पश्चिमी यूपी में कांग्रेस के ‘रणनीतिक’ उम्मीदवार तय करेंगे बीजेपी की हार?
क्या कांग्रेस महागठबंधन उम्मीदवारों को फायदा पहुंचाने के लिए रणनीतिक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार रही है? क्या एनडीए की हार को सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस कमज़ोर उम्मीदवार उतारकर एसपी-बीएसपी गठबंधन को फायदा पहुंचा रही है? अपने जनाधार की कीमत पर कांग्रेस ऐसा क्यों करेगी? क्या यह रणनीति आत्मघाती नहीं होगी? इन सारे सवालों का उत्तर मिलना आसान नहीं है क्योंकि चाहे कांग्रेस हो या महागठबंधन, वे इस बात को स्वीकार करने वाले नहीं हैं। इसे मान लेने का मतलब ही होगा अपनी ही रणनीति की कब्र खोद देना। लेकिन, आंखें खुली रहने से चीजें साफ-साफ नज़र आने लगती है। कांग्रेस के उम्मीदवार 'रणनीतिक'अधिक नजर आते हैं।
मेरठ में बीजेपी-कांग्रेस दोनों उम्मीदवार अग्रवाल
सबसे पहले मेरठ की सीट पर गौर करें। यहां से महागठबंधन उम्मीदवार बीएसपी के हाजी याकूब कुरैशी हैं। कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी तय करते समय इस बात का ख्याल रखा कि वह बीजेपी को नुकसान पहुंचाए। इसलिए उसने ऐसा उम्मीदवार दिया जो उसी समुदाय से आता है जिससे बीजेपी के प्रत्याशी। कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के प्रत्याशी अग्रवाल हैं। बीजेपी के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल को चुनौती दे रहे हैं कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल। जातीय और धार्मिक समीकरण और उसका पैटर्न निश्चित है। लिहाजा मेरठ में महागठबंधन का उम्मीदवार बहुत मजबूत स्थिति में है। कांग्रेस ने महागठबंधन को फायदा पहुंचाकर बीजेपी को कमजोर किया है।
कैराना में बीजेपी-कांग्रेस के उम्मीदवार है जाट
कैराना में महागठबंधन की ओर से एसपी उम्मीदवार तबस्सुम बेगम हैं। यहां बीजेपी ने प्रदीप चौधरी चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने भी कद्दावर जाट नेता हरेंद्र मलिक को चुनाव मैदान में उतारा है। वे राज्यसभा से सांसद हैं और इलाके से वे विधायक भी रह चुके हैं। उनके बेटे भी कांग्रेस के विधायक रहे हैं। जाहिर है जाट वोटों के बंटने से नुकसान बीजेपी को होगा और रास्ता महागठबंधन के लिए बनेगा जिनकी उम्मीदवार तबस्सुम हैं।
गौतमबुद्धनगर में कांग्रेस-बीजेपी उम्मीदवार
गौतमबुद्ध नगर में बीजेपी ने महेश शर्मा को दोबारा चुनाव मैदान में उतारा है। इस लोकसभा सीट पर ठाकुर वोटों की तादाद बड़ी है। बीजेपी के यहां से तीन विधायक राजपूत हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने गौतमबुद्धनगर से राजपूत उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार दिया है। निश्चित रूप से ठाकुर उम्मीदवार अरविन्द चौहान बीजेपी का बेड़ा गर्क करेंगे और दूसरे व तीसरे नम्बर पर रहे एसपी-बीएसपी के उम्मीदवारों की जगह इस बार साझा उम्मीदवार के लिए रास्ता बनाएंगे। महागठबंधन ने यहा से सतबीर नागर को चुनाव मैदान में उतारा है। निश्चित रूप से कांग्रेस उम्मीदवार की वजह से महेश शर्मा के लिए जीत मुश्किल हो जाएगी।
मुजफ्फरनगर-बागपत में कांग्रेस खुलकर रालोद के साथ
कांग्रेस ने मुजफ्फरनगर से अजित सिंह और बागपत से जयंत सिंह के ख़िलाफ़ कोई उम्मीदवार नहीं दिया है। बल्कि, कांग्रेस रालोद का समर्थन कर रही है। अजित-जयंत दोनों बड़े नेता हैं और दो ध्रुवों में मतदान की स्थिति में जाट वोटों के साथ-साथ अल्पसंख्यक और पिछड़े वोटों व बीएसपी के आधारवाले वोटों की मदद से ये दोनों नेता चुनाव जीत जाएंगे। अजित सिंह बीजेपी के संजीव बालियान के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं जबकि बागपत में बीजेपी से सांसद सत्यपाल सिंह चुनाव मैदान में हैं। यहां भी कांग्रेस की भूमिका महागठबंधन को जितानी की लगती है।
बीजेपी की हार सुनिश्चित करने की रणनीति पर कांग्रेस
यूपी में कांग्रेस को महागठबंधन के लायक नहीं समझा गया। हालांकि बिहार में एनडीए को टक्कर देने के लिए कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होने में कामयाब रही। इसका मतलब ये है कि बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी ने सबको जोड़ने में कामयाबी हासिल की, लेकिन यूपी में महागठबंधन का नेतृत्व कर रहीं मायावती ने कांग्रेस की परवाह नहीं की। अखिलेश भी खामोश रहने को मजबूर रहे। फिर भी, कांग्रेस एकतरफा बीजेपी की हार सुनिश्चित करने की रणनीति पर चलती दिख रही है।