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अरविंद केजरीवाल 'हिंदुत्व और देशभक्ति' का सहारा क्यों ले रहे हैं?

आशुतोष कहते हैं, "इससे कितना हिंदू वोटर इनकी तरफ आएगा, वो बहस की बात है लेकिन जो हिंदू वोटर इनको मुस्लिम-परस्त मानकर बैठा हुआ था, वो कम से कम इन से दूर नहीं जाएगा और अगर उसको बीजेपी और आदमी पार्टी के बीच फ़क करना पड़े तो थोड़ा मुश्किल काम होगा. अगर उसको बीजेपी और आदमी पार्टी के बीच फ़क करना पड़े तो थोड़ा मुश्किल काम होगा."

By BBC News हिन्दी
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'इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगामा हमारा'.

देश भर में ज़ोरदार मोदी लहर के बावजूद 2014 में पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में एकतरफ़ा जीत के बाद अरविंद केजरीवाल ने मंच से यही गाना गया था.

2019 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपने काम के आधार पर वोट माँगे और लोकप्रियता की लहर पर सवार बीजेपी केजरीवाल को अपना शानदार प्रदर्शन दोहराने से रोक नहीं पाई.

बुनियादी मुद्दों पर कामयाबी के साथ राजनीति करने के लिए जानी जाने वाली पार्टी अब अचानक देशभक्ति और रामराज की बातें करने लगी है, ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इसके पीछे उसकी मंशा क्या है?

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केजरीवाल खुद को भगवान हनुमान और भगवान राम का भक्त बता चुके हैं. साथ ही, वह यह भी कह चुके हैं की उनकी सरकार दिल्ली की सेवा करने के लिए रामराज्य से प्रेरित 10 सिद्धांतों का पालन करती है. दिल्ली के मुख्यमंत्री यहाँ तक कह चुके हैं कि जब अयोध्या में बन रहा राम मंदिर तैयार हो जाएगा तो वे दिल्ली के वरिष्ठ नागरिकों को वहाँ की मुफ़्त तीर्थयात्रा कराएँगे.

कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार का बजट "देशभक्ति बजट" के नाम से पेश किया गया. राष्ट्रीय गौरव की बातें करते हुए यह कहा गया कि पूरी दिल्ली में पाँच सौ विशाल राष्ट्रीय ध्वज फहराए जाएँगे.

केजरीवाल सरकार पहले ही दिल्ली के स्कूलों में देशभक्ति पाठ्यक्रम की बात कर चुकी है. उनका कहना है कि "इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य देशभक्त नागरिकों का एक वर्ग बनाना है".

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https://twitter.com/ArvindKejriwal/status/1370361632812109828

क्या यह एक सोच समझी राजनीतिक रणनीति है?

वरिष्ठ वकील और केजरीवाल के साथ जुड़े रहे प्रशांत भूषण कहते हैं कि यह सब बातें एक "पोलिटिकल स्ट्रैटजी" का हिस्सा हैं.

वे कहते हैं, "इनको लगता है कि इससे उन्हें हिंदुओं के वोट मिल सकते हैं. ये बीजेपी को एक तरह से उसी के खेल में पछाड़ने की कोशिश कर रहे हैं. इनको लगता है कि हम अपने आपको एक बड़े राष्ट्रीय विकल्प की तरह पेश कर सकते हैं. यह शायद अरविंद का राजनीतिक आकलन है कि इनको हिंदू वोट बैंक पर मुख्यत: निर्भर करना पड़ेगा क्योंकि इस समय बीजेपी ने ध्रुवीकरण कर दिया है."

वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष कहते हैं कि धर्म और राष्ट्रवाद की बात करना केजरीवाल और उनकी पार्टी की "चुनावी मजबूरी" है. आशुतोष आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता रह चुके हैं और अब उन्होंने पार्टी छोड़ दी है.

वे कहते हैं, "अरविंद केजरीवाल को इस बात का अंदाज़ा है कि दिल्ली में एक बहुत बड़ा तबका है जो बीजेपी को भी वोट करता है और आम आदमी पार्टी को भी वोट करता है. अगर आप संसद का चुनाव देखें तो बीजेपी को 57 फीसदी वोट मिलते हैं और सभी सातों सीटें बीजेपी को चली जाती हैं. लेकिन विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी जीत जाती है. इसका मतलब यह है कि अगर आम आदमी पार्टी को अपने वोट बैंक को संभालकर रखना है तो उसको अपने आपको हिंदू नेता के तौर पर स्थापित करना पड़ेगा."

साथ ही, प्रशांत भूषण यह भी कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल की "कोई ख़ास विचारधारा नही है" और उन्हें लगता है कि "जो चीज़ हमको वोट दिलवाएगी वो हमको करना चाहिए." वह यह भी कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल का थोड़ा-सा वैचारिक झुकाव "सॉफ्ट हिंदुत्व" की तरफ़ हो सकता है.

कई वर्षों तक केजरीवाल के साथ काम कर चुके प्रशांत भूषण कहते हैं, "वह एक शुद्ध राजनीतिक प्राणी हैं. जिधर दिखे कि कुछ करने से ज़्यादा वोट मिल सकते हैं, वो हर काम उसी के हिसाब से करते हैं."

आशुतोष का मानना है की बीजेपी की रणनीति दो चीज़ों पर आधारित है—"एक तो देशभक्ति और दूसरा मामले में धर्म का तड़का".

वे कहते हैं, "यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल लगभग वही भाषा बोल रहे हैं जो भारतीय जनता पार्टी बोलती है. मनीष सिसोदिया कहते हैं कि जय श्रीराम का नारा अगर भारत में नहीं लगेगा, तो क्या पाकिस्तान में लगेगा. अरविंद केजरीवाल विधानसभा में कहते हैं कि तिरंगा अगर भारत में नहीं फहराया जाएगा तो क्या पाकिस्तान में फहराया जाएगा. अगर इसमें से मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल के नाम हटा लिए जाएँ तो कोई भी इन बातों को सुनने के बाद कहेगा कि यह तो बीजीपी या आरएसएस के किसी नेता ने कहा है."

आशुतोष कहते हैं. "यह इनकी चुनावी मजबूरी है. उनको लगता है कि अगर इसमें उन्होने ज़्यादा ढिलाई बरती तो हो सकता है उनका वोट बैंक खिसक जाए."

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क्या इसके पीछे पार्टी के विस्तार की योजना है?

आशुतोष का मानना है कि हर पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर फैलाव तो चाहती है लेकिन आम आदमी पार्टी का धर्म और राष्ट्रवाद की दिशा में जाना राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा विकल्प बनने की कोशिश की दिशा में नहीं है.

वे कहते हैं, "आम आदमी पार्टी ने पिछले दिनों जितने भी चुनाव लड़े हैं,खास तौर पर विधान सभा के,उनमें से एक में भी उनका वोट प्रतिशत एक प्रतिशत से ज़्यादा नही रहा. सिर्फ़ पंजाब और गोवा दो राज्य हैं जहाँ इनको 2015 और 2017 में कामयाबी मिली थी. गोवा में इनको छह प्रतिशत वोट मिले थे और पंजाब में 22 प्रतिशत के आसपास वोट मिला था. राजस्थान में इनको एक प्रतिशत से कम वोट मिले थे. इसी तरह हरियाणा में इनका वोट प्रतिशत कम था. गुजरात में इनका वोट एक प्रतिशत से कम था".

निगाहें योगी के उत्तर प्रदेश पर?

प्रशांत भूषण का यह मानना है कि केजरीवाल की महत्वाकांक्षा भी बढ़ गई है और वह उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी विस्तार करने की सोच रहे हैं. शायद इसीलिए उन्हें लगता है कि राष्ट्रवाद का सहारा लेना पड़ेगा.

वे कहते हैं, "अरविंद चतुर राजनीतिक खिलाड़ी हैं. शायद उन्हें यह लगता होगा कि इससे लाभ मिलेगा. दिल्ली और पंजाब में इसका लाभ नहीं होगा. यह केवल दो राज्य ही हैं जहाँ इनका थोड़ा बहुत आधार था, बाकी तो कहीं है ही नहीं. अब यह लोग यूपी में कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुझे नहीं लगता इससे इन्हें कोई राजनीतिक फ़ायदा होगा."

आशुतोष कहते हैं, "चाहे वो कॉंग्रेस हो या कोई भी विपक्षी पार्टी हो, बीजेपी उन्हें पाक-परस्त या मुसलमान-परस्त पार्टी घोषित कर देती है और इसके माध्यम से हिंदू वोटरों को गोलबंद करती है. यह इनकी बहुत ही सधी हुई और कामयाब रणनीति है. तो जब अरविंद केजरीवाल हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं या ममता बैनर्जी चंडीपाठ करती हैं या राहुल गाँधी एक मंदिर से दूसरे मंदिर जाते हैं तो यह बीजेपी की काट के मकसद से होता है."

मसलन, वे कहते हैं कि केजरीवाल ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव से पहले हनुमान चालीसा का पाठ किया, चुनाव जीतने के फ़ौरन बाद फिर हनुमान जी के मंदिर में दर्शन करने के लिए गए और अब जिस तरीके से पूरी पार्टी जय श्रीराम और तिरंगे के बात करती है तो उससे बीजेपी के आरोप भोथरे पड़ जाते हैं.

आशुतोष कहते हैं, "इससे कितना हिंदू वोटर इनकी तरफ आएगा, वो बहस की बात है लेकिन जो हिंदू वोटर इनको मुस्लिम-परस्त मानकर बैठा हुआ था, वो कम से कम इन से दूर नहीं जाएगा और अगर उसको बीजेपी और आदमी पार्टी के बीच फ़क करना पड़े तो थोड़ा मुश्किल काम होगा."

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता गुलरेज़ शेख कहते हैं कि अगर अरविंद केजरीवाल राष्ट्रवाद की तरफ जाना चाहते हैं, तो वह उनका स्वागत करते हैं. "हम तो कहते हैं की राहुल गाँधी भी राष्ट्रवादी बनें,"

शेख कहते हैं, "बड़ी स्पष्ट बात है की आम आदमी पार्टी जिस समाजवाद की नाव पर तैर रही थी, वो समाजवाद की नाव उसको दिल्ली से बाहर नहीं ले जा पा रही और और दिल्ली में भी लोकसभा में उनकी एक भी सीट नही है. अब यह कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी की पिच पर खेलें, जिस पिच पर 1952 से हम खेल रहे हैं और खेलते आ रहे हैं, भारतीय जनसंघ की स्थापना के समय से, तो फिर अगर किसी व्यक्ति को राष्ट्रवादी दल को ही चुनना होगा, तो क्या वो असली राष्ट्रवादी दल को चुनेगा या फिर वो समाजवाद से राष्ट्रवाद की नाव पर कूदने वेल दल को चुनेगा, यह सोचने का विषय है."

वहीं आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद नारायण दास गुप्ता इस बात का खंडन करते हैं की उनकी पार्टी धर्म और राष्ट्रवाद का सहारा अपनी चुनावी राजनीति के लिए कर रही है.

वह कहते हैं,"पहले भी सभी धर्मों के लोगों को तीर्थ यात्रा करवाई गयी है. यह उन बुज़ुर्ग लोगों के लिए है जो ख़र्च नहीं उठा सकते, या जिनके परिवार ये यात्रा नही करवा पा रहे. यह देखा गया कि एक तीर्थ स्थान कुछ सालों में अयोध्या में भी बन जाएगा तो वहाँ भी यात्रा करवाएँगे."

वह यह भी कहते हैं कि तीर्थ यात्रा सिर्फ़ हिंदू धर्म के लोगों के लिए नहीं करवाई जा रही.

देशभक्ति के इस्तेमाल के आरोप पर गुप्ता कहते हैं की देशभक्ति से मतलब यह है कि लोगों को कहा जाए कि झूठ मत बोलो और ज़िम्मेदारी से काम करो.

वो कहते हैं, "आने वाली जो हमारी पीढ़ी है उसके लिए यह संदेश देना है कि यह देश आज़ाद हुआ तो आज़ादी के दीवानों ने कितना काम किया उस आज़ादी को पाने में."

दिल्ली विधानसभा में लगातार दो बार आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन का हवाला देते वह पूछते हैं कि "केजरीवाल कभी जाति का नाम नहीं लेते. काम की बात करते हैं, दिल्ली की समस्याओं की बात करते हैं."

वो कहते हैं, "आज दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त इलाज मिलता है, तो वो किसी धर्म विशेष के लोगों को नहीं मिलता है. वहाँ जाने पर किसी का धर्म या जाति नहीं पूछी जाती."

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English summary
Why Arvind Kejriwal resorting to Hindutva and Patriotism.
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