UGC ख़त्म हो गया तो क्या होगा?
बीते महीने मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट यानी UGC को ख़त्म करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया.
मंत्रालय ने बीते महीने की 27 तारीख को हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 का मसौदा पेश किया है जो पारित हो गया तो यूजीसी ख़त्म हो जाएगा.
इसका मतलब यूजीसी एक्ट के तहत बने नियामक यूजीसी की जगह प्रस्तावित बिल के हायर ऐजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया का गठन किया जाएगा.
बीते महीने मानव संसाधन मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एक्ट यानी UGC को ख़त्म करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया.
मंत्रालय ने बीते महीने की 27 तारीख को हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 का मसौदा पेश किया है जो पारित हो गया तो यूजीसी ख़त्म हो जाएगा.
इसका मतलब यूजीसी एक्ट के तहत बने नियामक यूजीसी की जगह प्रस्तावित बिल के हायर ऐजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया का गठन किया जाएगा.
मंत्रालय ने 27 जून को कमीशन के प्रस्ताव का मसौदा अपनी वेबसाइट पर जारी किया है और इस पर आम लोगों से राय मांगी है.
इस पर राय देने के लिए पहले 7 जुलाई तक का समय दिया गया था जिसे बाद में बढ़ाकर 20 जुलाई कर दिया गया.
https://twitter.com/PrakashJavdekar/status/1011887747089305600
कांग्रेस ने मसौदे पर राय देने के लिए पहले महज़ दस दिन का समय देने को लेकर सरकार पर हमला बोला था.
कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा ने दस दिन की सीमा को 'मज़ाक' बताया था. बढ़ते विरोध को देखते हुए समय सीमा बढ़ाई गई.
प्रस्तावित मसौदे में सरकार का कहना है कि इससे शिक्षा नियामक की भूमिका कम होगी, देश में उच्च शिक्षा के माहौल को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, सभी के लिए सस्ती शिक्षा के मौक़े पैदा होंगे और शिक्षा संस्थाओं के प्रबंधन के मुद्दों में हस्तक्षेप भी कम होगा.
लेकिन जानकारों का कहना है कि ये विधेयक इन सब बातों के उलट है.
उनका दावा है कि ये शिक्षा का केंद्रीकरण करेगा, उच्च शिक्षा पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाएगा, निजी संस्थानों को ज़्यादा जगह देगा, शैक्षणिक संस्थाओं और छात्रों के बीच दूरी बढ़ाएगा.
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जानकारों की चिंता आज की नहीं?
हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 का मसौदा सामने आने के बाद जानकारों की उच्च शिक्षा से जुड़ी चिंताएं शुरू नहीं हुई. बल्कि इससे पहले नीति बनाने वालों के बयानों से जानकार चिंतित थे.
इस मसौदे ने उनकी चिंताओं को और जैसे बल दे दिया है.
बीते साल जुलाई में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा था कि सरकार को कई प्रोजेक्ट से खुद को बाहर कर लेना चाहिए और इनकी ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र को दे देनी चाहिए. इनमें स्कूल और जेल भी शामिल होने चाहिए.
उनका कहना था कि "सरकार स्कूल, कॉलेज चलाए, ये ज़रूरी नहीं. कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में निजी क्षेत्र हर तरह का अच्छा काम कर सकते है."
बीते साल जून में नीति आयोग वाइस चेयरमैन अरविंद पनगढ़िया ने कहा था, "सरकार एक बड़ा सुधार करने की योजना कर रही है और मूल्यांकन और मान्यता देने का काम निजी संस्था को दे सकती है."
उन्होंने ये भी साफ़ कर दिया था कि सुधार पैकेज लगभग तैयार है और इसके लिए यूजीसी एक्ट को बदला जाएगा, इसके बाद ही संसद इस पर फ़ैसला लेगी.
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नए प्रस्ताव पर क्या कहते हैं जानकार?
1. प्रस्तावित मसौदे के अनुसार अनुदान यानी आर्थिक मामलों में फ़ैसले मंत्रालय करेगा जबकि कमीशन, शिक्षा से जुड़े मामलों पर नज़र रखेगा. कमीशन को शिक्षा संबंधी कार्यक्रम शुरू करने की अनुमति देने संबंधी अधिकार होंगे और कानून का पालन ना किए जाने पर किसी संस्थान को दी गई अनुमति रद्द करने का भी.
जानकार कहते हैं कि अगर नियामक से अनुदान देने संबंधी अधिकार छीन लिए जाएं और इसके फ़ैसले सरकार करने लगे, साथ ही शैक्षिक संस्थानों को शुरू करने, बंद करने, उनमें निवेश करने संबंधी सलाह देने का काम कमीशन करेगा तो इससे देश की उच्च शिक्षा में वैचारिक स्तर पर बदलाव के रास्ते खुल सकते हैं और विवधता खत्म होने का भी डर है. साथ ही उच्च शिक्षा के अकादमिक मानक, फ़ीस और फायदे के मामलों में भी हस्तक्षेप के मौक़े बढ़ सकते हैं.
इससे छात्रों को, ख़ासकर समाज के निचले तबके के छात्रों को हानि पहुंच सकती है और कई शिक्षण संस्थान भी बंद हो सकते हैं.
2. प्रस्तावित बिल में कहा गया है कि छात्रों के हितों की रक्षा के लिए न्यूनतम स्टैंडर्ड ना रख पाने की सूरत में कमीशन शिक्षा संस्थानों को बंद करने का भी प्रस्ताव दे सकता है. साथ ही ये भी कहा गया है कि उच्च शिक्षा के लिए बनाए जाने वाले पाठ्यक्रम में छात्र क्या सीखेंगे वो भी वही तय करेगा.
जानकार कहते हैं कि ऐसा करना उन छात्रों के साथ भेदभाव होगा जो समाज के भिन्न-भिन्न तबको से आते हैं क्योंकि उनके लिए भी वही सीखना बाध्यता हो जाएगी जो अन्य छात्र सीख रहे हैं. और इस कारण कुछ छात्र आसानी से आगे बढ़ेंगे जबकि बाकी पिछड़ सकते हैं.
इसके अलावा कुछ नया प्रयोग करने और आविष्कार की गुंजाइश पर अंकुश लग सकता है.
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3. प्रस्तावित मसौदे की धारा 3.6 के अनुसार कमीशन का चेयरमैन वो बन सकता है जो किसी शिक्षा संस्था में कम से कम दस साल तक प्रोफ़ेसर के पद पर काम कर चुका हो या जाना-माना अकादमिक हो या फिर शिक्षा के क्षेत्र में अकादमिक और प्रशासक के रूप में काम कर चुका हो.
जानकारों का कहना है कि ग़ौर करने की बात ये भी है कि यूजीसी एक्ट की धारा 4.2 में साफ़ तौर पर कहा गया है कि "कमीशन का चेयरमैन केंद्र सरकार या राज्य सरकार के अधिकारी नहीं हो सकते".
साथ ही कुल 12 सदस्यीय आयोग में केंद्र सरकार के दो प्रतिनिधियों की बात की गई है. ऐसा करने के पीछे उद्देश्य ये था कि कमीशन की स्वायत्तता बरकरार रहे.
मौजूदा प्रस्ताव के अनुसार कमीशन के चेयरमैन के चुनाव की प्रक्रिया सर्च एंड सेलेक्शन कमिटी करेगी जिसमें एक कैबिनेट सचिव, उच्च शिक्षा सचिव समेत तीन अन्य अकादमिक व्यक्ति रहेंगे. जानकारों का कहना है कि यूजीसी एक्ट में सरकारी हस्तक्षेप करने के मौकों को पूरी तरह कम किए जाने की बात थी लेकिन प्रस्तावित बिल में ऐसा बिल्कुल नहीं दिखता.
साथ ही हायर ऐजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 के प्रस्तावित मसौदे की धारा 3.6बी में "विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक" को भी चेयरमैन बनाए जाने की बात की गई है जिसका विरोध किया जा रहा है.
4. जानकार ये भी कहते हैं कि प्रस्तावित मसौदे के अनुसार कमीशन में मात्र दो ही शिक्षक होंगे जबकि यूजीसी में कम से कम चार सदस्य शिक्षक होने की बात की गई है.
साथ ही प्रस्ताव की धारा 8.एफ़ में कहा गया है कि कमीशन में एक "डोयन ऑफ़ इंडस्ट्री" यानी शिक्षा के बाज़ार से जुड़े एक वरिष्ठ सदस्य भी शामिल होंगे. जानकारों का कहना है कि इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है कि इसकी परिभाषा क्या होगी और चुनाव किस आधार पर होगा और किन मानदंडों का पालन किया जाएगा.
5. प्रस्तावित मसौदे के अनुसार हायर ऐजुकेशन कमीशन बिल 2018 का उद्देश्य शिक्षा संस्थाओं को अधिक स्वायत्तता देने और भारतीय छात्रों को सस्ती शिक्षा देने के अधिक मौक़े देना है.
उच्च शिक्षा के लिए फ़ीस तय करने संबंधी मानदंड और प्रक्रिया तय कर करना और केंद्र और राज्य सरकार को इसके बारे में सलाह देने का काम कमीशन करेगा.
जानकारों का कहना है कि यूजीसी एक्ट, 1956 में फ़ीस संबंधी नियंत्रण प्रक्रिया और डोनेशन पर रोक लगाने संबंधी विस्तृत जानकारी दी गई है. साथ ही अधिक लेकिन प्रस्तावित बिल में कमीशन की भूमिका को मात्र सलाह देने तक ही सीमित कर दिया है.
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6. प्रस्तावित बिल के अनुसार कमीशन शिक्षा संस्थाओं के अकादमिक प्रदर्शन का लेखा-जोखा सालाना तौर पर ले सकेगा. इसके लिए निश्चित मानदंड बनाए जाने की बात की गई है, जिसकी ज़िम्मेदारी कमीशन की होगी.
जानकारों के अनुसार इसमें सबसे बड़ी समस्या ये भी है कि यूजीसी वेबसाइट के अनुसार के तहत फरवरी 2017 तक 789 विश्वविद्यालय हैं और हज़ारों कॉलेज हैं.
एक साल में सभी के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना आसान नहीं होगा और कम वक्त में सभी का मूल्यांकन निष्पक्षता से हो सके ये संभव नहीं है.
ऐसा करने से कुछ जहां शिक्षा संस्थाओं को फायदा मिल सकता है, कइयों के पिछड़ने का भी ख़तरा है. साथ ही शहरों और गांवों के शिक्षा संस्थाओं के बीच भी फ़ासला बढ़ सकता है.
7. प्रस्तावित बिल की धारा 16 के अनुसार इस नए एक्ट के लागू होने के बाद पहले से कानूनी तौर पर मान्य कोई शिक्षा संस्था छात्रों को डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकता. हर संस्था को पहले कमीशन के मानदंडों के आधार पर इसके लिए ऑथोराइज़ेशन यानी अधिकार लेना होगा.
साथ ही पहले से ही मान्यताप्राप्त डीम्ड यूनिवर्सिटी को नया एक्ट लागू होने पर तीन साल के लिए अधिकार प्राप्त माना जाएगा. जिसके बाद उन्हें ऑथोराइज़ेशन के लिए अपील करनी होगा.
जानकारों का कहना है कि इससे अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है. ख़ास कर उन छात्रों के लिए जिन्होंने तीन साल से अधिक वक्त के पाठ्यक्रम को चुना है.
साथ ही ये भी महत्वपूर्ण है कि प्रस्तावित बिल के अनुसार कमीशन के दिए गए नियमों या सलाह को ना मानने पर या कमीशन के बताए न्यूनतम नियमों उल्लंघन करने पर या फिर निश्चित समय सीमा तक उनका पालन न करने पर शिक्षा संस्था पर पेनल्टी लगाई जा सकती है और उसके डिग्री देने के अधिकार छीना जा सकता है.
जानकारों के अनुसार सत्ताधारी सरकार इस धारा का इस्तेमाल अपनी बात मनवाने के लिए कर सकती है और इसका लाभ असल में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालों को नहीं होगा. साथ ही इससे विरोधी स्वरों के लिए या चर्चा के लिए कोई जगह नहीं बचेगी.
हो रहा है इसका विरोध
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन, आइसा ने इसका विरोध करते हुए एक बयान जारी किया और लिखा, "कुछ यूनिवर्सिटी से राजनीतिक बदला लेने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है."
मैगज़ीन कारवां के कार्यकारी संपादक विनोद जोस लिखते हैं, "शिक्षा के बारे में अब नेता तय करेंगे. यूजीसी को ख़त्म करेंगे, सरकार तय करेगी कि किस विषय पर शोध होगा, कौन करेगा और उसे उसके लिए कितना मिलेगा. पहले ही चीन, जापान, दक्षिण कोरिया की तुलना में सरकार शिक्षा पर कम खर्च करती है और नया मसौदा चिंता और बढ़ा रहा है."
राष्ट्रीय जनता दल से राज्यसभा में पहुंचे मनोज झा का कहना है कि मौजूदा सरकार शिक्षा व्यवस्था को उस दौर में ले जाना चाहती है, जहां उच्च वर्ग के लोग ही शिक्षा ले पाएं.
https://twitter.com/manojkjhadu/status/1014745825925312512
सरकार बनाम विश्वविद्यालय
बीते कुछ साल से सरकार और यूनिवर्सिटी के छात्रों के बीच तनाव की ख़बरें मीडिया में छाई रही हैं. सरकार पर ये आरोप भी लगते रहे हैं कि शिक्षा संस्थानों पर हमले बढ़ रहे हैं.
साल 2016 में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ़्तार किया गया था.
उन पर यूनिवर्सिटी परिसर में संसद हमले के दोषी अफ़जल गुरु की बरसी के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा.
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इस घटना के बाद जेएनयू को मिलने वालेशोध फंड में 2017 में भारी कटौती हुई और एमफ़िल और पीएचडी सीटों की संख्या
इसके बाद 2017 में ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ को अपने 25 शिक्षकों का बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा क्योंकि उन्हें यूजीसी से फंड नहीं मिला. इसके विरोध में भी प्रदर्शन हुए.
हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित शोध छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद मोदी सरकार फिर निशाने पर आई.
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जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने ये शिकायत दर्ज कराई थी कि जेएनयू की प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने कश्मीर और भारतीय सेना पर ग़ैरज़िम्मेदार टिप्पणी की है.
जोधपुर विश्वविद्यालय की अंग्रेज़ी की अध्यापिका राजश्री राणावत को निलंबित कर दिया गया, उन पर आरोप था कि उन्होंने निवेदिता मेनन को एक सेमीनार में आमंत्रित किया था.
इसके कुछ वक्त बाद 2017 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मोहम्मद अली की जिन्ना की तस्वीर पर बीजेपी सांसद ने नाराज़गी ज़ाहिर की.
जिन्ना की तस्वीर हटवाने की मांग लेकर हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता कैंपस में पहुँचे, जिसके बाद वहाँ बवाल मच गया. ये तस्वीर 1938 से वहां लगी हुई थी.
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में फीस में बढ़ोत्तरी का विरोध कर रहे छात्रों पर राष्ट्रद्रोह की आपराधिक धाराएँ लगाई गई. हालांकि इन्हें बाद में हटा लिया गया.
दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज प्रसंग में भी छात्रों और शिक्षकों पर राष्ट्र विरोधी नारे लगाने का आरोप लगाया गया. यहां कॉलेज में दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधारा वाले छात्र गुटों के बीच हुई झड़प हुई थी.
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नए बिल पर मानव संसाधान मंत्रालय की सफ़ाई
हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ़ इंडिया बिल 2018 के मसौदे को लेकर कई लोगों के विरोध जताने के बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है.
बयान में सफाई देते हुए मंत्रालय ने कहा है कि संस्थाओं को आर्थिक मदद देने में मंत्रालय की भूमिका बढ़ाने की बात की जा रही है.
नियामक और आर्थिक मदद देने वाली संस्था के अलग-अलग होने के बारे में पहले भी कई एक्सपर्ट कमिटी में कहा गया है और ये गवर्नेंस के लिहाज़ से बेहतर भी है.
बयान में कहा गया है कि सरकार चाहती है की आर्थिक मदद देने की प्रक्रिया को योग्यता के आधार पर, ऑनलाइन और पारदर्शी तरीके से चलाया जाना चाहिए जिसमें मानवीय हस्तक्षेप की कम गुंजाइश हो.
इस तरह के आईटी सिस्टम इंप्रिंट और रूसा (राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान) पहले ही काम कर रहे हैं और इनका इस्तेमाल संभाल यूजीसी की स्कीमों के लिए किया जा सकता है.
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