Yes Bank: अफवाहों से बचिए, यस बैंक में खाता हैं तो जानें क्यों नहीं डूबेगा आपका पैसा?
बेंगलुरू। पिछले कई वर्षो में भारत के कई निजी, सरकारी और सहकारी बैंकों के डूबने और दिवालिया होने की खबरें आम रही हैं, लेकिन अभी तक बैड लोन के चक्कर में फंसकर एनपीए को बोझ तले डूबे किसी भी बैंक के दिवालिया होने की खबर नहीं हैं। इनमें पीएनबी बैंक, आईडीबीआई बैंक, पीएमबी बैंक और अब यस बैंक है।
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कह सकते हैं कि यस बैंक अभी जिन परिस्थितियों का सामना कर रही है, वैसी स्थितियाँ किसी भी निजी बैंक अथवा कंपनी में पैदा हो सकती हैं, क्योंकि यस बैंक की हालिया संकट के लिए बैंक मैनेजमेंट जिम्मेदार हैं, क्योंकि केंद्रीय बैंक आरबीआई किसी निजी बैंक के कामकाज पर दखल एक हद तक होता है। चूंकि इस मामले में बहुत सारे आम लोगों का पैसा फंसा है इसलिए अफ़वाहों का बाजार तेजी फलने-फूलने लगा है।
ठीक ऐसा ही माहौल पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक से निकासी पर लगाए लिमिट लगाने के दौरान तैयार हुआ था और मीडिया में रोते-बिलखते लोग नजर आए थे, लेकिन वर्तमान में पीएमसी बैंक ही नहीं, पीएनबी और आईडीबीआई बैंक के ग्राहकों के पैसे न केवल उनके खातों में सुरक्षित हैं, बल्कि पहले की तरह वह अपने बैंक को ऑपरेट कर पा रहे हैं।
दरअसल, आरबीआई ने गुरूवार को एनपीए के बोझ तले दबी यस बैंक पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी है। इनमें यस बैंक के निदेशक मंडल को भंग करना और यस बैंक के ग्राहकों पर 50 हजार रुपए की नकदी निकालने की सीमा शामिल है। वर्ष 2017 से यस बैंक की कामकाज की निगरानी करती आ रही रिजर्व बैंक यह कार्रवाई नहीं करती, तो कोई खबर नहीं बनती। चूंकि आरबीआई देश के चौथे बड़े निजी बैंक को डूबने से बचाना चाहती है, इसलिए यह कार्रवाई की गई।
रिजर्व बैंक ने एसबीआई के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी (सीएफओ) प्रशांत कुमार को यस बैंक का नया प्रशासक नियुक्त किया है। रिजर्व बैंक की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि विश्वसनीय पुनरोद्धार योजना के अभाव, सार्वजनिक हित और बैंक के जमाकर्ताओं के हित में उसके सामने बैंकिंग नियमन कानून, 1949 की धारा 45 के तहत रोक लगाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं था।'
रिजर्व बैंक की ओर से जरिए बयान में यह भी कहा गया है कि यस बैंक के प्रबंधन ने संकेत दिया था कि वह विभिन्न निवेशकों से बात कर रहा है और उसमें जल्द सफलता मिलने की उम्मीद है। बैंक कई निजी इक्विटी कंपनियों के साथ भी पूंजी निवेश के लिए बात कर रहा था। एसबीआई ने यस बैंक में निवेश की घोषणा भी कर चुकी है।
गौरतलब है सरकारें किसी बैंक को डूबने नहीं देती है। ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और IDBI जैसे ढेरों उदाहरण मौजूद हैं। सरकार के पास SBI और LIC जैसे ढेरों ऐसे विकल्प मौजूद हैं, जिससे ऐसे बैंकों को मुश्किल से बाहर निकाला जा सकता है।
एसबीआई और एलआईसी दोनों का देश के कई बैंकों में सीधे-सीधे हिस्सेदारी है। चूंकि खुद एलआईसी बैंकिंग सेक्टर में घुसने की पूर्व में योजना बना रही है, जिसकी अहम वजह उसके पास बड़ी मात्रा में पड़ा कैपिटल है, जो देशभर में एलआईसी पॉलिसी के ग्राहकों द्वारा बतौर प्रीमियम एकत्र किया जाता है।
जनवरी माह में सरकार सर्वाधिक एनपीए अनुपात वाले IDBI बैंक को लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) के हवाले करने की योजना तैयारी की थी और एलआईसी ने 21 जनवरी, 2019 को आईडीबीआई बैंक में 51% नियंत्रण हिस्सेदारी का अधिग्रहण पूरा कर लिया, जिससे यह बैंक का बहुमत शेयरधारक बन गया है। यानी आईडीबीआई बैंक का नया मालिक है।
वर्तमान में लोन मार्केट का एक बड़ा खिलाड़ी है एलआईसी मौजूदा समय में बिना बैंक हुए भी एलआईसी लोन मार्केट का एक बड़ा खिलाड़ी है। 31 दिसंबर, 2019 के लिए दायर कॉर्पोरेट शेयरहोल्डिंग के अनुसार एलआईसी के पास सार्वजनिक रूप से 23 से अधिक शेयर हैं और एलआईसी नेटवर्थ 63,499.7 करोड़ रुपए है।
वित्त वर्ष 2017 में LIC ने 1 ट्रिलियन रुपए से अधिक बांटा था कर्ज। वित्त वर्ष 2017 के दौरान एलआईसी ने कुल 1 ट्रिलियन रुपए से अधिक का कर्ज बाजार को दिया था और इसी कर्ज के कारोबार को बनाए रखने के लिए उसने लगभग सभी सरकारी बैंकों में कुछ न कुछ हिस्सेदारी खरीद कर रखी है।
हालांकि डर यह है कि जब खुद बैंक की भूमिका में एलआईसी पूरी तरह से आ जाएगी तो उसके सामने भी वही चुनौती होगी, जिसके चलते ज्यादातर सरकारी बैंक बैड लोन बांटकर एनपीए के जाल में फंसे हैं।
उल्लेखनीय है यस बैंक के पास करीब 24 हजार करोड़ डॉलर की देनदारी है और उसके पास करीब 40 अरब डॉलर (2.85 लाख करोड़ रुपए) की बैलेंस शीट है। सरकार को यस बैंक को कैपिटल बेस बढ़ाने के लिए 2 अरब डॉलर चुकाने होंगे। बैंक ने इसके लिए अपना रेजोल्यूशन प्लान घरेलू लेंडर्स SBI, HDFC, एक्सिस बैंक और LIC को भी सौंपा था, लेकिन उनके प्लान पर लेंडर्स में सहमति नहीं बनी है।
चूंकि यस बैंक की बैलेंसशीट की हालत ख़स्ता थी, इसलिए रिज़र्व बैंक ने इसके बोर्ड को टेकओवर कर लिया है। रिजर्व बैंक की उक्त कार्रवाई एकदम सही समय पर हुई है और अगर देरी होती तो हजारों सवाल और उठाए जाते। इसलिए अफवाहों को किनारे एक तरफ रखकर समझ लीजिए कि यस बैंक में मौजूद किसी भी ग्राहक का एक भी एक भी पैसा नहीं डूबेगा।
रिजर्व बैंक ने अभी कुछ दिन के लिए यस बैंक के खाताधारकों पर पैसा निकालने पर लिमिट लगाई है, जो जल्द ही हटा ली जाएंगी। हालांकि अगर किसी के घर मेडिकल इमर्जेंसी या शादी वग़ैरह है तो उसे लिमिट से ज़्यादा पैसा निकालने की छूट की जा सकती है। नेट बैंकिंग अभी इसलिए क्रैश हो रही है, क्योंकि अचानक बैंक के सर्वर पर ट्रैफ़िक कई गुना बढ़ गया है। यह कोरी अफवाह है कि नेट बैंकिंग बंद कर दिया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले बजट में किसी भी बैंक के डूबने या दिवालिया होने की स्थिति में ग्राहकों 5 लाख तक बैंक डिपॉजिट पर वापसी की गारंटी दी गई है। यानी किसी भी हालत में आपकी 5 लाख तक की जमा रक़म नहीं डूबने वाली है। हालांकि पिछले बजट से पहले यह गारंटी रकम सिर्फ़ 1 लाख रुपए हुआ करती थी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को यस बैंक खाताधारकों को आश्वस्त करते हुए कि कहा कि सभी का पैसा बैंक में सुरक्षित है और बैंक के नए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया है और 30 दिनों के भीतर बैंक के पुनर्गठन योजना प्रभावी होने के बाद सबकुछ सामान्य हो जाएगा। वित्त मंत्री ने यस बैंक के कर्मचारियों की नौकरी, वेतन एक साल तक सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया गया है।
मालूम हो, यस बैंक की देनदारी बढ़ने की वजह बैड लोन्स हैं। वर्ष 2004 में यस बैंक की स्थापित यस बैंक ने गलत लोगों को कर्ज दिया। इनमें अनिल अंबानी समूह, एस्सेल, डीएचएफएल, आईएलएफएस, वोडाफोन उन संकटग्रस्त कंपनियों के नाम शामिल हैं, जिन्हें यस बैंक ने कर्ज दिया था।
वर्ष 2017 से ही यस बैंक के कामकाज की निगरानी कर रही रिजर्व बैंक ने सितंबर 2018 में ही यस बैंक के बोर्ड को बदलने का फैसला किया था और सितंबर 2018 में ही बैंक में एक नए सीईओ को नियुक्त किया गया। माना जाता है कि बैंक ने लोन बांटने में लापरवाही बरती और बैड लोन के नीचे यस बैंक पूरी तरह से दब गया है।
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यस बैंक को बचाने के लिए RBI ने पैसा निकालने में लगाई है पाबंदी!
आरबीआई किसी भी सूरत में देश के चौथे बड़े प्राइवेट यस बैंक (Yes Bank) को डूबने से बचाना चाहता है। इसी वजह से गुरुवार को इस बैंक पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी है। यस के निदेशक मंडल को भंग कर दिया गया है। बैंक के ग्राहक केवल 50 हजार रुपए की नकदी निकाल सकेंगे।
जल्द यस बैंक की 49 फीसदी हिस्सेदारी SBI और LIC की होगी
गुरुवार को खबर आई कि यस बैंक की 49 फीसदी हिस्सेदारी भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पास जाएगी। बताया गया कि इस हिस्सेदारी के लिए एसबीआई और एलआईसी को 490 करोड़ रुपये निवेश करेगी।
वित्त मंत्री बोलीं, व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार को तलाशा जाएगा
वहीं वित्त मंत्री ने साफ तौर से कहा है कि इस बात का पता लगाया जाएगा कि यस बैंक का संकट में पहुंचाने में व्यक्तिगत रूप से कौन जिम्मेदार है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा यस बैंक के बोर्ड को भंग करने और जमा खाताधारकों की निकासी सीमा तय करने के बाद वित्त मंत्री ने कहा कि बैंक की 2017 से निगरानी की जा रही थी और इससे संबंधित गतिविधियों की हर दिन निगरानी की गई।
राणा कपूर ने पर जैसे-तैसे लोन बांटने का आरोप
यस बैक फाउंडर राणा कपूर पर आरोप है कि निजी रिश्तों को ध्यान में रखकर उन्होंने यस बैंक (Yes Bank) से लोन बांटे। यस बैंक (Yes Bank) ने अनिल अंबानी ग्रुप, आईएलएंडएफएस, सीजी पावर, एस्सार पावर, एस्सेल ग्रुप, रेडियस डिवेलपर्स और मंत्री ग्रुप जैसे ग्रूप्स को लोन बांटे हैं। इनके डिफॉल्टर होने से यस बैंक (Yes Bank) की यह हालत हुई है। आरोप है कि इन बड़े कारोबारी घरानों को लोन दिलाने में राणा कपूर की सहमति रही। साल 2018 में राणा कपूर पर कर्ज और बैलेंसशीट में गड़बड़ी के आरोप लगे थे, जिसके बाद आरबीआई ने उन्हें चेयरमैन के पद से जबरन हटा दिया था।
यस बैंक फाउंडर के खिलाफ जारी हुआ लुक आउट नोटिस
यस बैंक के फाउंडर राणा कपूर के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी की है। ईडी ने राणा कपूर के खिलाफ केस भी दर्ज किया है। छापेमारी के दौरान ईडी ने यस बैंक से जुड़े दस्तावेजों को खंगाला है। हालांकि ईडी की तरफ से इस छापेमारी को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। रिपोर्ट के मुताबिक राणा कपूर को लुकआउट नोटिस जारी किया गया है। यानी राणा कपूर जांच पूरी होने तक देश से बाहर नहीं जा पाएंगे।