चीन की आक्रामकता

साउथ चायना सी में चीन की आक्रामकता

साउथ चायना सी में चीन कई मानवनिर्मित कृत्रिम सैन्य ठिकानों का निर्माण कर रहा है और जिन हिस्सों पर निर्माण कर रहा है, उसपर ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम भी दावा करते हैं। लेकिन, चीन अपने एयरक्राफ्ट कैरियर भेजकर सभी देशों को धमकाता रहता है। पिछले महीने यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक के दौरान अमेरिका ने काफी आक्रामकता के साथ चीन को घेरने की कोशिश की। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि ''संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन देशों (चीन) और उन कामों के बारे में अपनी चिंताओं को स्पष्ट कर दिया है, जो अन्य राज्यों को अपने समुद्री संसाधनों को कानूनी रूप से इस्तेमाल करने से धमकाते हैं, दक्षिण चीन सागर के दूसरे दावेदारों के साथ हमने भी साउथ चायना सी में इस तरह के आक्रामक व्यवहार और गैरकानूनी समुद्री दावों का विरोध किया है"।

भारत का मिशन साउथ चायना सी

भारत का मिशन साउथ चायना सी

पिछले महीने भारत के ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी और मित्र देशों के बीच सैन्य सहयोग बढ़ाने के मकसद से भारतीय नौसेना का एक टास्क फोर्स ओवरसीज तैनाती के लिए तैयार किया था। इंडियन नेवी की ईस्टर्न फ्लीट से यह तैनाती पिछले महीने के शुरू में ही दो महीनों से भी ज्यादा वक्त के लिए किया गया। जिन इलाकों में यह तैनाती की गई है, उसमें दक्षिण पूर्वी एशिया, दक्षिण चीन सागर और पश्चिमी पेसिफिक के इलाके शामिल हैं। भारतीय नौसेना के जंगी जहाजों की तैनाती समुद्री इलाके में अच्छी व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ-साथ भारत और इंडो पैसिफिक देशों के बीच मौजूदा संबंधों को मजबूत करने की दिशा मेंबड़ा कदम माना जा रहा है। इसके जरिए समंदर में मित्र राष्ट्रों के बीच ऑपरेशनल पहुंच बनाने, उनमें शांतिपूर्ण मौजूदगी का अहसास दिलाने और एकजुटता प्रदर्शित करना है।

साउथ चायना सी में चायना VS अमेरिका

साउथ चायना सी में चायना VS अमेरिका

साउथ चायना सी में अगर आप चीन का नाम देखकर सोचते हैं कि ये चीन का समुंदर है तो आप गलत है। साउथ चाइना सी पर चीन अपना हक बताता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के हिसाब से कोई भी देश अपनी सीमा से सिर्फ 12 नॉट मील तक ही अपना मालिकाना हक रख सकता है। लेकिन चीन की हड़प नीति इसे मानने से इनकार करते हुए पूरे साउथ चायना सी को अपना हिस्सा बताता है। तो सवाल ये उठता है कि वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई फिर क्या करेंगे? चीन को इससे कोई मतलब नहीं है। वो सिर्फ इन छोटे देशों को धमकाने से मतलब रखता है। ताइवान को लेकर चीन ने सीधी चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि अगर ताइवान आजादी मांगने की कोशिश करेगा तो चीन उसपर हमला कर देगा। जिसके जबाव में साउथ चायना सी में अमेरिका ने अपने नेवी वारक्राफ्ट कैरियर को भेजा है और अब चीन के नये कानून के बाद भीषण जंग की आशंका मंडराने लगी है।

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English summary
China has implemented a new maritime security law in the South China Sea, after which disputes with the US and Britain have become more likely to escalate.
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