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क्या कांग्रेस को 'गांधी परिवार के नेतृत्व' से आज़ाद करा पाएँगे असंतुष्ट

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद, कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद के घर दूसरी बैठक हुई. आख़िर इस बैठक के क्या हैं मायने?

By सरोज सिंह
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गुलाम नबी आज़ाद और सोनिया गांधी
Getty Images
गुलाम नबी आज़ाद और सोनिया गांधी

बात 2014 लोकसभा चुनाव के बाद की है. कांग्रेस की हार हुई थी और हार पर समीक्षा के लिए टीवी पर डिबेट शो चल रहा था. जाहिर है कांग्रेसी हार से हताश तो थे, लेकिन टीवी स्क्रीन पर उसका कैसे इजहार करते. टीवी डिबेट के दौरान एक कांग्रेसी नेता ने कहा, "देश में कांग्रेस पार्टी एक डिफ़ॉल्टऑप्शन की तरह है."

भले ही उस वक़्त कांग्रेस के नेता ने ये बात अपनी पार्टी के लिए कही थी.

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लेकिन जिस नेतृत्व संकट के दौर से कांग्रेस पार्टी इस वक़्त गुज़र रही है, उसमें ये कहना ग़लत नहीं है कि गांधी परिवार भी पार्टी में 'डिफ़ॉल्ट ऑप्शन' ही बन कर रह गया है. जब कहीं से कोई नहीं मिलता, तो पार्टी की कमान अपने आप ही उनके हाथ में चली जाती है.

लेकिन इस बार पार्टी के अंदर इस डिफ़ॉल्ट सेटिंग को बदलने की एक कोशिश हुई है.

कोशिश कितनी कामयाब होगी, इसके लिए 6 महीने और इंतज़ार करना पड़ेगा, लेकिन इतना ज़रूर है कि अगर ये कोशिश सफल हुई तो पार्टी का स्वरूप बदल जाएगा और विफल हुई तो फिर पार्टी में दोबारा ऐसी हिम्मत अगली बार कब होगी, उसमें कितना वक़्त लगेगा, ये बता पाना मुश्किल हो जाएगा.

रविवार और सोमवार दो दिन तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक की चर्चा अख़बार से लेकर मीडिया चैनलों और विपक्षी पार्टियों के बीच हर जगह छाई रही.

लेकिन मंगलवार को सीडब्लूसी की बैठक की चर्चा के बजाए एक दूसरी ही बैठक की चर्चा हो रही है. वो बैठक, जो वर्किंग कमेटी की बैठक के ठीक बाद हुई कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद के घर पर.

बताया जा रहा है कि कांग्रेस में नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए जो चिट्ठी लिखी गई थी, उसमें दस्तख़त करने वालों की वो बैठक थी. ज़ाहिर है, बैठक के बाद जब दूसरी बैठक होती है, तो पहली बैठक का ज़िक्र होता है, चर्चा भी होती है, और इस बैठक में भी हुई होगी.

ऐसे में सवाल उठता है कि चिट्ठी भी लिख दी, पार्टी की वर्किंग कमेटी की बैठक भी बुला ली, कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष भी चुन लिया, अब आगे क्या? क्या छह महीने में सब शांत हो जाएगा, दूध की उबाल की तरह, या फिर आँच धीमी कर उसे और उबाला जाना अभी बाक़ी है ?

चिट्ठी में लिखी बातों पर अमल हो

इसका जवाब कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के आज के ट्वीट से थोड़ा बहुत समझा जा सकता है. कपिल सिब्बल ने ट्वीट में लिखा है- ये एक पोस्ट की बात नहीं, बल्कि उस देश की बात है, जो मेरे लिए सबसे ज़्यादा मायने रखता है.

कपिल सिब्बल का नाम उन 23 नेताओं की लिस्ट में लिया जा रहा है, जिन्होंने वो चिट्ठी सोनिया गांधी को लिखी है और कथित तौर पर पार्टी में 'असंतुष्ट' हैं. सोमवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के दौरान बीजेपी के साथ सांठ-गांठ के आरोप पर उन्होंने एक ट्वीट किया, जिसे उन्होंने राहुल गांधी के एक फ़ोन कॉल के बाद (कपिल सिब्बल के अनुसार) डिलीट कर दिया.

आज के ट्वीट में कपिल सिब्बल ने जो बातें लिखी हैं, उसके दो अर्थ हो सकते हैं. वो उस डिलीट किए गए पोस्ट के लिए भी हो सकता है. और पार्टी के अध्यक्ष पद या दूसरे पद के लिए भी हो सकता है. तो क्या कांग्रेस के 'असंतुष्ट' नेता, कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं?

'ये कहाँ आ गए हम, यूँ ही साथ साथ चलते' - पार्टी को क़रीब से जानने और कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की हालात बॉलीवुड के इसी गाने के अंदाज़ में करते हैं.

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वो कहते हैं कि सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले सभी नेता पार्टी के साथ हैं, लेकिन कुछ बदलाव चाहते हैं.

विनोद शर्मा के मुताबिक़ पार्टी में कुछ नेताओं को इस बात पर आपत्ति है कि वैसे तो राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष नहीं है, लेकिन वास्तव में अध्यक्ष ही बने हुए हैं. उनकी 100 में से 70 बात आज भी मान ली जाती है. हर मुद्दे पर वीडियो बना रहे हैं.

आज पार्टी में राहुल का रोल क्या हो, ये बात अधर में अटकी है, वो ना ख़ुद अध्यक्ष बन रहे हैं और ना दूसरे को बनने दे रहे है, ये बात ज़्यादा दिन तक नहीं चल सकती. इसलिए पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना ही चाहिए.

क्या कांग्रेस को गांधी परिवार के नेतृत्व से आज़ाद करा पाएँगे असंतुष्ट

उनका मानना है कि अगर राहुल गांधी आज भी पार्टी अध्यक्ष के पद के लिए अपना मन बना लें तो वो बिना किसी मुश्किल के दोबारा अध्यक्ष बन सकते हैं. सोमवार को जो कुछ हुआ उससे सोनिया गांधी को एक मोहलत मिल गई है, ताकि पार्टी में जो रायता फैला है उसे समेट लिया जाए.

पार्टी के लिए आगे की राह क्या हो? इस पर विनोद शर्मा कहते हैं कि राह वही है, जो चिट्ठी में सुझाव दिए गए हैं. पार्टी का एक फुल टाइम अध्यक्ष, कांग्रेस वर्किंग कमेटी और संसदीय बोर्ड का दोबारा गठन, यही वो काम हैं, जो पार्टी की प्राथमिकता होनी चाहिए. इसमें काबिलियत और अनुभव दोनों का सही मिश्रण होना ज़रूरी है.

कांग्रेस पार्टी के संविधान के मुताबिक़ हर नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए सीडब्लूसी का गठन होना चाहिए. लेकिन पिछले एक साल से सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष है, इस वजह से ये नहीं हो पाया था. कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुछ लोग चुनाव से आते हैं, कुछ मनोनीत होते हैं और कुछ स्पेशल इन्वाइटी होते हैं.

2017 में राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बने थे. उस वक़्त उनका चुनाव निर्विरोध हुआ था. 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की हार की ज़िम्मेदारी देते हुए उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया था. उसके बाद से कांग्रेस में अध्यक्ष पद पर चुनाव नहीं हुआ है. 1998 से 2017 तक सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष रही थी.

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अध्यक्ष पद पर चुनाव और ग़ैर गांधी अध्यक्ष

ऐसे में अटकलें लगाई जा रही है कि क्या असंतुष्ट नेताओं के खेमें में से कोई नेता पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकता है. क्या ग़ुलाम नबी आज़ाद आने वाले समय में पार्टी में गैर-गांधी अध्यक्ष का चेहरा हो सकते हैं. विनोद शर्मा इससे इनकार करते हैं. उनके मुताबिक़ ग़ुलाम नबी ने इस मंशा से कोई काम नहीं किया होगा.

लेकिन कांग्रेस पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई इस संभावना से इनकार नहीं करते.

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बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि राहुल गांधी दोबारा अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हो जाए तो और बात होगी. लेकिन अगर गांधी परिवार ने ही कांग्रेस में अपने किसी पुराने वफ़ादार को ही अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में उतारा, तो बहुत संभव है कि पार्टी के असंतुष्ट नेताओं में से कोई उस उम्मीदवार को टक्कर देने के लिए सामने आए.

ऐसे में वो चेहरा ग़ुलाम नबी आज़ाद का हो सकता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. वो यूथ कांग्रेस में रहे हैं, जम्मू- कश्मीर में मुख्यमंत्री रहे हैं, कई बार केंद्र में मंत्री रहे हैं, फ़िलहाल राज्यसभा में पार्टी का चेहरा है. अनुभव और काबिलियत दोनों पैमानों पर उनका क़द पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए कमज़ोर नहीं हैं. ऐसा रशीद का मानना है.

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विनोद शर्मा कहते हैं कि पार्टी को फ़िलहाल एक चुनाव वाली सर्जरी की आवश्यकता है. लेकिन उसके लिए ज़रूरी है कि परिस्थितियाँ अनुकूल हों.

जैसे किसी इंसान की सर्जरी के पहले ये देखा जाता है कि उसको ब्लड प्रेशर तो नहीं, किडनी की, लीवर की दिक्क़त तो नहीं. अगर ऐसी कोई दिक्कत सर्जरी के वक़्त होती है तो डॉक्टर दवा दे कर थोड़े दिन मर्ज़ को ठीक करने की कोशिश करता है.

ठीक वैसे ही पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने के लिए फ़िलहाल वातावरण अनुकूल नहीं है. 6 महीने के वक़्त में वो दवा पार्टी को दी जा सकती है और फिर चुनाव कराए जा सकते हैं. अगर तुंरत चुनाव हुए तो गुटबाज़ी बढ़ने का ख़तरा हो सकता है.

विनोद शर्मा कहते हैं, "अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी का सेशन बुलाना एक विकल्प हो सकता है, जहाँ सभी को खुल कर बोलने की इजाज़त होनी चाहिए."

सोमवार की मीटिंग का ज़िक्र करते हुए वो कहते हैं कि एक काम वहाँ बहुत अच्छा हुआ. कपिल सिब्बल ने जैसे ही ट्वीट किया, राहुल ने फ़ोन कर उन्हें कहा कि मैंने ऐसा नही बोला है और सिब्बल ने ट्वीट डिलीट कर दिया गया. ये राहुल गांधी की अच्छी बात थी. जो उन्हें आगे भी जारी रखनी चाहिए. उन्हें दूसरे नेताओं की बात सुननी चाहिए.

विनोद शर्मा कहते हैं कि आज की तारीख़ में राहुल गांधी को किसी दूसरे नेता से कोई ख़तरा नहीं होगा अगर वो दूसरा अध्यक्ष बना दें. बल्कि इससे उनकी साख़ और बेहतर होगी. राहुल की इमेज और बेहतर होगी, परिवार की इमेज बेहतर होगी और पार्टी की इमेज भी और बेहतर होगी.

पार्टी के अंदर एक अलग धड़ा

क्या कांग्रेस को गांधी परिवार के नेतृत्व से आज़ाद करा पाएँगे असंतुष्ट

रशीद एक तीसरे विकल्प की भी बात करते हैं. रशीद के मुताबिक़ सोमवार की बैठक में सुलह सफ़ाई नहीं हुई. दोबारा बैठक करने का मतलब ये है कि असंतुष्ट नेताओं की तरकश में अब भी कई तीर हैं. कल जो हुआ वो पहला राउंड था. लड़ाई लंबी चल सकती है.

इस मौक़े पर रशीद वीपी सिंह को याद करते हैं. जब वीपी सिंह को रक्षा मंत्री के पद से हटाया गया था, तो उन्होंने सीधे पार्टी नहीं छोड़ी थी, अंदर ही अंदर पार्टी को क्षति पहुँचाई थी, फिर जनमोर्चा बनाया था और बाद में जनता दल के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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ऐसे में रशीद को लगता है कि ठीक उसी तरह एक समीकरण आने वाले दिनों में बनते देख सकते हैं. वो कहते हैं कि बहुत मुमकिन है कि कांग्रेस के निकले दल, जैसे शरद पवार हों ममता बनर्जी हों या फिर जगन रेड्डी हों - इनसे असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं का खेमा एक साथ आने की पहल कर सकता है.

इस तरह का एक शह-मात का खेल भी पर्दे के पीछे चल रहा है. सीडब्लूसी के बाद की बैठक इसी तरफ़ इशारा करती है. फ़िलहाल ये संभावना दूर की कौड़ी लग सकती है, लेकिन इन नेताओं की भारत की राजनीति में अपनी अलग पहचान है, अपना वज़न है, इसमे दो राय नहीं है. अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव जीत कर तीनों नेताओं ने ख़ुद को साबित किया है.

क्या कांग्रेस को गांधी परिवार के नेतृत्व से आज़ाद करा पाएँगे असंतुष्ट

ग़ुलाम नबी आज़ाद के बारे में रशीद कहते हैं कि उनकी सभी पार्टी के नेताओं के साथ ट्यूनिंग अच्छी है. विपक्ष को राज्यसभा में एकजुट रखने में कई बार उन्होंने पहल की है, ये हमने देखा है. फिर कपिल सिब्बल भी उनके साथ है, जिन्होंने पार्टी से इतर जाकर दूसरे राजनीतिक दलों के लिए कोर्ट में केस लड़ा है. मनीष तिवारी भी उनके साथ है.

चिट्ठी पर भले ही 23 नेताओं ने दस्तख़त किया हो, लेकिन कई और नेता हैं जो पार्टी में इन नेताओं के समर्थन में हैं. ऐसे में राजनीति में किसी भी संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

रशीद कहते हैं कि अभी तक जिन नेताओं ने चिट्ठी लिखी उनसे बुला कर पार्टी नेतृत्व ने अलग से बात नहीं की है, जिसकी उनको एक आस रही होगी. रशीद कहते हैं कि चिट्ठी लिखने वालों में तीन तरह के नेता हैं- एक वो, जिन्हें पार्टी में जो कुछ मनमाने ढंग से चल रहा है उसका दुख है. दूसरे वो नेता हैं, जिन्हें राहुल के साथ काम करने में हिचकिचाहट है और तीसरे वो कांग्रेस नेता हैं, जो वाक़ई में पार्टी को नुक़सान पहुँचाना चाहते हैं, जिसको लगता है कि पार्टी में उनका अच्छा नहीं हो रहा है.

अगर पार्टी नेतृत्व इनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई करने का फ़ैसला लेती है, तो हो सकता है कि असंतुष्ट नेता कोर्ट का सहारा लें. सोमवार को ग़ुलाम नबी आज़ाद के घर हुई बैठक में इस पर भी चर्चा हुई होगी. रशीद ये भी साथ में जोड़ते हैं कि ऐसा बहुत कम होता है कि पार्टी के अंदरूनी संविधान को कोर्ट में चैलेंज किया गया हो.

तो क्या कांग्रेस, अब पुरानी कांग्रेस नहीं रह जाएगी? क्या इसकी संभावना ना के बराबर है? वहाँ पहले जैसे कुछ नहीं रहेगा- इन सवालों के जवाब में रशीद बीजेपी का उदाहरण देते हैं.

जैसे बीजेपी के अटल आडवाणी युग में सारे नेताओं की वफ़ादारी इन्हीं दो नेताओं की तरफ़ थी, नरेंद्र मोदी के आते ही सबकी वफ़ादारी मोदी की तरफ़ हो गई, वैसे ही जब तक कांग्रेस की कमान सोनिया या राहुल गांधी हैं तब तक नेता उनके साथ है, जैसे ही दूसरा विकल्प तैयार होगा, वफ़ादारी बदलते देर नहीं लगेगी.

ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि कांग्रेस ख़ुद को देश के डिफ़ॉल्ट आप्शन के तौर पर देखना बंद करे. ख़ुद को पाज़िटिव ऑप्शन के तौर पर तैयार करे. दोनों जानकारों की कांग्रेस को एक ही सलाह है.

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English summary
Will dissatisfied Congressi be freed congress from 'leadership of Gandhi family'
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