जम्मू और कश्मीर में बीजेपी को हराने के लिए बनी पीपल्स अलायंस के सामने क्या हैं चुनौतियाँ?
जम्मू और कश्मीर में स्थानीय निकाय चुनाव हो रहे हैं. इसमें बीजेपी के सामने मुख्यधारा की सभी पार्टियाँ एकजुट होकर चुनाव लड़ रही हैं. उनके सामने बीजेपी के साथ-साथ और कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं?
जम्मू और कश्मीर में 28 नवंबर से स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं. ज़िला विकास परिषद (डीडीसी) के इस चुनाव में बीजेपी और जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) को छोड़कर मुख्यधारा की सभी राजनीतिक पार्टियों ने हाथ मिलाया है.
अनुच्छेद 370 के निरस्त किए जाने के बाद, डीडीसी चुनाव जम्मू और कश्मीर में आयोजित सबसे बड़ी राजनीतिक गतिविधि होगी.
जिन राजनीतिक दलों ने इन चुनावों के लिए हाथ मिलाए हैं उन्होंने 'गुपकर घोषणापत्र' पर हस्ताक्षर किए थे.
अपने गठन के बाद से ही पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) पिछले पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के केंद्र सरकार के फ़ैसले का विरोध कर रहा है.
अल्ताफ़ बुख़ारी की जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) गुपकर घोषणा का हिस्सा नहीं है. बुख़ारी को दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का क़रीबी माना जाता है.
जम्मू और कश्मीर से राज्य का दर्जा छीनकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद यहां पहली बार डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनाव होने जा रहे हैं. ये चुनाव 28 नवंबर से 22 दिसंबर तक आठ चरणों में होंगे. जम्मू और कश्मीर चुनाव आयुक्त केके शर्मा ने बीते चार नवंबर को इसकी घोषणा की थी.
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पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर घोषणा क्या है?
पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) सात पार्टियों नेशनल कॉन्फ़्रेंस (एनसी), पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी), कांग्रेस, पीपल्स कॉन्फ़्रेंस, सीपीआई, सीपीआईएम, अवामी नेशनल कॉन्फ़्रेंस और जम्मू और कश्मीर पीपल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) का समूह है.
इसी वर्ष चार अगस्त को इन पार्टियों ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर अनुच्छेद 370 और 35-ए को निरस्त करने के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ाई करने की घोषणा की थी.
बीते वर्ष पाँच अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करते हुए राज्य को मिले विशेष दर्जे को समाप्त कर दिया था.
अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद यहां के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के सैकड़ों लोगों और कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया था.
इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी विभाजित करते हुए लद्दाख को इससे अलग कर दिया गया था.
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जम्मू और कश्मीर विधानसभा भंग
जून 2018 तक जम्मू और कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार थी. लेकिन दोनों दलों के बीच मतभेद के बाद बीजेपी ने गठबंधन की सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.
इसके साथ ही महबूबा मुफ़्ती की सरकार गिर गई और दोनों पार्टियों के गठबंधन का अंत हुआ.
उसके बाद से अब तक प्रदेश में विधानसभा के लिए कोई चुनाव नहीं हुए हैं.
2015 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने 28 सीटें जीतीं जबकि बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं.
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डीडीसी चुनाव क्या है?
जम्मू और कश्मीर में पहली बार डीडीसी चुनाव हो रहे हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने से पहले जम्मू और कश्मीर में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली (ग्राम स्तरीय, ब्लॉक स्तरीय, ज़िला स्तरीय) नहीं थी.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बीते महीने जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 में संशोधन के लिए अपनी सहमति दे दी थी.
अब इन चुनाव के ज़रिए जम्मू क्षेत्र के 10 और कश्मीर घाटी के 10 समेत कुल 20 ज़िलों में डीडीसी का गठन किया जाएगा.
केंद्र शासित प्रदेश के प्रत्येक ज़िले में 14 निर्वाचन क्षेत्र होंगे. इस प्रकार समूचे जम्मू और कश्मीर में कुल 280 निर्वाचन क्षेत्र के लिए इन चुनावों के माध्यम से लोग डीडीसी के प्रतिनिधियों का चयन करेंगे.
पीडीपी, एनसी ने किया था नगरनिगम, पंचायत चुनाव का बहिष्कार
यह बताना ज़रूरी है कि पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी ने 2018 में नगर निगम और पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया था.
तब दोनों दलों, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रैटिक पार्टी, ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुच्छेद 35-ए की सुरक्षा को लेकर आश्वासन माँगा था.
गुपकर अलायंस की डीडीसी चुनाव में भागीदारी
गुपकर के हस्ताक्षरकर्ताओं का कहना है कि डीडीसी चुनाव में एकजुट होकर भाग लेना अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए संघर्ष करने के लिए ज़रूरी है, साथ ही यह सांप्रदायिक ताक़तों से इस क्षेत्र को अलग रखने के लिए भी आवश्यक है.
पीएजीडी के प्रवक्ता सज्जाद ग़नी ने बीते दिनों एक प्रेस वार्ता में यह कहा था कि "हम डीडीसी का चुनाव लड़ेंगे."
लोन ने कहा, "पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन ने सिविल सोसाइटी के सदस्यों, राजनीतिक दलों और विभिन्न समुदायों जिनमें गुज्जर, बकरवालों, एससी/एसटी और दलितों से मुलाक़ातें की हैं. उन सभी को कई बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इसके अलावा जो एकसमान धागा हमें बांधता है वो ये है कि हम सभी दुखी हैं. हम पाँच अगस्त के फ़ैसले से आहत हैं. हमनें आगामी डीडीसी चुनाव में एकजुट होकर लड़ने का फ़ैसला किया है."
पीएजीडी के घटक दलों ने हाल ही में जम्मू का दौरा किया था जहां उनके नेताओं के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुए.
महबूबा मुफ़्ती का बदलता राजनीतिक रुख़
हाल ही में, जब पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती को लगभग चौदह महीने बाद नज़रबंदी से रिहा किया गया तो उन्होंने कहा था कि "जब तक संविधान में किए गए बदलावों को बहाल नहीं किया जाता, तब तक मैं तिरंगा नहीं पकड़ूंगी."
लेकिन एक हफ़्ते बाद ही जम्मू की अपनी पहली यात्रा में उन्होंने यू टर्न लेते हुए कहा कि "तिरंगे और राज्य के झंडे को एक साथ रखूँगी."
बीजेपी के नेताओं के साथ ही अन्य राजनीतिक दलों ने तिरंगे वाले बयान पर मुफ़्ती की बहुत खिंचाई की थी.
जब बीबीसी ने महबूबा मुफ़्ती के झंडे के बयान पर यूटर्न लेने को लेकर पीडीपी से पूछा तो उसके प्रवक्ता ताहिर सईद का कहना था, "उन्होंने अपना बयान नहीं बदला. उन्होंने ठीक यही बात जम्मू में भी कही. लेकिन मीडिया ने उसे तोड़ मरोड़ कर पेश किया. बीजेपी बिहार में चुनाव लड़ रही थी तो उनके नियंत्रण वाली मीडिया ने उनके बयान को ख़राब तरीक़े से पेश किया. उन्होंने जम्मू में अपने पहले की कही हुई बात की व्याख्या की."
जम्मू-कश्मीर बीजेपी ने तिरंगे पर टिप्पणी को लेकर महबूबा मुफ़्ती की गिरफ़्तारी की माँग की थी.
परिसीमन के बाद विधानसभा चुनाव
बीजेपी ने कहा है कि परिसीमन प्रक्रिया को अंतिम रूप दिए जाने के बाद ही विधानसभा चुनाव आयोजित किए जाएंगे.
जब यह पूछा गया कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव कराने को लेकर बीजेपी की दिलचस्पी क्यों नहीं है तो गुप्ता ने कहा, एक बार परिसीमन प्रक्रिया पूरी हो गई तो विधानभा चुनाव होंगे.
इस साल मार्च में क़ानून मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड में परिसीमन आयोग को अधिसूचित किया है.
परिसीमन अभ्यास क्या है?
परिसीमन लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं को फिर से रेखांकित करने का काम करता है. यह वहां की जनसंख्या में बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है और इसे अंतिम जनगणना के आधार पर किया जाता है. आख़िरी बार जम्मू-कश्मीर में 1995 में परिसीमन किया गया था.
जम्मू कश्मीर में परिसीमन की माँग पहली बार बीजेपी ने 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद के दौरान उठाई थी.
कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों ने परिसीमन का विरोध किया है. इस वर्ष मई में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि उसके तीन सांसद कश्मीर से हैं, जिन्हें आयोग में सहयोग सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है, वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह पाँच अगस्त 2019 की घटना को स्वीकार करने जैसा होगा.
87 सदस्यीय विधानसभा में कश्मीर की 46 सीटें हैं जबकि जम्मू क्षेत्र के हिस्से में 37 सीटें हैं.
इसके साथ ही जम्मू कश्मीर की कुल सीटों में से 24 सीटें हमेशा ख़ाली रहती हैं, क्योंकि वे पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को आवंटित हैं.
बीजेपी एकमात्र मुद्दा नहीं
ताहिर सईद कहते हैं कि जिन राजनीतिक दलों ने हाथ मिलाए हैं वो केवल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने को लेकर चिंतित नहीं हैं बल्कि उनका कहना है कि पीएजीडी एक बड़े उद्देश्य के लिए साथ लड़ रहा है.
कांग्रेस पीएजीडी में शामिल हुई
अटकलों के बाद, जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) ने भी यह घोषणा कर दी कि वो डीडीसी के चुनाव पीएडीजी के साथ मिलकर लड़ेगी.
यह घोषणा राज्य कांग्रेस के प्रमुख ग़ुलाम अहमद मीर ने की.
कांग्रेस बीते महीने श्रीनगर में आयोजित पीएजीडी की एक महत्वपूर्ण बैठक में नहीं शामिल हुई थी.
पीएजीडी सीटों के बंटवारे के आधार पर डीडीसी चुनाव लड़ रही है. इस समूह का नेतृत्व डॉक्टर फ़ारूक़ अब्दुल्लाह कर रहे हैं.
पीएजीडी और बीजेपी दोनों के लिए चुनौतियाँ
कश्मीर के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पीएजीडी के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ मौजूद हैं.
कश्मीर यूनिवर्सिटी के राजनीतिक विज्ञान विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफ़ेसर नूर अहमद बाबा ने कहा, "जहां तक इन चुनावों का सवाल है, यह सच है कि गुपकर अलायंस के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ मौजूद हैं. पहली चुनौती स्थानीय चुनाव में उनके किरदार की है जो उनके अपनी अपनी दख़ल के आधार पर थी और वे अपने आधार को मज़बूत कर रहे थे. लेकिन पाँच अगस्त 2019 को उनकी राजनीति ख़त्म हो गई और उन्हें जेल में भर दिया गया. मुझे लगता है कि ऐसी परिस्थितियों में उन्हें चुनावी राजनीति में नहीं उतरना चाहिए था."
वे कहते हैं, "अगर वे चुनावी राजनीति में उतरते हैं तो यह 370 के हटाए जाने को मान्यता देने जैसा होगा. और अब, वे यह कहकर कि 370 की बहाली के लिए लड़ेंगे, फिर से वही राजनीति कर रहे हैं. बीजेपी उनके लिए एक और चुनौती है जो कश्मीर में अपने पांव मज़बूत करना चाहती है."
नूर अहमद कहते हैं कि गठबंधन के सामने जीत की बड़ी चुनौती है. वे कहते हैं, "बड़ी चुनौती यह है कि यह गठबंधन कैसे जीतेगा? ये भी देखना होगा कि क्या यह गठबंधन अपने एजेंडे और विचारों को लोगों तक पहुँचा पाता है.?"
वे कहते हैं, "अगर पीएजीडी अपना संदेश जम्मू-कश्मीर की अवाम तक पहुँचाने में कामयाब रहा तो निश्चित रूप से यह बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा करेगा."
फ़िलहाल, बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी कर दी है जबकि पीएजीडी ने भी दूसरे चरण के प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर दी है.
पीएजीडी इन चुनावों में इससे जुड़ी पार्टियों के झंडों पर ही चुनाव लड़ेगी.