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नज़रिया: अमित शाह की स्क्रिप्ट को अंजाम तक क्यों नहीं पहुँचा पाए मोदी

मोदी ने मीडिया से एक दूरी बना रखी है, उन्होंने अपने कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है. ऐसा लगता है कि सवालों का सामना करने में उन्हें मुश्किल होती है. ख़ास बात ये भी है कि संसद के अंदर भी मोदी किसी चुनौती से बचते रहे हैं.

विपक्ष की आलोचना करते हुए वे व्यक्तिगत हमले करने लगते हैं और उसका स्तर भी गिराते हैं. वे अपनी सामान्य पृष्ठभूमि की बात भी इतनी बार दोहरा चुके हैं कि अब वो घिसा हुआ लगने लगा है. 

By BBC News हिन्दी
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंजा हुआ वक्ता माना जाता है, लेकिन शुक्रवार को अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए वे फीके नज़र आए, उन्होंने एक लंबा भाषण देखकर पढ़ा, जिसमें कोई अहम बात भी शामिल नहीं थीं, एक तरह से उनका भाषण बोरिंग रहा.

नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में अतीत में यही अंतर रहा है, मोदी अपने नाटकीय शानदार भाषणों के लिए जाने जाते रहे हैं जबकि राहुल गांधी लिखे हुए भाषण को पढ़ते दिखते थे, लेकिन इस बार हालात एकदम अलग थे.

साढ़े चार साल में प्रधानमंत्री ने मीडिया को चीयरलीडर में तब्दील कर दिया और उनके अपने लोगों ने ये सुनिश्चित कर दिया है कि मोदी मुश्किल सवालों का जवाब नहीं दे सकते.

राहुल गांधी ने ढेरों सवाल पूछे. उन्होंने मोदी पर अब तक सबसे बड़ा राजनीतिक हमला किया और मोदी के 'जुमला स्ट्राइक्स' को भारत के लोगों के ख़िलाफ़ ठहराया, साथ ही उन्होंने मोदी जी के अरबपति कारोबारियों के साथ रिश्तों पर भी सवाल उठाए.

बीजेपी इस अविश्वास प्रस्ताव पर अलग स्क्रिप्ट पर काम कर रही थी. उनलोगों की सोच ये थी कि मोदी एक शानदार भाषण देकर 2019 के आम चुनाव की दिशा तय करेंगे. हालांकि मोदी पहले से ही उत्तर प्रदेश में अपना चुनावी अभियान शुरू कर चुके हैं. लेकिन वे बीजेपी की स्क्रिप्ट के हिसाब से विनर साबित नहीं हुए.

दरअसल, ये बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह का आइडिया था कि अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर करके विपक्ष को बोलने के लिए ज़्यादा समय नहीं देकर विपक्ष को बिखरा हुआ दिखाएं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को एकजुट और मजबूत गठबंधन के रूप में पेश करें.

सहयोगियों ने छोड़ा साथ

लेकिन बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना ने 20 साल पुराना साथ छोड़कर अलग राह चुनी. ये तब हुआ जब अमित शाह ने खुद पहल करके शिवसेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से बातचीत की थी. लेकिन शिवसेना ने आश्चर्यजनक तौर पर अपने 18 सांसदों को सदन से गैर हाज़िर रहने को कहा. इतना ही नहीं शिवसेना ने इसके बाद राहुल गांधी की तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्होंने बतौर राजनेता एक लंबी दूर तय कर ली है.

वैसे ये अविश्वास प्रस्ताव, बीजेपी की सहयोगी रही तेलुगूदेशम पार्टी की ओर से ही आया था. टीडीपी ने बताया कि मोदी ने उन्हें धोखा दिया है और वे नाटक करने वाले 'अभिनेता' हैं. टीडीपी की ओर से ये भी कहा गया कि ये लड़ाई नैतिकता बनाम बहुमत की है.

पहली बार सांसद बने टीडीपी नेता जयंत गाला ने बेहतरीन भाषण दिया, अमरीकी एक्सेंट वाली अंग्रेजी में उन्होंने व्यवस्थित आंकड़ों के ज़रिए बताया कि किस तरह से वे आंध्र प्रदेश के साथ किए अपने हर वादे से मुकर गए हैं.

मोदी का गुस्सा और मिमिक्री

मोदी अपने पूरे भाषण के दौरान गुस्से में नजर आए. जब राहुल गांधी ने उन्हें गले लगाया था तब बीजेपी की ओर से कहा गया था इंतज़ार कीजिए, मोदी अपने भाषण में हिसाब ब्याज़ सहित चुकता कर देंगे.

लेकिन ऐसा लग रहा था कि मोदी अपने रंग में नहीं हैं, वे 90 मिनट तक उन्हीं चीज़ों को दोहराते नज़र आए जो 'जुमले' ही लग रहे थे.

मोदी को संभवत ये याद नहीं रहा कि उन्हें अगस्त में लाल किले से भी अपना संबोधन देना है. इतना ही नहीं वे सोनिया गांधी के इतालवी एक्सेंट की मिमिक्री करते भी नज़र आए.

राहुल को डांट पड़ी, लेकिन एक ब्रेक के बाद

मोदी जिस तरह से आलोचना कर रहे थे, उससे लोगों का जुड़ाव नहीं दिख रहा था, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि ट्रेजरी बेंच से भी हंसी-ठहाके की आवाज़ सुनाई दे रही थी. वहीं दूसरी ओर जब राहुल गांधी मोदी से गले मिले तो राजनाथ सिंह और अनंत कुमार के चेहरों पर भी मुस्कान थी. उस वक्त लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन भी मुस्कुरा रही थीं हालांकि बाद में उन्हें इसका पछतावा हुआ और उन्होंने राहुल गांधी को संसदीय परंपराओं का पालन करने की बात कही.

बीजेपी की योजना शानदार तरीके से अपना चुनाव अभियान शुरू करने की थी, लेकिन नेता के तौर पर मोदी उम्मीदों पर खरे साबित नहीं हुए. मोदी ने विपक्ष पर हमले ज़रूर किए लेकिन उन हमलों में वो बात नहीं दिखी, पंच का अभाव नज़र आया. दरअसल इससे ये अंदाजा भी हो जाता है कि कोई नेता मुश्किल सवालों को कैसे हैंडल करते हैं.

नरेंद्र मोदी
BBC
नरेंद्र मोदी

डेमोक्रेसी है, सवाल तो पूछे ही जाएंगे

मोदी ने मीडिया से एक दूरी बना रखी है, उन्होंने अपने कार्यकाल में एक भी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की है. ऐसा लगता है कि सवालों का सामना करने में उन्हें मुश्किल होती है. ख़ास बात ये भी है कि संसद के अंदर भी मोदी किसी चुनौती से बचते रहे हैं.

विपक्ष की आलोचना करते हुए वे व्यक्तिगत हमले करने लगते हैं और उसका स्तर भी गिराते हैं. वे अपनी सामान्य पृष्ठभूमि की बात भी इतनी बार दोहरा चुके हैं कि अब वो घिसा हुआ लगने लगा है. मनमोहन सिंह भी सामान्य पृष्ठभूमि के ही हैं, लेकिन उन्होंने कभी इसे मुद्दा नहीं बनाया और बार-बार नहीं दोहराया.

2019 के आम चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के लिए बहुत आसान नहीं रहने वाले हैं, उन्हें अपना अंदाज़ और स्टाइल बदलना होगा. राहुल गांधी ने इसकी घोषणा कर दी है कि वे यहां मौजूद हैं और मोदी को हटाकर रहेंगे.

BBC Hindi
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English summary
View Why modi could not reach the script of Amit Shah
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