लद्दाख में भारतीय सेना के एक्शन पर चीन के स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट क्या सोचते हैं, जानिए
नई दिल्ली- पैंगोंग झील इलाके में पिछले हफ्ते भारतीय सेना का जो एक्शन हुआ, उसका बुखार अभी तक चाइनीज एक्सपर्ट के दिमाग से नहीं उतरा है। पहले तो उन्हें विश्वास ही नहीं हो पाया0 कि उनके पीएलए के जवानों की सारी चालबाजी इसबार धरी की धरी रह गई और उन्हें भारतीय जाबांजों का दम देखकर बैरंग पीछे लौट जाना पड़ा है। वैसे तो चीन में किसी भी मिलिट्री या स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट को अपना निष्पक्ष विचार रखने की भी इजाजत नहीं है। लेकिन, फिर भी उनके दिमागों में उस घटना के बाद की परिस्थितियों को लेकर अलग-अलग तरह से मंथन चल रहा है। फिर भी वो जितना कर सकते हैं, अपने-अपने विचार चीन के नजरिए से उपलब्ध माध्यमों के जरिए साझा कर रहे हैं।
पैंगोंग झील की घटना पर मंथन में लगे हैं चाइनीज स्ट्रैटजिक एक्सपर्ट
पूर्वी लद्दाख के पैंगोग झील के दक्षिणी किनारे 29-30 अगस्त को वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास पीएलए की आक्रमकता को रोकने के लिए भारत के जवानों ने जो फुर्ती दिखाई, चीन के रणनीतिक जानकार अब उसका विश्लेषण कर रहे हैं। उनके बीच चर्चा का मुख्य विषय यही बना हुआ है कि इस कार्रवाई से किसी भी स्तर पर बातचीत के लिए भारत ने अपनी स्थिति अब काफी बेहतर कर ली है। चाइनीज मीडिया में बीजिंग के त्सिंघुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रैटजी इंस्टीट्यूट में रिसर्च डिपार्टमेंट के डायरेक्टर क्वियान फेंग के हवाले से बताया गया है कि भारत बातचीत की स्थिति से नाखुश था, क्योंकि उसे लगता था कि चीन उसकी बातें सुनने को तैयार नहीं है। इसीलिए उसने अगले राउंड की बातचीत के लिए नया मोर्चा खोल दिया है।
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भारत के रुख से हैरान हैं चाइनीज एक्सपर्ट
चीन के रक्षा विशेषज्ञ इन खबरों से भी चिंतित नजर आ रहे हैं कि भारत ने अपने जंगी जहाजों को दक्षिण चीन सागर में भी भेज दिया है। ग्लोबल टाइम्स के चाइनीज वर्जन हुआनक्विशिबाओ को चीन के एक मिलिट्री एक्सपर्ट ली जीए ने तर्क दिया है कि इसके जरिए भारत यह सख्त संदेश देना चाहता है कि अगर जमीनी सीमा पर हालात बेकाबू हुए तो जवाब में वह समंदर में चीन के तेल और गैस के जहाजों को निशाना बना सकता है। उन्हें कोट करते हुए लिखा गया है कि, 'इसीलिए चीन सरकार को समंदर में गड़बड़ी से निपटने के लिए पुख्ता जवाबी तैयारियां करनी चाहिए।' वहीं चीनी विशेषज्ञ दूसरी दलील ये दे रहे हैं कि भारत अमेरिका के इशारे पर कार्य कर रहा है। इसलिए वो अमेरिका में नवंबर में होने वाले चुनाव से पहले चीन और अमेरिका में लड़ाई की चेतावनी भी दे रहे हैं। उनका कहना है कि एलएसी पर भारत ने अपना स्टैंड जिस तरह से सख्त किया है, उससे लगता है कि उसके पीछे अमेरिका है।
भारतीय जवानों के पराक्रम से हिल चुका है चीन
जबकि, फुदान यूनिवर्सिटी के दक्षिण एशिया मामलों के एक्सपर्ट लिन मिनवैंग का मानना है कि भारत के सख्त तेवरों का मतलब है कि उसे अमेरिका का राजनीतिक समर्थन हासिल है। खासकर कोरोना-महामारी के दौरान भारत का हर स्तर पर जिस तरह से अमेरिका के साथ संपर्क बढ़ा है उससे उत्साहित होकर वह वैश्विक स्तर पर एंटी-चाइना फ्रंट को लीड करने लगा है। अब तो अमेरिका के कई दूसरे सहयोगियों से भी ज्यादा चीन-विरोधी हो चुका है, 'भारत सरकार की विदेश नीति से अब पूरी तरह से साफ है कि भारत ने शक्ति की प्रतियोगिता में अमेरिका के साथ रहने का फैसला कर लिया है। ' चीन में एक तीसरी दलील यह भी दी जा रही है कि भारत कोरोना के हालात और बिगड़ती अर्थव्यवस्था से जनता का ध्यान भटकाने के लिए चीन को 'एक काल्पनिक दुश्मन' की तरह पेश कर हवा बनाने की कोशिश कर रहा है। कुछ मजेदार दलीलें ये भी दी जा रही हैं कि "पीछे हटने से पहले यह भारत की आखिरी लड़ाई है।'
चीन को अक्साई चीन गंवाने का डर सता रहा है
चीन की जनता तक यह बात अच्छे से पहुंच चुकी है कि पैंगोंग झील के दक्षिण किनारे की चोटियों पर यथास्थिति बदलने की चीनी सेना की कोशिश को भारतीय सेना ने न सिर्फ ताकत से रोक दिया है, बल्कि वहां के सभी महत्वपूर्ण चोटियों पर पोजिशन ले लिया है। ऊपर से चीन में इस बात को लेकर आग भड़क रही है कि भारत ने इस काम के लिए उन जवानों को लगाया जो हाथ में तिब्बती 'स्नो माउंटेन लायन फ्लैग' लिए हुए थे और जिन्होंने पीएलए को उसके मंसूबों में बुरी तरह नाकाम कर दिया। चाइनीज सोशल मीडिया पर इस तरह का वीडियो खूब वायरल हो रहा है और वहां बदले की कार्रवाई के लिए छटपटाहट मची हुई है। चीन के हार्डलाइनरों का तर्क है कि अगर चीन ने भारत से बदला नहीं लिया तो वह पूरा अक्साई चीन वापस लेने की कोशिश करेगा। इतना ही नहीं इसके बाद अमेरिका, जापान, वियतनाम, फिलीपींस और दूसरे देश भी चीन पर दबाव बढ़ाने लगेंगे। चीन के साम्यवादी विचारों से जुड़े एक चाइनीज इंटरनेट फोरम ने यूटोपिया में लिखे लेख में कहा है कि भारत से बदला लेना इसीलिए भी जरूरी है, ताकि दुनिया में चीन के महाशक्ति होने की धाक जमी रहे।
शी जिनपिंग को मिल रही है हालात नियंत्रित रखने की सलाह
हालांकि, चीन में सारे एक्सपर्ट एक ही दिशा में नहीं सोच रहे हैं। कुछ का कहना है कि चीन को भारत के साथ संघर्ष में अपना ज्यादा संसाधन नहीं लगाना चाहिए। वह भारत के साथ किसी बड़े संघर्ष की तैयारी करके रखे, लेकिन यह ना भूले कि उसका मुख्य दुश्मन अमेरिका है। भारत से उलझने पर सबसे ज्यादा खुशी तो अमेरिका को ही होगा। इसीलिए चीन को मौजूदा हालात को हर स्थिति में नियंत्रण में रखना चाहिए, 'बिना अपना इलाका गंवाए हुए।' माओफ्लैग.नेट लिखता है 'अक्साई चीन जैसे सामरिक महत्त्व के इलाके पर चीन का पहले से ही कब्जा है, इसीलिए फिलहाल के लिए और ज्यादा इलाके पर कब्जे की आवश्यकता नहीं है। इसीलिए जितना संभव है, हालात पर नियंत्रण बनाए रखना ही जरूरी है।'
भारत का दम देखकर असमंजस में चाइनीज थिंक टैंक
यही नहीं चीन के एक्सपर्ट सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना को भारत के खिलाफ कुछ बड़ी रणनीति बनाकर काम करने की भी सलाह भी दे रहे हैं। जिसमें चौतरफा (राजनीतिक-आर्थिक और सैन्य) हमले शामिल हैं। पहला ये कि यह सुनिश्चित करें कि भारत चीन को पाकिस्तान के बदले अपना मुख्य रणनीतिक विरोधी ना मानने लगे। दूसरा, अगर ऐसा हो भी जाता है तो यह कोशिश होनी चाहिए कि वह अपनी शक्ति का चीन के खिलाफ इस्तेमाल कर ही ना सके। यह इस तरीके से कि उसके सारे संसाधन कश्मीर जैसे इलाकों में सुरक्षा की स्थिति संभालने में लग जाएं, जिसके बाद उसे बातचीत की मेज पर बुलाया जाए। तीसरा, यह सुनिश्चित हो कि भारत और अमेरिका खुलकर एक-दूसरे के साथ ना आ जाएं, क्योंकि इससे चीन की हिंद महासागर और दक्षिण पश्चिम में बहुत बड़ी रणनीतिक हार होगी।
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