पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों पर बेपनाह जुल्म करती है पुलिस
गिलगित, पाकिस्तान। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लोगों पर पुलिस कितना जुल्म करती है इसे एशिया में मानवाधिकार पर नजर रखने वाली संस्था एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन ने बताया है।
कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में गिलगित बल्तिस्तान इलाके के शब्बीर हसन के मामले को तस्वीरों के साथ जारी किया है जिसमें हसन के शरीर पर बेरहमी से पीटने के निशान है। शब्बीर हसन को पुलिस ने थाने में बुलाकर टॉर्चर किया।
लोगों को बेवजह टॉर्चर करती है पुलिस
रिपोर्ट में यह कहा गया है कि इस इलाके में पुलिस का राज है और वह यहां को लोगों पर बहुत दिनों से अत्याचार कर रही है। इस इलाके में कानून को लागू करवाने वाली एजेंसियों और प्रशासनिक संस्थाओं का प्रभाव नगण्य है। पाकिस्तान सरकार इस इलाके की तरफ ध्यान नहीं देती। इस वजह से पुलिस यहां किसी भी केस की जांच के दौरान बेपनाह यातना देती है। पुलिस को ऐसे साधारण मामलों में भी टॉर्चर करते पाया गया जिसमें ऐसा करने की जरूरत नहीं थी। स्थानीय लोगों से पुलिस अवैध वसूली भी करती है।
अभियोग चलाने वाले डिपार्टमेंट का काम करती है पुलिस
रिपोर्ट
में
कहा
गया
है
कि
न
तो
पुलिस
और
न
ही
मजिस्ट्रेट
रिमांड
के
नियम
का
पालन
करते
हैं।
अधिकांश
पुलिस
अधिकारी
अयोग्य
हैं
और
उनको
कानून
की
जानकारी
नहीं
है।
अपराध
की
सजा
देने
के
लिए
अभियोग
चलाने
वाले
डिपार्टमेंट
का
सारा
काम
पुलिस
कर
रही
है
इसलिए
पुलिस
द्वारा
टॉर्चर
किए
जाने
की
सूचना
मिल
नहीं
पाती।
चूंकि
अयोग्य
पुलिस
अधिकारी
मुकदमे
की
कार्यवाही
चलाते
हैं
इसलिए
कई
अपराधी
छूट
भी
जाते
हैं।
आरोप कुबूल करवाने के लिए करते हैं टॉर्चर
एशिया
में
मानवाधिकार
पर
नजर
रखने
वाली
संस्था
ने
कहा
है
कि
पाकिस्तान
के
सुदूर
गांवों
और
शहरी
इलाकों
में
पुलिसिया
जुल्म
कोई
नहीं
बात
नहीं
रह
गई
है।
पुलिस
को
यहां
बर्बर
होने
का
फ्री
लाइसेंस
मिला
हुआ
है।
वह
किसी
आरोपी
को
यातना
देकर
अपराध
कुबूल
करवाते
हैं
भले
ही
उस
शख्स
ने
वह
अपराध
न
किया
हो।
भ्रष्ट हो चुका है कानून का शासन
इस
इलाके
से
कोई
जनप्रतिनिधि
पाकिस्तानी
संसद
में
नहीं
होने
की
वजह
से
लोगों
की
आवाज
उठाने
वाला
कोई
नहीं
है।
कानून
का
पालन
करवानेवाली
एजेंसियां
पावर
मिलने
की
वजह
से
भ्रष्ट
हो
चुकी
हैं।
लोगों
को
इन
एजेंसियों
के
भरोसे
यहां
छोड़
दिया
गया
है।
लोगों
के
पास
इस
व्यवस्था
के
तहत
मूल
अधिकार
तक
नहीं
हैं।
शब्बीर हुसैन केस
कमीशन ने शब्बीर हुसैन के टॉर्चर केस के बारे में बताया है। हुसैन गिलगित बल्तिस्तान के बाला जिले का वासी है। उसे पुलिस ने इस बात के लिए बुरी तरह पीटा कि उसने जिरगा के फैसले का पालन नहीं किया था। हुसैन का अपने एक रिश्तेदार फिदा अली के साथ घर को लेकर विवाद था। उस समय शब्बीर दुबई में थे जब जिरगा ने उसके खिलाफ फैसला सुनाया था।
जिरगा के फैसले के तहत शब्बीर को अपने घर में कुछ बदलाव करना था। जब उसमें देरी हुई तो फिदा ने थाने में जाकर शिकायत दर्ज करा दी। पुलिस के अनुसार, शब्बीर को कई बार थाने में आने को कहा गया लेकिन वह नहीं आया।
26 जून 2016 को पुलिस शब्बीर के घर पहुंची और बिना वारंट के ही उसे गिरफ्तार कर लिया। उसे गैरकानूनी रूप से हिरासत में रखा गया और थानेदार इकबाल और हवलदार इफ्तिखार ने उसकी बुरी तरह से पिटाई की।
उसे तब रिहा किया गया जब कुछ स्थानीय ताकतवर लोगों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। रिपोर्ट के अनुसार, शब्बीर के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई फिर भी उसे थाने में हिरासत में रखकर यातना दी गई।
पाकिस्तान में टॉर्चर अपराध नहीं
कमीशन
ने
इस
बात
पर
हैरत
जताई
है
कि
पाकिस्तान
में
टॉर्चर
करना
अपराध
नहीं
माना
जाता
है
और
कई
पीड़ित
भी
इसे
रुटीन
मामला
मानकर
इसकी
रिपोर्ट
दर्ज
नहीं
कराते।
पाकिस्तान
के
संविधान
का
आर्टिकल
14,
नागरिक
की
प्रतिष्ठा
की
सुरक्षा
के
लिए
कानून
लागू
करवाने
वाली
एजेंसियों
द्वारा
किसी
भी
तरह
की
यातना
देने
पर
प्रतिबंध
लगाता
है।