जब युवराज दीपेंद्र ने किया नेपाल के शाही परिवार का ख़ात्मा- विवेचना
20 साल पहले आज ही के दिन नेपाल के युवराज ने अपने पूरे परिवार को गोली से उड़ा दिया था. क्या हुआ था उस दिन, बता रहे हैं बीबीसी संवाददाता रेहान फ़ज़ल.
1 जून, 2001 की शाम नेपाल नरेश के निवास स्थान नारायणहिति महल के त्रिभुवन सदन में एक पार्टी होने वाली थी और इसके मेज़बान थे युवराज दीपेंद्र. हर नेपाली महीने के तीसरे शुक्रवार को होने वाली इस पार्टी की शुरुआत महाराजा बीरेंद्र ने 1972 में राजगद्दी सँभालने के बाद की थी.
एक महीने पहले मई में ये पार्टी महेंद्र मंज़िल में हुई थी जहाँ महाराज बीरेंद्र की सौतेली माँ और पूर्व नेपाल नरेश महेंद्र की दूसरी पत्नी रत्ना देवी रहा करती थीं. कमीज़ और पतलून पहने हुए युवराज दीपेंद्र अपने एडीसी मेजर गजेंद्र बोहरा के साथ शाम 6 बज कर 45 मिनट पर ही बिलियर्ड्स रूम पहुँच चुके थे. उन्होंने मेजर बोहरा के साथ कुछ देर बिलियर्ड्स के कुछ शॉट्स की प्रैक्टिस की थी.
पार्टी में सबसे पहले पहुँचे थे महाराज बीरेंद्र के बहनोई और भारतीय रियासत सरगुजा के राजकुमार रह चुके महेश्वर कुमार सिंह. जब वो बिलियर्ड्स रूम में घुसे तो युवराज दीपेंद्र ने उनका स्वागत किया. उन्होंने उनसे पूछा आप क्या पीना पसंद करेंगे? महेश्वर सिंह ने जवाब दिया फ़ेमस ग्राउस.
थोड़ी देर में लाल साड़ी पहने महारानी ऐश्वर्य और महाराजा बीरेंद्र की तीनों बहनें राजकुमारी शोभा, शाँति और शारदा भी पहुँच गईं. क़रीब 7 बज कर 40 मिनट पर दीपेंद्र के चचेरे भाई पारस अपनी माँ राजकुमारी कोमल, बहन प्रेरणा और पत्नी हिमानी के साथ पहुँचे.
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महाराज बीरेंद्र को आने में थोड़ी देर हो गई क्योंकि वो एक पत्रिका के संपादक माधव रिमाल को इंटरव्यू दे रहे थे. इस बीच महाराज की माँ अपनी मर्सिडीज़ में पहुँची. उनके एक हाथ में उनका पर्स और दूसरे हाथ में हाथ से झलने वाला पंखा था. वो बिलियर्ड्स रूम से सटे एक छोटे से कमरे में सोफ़े पर जा कर बैठ गईं.
कुछ ही मिनटों बाद बिलियर्ड्स रूम का दरवाज़ा खुला और महाराजा बीरेंद्र अंदर दाखिल हुए. वो कार से आने के बजाए अपने दफ़्तर से पैदल चल कर वहाँ पहुँचे थे. उनके एडीसी सुँदर प्रताप राणा उन्हें दरवाज़े तक छोड़ कर चले गए क्योंकि ये एक निजी पार्टी थी और वहाँ बाहरी लोगों को रहने की अनुमति नहीं थी. वो सीधे अपनी माँ के पास गए.
दीपेंद्र को उनके शयनकक्ष में ले जाया गया
इस बीच लोगों ने देखा कि दीपेंद्र जैसे अचानक नशे में आ गए हों. उनकी ज़ुबान लड़खड़ाने लगी और उन्हें खड़े होने में दिक्कत होने लगी. मिनटों में वो नीचे गिर गए. इस समय रात के साढ़े आठ बज चुके थे. इससे पहले दीपेंद्र कभी भी बहुत शराब पीने के बावजूद नशे में नहीं देखे गए थे. उनको अपने ऊपर नियंत्रण करना आता था.
इससे पहले कि महाराज बीरेंद्र बगल वाले कमरे से बिलियर्स रूम में पहुँचते पारस, राजकुमार निराजन और डॉक्टर राजीव शाही ने भारी भरकम दीपेंद्र को उनके हाथ और पैरों को पकड़ते हुए उठाया और उनके शयनकक्ष में ले जा कर उन्हें ज़मीन पर बिछे गद्दे पर लिटा दिया. उन्होंने शयन कक्ष की बत्तियाँ बुझाईं और वापस पार्टी में लौट आए.
जोनाथन ग्रेगसन अपनी किताब 'मैसेकर ऐट द पैलेस में' लिखते हैं, "कमरे में अकेला छोड़ दिए जाने के बाद दीपेंद्र बाथरूम में गए और वहाँ उन्होंने उल्टी की. उन्होंने फिर एक सैनिक वर्दी पहनी. उसके ऊपर उन्होंने काले मोज़े, एक जैकेट, सैनिक बूट और काले चमड़े के दस्ताने पहने. इसके बाद उन्होंने अपनी पसंदीदा 9 एमएम पिस्टल और MP5K सबमशीन गन और कोल्ट एम- 16 राइफ़ल उठाई और बिलियर्ड्स रूम की तरफ़ चल पड़े."
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दीपेंद्र ने सैनिक वेश में बिलियर्ड्स रूम में प्रवेश किया
बिलियर्ड्स रूम के मध्य में कुछ महिलाएं बात कर रही थीं. अचानक उनकी नज़र सैनिक यूनिफ़ॉर्म पहने युवराज दीपेंद्र पर पड़ी. महाराज बीरेंद्र की चचेरी बहन केतकी चेस्टर ने बीबीसी को बताया, "जब वो अंदर आए तो उनके दोनों हाथों में एक एक बंदूक थी. वो पूरी सैनिक वर्दी में थे. उन्होंने काला चश्मा भी पहन रखा था. मैंने अपने पास खड़ी महिला से कहा कि युवराज दीपेंद्र अपने हथियारों को शो ऑफ़ करने आए हैं."
उस समय तक नेपाल नरेश बिलियर्ड्स रूम में आ चुके थे. उनके हाथ में कोक का एक गिलास था, क्योंकि डॉक्टर ने उनके शराब पीने पर पाबंदी लगा रखी थी. दीपेंद्र ने अपने पिता की तरफ़ देखा. उस समय उनके चेहरे पर किसी भावना का नामोनिशान नहीं था. अगले ही सेकेंड उन्होंने अपने दाहिने हाथ से जर्मनी में बनी अपनी MP5-K सबमशीन गन का ट्रिगर दबाया. उसकी कई गोलियाँ छत पर लगीं और उसका कुछ प्लास्टर उखड़ कर नीचे गिर गया.
नेपाल नरेश ने कहा 'के कारदेको'
कुछ सेकेंड तक सभी मेहमान उसी जगह खड़े रहे जहाँ वो खड़े थे मानो दीपेंद्र के अगले कदम का इंतज़ार कर रहे हों. उन्हें लगा कि दीपेंद्र कोई खेल खेल रहे थे और ग़लती ने उनकी बंदूक से गोली निकल गई है.
जोनाथन ग्रेगसन अपनी किताब 'मैसेकर ऐट द पैलेस' में लिखते हैं, "शुरू में नेपाल नरेश बिलियर्ड्स की मेज़ के बगल में बिना हिले डुले खड़े रहे. फिर उन्होंने दीपेंद्र की तरफ़ एक कदम बढ़ाया. दीपेंद्र ने बिना कोई शब्द कहे बीरेंद्र पर तीन गोलियाँ चलाईं. कुछ देर तक वो खड़े रहे, यहाँ तक कि उन्होंने स्लों मोशन में अपना गिलास मेज़ पर रखा."
इस बीच दीपेंद्र मुड़े और बिलियर्ड्स रूम से निकल कर गार्डेन की तरफ़ चले गए. तीन सेकेंड बाद लोगों को एहसास हुआ कि दीपेंद्र की गोली महाराज बीरेंद्र की गर्दन के दाहिने हिस्से में लगी है.
केतकी चेस्टर बताती हैं, "हम देख सकते थे कि महाराज शॉक में थे. वो क़रीब क़रीब स्लो मोशन में नीचे गिरे थे."
इस बीच नेपाल नरेश के दामाद कैप्टेन राजीव शाही ने अपने ग्रे रंग के कोट को उतारकर महाराज की गर्दन पर लगा दिया ताकि उससे निकलने वाले ख़ून को रोका जा सके. बीरेंद्र तब तक बेहोश नहीं हुए थे. उन्होंने अपनी दूसरी चोट की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "राजीव पेट में भी."
तभी महाराज बीरेंद्र ने अपना सिर उठाने की कोशिश की और नेपाली में बड़बड़ाए "के गारदेको" यानी "तुमने क्या कर दिया?" ये उनके आखिरी शब्द थे.
तभी दीपेंद्र ने कमरे में दोबारा प्रवेश किया. तब तक उन्होंने इटली में बनी अपनी गन नीचे गिरा दी थी. अब उनके हाथ में एम- 16 राइफ़ल थी.
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लड़की से दीपेंद्र की नज़दीकी पसंद नहीं थी शाही दंपत्ति को
आख़िर दीपेंद्र ने महाराजा बीरेंद्र पर गोली क्यों चलाई? बीबीसी ने यही सवाल पूछा दीपेंद्र की बुआ केतकी चेस्टर से.
केतकी का जवाब था, "वे एक लड़की से शादी करना चाहते थे. उनकी दादी और उनकी माँ को ये पसंद नहीं था. उनको ख़र्च करने के लिए उतने पैसे नहीं मिल रहे थे जितना वे चाहते थे. उसकी वजह से उन्होंने अपना आपा खो दिया था."
दीपेंद्र इस सबसे बहुत निराश थे और उनकी मानसिक स्थिति डाँवाडोल सी हो चली थी. इसकी हवा लंदन तक पहुँच चुकी थी. मई, 2001 की शुरुआत में उनके लंदन में अभिभावक रहे लॉर्ड केमॉएज़ ने महाराज बीरेंद्र को फ़ैक्स कर इस बारे में आगाह भी किया था. उन्होंने लिखा था कि युवराज जीवन में अपनी भूमिका और अपनी पसंद की शादी न करने के अधिकार को ले कर काफ़ी नाख़ुश थे.
महारानी एश्वर्य ने महसूस कर लिया था कि उनके लिए दीपेंद्र को अपनी पसंद की शादी करने से रोकना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए उन्होंने दीपेंद्र को ये स्पष्ट कर दिया था कि अगर उन्होंने इस मामले में अपने माता पिता की बात नहीं मानी तो उन्हें अपनी शाही पदवी से हाथ धोना पड़ेगा.
चाचा पर गोली चलाई
तभी दीपेंद्र के प्रिय चाचा धीरेंद्र ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की. केतकी चेस्टर बताती हैं, "अचानक महाराज बीरेंद्र के छोटे भाई धीरेंद्र शाह ने दीपेंद्र को रोकते हुए कहा 'बाबा अब बहुत हो चुका. अपनी बंदूक मुझे दे दो.' दीपेंद्र ने बहुत नज़दीक से उनपर गोली चलाई और वो उड़ते हुए दूर जा गिरे. उसके बाद तो दीपेंद्र का अपने ऊपर नियंत्रण पूरी तरह से ख़त्म हो गया और वो हर किसी पर गोली चलाने लगे. राजकुमार पारस ने चिल्ला कर कहा कि सब लोग सोफ़े की आड़ ले लें."
केतकी को खुद भी गोली लगी. दीपेंद्र को लगा कि केतकी भी मर गईं हैं क्योंकि उनका सिर और बाल भी ख़ून से लतपथ थे. एक गोली महाराजा ज्ञानेंद्र की पत्नी और पारस की माँ को लगी और उनके फेफड़े को पार कर गई. दीपेंद्र ने अपने पिता पर फिर गोली चलाई. इस बार गोली महाराज बीरेंद्र के सिर को पार कर गई. उनकी ख़ून से सनी टोपी और चश्मा नीचे गिर गए. वो औंधे मुँह गिरे हुए थे और उनके पैर बार की तरफ़ थे.
केतकी वो दृश्य अभी भी नहीं भूल पाई हैं जब दीपेंद्र ने आकर अपने घायल पिता को अपने पैरों से ठोकर मारी थी.
केतकी याद करती हैं, "वो दृश्य मेरी आँखों में हमेशा के लिए अंकित हो गया था जब दीपेंद्र ने क़रीब क़रीब मर चुके अपने पिता को अपने पैरों से ठोकर मारी थी. ये देखने के लिए कि वो मर चुके हैं या जीवित हैं. हर संस्कृति में मृत व्यक्ति का सम्मान किया जाता है. गोली मारने से ज़्यादा एक हिंदू व्यक्ति के अपने पिता के शव को ठोकर मारने के दृश्य ने मुझे धक्का पहुँचाया."
एडीसी की भूमिका पर सवाल
नारायणहिति महल के त्रिभुवन भवन में नेपाल नरेश और शाही परिवार के बारह अन्य लोग या तो मारे जा चुके थे या घायल थे. तीन से चार मिनट के बीच गोलीबारी ख़त्म हो गई.
नेपाल की इस सबसे मुश्किल घड़ी में गोलियों की आवाज़ सुनने के बावजूद क्रैक कमाँडो की ट्रेनिंग ले चुके किसी भी एडीसी ने दौड़ कर घटनास्थल पर पहुँचने की कोशिश नहीं की. वो अपने कमरे में ही बैठे रहे. उनके कमरे बिलियर्ड्स रूम से सिर्फ़ 150 गज़ की दूरी पर थे.
हाँलाकि अगर वो कोशिश करते तो बिलियर्ड्स रूम में 10 सेकेंड के अंदर पहुँच सकते थे. बाद में जाँच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर चारों एडीसी को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया गया.
महारानी एश्वर्य पर पीछे से गोली चलाई
इस बीच दीपेंद्र फिर बिलियर्ड्स रूम के बाहर निकल कर गार्डेन में चले गए. महारानी एश्वर्य उनके पीछे पीछे दौड़ीं. राजकुमार निराजन भी उनके पीछे गए. थोड़ी देर बाद दो गोलियों की आवाज़ सुनाई दी.
नीलेश मिस्रा अपनी किताब 'एंड ऑफ़ द लाइन' में लिखते हैं, "रसोई घर से एक नौकर साँता कुमार खड़का ने महारानी एश्वर्य के जीवन के अंतिम क्षणों को देखा. रानी ने सीढ़ियाँ चढ़ कर दीपेंद्र के शयनकक्ष की तरफ़ जाने की कोशिश की. वो नेपाली में ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थीं. उन्होंने सात सीढ़ियाँ चढ़ी होंगी कि एक गोली उनके सिर को पार कर गई. वो संगमरमर की सीढ़ियों पर गिरीं. उनको पीछे से गोली मारी गई थी और वो दीपेंद्र की अंतिम शिकार थीं."
उन्हें शायद ये ग़लतफ़हमी थी कि उनका अपना बेटा उनपर गोली नहीं चलाएगा. लेकिन उनका ये अंदाज़ा ग़लत निकला.
इसके बाद दीपेंद्र गार्डेन में एक छोटे तालाब पर बने ब्रिज पर गए. वहीं पर वो पागलों की तरह एक या दो बार चिल्लाए और फिर आखिरी गोली की आवाज़ सुनाई दी. वो पीठ के बल गिरे. एक गोली उनके सिर को पार कर गई थी. उनके बाएं सिर पर कान के पीछे गोली घुसने का एक सेंटीमीटर लंबा निशान था. उनके दाहिने सिर में कान के ऊपर गोली बाहर निकलने का निशान था. दोनों चोटों से ख़ून निकल रहा था लेकिन दीपेंद्र अभी भी जीवित थे.
जैगुआर कार से महाराजा को अस्पताल ले जाया गया
उधर महाराजा बीरेंद्र भी इतनी गोलियाँ खा जाने के बावजूद अभी जीवित थे. जब उनके एडीसी ने उन्हे अस्पताल ले जाने के लिए जैगुआर कार की पिछली सीट पर लिटाया तो उनके दोनों कानों से ख़ून निकल रहा था. उनके सारे कपड़े ख़ून से सने हुए थे. उनकी नाड़ी क़रीब क़रीब जा चुकी थी, लेकिन उनके हाथ में थोड़ी हरकत थी. उन्हें कम से कम आठ गोलियाँ लगी थीं.
उनकी कार के पीछे चल रही टोयोटा में महारानी एश्वर्य का शरीर था. जब ये दोनों कारें अस्पताल पहुँची उस समय रात के सवा नौ बजे थे. थोड़ी देर में नेपाल के सर्वश्रेष्ठ न्यूरोसर्जन, प्लास्टिक सर्जन और हृदय विशेषज्ञ अस्पताल पहुँच गए थे.
रानी को कार से उतारते ही मृत घोषित कर दिया गया. उसी समय एक हरे रंग की टोयोटा लैंडक्रूज़र भी अस्पताल की तरफ़ बढ़ रही थी जिसमें राजकुमार पारस अगली सीट पर बैठे हुए थे. पिछली सीटों पर दीपेंद्र के एडीसी गजेंद्र बोहरा और राजू कार्की युवराज दीपेंद्र और राजकुमार निराजन के शरीर को पकड़े हुए थे. ये एक अजीब सी स्थिति थी. एक ही कार में हत्यारे और उसके शिकार को ले जाया जा रहा था.
ट्रॉमा सेंटर में पलंगें कम पड़ीं
ये लोग साढ़े नौ बजे अस्पताल पहुँचे. वहाँ पहुँचने के कुछ मिनटों के अंदर राजकुमार निराजन को मृत घोषित कर दिया गया.
जोनाथन ग्रेगसन लिखते हैं, "इस बीच नेपाल के चोटी के न्यूरो सर्जन डॉक्टर उपेंद्र देवकोटा एक ट्रॉली के पास रुके जहाँ एक सैनिक डॉक्टर खून से सने राष्ट्रीय पोशाक पहने हुए शख़्स का इलाज करने की कोशिश कर रहा था. उसके गले में एक लॉकेट लटका हुआ था जिसमें साईं बाबा का एक चित्र था. हाँलाकि वो महाराज बीरेंद्र से पहले मिल चुके थे लेकिन वो उस समय घायल बीरेंद्र को पहचान नहीं पाए."
युवराज दीपेंद्र ने उस दिन अपने परिवार के इतने लोगों को मारा था कि अस्पताल के ट्रॉमा हाल की सभी पलंगें भर गई थीं.
जब दीपेंद्र को स्ट्रेचर पर अंदर लाया गया तो उनके लिए कोई खाली बेड नहीं बची थी. उनको ज़मीन पर बिछाए गए गद्दे पर रखा गया. दीपेंद्र के सिर के दोनों तरफ़ से ख़ून निकल रहा था. वो साँस लेते हुए बहुत आवाज़ कर रहे थे. लेकिन उनका रक्तचाप 100/ 60 था जो इतना चिंताजनक नहीं था. लेकिन उनकी आँख की पुतलियों पर तेज़ रोशनी का कोई असर नहीं पड़ रहा था. मिनटों में दीपेंद्र को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया.
दीपेंद्र को राजा बनाया गया
अगले दिन छपने वाले अख़बारों में इस दिल दहला देने वाली घटना का कोई ज़िक्र नहीं था. लेकिन इस ख़बर को दबाए रखने का प्रयास सफल नहीं हो सका.
इस घटना को कवर करने के लिए 2 जून 2001 को 10 बजे सुबह मैं दिल्ली से काठमाँडू पहुँच गया था. लेकिन तब तक नेपाल के लोगों को इस हत्याकाँड की कोई जानकारी नहीं दी गई थी. हाँलाकि नेपाल रेडियो पर सुबह से ही शोक संगीत बजने लगा था.
आखिर उन्होंने हत्याकाँड के 14 घंटे बाद दोपहर 11 बजे कार्यक्रम रोक कर एलान किया कि कल रात सवा नौ बजे महाराजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह का निधन हो गया. उनकी जगह उनके सबसे बड़े बेटे युवराज दीपेंद्र को अगला महाराजाधिराज घोषित किया जाता है. चूँकि वो अभी शासन करने की स्थिति में नहीं हैं उनकी जगह राजकुमार ज्ञानेंद्र रीजेंट की तरह काम करेंगे. लेकिन नेपालवासियों को ये नहीं बताया गया कि महाराज बीरेंद्र की मृत्यु कैसे हुई?
शव यात्रा में लाखों लोग
2 जून 2001 को दोपहर 4 बजे जब राज परिवार की शव यात्रा शुरू हुई तो पूरा काठमाँडू जैसे सड़कों पर उतर आया. देश के हज़ारों लोगों ने महाराजा के सम्मान में अपने सिर मुंडवा दिए.
नाइयों ने इस काम के लिए कोई पैसे नहीं लिए. शाम के धुँधलके में राज परिवार के एक सदस्य दीपक बिक्रम ने आर्यघाट पर सारी चिताओं को अग्नि दी.
युवराज दीपेंद्र को कभी होश नहीं आया. 4 जून 2001 की सुबह 3 बज कर 40 मिनट पर उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए. लगभग 54 घंटे तक नेपाल पर उस व्यक्ति का राज रहा जो बेहोश था और उस पर अपने पिता की हत्या करने का आरोप था.
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उनकी मौत के बाद नेपाल नरेश बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र तीन दिनों के अंदर नेपाल के तीसरे राजा बने. लेकिन नेपाल की राजशाही इस झटके से कभी उबर नहीं पाई और 2008 में नेपाल ने राजशाही को त्याग कर गणतंत्र का रास्ता चुना.
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