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उत्तर प्रदेश: योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, प्रियंका गाँधी और मायावती क्या लड़ेंगे चुनाव?

उत्तर प्रदेश में बीते दो दशक से बड़ी पार्टियों के मुख्यमंत्री पद के दावेदार विधानसभा चुनाव लड़ने से बचते रहे हैं. लेकिन अब सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि वो चुनाव लड़ने को तैयार हैं. अखिलेश यादव भी यही दावा कर रहे हैं.

By BBC News हिन्दी
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योगी
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उत्तर प्रदेश चुनाव में लगभग सभी पार्टी के बड़े नेताओं के सामने एक दिलचस्प चुनौती है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता प्रियंका गाँधी और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती पर विधानसभा चुनाव लड़कर अपनी लोक्रप्रियता साबित करने का दबाव बन रहा है.

दरअसल, करीब 20 साल से उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बने नेता चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंचे बल्कि विधान परिषद के सदस्य यानी एमएलसी बनते रहे हैं.

साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले इसी वजह से इसे लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं.

सवाल यह है कि आख़िर यह बड़े नेता विधानसभा चुनाव लड़ने से कतराते क्यों हैं? कई लोग अक्सर पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हैं, जहां साल 2021 चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने भले ही अभूतपूर्व बहुमत से जीत हासिल की हो लेकिन ममता बनर्जी ख़ुद अपनी सीट हार गईं.

लेकिन बाद में वो भवानीपुर से उपचुनाव जीतीं. उनके पास एमएलसी बन कर मुख्यमंत्री बनने का विकल्प नहीं था. लेकिन उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में मुख्यमंत्री बनने वाले लोग उस विकल्प का लगातार इस्तेमाल कर विधानसभा का चुनाव लड़ने से बचते रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने की चर्चा

साल 2022 के पहले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में पत्रकारों से 'ऑफ़ कैमरा' मुलाक़ात की. उन्होंने चुनाव से जुड़े कई मुद्दों पर बात की. बाद में उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से मीडिया की रिपोर्ट साझा करते हुए लिखा, "मैं विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार हूँ, पार्टी जहां से कहेगी वहां से लड़ूंगा.''

https://twitter.com/myogioffice/status/1477468920470589441?s=21

तीन जनवरी को यह ख़बर आई कि भाजपा सांसद हरिनाथ सिंह यादव को योगी के 'मथुरा से चुनाव लड़ने का सपना आया' है और उन्होंने पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा को योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़वाने के अनुरोध के साथ चिट्ठी लिखी है.

एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में हरिनाथ सिंह यादव ने कहा, "रात में मेरी दो बार आँख खुली और दोनों बार मेरे सामने योगी जी का चित्र और भगवान कृष्ण का चित्र आया और मुझे यह लगा कि भगवान कृष्ण मुझे निर्देश दे रहे हैं कि योगी जी को मथुरा से चुनाव लड़ना चाहिए और मैं अपने नेतृत्व से बात करूँ. इसीलिए मैंने नड्डा जी को एक पत्र लिखा. मैं तो भगवान श्री कृष्ण के बीच में और अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष जी के बीच में एक तरीक़े से मध्यस्थ की तरह काम कर रहा हूँ. जो उन्होंने निर्देशित किया, उसी के आधार पर मैंने पत्र लिखा."

हालांकि, इसके पहले योगी आदित्यनाथ ने मीडिया से बातचीत में पहले कहा, "मथुरा से चुनाव लड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं है. पार्टी जहाँ से कहेगी वहां से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन मथुरा मेरा पावन धाम है और अपने पावन धाम से यह सौभाग्य हमें प्राप्त हो, मैं पहली बार यहाँ नहीं आया हूँ. आज 19 दिसंबर को मैं 19वीं बार यहाँ आया हूँ. हमारे उत्तर प्रदेश वासियों का सौभाग्य है कि सप्त पुरियों में से तीन पुरी हमारे यहाँ उत्तर प्रदेश में हैं, अयोध्या, मथुरा और काशी. तो उसमें मथुरा है. इन सभी पुरियों में जनता के लिए और इन तीर्थों के लिए कुछ विकास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इससे ज़्यादा आनंद का अवसर और क्या हो सकता है."

दावे और सवाल

सपनों की बात छोड़ भी दी जाए तो असल सवाल यही है कि योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ेंगे या नहीं और अगर लड़ेंगे तो कहाँ से?

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं, "यह सवाल जब मुख्यमंत्री से पूछे गए तो उन्होंने उसका जवाब देते हुए कहा है कि पार्टी में कौन चुनाव लड़ेगा और कौन चुनाव नहीं लड़ेगा, या कोई चुनाव लड़ेगा तो कहाँ से लड़ेगा, यह चुनाव समिति और केंद्रीय संसदीय बोर्ड तय करने का काम करता है. अगर वो चुनाव लड़ते भी हैं तो उससे कोई कैंपेनिंग पर असर नहीं पड़ेगा बल्कि पार्टी को उसका फ़ायदा होगा. लेकिन अंतिम निर्णय पार्टी करेगी कि उनको चुनाव लड़ना है या नहीं लड़ना है. 403 विधानसभा के सभी कार्यकर्ता यह अपेक्षा करते हैं कि मुख्यमंत्री चुनाव उनके यहाँ से लड़ेंगे. "

वो आरोप लगाते हैं, "मायावती जी घर के बाहर नहीं निकल पा रही हैं, अखिलेश जी बहुत मुश्किल से एक दिन घर से निकलते हैं और तीन दिन छुट्टी पर रहते हैं. जनता के बीच जाने का इनमें साहस नहीं है. और प्रियंका जी तो ट्वीट और फ़ेसबुक से ही अपना चुनाव लड़ेंगी."

योगी आदित्यनाथ के मथुरा से चुनाव लड़ने की संभावना के बारे में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं, "योगी आदित्यनाथ की जो अपनी ज़मीन है वो गोरखपुर है. उन्होंने जो थोड़े बहुत काम किये हैं, जैसे देव दीपावली मनाई है वो अयोध्या में किया है. यह ज़रूर है कि भाजपा के तीन केंद्र अयोध्या, मथुरा, काशी हैं. लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नेतृत्व वाली भाजपा कभी भी नहीं चाहेगी कि कोई नया नेता इन तीन शक्ति केंद्रों का प्रतीक बन जाये. क्योंकि मथुरा, अयोध्या और काशी के परिणाम पुरुष या परिणाम देने वाला व्यक्ति होने का श्रेय सिर्फ़ नरेंद्र मोदी के खाते में है. तो नरेंद्र मोदी कैसे यह कर सकते हैं कि किसी शक्ति केंद्र का श्रेय कोई दूसरा ले जाये. मान लीजिए कि भाजपा को अपनी राजनीति को अयोध्या, काशी और मथुरा की ओर ले ही जाना हो तो वो नरेंद्र मोदी ले जायेंगे. योगी आदित्यनाथ नहीं."

योगी आदित्यनाथ
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योगी आदित्यनाथ

मथुरा से संभवतः चुनाव ना लड़ने के योगेश मिश्रा दूसरे कारण भी गिनाते हैं.

उनका मानना है कि अगर योगी आदित्यनाथ को मथुरा से चुनाव लड़ाया जाता है तो उससे भाजपा के लिए ब्राह्मण बनाम ठाकुर की समस्या उत्पन्न हो सकती है.

वो कहते हैं, "मथुरा की जिस सीट से योगी जी के लड़ने की चर्चा हो रही है, वहां से विधायक हैं श्रीकांत शर्मा जो प्रदेश के कैबिनेट मंत्री भी हैं. उनका प्रदर्शन काफ़ी अच्छा रहा है. वो केंद्र से आये हैं और सीधे विधायक बने और बाद में कैबिनेट मंत्री. बहुत दिन के बाद उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहा है जिसमें बिजली कोई मुद्दा नहीं है. हमेशा हर सरकार के ख़िलाफ़ बिजली एक बड़ा मुद्दा होता था. बिजली और क़ूनून व्यवस्था पर कई चुनाव लड़े गए हैं. तो सवाल यह उठता है कि एक परफ़ॉर्मिंग मंत्री की सीट आप कैसे ख़ाली करवाएंगे?

अभी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण और ठाकुर का टकराव है उसमें किसी ब्राह्मण का टिकट काट कर किसी ठाकुर को नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि अगर ऐसा होगा तो फिर उस ज़िले में ब्राह्मण ठाकुर तनाव तेज़ी पकड़ेगा और भाजपा को काफ़ी सीटों पर नुक़सान हो सकता है."

क्या अखिलेश यादव चुनाव लड़ेंगे?

भले ही अखिलेश यादव को भी मुख्यमंत्री बनने के सपने आ रहे हों लेकिन 2012 से 2017 तक वो उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने एमएलए बनने के लिए कोई उपचुनाव भी नहीं लड़ा. वो एमएलसी थे.

मीडिया इंटरव्यू और तमाम प्रेस वार्ताओं में उनसे कई बार सवाल होता है कि क्या वो चुनाव लड़ेंगे, और अगर लड़ेंगे तो कहाँ से?

2022 की पहली प्रेस कांफ्रेंस में यह सवाल फिर से पूछे जाने पर अखिलेश यादव ने कहा, " चुनाव लड़ने के बारे में जहाँ से हमारी पार्टी कहेगी वहां से लड़ेंगे. समाजवादी पार्टी जहाँ कह देगी मैं चुनाव वहां से लड़ लूँगा. कम से कम यह बाबा मुख्यमंत्री जहाँ से चुनाव लड़ने जाएंगे, वहां की जनता तैयार बैठी होगी."

अगर योगी आदित्यनाथ चुनावी मैदान में उतरेंगे तो फिर ज़ाहिर है कि अखिलेश पर भी चुनाव लड़ने का दबाव बढ़ेगा.

उस हालत में वो इटावा, मैनपुरी या आज़मगढ़ में किसी यादव बहुल सीट से लड़ सकते हैं. लेकिन क्या अखिलेश यादव ऐसा करेंगे और क्या उनमे चुनाव लड़ने को लेकर झिझक है?

वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं, "नेताओं से जब भी यह पूछा जाता है तो औपचारिक तौर पर वो यह कहते हैं कि अगर वो किसी सीट से चुनाव लड़ते हैं तो फिर उनका ध्यान, समय और संसाधन उस सीट पर चुनाव जीतने में ज़्यादा ज़ाया होंगे. और एक हद तक यह सही भी है. वो यह भी चाहते हैं कि इलेक्शन का फ़ोकस उनकी सीट पर ना हो, ख़ास तौर से मीडिया उस ख़ास सीट के समीकरण और उससे हार जीत की संभावनाओं का विश्लेषण करती है. नेता इससे बचने की कोशिश करते हैं. और अगर वो हार जाते हैं तो फिर उसकी शर्मिंदगी से बचने के लिए चुनाव नहीं लड़ना चाहते."

रतन मणि लाल का मानना है कि अखिलेश की तुलना में किसी सीट से चुनाव लड़ने की क्षमता योगी की ज़्यादा है क्योंकि, "वो पूरे प्रदेश में सक्रिय हैं, उन्होंने अपनी हिंदूवादी नेता होने की एक छवि बनाई है, और चुनाव में उन्हें अपने आपको पोजीशन करने में कुछ सोचने की ज़रुरत नहीं है. और गोरखपुर से कई बार सांसद चुने जाने के बाद वो चुनाव जीतने की कला को समझते हैं. यह भी एक बड़ा फ़ैक्टर है."

इन संभावनाओं और अटकलों के बारे में समाजवादी प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गाँधी कहते हैं, "अभी तो कोई फ़ैसला नहीं हुआ है लेकिन जैसे उन्होंने ख़ुद कहा है अगर पार्टी कहेगी तो वो लड़ेंगे. तो जब पार्टी कहेगी तो उसके बाद फ़ैसला होगा कि वो कहाँ से लड़ेंगे. वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और संविधान से भी बंधे हुए हैं, तो संवैधानिक प्रक्रिया के तौर पर तय होता है कि उन्हें लड़ना चाहिए तो वो ज़रूर लड़ेंगे. यह पूछना कि अगर योगी चुनाव लड़ेंगे तो अखिलेश जी को चुनाव लड़ना पड़ेगा, यह सवाल काल्पनिक है."

प्रियंका गांधी
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प्रियंका गांधी

प्रियंका गाँधी अब नहीं चुनाव लड़ेंगी तो कब?

"प्रियंका, क्या आप चुनाव लड़ेंगी?" यह सवाल प्रियंका गांधी से तब से पूछा जा रहा है जब से वो हर लोकसभा चुनावों में अपने भाई राहुल गांधी और अपनी माँ सोनिया गांधी के लिए अमेठी और रायबरेली का चुनाव प्रचार संभाल रही हैं.

जब प्रियंका गांधी ने महिलाओं के लिए 2022 का घोषणापत्र जारी किया तब उनसे फिर सवाल हुआ कि क्या पार्टी की 40 प्रतिशत महिला प्रत्याशियों में उनका नाम भी होगा, तो जवाब में प्रियंका ने कहा था, "हो सकता है. आप ठहर के देखिए, जब निर्णय होगा तब आपको पता चल जाएगा."

लेकिन 2019 के चुनाव में राहुल गाँधी की अमेठी में स्मृति ईरानी के हाथों हुई हार के बाद किसी भी गाँधी परिवार के सदस्य का उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ना जोखिम भरा है. भाजपा उन्हें हराने के लिए सबसे ज़्यादा ताक़त झोंकती है.

यह कहना भी ग़लत नहीं होगा कि अब अमेठी और रायबरेली गाँधी परिवार के उस तरह से गढ़ नहीं रहे हैं जैसे पहले थे और जहाँ से प्रियंका आसानी से चुनाव लड़ कर जीत सकें.

कांग्रेस का 2022 का नारा है, "लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ". और इसी नारे के सहारे कांग्रेस एक नया राजनीतिक एक्सपेरिमेंट करने जा रही है. लेकिन वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र के मुताबिक़ शायद ही गाँधी परिवार का कोई सदस्य कभी विधायकी का चुनाव लड़ेगा.

वो कहते हैं, "गाँधी परिवार को लगता है कि विधानसभा चुनाव उसके स्टेटस के क़ाबिल नहीं है. वो विधानसभा को बहुत छोटी चीज़ मानता है. यह परिवार सोचता है कि हम मुख्यमंत्री बना सकते हैं, प्रधानमंत्री बना सकते हैं तो अब हम विधानसभा में लड़ने क्या जाएँ. हालांकि अगर यह लड़ें तो इन लोगों का फ़ायदा हो सकता है, पर इनके लिए यह स्टेटस का काम नहीं है."

रतन मणि लाल का कहते हैं, "अगर प्रियंका गाँधी में चुनाव लड़ने की कोई हिचक है तो वो इसलिए की अभी तक उन्होंने चुनाव लड़ा नहीं है और पिछले कुछ चुनावों से कांग्रेस के पक्ष में माहौल नहीं रहा है तो फिर प्रियंका के लिए भी यह चुनाव लड़ना जोखिम भरा हो जाता है. और गाँधी परिवार के किसी सदस्य का चुनाव लड़ना और हार जाना केवल उनके लिए ही नहीं बल्कि पार्टी के मनोबल पर असर डालता है. और आज के ज़माने में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को पार्टी के नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाने का मौक़ा मिल जायेगा."

इस बारे में पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हिलाल नक़वी कहते हैं, "वो चुनाव बिल्कुल लड़ सकती हैं, और हम सब चाहते हैं कि वो यहाँ से लड़ें और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनें. पर पार्टी क्या स्टैंड लेती है, और क्या चाहती है वो सिर्फ़ पार्टी ही तय कर सकती है. जहाँ तक चुनाव हारने की और उससे जुड़ी झीझक की बात है तो प्रियंका गाँधी इस देश में कहीं से भी चुनाव लड़ सकती हैं और भारी बहुमत से जीत सकती हैं. इसमें कोई शक नहीं है."

मायावती
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मायावती

क्या मायावती के चुनाव लड़ने की है कोई गुंजाइश?

मायावती भी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. कुछ लोग एमएलसी के रास्ते मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा को स्थापित करने का श्रेय उन्हें देते हैं.

उत्तर प्रदेश की विधान सभा की लंबे समय से रिपोर्टिंग करते आ रहे पत्रकार ज़ैद अहमद फ़ारूक़ी का कहना है, "1989 तक जो भी मुख्यमंत्री बना वो चुन कर आता था. उसके बाद से विधान परिषद से आना शुरू हुआ. मायावती ने इस परंपरा को परमानेंट कर दिया. मायावती के बाद मुलायम सिंह भी विधान परिषद से एमएलसी बन कर आये. उसके बाद फिर मायावती, अखिलेश और योगी आदित्यनाथ तीनों एमएलसी बन कर मुख्यमंत्री बने. आख़िरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जो विधायक रह चुके हैं वो राजनाथ सिंह हैं जो बाराबंकी से उप-चुनाव जीत कर आये थे. ऐसा 20 साल पहले हुआ था."

लेकिन 2022 के चुनावों में विधायकी का चुनाव लड़ना तो दूर प्रचार और रैलियों को लेकर भी मायावती पर सवाल उठ रहे हैं. बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और ब्राह्मण चेहरा सतीश चंद्र मिश्र ने ट्वीट किया "बहन जी आने वाली हैं". यह भी अटकलें लग रही हैं कि मायावती अपने जन्मदिन 15 जनवरी से पार्टी का प्रचार शुरू करेंगी.

https://twitter.com/satishmisrabsp/status/1476006174206021638?s=20

तो क्या वो विधायक का चुनाव लड़ेंगी? इस बारे में पार्टी प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी कहते हैं, "विधान सभा का चुनाव बहनजी नहीं लड़ेंगी. पूरे देश में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं. जब सरकार बनाने की स्थिति होगी, तब तय होगा कि चुनाव लड़ना है या एमएलसी बनना है. अगर उस समय लगेगा कि चुनाव कोई सीट ख़ाली करके लड़ना है तो फिर लड़ा जाएगा."

राजनीति में परम्पराएं बनती बदलती रहती हैं लेकिन विधायक का चुनाव लड़ कर मुख्यमंत्री बनने के मुद्दे पर पत्रकार योगेश मिश्र लोकतान्त्रिक परम्पराओं की याद दिलाते हुए कहते हैं, "अगर आप लोकतंत्र में विश्वास करते हैं और आपका जनता पर यक़ीन है, और मानते हैं कि जनता ही लोकतंत्र की ध्वजवाहक है तो आपको जनता के बीच में जाकर भी अपने नाम का मैंडेट लेना चाहिए. क़ायदे से यही होना चाहिए, क्योंकि जिस भी आदमी को आप मुख्यमंत्री बना रहे हो उस चेहरे को सामने रखिये ताकि जनता यह बता सके कि वो उस चेहरे को कितना पसंद और नापसंद करती है."

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English summary
Will Yogi Adityanath, Akhilesh Yadav, Priyanka Gandhi and Mayawati fight up elections?
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