वैलेंटाइन वीक और मर्ज़-ए-तनहाई का इलाज
डांस फ़्लोर अपने आप में एक कायनात है. यहां पर गुमनाम होना उनके अंदर एक भरोसा पैदा करता है. इस फ़्लोर पर बहुत से लोग मिलते हैं जिनके साथ आप अलग-अलग गानों पर डांस करते हैं. फिर चाहे वो सालसा हो, किज़ुम्बा या फिर बशाता. किसी अजनबी के साथ थिरक कर आप घर लौट आते हैं. आपका वक़्त गुज़र जाता है. जिस शहर में वो रहती हैं, वहां तनहा होना आम बात है.
डांस फ़्लोर अपने आप में एक कायनात है. यहां पर गुमनाम होना उनके अंदर एक भरोसा पैदा करता है. इस फ़्लोर पर बहुत से लोग मिलते हैं जिनके साथ आप अलग-अलग गानों पर डांस करते हैं. फिर चाहे वो सालसा हो, किज़ुम्बा या फिर बशाता. किसी अजनबी के साथ थिरक कर आप घर लौट आते हैं. आपका वक़्त गुज़र जाता है.
जिस शहर में वो रहती हैं, वहां तनहा होना आम बात है. वो शहरी ज़िंदगी के इस अकेलेपन से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं. सोनिया (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि ये वैलेंटाइन वीक यानी इश्क़ का हफ़्ता है.
डांस फ़्लोर पर आप अपने लिए साथी तलाशने का दांव खेल सकते हैं. जिस डांस क्लब में वो जाती हैं, वहां डांस के लिए अजनबी होना लाज़मी है.
सोनिया, अक्सर रविवार को समरहाउस डांस क्लब में सालसा डांस करने आती हैं. ये बहुत बहादुरी का काम है कि आप किसी डांस क्लब में अकेले पहुंचें, मुस्कुराती हुई खड़े रहें और इस बात का इंतज़ार करें कि कोई अजनबी मर्द आप का हाथ थाम कर आपके साथ डांस करने का प्रस्ताव रखेगा.
आप को सालसा डांस की दिलकश ख़ूबी में एक उम्मीद दिखती है. सालसा डांस में सामने वाले को लुभाने की भरपूर क्षमता है. हो सकता है कि इसी के बूते कोई पार्टनर मिल जाए.
सोनिया बताती हैं कि डांस क्लब में किसी के भी साथ डांस करने का मतलब क्या है. उनके अनुसार, ''इस डांस में जिस तरह आपका पार्टनर आपको पकड़ता है वो टच बहुत नाज़ुक होता है. शायद आप इसी टच के लिए वहां जाती हैं. जब आप अकेली होती हैं, तो किसी के साथ की गर्मजोशी की सख़्त ज़रूरत महसूस होती है. और अजनबियों के साथ डांस करने में एक दूसरे के नज़दीक आने की पूरी संभावना होती है.''
सोनिया कहती हैं, "मैं बस जाती हूं और डांस करती हूं. इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि मैं किसी को जानती हूं या नहीं."
ज़ाहिर है सालसा डांस क्लब में जो भी लोग आपको मिलते हैं उन्हें किसी ना किसी तरह जानते हैं. वो पूरी तरह अजनबी नहीं होते. हो सकता है आप उन्हें डांस क्लास में मिली हों, या हो सकता है डांस क्लब में ही कभी उनके साथ डांस किया हो.
सोनिया ने लिखा है, "मैं अपने चेहरे पर मेक-अप लगाती हूं, अपना इरादा मज़बूत करती हूं, ख़ुद को ज़हनी तौर पर तैयार करती हूं, उसे तोड़ देती हूं और फिर ख़ुद को तैयार करती हूं." (ये पंक्तियां उस कविता का हिस्सा हैं, जो सोनिया ने लिखी है.)
लेकिन, राजधानी दिल्ली की सर्द रातों में इरादे मज़बूत करने का ये ख़याल ज़हन में तैरता रहता है. राजधानी में रहने के लिए जितनी तरह की लड़ाइयां लड़नी पड़ती हैं, ये उनमें से बस एक है, ये है अकेलेपन से लड़ने की लड़ाई.
जब वैलेंटाइन वीक में सड़कें सुर्ख़ और गुलाबी फूलों, सॉफ़्ट टॉएज़ और स्टफ़्ड हार्ट से गुलज़ार होती हैं. ऐसे में इंटरनेट हर मर्ज़ की दवा है. यहां वैलेंटाइन डे के दिन अकेलेपन से लड़ने और उस पर क़ाबू पाने के तमाम नुस्ख़े मौजूद हैं.
सोनिया कहती हैं वो अपना दिल तोड़ती रहती हैं. महिलाओं के अकेलेपन का मतलब होता है कि आप ख़ुद ही अपने लिए अजनबी हो जाती हैं. हो सकता है मोहब्बत का रिश्ता नहीं संभाल पाने के लिए ख़ुद को ही क़ुसूरवार मानें और ख़ुद को नाकाम कहें. अकेले में ख़ुद पर ही शर्मिंदा भी हों.
कभी सोनिया ने भी वैलेंटाइन डे पर किसी को कार्ड और टेडी बियर भेजा था. ये वो शख़्स था, जिसे वो प्यार करती थीं. लेकिन आज वो वैलेनटाइन डे के लिए कोई ख़रीदारी नहीं कर रही हैं.
वो कहती हैं, "ये इश्क़ का एक ख़ूबसूरत मगर भीतर से खोखला बाज़ार है. यहां पुरानी बातों, पुराने साथियों को याद नहीं रखा जाता. पिछले साल मैं किसी के साथ थी. लेकिन उसके लिए वैलेंटाइन डे का कोई मतलब ही नहीं था. हो सकता है वो ख़ुद ही अपने लिए लिली के फूल ख़रीद लें."
सोनिया को वो रिश्ता नहीं मिल पाया, जिसकी उन्हें तलाश थी.
सोनिया कहती हैं, "मेरा ख़याल था कि मुझे वो शख़्स मिल जाएगा जिसके साथ मैं ज़िंदगी गुज़ार सकूंगी. लेकिन अब मैं लोगों को लेकर अजीब कश्मकश की शिकार हूं. आजकल लोग अजीब तरह की उलझन में ही उलझे हुए हैं."
90 के दशक में उनका एक पेन फ़्रेंड था जिसने उन्हें वैलेंनटाई डे के दिन कार्ड भेजा था. उन दिनों लोग ऐसे ही मोहब्बत जताते थे. पर अब ज़माना बदल गया है. आज लोग ऐसा नहीं करते. अब लोग डेटिंग ऐप पर लेफ्ट या राइट स्वाइप करते हैं.
सोनिया कहती हैं, "मैं सोचती हूं कि लोगों की ज़िंदगी बहुत सुलझी हुई है. मेरे ख़याल में जब किसी दूसरे को देखकर आप महसूस करें कि आप की ज़िंदगी में कुछ कमी है तो शायद यही अकेलापन है."
ये प्यार करने वालों का वैलेंटाइन वीक है. बाज़ार सुर्ख़ गुलाबों और लाल रंग के बनावटी दिलों से पटे पड़े हैं और आप अकेले हैं. सोनिया कहती हैं, "काश मेरी अलमारी में भी लाल रंग के बहुत से लिबास होते."
साल के ऐसे दिनों में जब बाज़ारों और यहां तक कि आपके ई-मेल के इनबॉक्स तक में लाल और गुलाबी संदेशों की भरमार हो, तो ज़रा उन महिलाओं के बारे में सोचिए जो 40 की उम्र की देहरी पर पहुंच चुकी हों मगर आज भी अकेली हैं.
इश्क़, तन्हाई और उम्मीदों से उनका तजुर्बा कैसा होता होगा? वैलेंटाइन डे असल में आप को याद दिलाता है कि दुनिया के छह अरब से ज़्यादा लोगों में भी आप अपने लिए मोहब्बत नहीं तलाश सके. और जहां सड़कों पर अपनी ज़िंदगी के उस ख़ास के लिए महंगे फूल बिक रहे हैं. तब आप अकेले अपने अपार्टमेंट में बैठे ख़ुद को ख़ारिज किए जाने के एहसास में डूबे होते हैं.
सोनिया भी दक्षिण दिल्ली की एक कॉलोनी में किराए के घर में अकेली रहती हैं. वो एक कमरे से निकल कर दूसरे कमरे में आ जाती हैं. कमरे से निकल कर रसोई में आ जाती हैं. कभी-कभी बिल्ली उनके पास आ जाती है. वो उसके लिए कटोरे में खाना रख कर उसे बुला लेती हैं.
सोनिया कहती हैं, "अकेले ज़िंदगी गुज़ारने का मतलब क्या होता है? आप अलग-थलग पड़ जाते हैं. भयानक ख़ालीपन और अपने लिए अपनी ही ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाना. बीमार हैं तो आप ख़ुद ही डॉक्टर के पास जाती हैं. अपना ख़याल रखती हैं. ख़ुद ही सब्ज़ियां ख़रीदकर लाती हैं ख़ुद ही पकाती हैं और ख़ुद ही खाती हैं."
उस शाम को सोनिया एक ख़ूबसूरत ड्रेस अपने बिस्तर पर फैलाती हैं, जिसे वो डांस के लिए जाने के वक़्त पहनने का इरादा रखती हैं. वो हील्स नहीं पहनतीं. बल्कि, उन्हें लगता है कि काली जूतियों की एक जोड़ी इस ड्रेस के साथ ज़्यादा जंचेगी.
हमें लगता है कि इंटरनेट अकेलेपन का अच्छा साथी है. लेकिन ऐसा नहीं है. सोनिया एक डेटिंग एप आइल पर सक्रिय हैं. जो उनके मुताबिक़ गंभीर क़िस्म की डेटिंग करने वालों का ऐप है. वो कहती हैं कि, 'इस ऐप पर होने का मतलब है कि यहां से आप आगे शादी के रास्ते पर बढ़ने का इरादा रखते हैं.'
दिक़्क़त ये है कि इस ऐप पर भी ऐसे लोग बमुश्किल टकराते हैं, जो किसी बंधन में बंधने को लेकर संजीदा हों. वो कहती हैं कि इस ऐप पर बहुत से मर्दों से बात होती है. अक्सर ये बेकार की बातें होती हैं. इश्क़ की तलाश में आप भागते रहते हैं. थेरेपिस्ट से मिलते हैं... वग़ैरह… वग़ैरह.
फिर भी, यहां ऐसे लोग नहीं मिल पाते जिनके साथ उनके विचार मिलें. सोनिया पाबंदी से डांस के लिए जाती हैं. इस उम्मीद के साथ कि शायद उन्हें वो शख़्स मिल जाए जो उनका हमख़याल हो.
रविवार की रात उन्होंने नेवी कलर की ड्रेस पहनी थी. हालांकि ये ज़्यादा भड़काऊ नहीं थी. लेकिन, इसमें वो असहज थीं. उन्होंने दो बार तो अपनी ईयररिंग्स बदलीं. आख़िर में उन्होंने तारकोल के रंग की ईयररिंग का चुनाव किया. वो समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें नीले रंग के आई शैडो इस्तेमाल करने चाहिए या नहीं. लेकिन आख़िर में उन्होंने यही रंग चुना. फिर थोड़ा सा कंसीलर और मामूली सा ब्रोंज़ लिप कलर लगा कर वो डांस के लिए जाने को तैयार थीं.
अकेलेपन की सबसे बुरी स्थिति से उबरने के लिए डांस एक अच्छा विकल्प है. अकेली महिलाएं लैटिन अमरीकी डांस को अपना शौक़ बना सकती हैं. भारत में तो इसका चलन भी ख़ूब शुरु हो चुका है.
उस रोज़ सालसा डांस फ़्लोर पर सोनिया की मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हो गई, जिसे वो क़रीब-क़रीब पुराना प्रेमी कह सकती थीं. वो सालसा डांस के दौरान मिले थे. दोनों, एक दूसरे को पसंद करते थे. कुछ दिनों तक डेटिंग भी. मगर बाद में वो जुदा हो गए. उस रात सोनिया ने चार मर्दों के साथ डांस किया. और फिर वो मेरी तलाश में डांस क्लब के बाहर आ गईं.
अकेले रहना कैसा लगता है? लगता है मानो आप किसी और दुनिया के हैं. पूरी तरह अलग. ऐसा लगता है मानो, आप ने इस दुनिया को पूरी तरह अपनाया ही नहीं.
सोनिया आर्ट एंड कल्चर कंसलटेंट के तौर पर काम करती हैं. और भारत की उन लाखों महिलाओं में से एक हैं जो अकेले ज़िंदगी बसर कर रही हैं.
आंकड़े बताते हैं कि भारत की आबादी में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. यहां सिंगल महिलाओं की तादाद 7.2 करोड़ है. लेकिन, इसमें भी उस तबक़े की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जो 35-45 साल की उम्र की हैं, मगर उन्होंने कभी शादी नहीं की.
ऐसी अकेली महिलाओं की इतनी बड़ी संख्या में मौजूदगी उस समाज के लिए हैरान कर देने वाली है, जहां लड़की की शादी करना सबसे बड़ा फ़र्ज़ माना जाता है. और ये बड़ा पेचीदा क़िस्म का कारोबार है.
भारत की कुल आबादी में महिलाओं की संख्या 48.9 फीसद है. 2011 की जनगणना के अनुसार इस आबादी में भी 12 फ़ीसद महिलाएं बिना किसी साथी के यानी अकेली हैं. 2001 में सिंगल महिलाओं की संख्या 5.12 करोड़ थी. जो 2011 में बढ़कर 7.14 करोड़ हो गई. ये आंकड़े, हिंदुस्तान के बदलते समाज की तरफ़ इशारा करते हैं.
बहुत से लोग भारत में सिंगल महिलाओं की इस बढ़ती संख्या को ऐतिहासिक घटनाओं का नतीजा बताते हैं. जहां ऐसा पितृसत्तात्मक समाज है, जिस में शादी ही औरत की सुरक्षा के लिए सबसे मज़बूत कवच समझा जाता है. वहां अब बड़ी संख्या में महिलाएं अकेले ज़िंदगी गुज़ार रही हैं. ऐसे बदलाव दुनिया के हर समाज में देखने को मिल रहे हैं. और ये दिखाता है कि इस दौर में सामूहिक सामाजिक उत्तरदायित्व अब बदल रहा है. अब पारिवारिक मूल्य बदल रहे हैं. और नए दौर की ज़रूरतों के हिसाब से ख़ुद को ढाल रहे हैं.
आज सोलोगैमी यानी ख़ुद से ब्याह करने या रोमान्सटर्बेशन यानी किसी सेक्स पार्टनर के बजाय ख़ुद से रोमांस करने का चलन देखा जा रहा है. इसके अलावा सिंगल्स अवेयरनेस डे जैसे कार्यक्रम एक नई संस्कृति के उभार का संकेत दे रहे हैं. जो नए भावनात्मक संबंधों की संभावनाओं के लिए जगह बना रहे हैं.
पर, इन सब बदलावों के बीच वैलेंटाइन्स डे भी तो आता है.
कार में बैठ कर सोनिया डांस के बारे में बात करती हैं. वो कहती हैं कि ऐसा लगता है कि वक़्त गुज़र रहा है. आप को रेस्टोरेंट में अकेले बैठ कर खाने का सलीक़ा आ जाता है, तो मानो आप ने एक पड़ाव पार कर लिया. आप अकेले किसी क्लब में डांस करने पहुंच जाते हैं, तो मानो आपने आख़िरी पड़ाव पार कर लिया.
हम फ्लाइओवर्स के एक जाल से गुज़र रहे हैं. मैं कहती हूं, "बहुत से रास्ते अलग-अलग दिशाओं में जा रहे हैं."
सोनिया कहती हैं, "इसे लिख लो. ज़िंदगी ऐसी ही है."
मैं चाहती हूं कि एक बात उन्हें कह कर सुनाऊं. लेकिन मैं ऐसा नहीं करती.
कोरा कारमैक का वो कथन कुछ ऐसा है- 'हो सकता है कि वो थोड़ा रोई हो, मगर वो ज़्यादा वक़्त नाचती रही थी'.
ऐसी बहुत सी औरतें हैं जो अकेलेपन का मेडल बड़े फ़ख़्र से लगाए घूमती हैं. और इस दौरान तमाम हदें पार करती हैं. तमाम पड़ावों से गुज़रती हैं. उन्हें कभी ख़ारिज कहा जाता है. कभी ग़ैरजज़्बाती ठहराया जाता है. और इन आरोपों को झेलते हुए वो तन्हा ही इस बेदर्द दुनिया से गुज़रती हैं.
मैं सोनिया से उनका वैलेंटाइन डे का प्लान पूछती हूं. वो कहती हैं कि शायद हमें एक-दूसरे को फूल भेजने चाहिए.
मैं उन्हें वर्जिनिया वुल्फ़ का एक कथन भेजना चाहती हूं, जो इस तरह है- ''एक महिला अगर काल्पनिक कहानी लिखना चाहती है, तो उसके पास पैसे और रहने के लिए ख़ुद का एक कमरा होना चाहिए.''
लेकिन, मैं वर्जिनिया वुल्फ़ की किताब-'टू द लाइट हाउस' की ये लाइनें सोनिया को भेजती हूं- "ज़िंदगी का मतलब क्या है? बस यही एक मामूली सा सवाल था, जो बरसों तक उस के क़रीब रहा. लेकिन, इसका जवाब उसे कभी नहीं मिला. ये जवाब शायद कभी मिलेगा भी नहीं. इसके बजाय रोज़मर्रा के चमत्कार, रौशनी भरे रास्ते, अंधेरे में अचानक कहीं से उठी चिंगारियां ही उसे मिलती रहीं. और शायद यही उसके सवाल का जवाब था."
और तब मैं अपनी एक यात्रा के दौरान ली गई एक लाइटहाउस की तस्वीर देखने लगती हूं. हम सब लाइटहाउस ही तो हैं, जहां ये अकेलापन, उम्मीदों की एक लौ है, जो अंधेरे समंदर में चमकती है. दूसरों को रास्ता दिखाती है. हम में से कुछ की क़िस्मत है लाइटहाउस होना.
अपने घर के व्हाइटबोर्ड पर सोनिया ने लिखा- 'ख़ुद के साथ रहमदिली से पेश आओ.'
हो सकता है कि दुनिया सुर्ख़ गुलाबों के समंदर में तैर रही हो. मगर हम तो डांस के लिए जा सकते हैं. इस दुनिया में हमेशा ही एक डांस फ्लोर मिल जाता है. जहां आप अपनी ज़िंदगी की ख़ास लय और ताल के साथ डांस कर सकते हैं.