कौन थे संत शदाराम साहिब, जिनकी 313वीं जयंती मनाने पाकिस्तान गया है हिंदुओं का जत्था
नई दिल्ली, 5 दिसंबर: हिंदुओं के 133 तीर्थयात्रियों का एक जत्था शनिवार को अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान गया है। यह तीर्थयात्री पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित पवित्र शदाणी दरबार मंदिर में दर्शन के लिए गए हैं, जिसका इतिहास तीन सौ साल से भी पुराना है। तीर्थयात्रियों का यह जत्था संत शदाराम साहिब की 313वीं जयंती पर आयोजित भव्य समारोह में शामिल होने पाकिस्तान गया है। इसके बाद ये तीर्थयात्री पाकिस्तान में स्थित सनातन धर्म से जुड़े विभिन्न मंदिरों की यात्रा करेंगे और 15 दिसंबर को वापस भारत लौटेंगे। 17 दिसंबर को हिंदू तीर्थयात्रियों का एक और जत्था पाकिस्तान जाने वाला है, जो कटास राज मंदिरों की पवित्र यात्रा करेगा।
संत शदाराम साहिब की 313वीं जयंती
भारत से 133 हिंदू तीर्थयात्रियों का एक जत्था शनिवार को अटारी-वाघा बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान में दाखिल हुआ है। यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हयात पिताफी स्थित शदाणी दरबार की पवित्र यात्रा के लिए पहुंचा है, जहां ये श्रद्धालु शिव अवतारी सतगुरु संत शदाराम साहिब की 313वीं जयंती समारोह में शिरकत करेंगे। यह जत्था 15 दिसंबर को वापस स्वदेश लौटेगा। पाकिस्तान यात्रा के दौरान हिंदू तीर्थयात्रियों का यह जत्था पाकिस्तान में मौजूद विभिन्न सनातन मंदिरों में जाकर भी दर्शन करेगा और 14 दिसंबर को लौटते वक्त ननकाना साहिब में जाकर मत्था भी टेकेगा।
शदाणी दरबार क्या है ?
शदाणी दरबार 300 वर्ष से भी पुराना मंदिर है, जो पाकिस्तान में मौजूद हिंदुओं के पवित्र स्थानों में शामिल है और भारत में पाकिस्तान हाई कमीशन के अनुसार यहां दुनियाभर से हिंदू तीर्थ यात्री पहुंचते हैं। शदाणी दरबार की स्थापना 1786 में खुद संत शदाराम साहिब ने की थी। भारत से जो जत्था उनकी जयंती में शामिल होने पाकिस्तान पहुंचा है, उसकी अगुवाई युधिष्ठिर लाल शदाणी कर रहे हैं। इस जत्थे को वाघा बॉर्डर पर पाकिस्तान के विस्थापित ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के उप सचिव सैयद फराज अब्बास, आमिर हाशमी समेत बाकियों ने स्वागत किया। बॉर्डर से सभी तीर्थयात्रियों को पहले से ही तैयार बसों के जरिए हयात पिताफी ले जाया गया।
कौन थे संत शदाराम साहिब ?
शिव अवतारी सतगुरु संत शदाराम साहिब का जन्म 25 अक्टूबर, 1708 में लाहौर (तब भारत का हिस्सा) में हुआ था। प्राचीन सिंध के इतिहास के मुताबिक गुलाम शाह की हुकूमत के दौरान जब आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी, तब संत शदाराम के जन्म होते ही लोगों में उम्मीद की नई किरण पैदा हुई, धार्मिक भावना और शांति कायम हुई और लोगों के दिलों में उनके दैवीय प्रकाश का संचार हुआ। भारत सरकार ने इनके सम्मान में 25 अक्टूबर, 2010 को पांच रुपये का एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया था। (शदाणी दरबार और तीर्थयात्रियों की तस्वीरें सौजन्य: पाकिस्तान हाई कमिशन इंडिया और पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के ट्विटर के सौजन्य से)
बचपन से ही लोगों पर प्रभाव बनाने लगे थे संत शदाराम साहिब
संत शदाराम साहिब के बारे में कहा जाता है कि बचपन से ही उन्होंने लोगों को पापकर्मों से दूर रहने और अच्छे काम करने और गरीबों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया था। महज 20 साल की आयु में ही वह लंबी तीर्थयात्रा पर निकल गए थे और उस दौरान उत्तर भारत के सभी प्रमुख धर्म स्थानों की तो यात्रा की ही, वे नेपाल में काठमांडू स्थित भगवान पशुपतिनाथ महादेव के दर्शन भी कर आए। सिंध को पहले वैसे भी ऋषि-मुनियों की धरती कहा जाता था, जिनमें अपने तपोबल से दैवीय शक्ति प्राप्त होने की मान्यता है। (ऊपर की तस्वीर-ट्विटर वीडियो से)
कटास राज मंदिर की भी यात्रा पर जाएंगे तीर्थयात्री
शदाणी दरबार से हिंदू तीर्थयात्रियों के लौटने के बाद 17 दिसंबर को हिंदू तीर्थयात्रियों का एक और जत्था पाकिस्तान स्थित कटास राज मंदिरों की यात्रा पर निकलेगा। यह जत्था भी अटारी-वाघा बॉर्डर के जरिए ही रवाना होगा। आमतौर पर हर साल दो बार फरवरी में महाशिवरात्रि के दौरान और नवंबर-दिसंबर में तीर्थयात्री कटास राज जाते हैं। लेकिन, पिछले दो बार से कोरोना की वजह से यह यात्रा रुकी हुई थी। केंद्रीय सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष शिव प्रताप बजाज ने कहा है, 'विदेश मंत्रालय ने हमें कटास राज मंदिर जाने की अनुमति दे दी है।' कटास राज मंदिरों को किला कटास भी कहते हैं, जो कि गलियारों के माध्यम से जुड़ा हुआ विभिन्न मंदिरों का एक परिसर है। इस परिसर में कम से कम 1,500 वर्षों का इतिहास मौजूद है। (अंतिम तस्वीर सौजन्य: पाकिस्तान सरकार ट्विटर हैंडल)