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Bone death क्या है ? कोरोना से ठीक हुए मरीजों का बैठना भी हो जाता है मुश्किल

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नई दिल्ली, 6 जुलाई: धरती पर कोरोना के कहर के डेढ़ साल से ज्यादा गुजर चुके हैं, लेकिन इस महामारी के दायरे का पता नहीं चल पाया है। अब कोरोना से ठीक हुए मरीजों को एक नई बीमारी हो रही है, जिसमें हड्डियां गलने लगती हैं। मेडिकल की भाषा में इसे एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) या बोन डेथ कहते हैं। यह बहुत ही पीड़ादायक रोग है, जिसमें इंसान का चलना-फिरना तक मुहाल हो जाता है। इतना ही नहीं, समय पर बीमारी का पता नहीं चला तो फिर इस रोग से उबर पाना भी नाममुकिन है।

बोन डेथ के बारे में पता कैसे चला ?

बोन डेथ के बारे में पता कैसे चला ?

बोन डेथ एक ऐसी बीमारी के रूप में उभरी है, जो पोस्ट-कोविड रोगों की लिस्ट में शामिल हो चुकी है। मूल रूप से इसमें कोरोना से ठीक हुए मरीजों के कूल्हे का जोड़ और जांघ की हड्डियां प्रभावित होती हैं। इसमें बहुत ही असहनीय दर्द महसूस होता है। कोरोना रोगियों में इस समस्या का पता तब चला जब डॉक्टर मनीष खोब्रागड़े नाम के एक कोविड मरीज खुद उससे रिकवर हुए। उन्हें अचानक कूल्हे के जोड़ों में दर्द शुरू हुआ। शुरुआत में उन्होंने भी उसे सामान्य जोड़ों का दर्द समझा। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक , जब आराम नहीं मिला तो उन्होंने ऑर्थोपेडिक सर्जन से संपर्क किया और उनकी सलाह पर एक्सरे करवाया। उसमें भी कुछ पता नहीं चला और पेन किलर और मसल रिलैक्सर खाते हुए करीब डेढ़ महीने गुजर गए, लेकिन तकलीफ बढ़ती चली गई।

बोन डेथ (एवीएन) में क्या होता है ?

बोन डेथ (एवीएन) में क्या होता है ?

परेशान डॉक्टर मनीष को लगा कि उनका दर्द मामूली नहीं है और कुछ न कुछ तो गड़बड़ जरूर है। तब उन्होंने एमआरआई करवाया और तब बोन डेथ का पता चला। लेकिन, तबतक देर हो चुकी थी और उनके लिए ज्यादा देर तक खड़ा रहना भी मुश्किल होने लगा था। चलना और बैठना को असहज हो ही गया था। तब वे मुंबई के हिंदुजा अस्पताल के ऑर्थोपेडिक्स और ट्रॉमैटोलॉजी के हेड डॉक्टर संजय अग्रवाल से मिले। करीब 6 महीने के इलाज के बाद वो चलने-फिरने के काबिल हुए। सीढ़ियां चलने लगे। लेकिन, उनका इलाज अभी भी खत्म नहीं हुआ है। अभी कम से कम दो से तीन वर्ष और लगेंगे।

बोन डेथ क्या है ?

बोन डेथ क्या है ?

बोन डेथ ऐसी बीमारी है, जिसमें हड्डियों में खून की सप्लाई बाधित होने लगती है। जैसे-जैसे यह होना शुरू होता है, हड्डियां गलनी शुरू हो जाती हैं। हालांकि, हड्डियों के आसपास और भी चीजें होती हैं, इसलिए यह जरूर नहीं कि अचानक से वह चूर-चूर हो जाए, लेकिन दर्द होना शुरू हो जाता है और काफी पीड़ादायक स्थिति बन जाती है। हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि हड्डियों में होने वाले हर दर्द को बोन डेथ नहीं समझ लेना चाहिए और यह दूसरी वजहों से भी हो सकता है। डॉक्टर का कहना है, 'हम जानते हैं कि यह कूल्हे में हो सकता है। जब आपको कूल्हे में दर्द होता है और यदि चलने में तकलीफ है (कोरोना से ठीक हुए मरीजों को), तो संबंधित व्यक्ति को ऑर्थोपेडिक सर्जन की सलाह लेनी चाहिए।' डॉक्टरों का यह भी कहना है कि कोरोना के इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दिया गया है, उन्हें यह समस्या होने की आशंका ज्यादा होती है।

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बोन डेथ का क्या इलाज है ?

बोन डेथ का क्या इलाज है ?

डॉक्टरों का कहना है कि बोन डेथ का पता लगाने का सबसे बेहतर उपाय एमआरआई है। सिर्फ एक्सरे इसके लिए नाकाफी हो सकता है। जितनी जल्दी इसका पता चल जाए, इलाज में उतनी ही आसानी होती है। बड़ी बात ये है कि बोन डेथ के पहले तीन मरीज डॉक्टर ही मिले हैं, जिन्होंने बहुत जल्द कुछ असमान्य लक्षण को महसूस कर लिया। जल्द एमआरआई कराने से इसमें तत्काल लाभ मिलने की संभावना रहती है। लेकिन, यदि इलाज में देर हुई और बाद में बीमारी का पता चला, तो इसे कंट्रोल करना मुमकिन नहीं है। हालांकि, पूर्ण इलाज में करीब तीन साल लग जाते हैं, लेकिन समय पर उपचार शुरू होने से तीन से छह हफ्तों में दर्द से राहत मिलने लगती है।

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English summary
Patients taking steroids during the treatment of Covid have the problem of bone death, the circulation of blood in the bones stops
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