उम्मीद की रोशनी बांटने वाली उस अफगान महिला शिक्षक की कहानी, जो तालिबान से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंच गई
26 साल की जरलाष्ट वली ने तालिबान के बारे में अभी तक सिर्फ अपने परिवार के बुजुर्गों से सुना था, लेकिन अब उसका बुरा सपना सच साबित हो चुका है।
काबुल, सितंबर 14: तालिबान राज स्थापित होने के बाद तालिबान हर वो काम करने में लगा है, जो इंसानियत और मानवता के खिलाफ है। खासकर महिलाओं को लेकर तालिबान के फरमान काफी ज्यादा डराने वाले हैं। लेकिन, खौफ के उस काले साये में अफगानिस्तान की एक महिला शिक्षक उम्मीद की रोशनी दिखा रही है। अफगानिस्तान की ये महिला शिक्षक तालिबान को देखने के लिए राष्ट्रपति भवन के पास पहुंच गई।
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तालिबान की खौफनाक कहानी
महिला शिक्षक जरलाष्ट वली ने तालिबान को एक कहानी की किताब से खलनायक के रूप में सोचा था। लेकिन वो पूरी तरह से गलती थीं। 15 अगस्त 2021 को उन्हें पता चला कि तालिबान कोई खलनायक नहीं है, बल्कि वो लोगों को गुलाम बनाने वाला, उनकी आजादी छीनने वाला एक खौफनाक संगठन है। उनका सबसे खौफनाक सपना सच हो चुका था। जरलाष्ट वली वास्तविकता को स्वीकार नहीं करना चाहती थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को हिजाब खरीदते हुए बाजार में पाया और वो अपने आप को घर में कैद पाती हैं। उन्हें घर से निकलने में अब डर लगता है। वो जब निकलती हैं तो उनका शरीर पूरी तरह से काले कपड़ों में कैद होता है। उनके शरीर का एक इंच हिस्सा भी उस काले कपड़े से बाहर नहीं होता है।
स्कूल टीचर का दर्द समझिए
मूल रूप से गजनी प्रांत की रहने वाली जरलाष्ट वली अपने काम की वजह से काबुल में रहती हैं। वह मतिउल्लाह वेसा के नेतृत्व वाले पेन पाथ फाउंडेशन से जुड़ी हैं, जो देश भर में लगभग 60,000 छात्रों को शिक्षित करता है। जरलाष्ट वली का कहना है कि, उन्हें तालिबान शासन के बारे में ज्यादा याद नहीं है, जब वे 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में सत्ता में थे। वह तब सिर्फ एक बच्ची थी। उन्हें तालिबान के बारे में जो भी पता चला, वो उन्हें घर के बुजुर्गों से पता चला, लेकिन वो नहीं जान पाईं कि तालिबन कितना खतरनाक है और उसका बुरा साया मुल्क के ऊपर पड़ने वाला है। वो बताती हैं, ''मैंने अपने परिवार के बुजुर्गों से तालिबान की कहानियां सुनी थीं। यहां तक कि जब तालिबान काबुल के करीब थे, मुझे विश्वास नहीं था कि वे इतनी आसानी से राजधानी आ सकते हैं। मैंने सोचा था कि मेरी सरकार और सेना कुछ करेगी, लेकिन मैं गलत थी। तालिबान अब हकीकत बन चुका है"
तालिबान ने दी चेतावनी
उन्होंने बताया कि कैसे सभी ने तालिबान शासन के खिलाफ चेतावनी दी थी। पिछले शासन का अनुभव करने वाले लोगों ने इसे भय और घृणा के साथ कैसे याद किया। उनके पिछले कार्यकाल का ऐसा डर उनके घर के लोगों में अभी भी था कि, जरलाष्ट वली के परिवारवालों ने इस बार उन्हें दो दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलने दिया। 26 साल की अफगान शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता जरलाष्ट वली ने बताया कि, "मेरी दुनिया उलट गई है। अपनी मातृभूमि में मैंने सुरक्षित महसूस नहीं किया। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जा करने के दो दिन बाद मैंने घर से बाहर निकलने के लिए हिजाब के लिए हाथापाई की।"
हिजाब की नहीं है आदत
तालिबान के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका समर्थित सरकार के शासन में पली-बढ़ी वली ने कहा कि उन्हें हिजाब की आदत नहीं है। जब तालिबान ने नियंत्रण किया तो उसके पास एक भी हिजाब नहीं था। उन्होंने कहा कि वह आधुनिक कपड़े पहनती थी, जिसकी लंबाई तालिबान की पसंद के अनुसार नहीं थी। लेकिन वह यह देखने के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी, कि उसके घर के बाहर क्या हो रहा है, और फिर उन्होंने हिजाब खरीदने के लिए सर्दियों के कपड़े पहन लिए और फिर किसी तरह से खुद को पूरी तरह से ढंककर हिजाब खरीदने बाहर गईं। उन्होंने कहा कि, "मैंने तालिबान को कभी नहीं देखा था, मैं देखना चाहती थी कि वे कैसे दिखते हैं, वे किस तरह के इंसान हैं। मुझे कुछ सर्दियों के कपड़े मिले जो लंबे थे, और उसे पहनकर मैं बाहर चली आई"। उन्होंने कहा कि, ''मेरा परिवार डरा हुआ है और उन्हें लगता है कि आज नहीं तो कल तालिबान हमारे घर पर हमला जरूर करेगा''।
देखने में काफी खतरनाक
जरलाष्ट वली बताती हैं कि मैं तालिबान को देखने के लिए प्रेसिडेंशियल पैलेस क्षेत्र में पहुंची और तालिबान लड़ाकों को देखा, जिनके बारे में उन्होंने सिर्फ दूसरों से सुना था। उन्होंने कहा कि, "उन्होंने मुझ पर हमला नहीं किया, लेकिन वे बहुत डरावने और खतरनाक लग रहे थे।" "पूरे समय मैं डर के साथ चल रही था, मुझे डर था कि मुझे पीछे से मारा जाएगा। मैं बस भगवान से मेरी मदद करने के लिए प्रार्थना कर रही थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपनी मातृभूमि में चलने में इतना डर लगेगा। जीवन बदल गया है।" जरलाष्ट वली उन बहादुर अफगानों में से एक है जो अभी भी एक बेहतर काबुल की उम्मीद कर रही हैं और तालिबान से लड़ रही हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या अफगानिस्तान छोड़ने का विचार उनके दिमाग में आया है, तो उन्होंने कहा...नहीं। उन्होंने कहा कि, ''मैं एक शिक्षक और एक सामाजिक कार्यकर्ता हूं। मैं कई लोगों के लिए 'आशा' हूं। जब लोग सुरक्षा कारणों से चले गए, तो मैं वापस बैठ गई और सोचा कि मैं उन लोगों को नहीं छोड़ सकती हूं, जो देश में हैं। वो मेरी तरफ आशा भरी नजरों से देखते हैं''।
पढ़ाई-लिखाई को नुकसान
एक शिक्षिका और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने वाली टीचर जरलाष्ट वाली ने कहा कि वह जानती हैं कि उनका जीवन खतरे में है, लेकिन वह कहती हैं, "मैं इसे जारी रखूंगी।" उन्होंने कहा कि, ''तालिबान ने पहले से ही लोगों को पीटना शुरू कर दिया है, मेरे दोस्त, जो साथी कार्यकर्ता और पत्रकार हैं, उनकी पिटाई की गई, तालिबान ने उनके फोन की जांच की। छात्रों को कुछ हिस्सों में कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, छात्रों और शिक्षकों की संख्या में भारी गिरावट आ चुकी है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद उन्होंने कई स्कूलों को बंद कर दिया है। लेकिन, जरलाष्ट वली कहती हैं, मैं हार नहीं मानूंगी। उन्होंने कहा कि ''हम फिर से पढ़ाई का काम शुरू करेंगे और वो भी काबुल से। हम लोगों से बात करने जा रहे हैं और उन्हें बच्चों को स्कूलों में भेजने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। खासकर लड़कियों को। हमने पहले यह किया है। अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों में कई सालों में हमने ये काम किया है और हम इसे फिर से करेंगे। यह हमारा देश है, हमें अपने अधिकारों के लिए बोलने की जरूरत है।"
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