क्यों भाजपा ने हिमंत बिस्वा सरमा को सौंपी असम की कमान, क्या है आगे का प्लान
गुवाहाटी, 10 मई: असम में अगर भाजपा ने लोकप्रिय मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को हटाकर हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया है तो उन्हें सिर्फ 2016 या 2019 या फिर 2021 में पार्टी को कामयाबी दिलाने का ही पुरस्कार नहीं मिला है। पार्टी को उनसे आगे भी काफी उम्मीदें हैं। वह सिर्फ असम के लिए ही नहीं, पूरे उत्तर-पूर्व में बीजेपी के लिए लंबी रेस के घोड़े साबित हो सकते हैं। भाजपा ने यूं ही नहीं पांच साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता में वापसी के बाद भी सोनोवाल को सीएम नहीं बनाने का जोखिम नहीं लिया है। इसके पीछे बहुत ही दूर की रणनीति है, जिसके जरिए वह 2024 के लोकसभा चुनाव पर नजर लगाए हुए है।
भाजपा ने हिमंत बिस्वा सरमा को क्यों दी असम की कमान ?
यूं तो असम विधानसभा चुनाव की शुरुआत में ही भाजपा ने जिस तरह से तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को सीएम के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया और हिमंत की ओर से मनाही के बाद भी उन्हें चुनाव मैदान में उतारा, तभी लग गया था कि पार्टी नेतृत्व कुछ और ही सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। सरमा वही राजनीतिक शख्सियत हैं, जिन्होंने ना सिर्फ 2016 में भाजपा को असम में सत्ता दिलाने में मदद की थी, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में गैर-कांग्रेसी सरकारों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है, 'सरमा राजनीतिक जरूरत की पसंद हैं। हालांकि, सोनोवाल का प्रदर्शन बढ़िया रहा है और उनके नेतृत्व में पार्टी सत्ता में लौटी है, लेकिन सरमा को असम में 2016 में जीत दिलाने, 2019 में पूरे उत्तर-पूर्व में पार्टी की चुनावी मुहिम की अगुवाई करने के लिए पुरस्कार तो मिलना ही था, जिस संसदीय चुनाव में बीजेपी और उसकी सहयोगियों को क्षेत्र में सबसे ज्यादा सांसद मिले थे। '
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सरमा को मिल चुका है संघ का भी आशीर्वाद
2015 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए हिमंत बिस्वा सरमा पिछले वर्षों में असम भाजपा के हार्डलाइनर नेता बनकर उभरे हैं, जिनको अब पार्टी के वैचारिक अभिभावक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी आशीर्वाद मिल चुका है। इसकी वजह ये है कि उनकी मदद से भारतीय जनता पार्टी पूरे पूर्वोत्तर में अपना प्रभाव कायम करने में सफल रही है। भाजपा नेता के मुताबिक, 'पूरे इलाके में एनडीए सरकार बनवाने में सरमा का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। उनके मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी को उम्मीद है कि क्षेत्र पर उसका प्रभाव बना रहेगा और इस क्षेत्र के दूसरे मुख्यमंत्रियों से भी उनके बहुत ही अच्छे संबंध हैं।' फिलहाल सरमा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस के भी संयोजक हैं और इस नाते क्षेत्र के सभी राज्यों के नेताओं से उनका लगातार संपर्क बना रहताहै।
सरमा को लेकर 2024 के लिए है मेगा प्लान
सबसे बड़ी बात ये है कि सोनोवाल के मुख्यमंत्री रहते हुए बीजेपी असम में दोबारा सत्ता में तो जरूर लौटी है, लेकिन हकीकत ये है कि पार्टी के ज्यादातर विधायको पर हिमंत बिस्वा सरमा का ही प्रभाव माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जिस तरह से पार्टी का मंसूबा चकनाचूर हुआ है, वह किसी भी स्थिति में अब उत्तर-पूर्व में कायम हुई अपनी पकड़ को ढीली नहीं होने देना चाहती। भाजपा नेता ने कहा, 'पार्टी नेताओं को यह हकीकत पता थी कि उनके 60 विधायकों में से कम से कम 42 सरमा समर्थक हैं। विधायकों का एक गुट तो खुलकर उनके समर्थन में आगे आ गया और पार्टी नेतृत्व को चिट्ठी तक लिख दी। पार्टी चाहती है कि असम में स्थिरता कायम रहे और किसी भी तरह के मतभेद की गुंजाइश को जगह देने की कोई जरूरत नहीं थी। पार्टी को पश्चिम बंगाल में झटका तो लग ही चुका है, असम में सत्ता बरकरार रहने से पूरे पूर्वोत्तर पर पकड़ बनाए रखना भी सुनिश्चित होगा।' यानी बीजेपी लीडरशिप ने सरमा को उनके काम का पुरस्कार तो दिया ही है, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से उनपर दांव लगा दिया है।
असम के पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने हैं हिमंत बिस्वा सरमा
हाल के वर्षों में असम के मुख्यमंत्री ऊपरी असम से बनते रहे हैं, लेकिन 52 वर्षीय सरमा राज्य के पहले ब्राह्मण मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ पश्चिम असम से भी आते हैं। इससे पहले 2015 में भी उन्होंने सीएम बनने की कोशिश की थी और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के नेतृत्व को चुनौती दी थी, लेकिन तब सोनिया गांधी के वफादारों से वह झटका खा गए थे और उन्हें अपने 10 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होना पड़ा था। लोहवाल से बीजेपी एमएलए बिनोद हजारिका को उम्मीद है कि, 'जैसे सोनोवाल ने ऊपरी असम के हमारे जैसे विधायकों को काम करने का मौका दिया, सरमा भी हमें वैसा ही अवसर देंगे, इसका हमें पूरा भरोसा है।'