क्या है अफगान जेल में बंद भारतीय महिला और उसकी बेटी का मामला ? SC ने केंद्र से कहा-8 हफ्तों में फैसला लें
नई दिल्ली, 3 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से अफगानिस्तान के पुल-ए-चरखी जेल में बंद एक महिला और उसकी नाबालिग बेटी को प्रत्यर्पण के लिए 8 हफ्तों के अंदर फैसला लेने को कहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में केरल के एक शक्स ने याचिका डाली है कि उसकी बेटी और नाबालिग नातिन वहां बंद हैं और उसे भारत लाने की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन वह कोई कदम नहीं उठा रही है। शख्स ने इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। इसी पर सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने केंद्र सरकार से याचिकाकर्ता की याचिका पर फैसला लेने का निर्देश दिया है।

8 हफ्तों के भीतर फैसला ले केंद्र- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की अदालत ने केंद्र सरकार को केरल के वीजे सेबेस्टियन फ्रांसिस की याचिका पर आठ हफ्तों के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया है। केरल के एर्नाकुलम में रहने वाले फ्रांसिस ने अपनी याचिका में कहा है कि उसकी बेटी और दूसरों के खिलाफ भारत में नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने अनलॉफुल एक्टीविटीज (प्रिवेंशन) ऐक्ट (यूएपीए) के तहत केस दर्ज किया हुआ है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि आरोपों के मुताबिक उसके दामाद, बेटी और बाकी आरोपियों ने एशियाई देशों के खिलाफ युद्ध छेड़कर आतंकी संगठन आईएसआईएस को प्रचारित करने की साजिश रची थी। फ्रांसिस का दावा है कि अफगानिस्तान पहुंचने के बाद उसका दामाद तो लड़ाई में शामिल हुआ और मारा गया, लेकिन बेटी और उनकी नातिन सक्रिय तौर पर युद्ध में शामिल नहीं हुए थे और 15 नवंबर, 2019 को अफगानिस्तानी सेना के सामने बाकी और महिलाओं के साथ सरेंडर कर दिया था।

'केंद्र के फैसले से संतुष्ट नहीं होने पर केरल हाई कोर्ट जाएं'
अदालत में फ्रांसिस के वकील की ओर से कहा गया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद जेलों को ध्वस्त कर दिया गया था, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि फ्रांसिस की बेटी और नातिन कैद में नहीं है, क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक कैदी अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में रखे गए हैं। हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि इसपर फैसला सरकार को लेना है। अदालत ने कहा है, 'हम सरकार को फैसला लेने का निर्देश दे सकते हैं और अगर आप संतुष्ट नहीं हों तो आप केरल हाई कोर्ट में जा सकते हैं.....संवैधानिकता पर हाई कोर्ट में भी सुनवाई होती है और वह अंतरराष्ट्रीय कानून की व्याख्या कर सकता है। हम हाई कोर्ट के स्टैटस को कम नहीं कर सकते।'

भारत आना चाहती थी बेटी- याचिकाकर्ता
फ्रांसिस की याचिका में केस के बारे में बताया गया है कि उसकी बेटी और नातिन अफगानिस्तान के इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए 30 जुलाई, 2016 को भारत से निकल गई। फिर 22 मार्च, 2017 को इंटरपोल ने उसकी बेटी के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। उसने कहा है कि एक न्यूज पोर्टल ने उसकी बेटी से इंटरव्यू में पूछा तो उसने आईएसआईएस में शामिल होने के फैसले पर पछतावा किया और भारत लौटकर यहां की अदालत में मुकदमे का सामना करने की इच्छा जताई थी। फ्रांसिस का दावा है कि भारत ने 2016 में अफगानिस्तान के साथ प्रत्यर्पण संधि किया, लेकिन उसकी बेटी और नातिन के प्रत्यर्पण की उसकी गुजारिश पर कोई कदम नहीं उठाया।

याचिकाकर्ता को बेटी को फांसी दिए जाने का डर
याचिका के अनुसार, 'अफगानिस्तान में आईएसआईएस की हार के बाद....ऐसा अनुमान है कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान और अफगानिस्तान के इस्लामिक रिपब्लिक में युद्ध छिड़ सकता है, जिसमें उसकी बेटी जैसी विदेशी आतंकवादियों को फांसी पर लटका दिया जाएगा।' याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रत्यर्पण के लिए कदम नहीं उठाने का केंद्र का कदम गैरकानूनी और असंवैधानिक है और यह संविधान के आर्टिकल 14,19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसमें उसने अपनी बेटी को राजनयिक सुरक्षा दिलाने या काउंसलर सहायता दिए जाने की भी मांग की है। इस मामले में अदालत ने याचिकाकर्ता को छूट दी है कि 8 हफ्तों में केंद्र की ओर से इस संबंध में लिए गए फैसले से अगर वह संतुष्ट नहीं है तो केरल हाई कोर्ट के सामने अपनी बात रख सकता है। (महिला की तस्वीरें प्रतीकात्मक)