योगी सरकार का बड़ा फैसला, राज्य में तीन साल के लिए खत्म हुए सारे श्रम कानून
लखनऊ। लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने आर्थिक गतिविधियों को पुनर्जीवित करने के लिए योगी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। राज्य सरकार ने विभिन्न श्रम कानूनों से राज्य के उद्योगों को छूट देने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी है। यह छूट तीन साल के लिए प्रभावी होगी। इस अध्यादेश के चलते कंपनियां कभी भी किसी को नियुक्त कर सकती हैं और कभी की किसी को हटा सकती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को हुई बैठक में कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी।
38 श्रम नियम तीन साल के लिए निलंबित
सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में बुधवार को हुई मीटिंग में ‘उत्तर प्रदेश में कुछ श्रम कानूनों से अस्थायी छूट का अध्यादेश, 2020' को पारित किया गया। इसके तहत प्रदेश में उद्योग, कारखानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों के लिए 38 श्रम नियमों में हजार दिवस यानी तीन वर्ष तक के लिए अस्थाई छूट प्रदान की गई है। अब इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के समक्ष भेजा गया है।
केवल तीन नियम होंगे प्रभावी
इस अध्यादेश में करार के साथ नौकरी करने वाले लोगों को हटाने, नौकरी के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर वेतन देने जैसे तीन नियमों को छोड़कर अन्य सभी श्रम कानूनों को तीन वर्ष के लिए स्थगित कर दिया गया है। भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम, 1996; कामगार क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923; बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976; और मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 की धारा 5 (समय पर मजदूरी प्राप्त करने का अधिकार) ये कानून प्रभावी रहेंगे।
श्रम कानून में बड़ा बदलाव
राज्य सरकार द्वारा जारी बयान में यह भी कहा गया है कि श्रम कानूनों में बच्चों और महिलाओं से संबंधित प्रावधान लागू होते रहेंगे। अन्य श्रम कानून, जो औद्योगिक विवादों को निपटाने, श्रमिकों व ट्रेड यूनियनों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ठेका व प्रवासी मजदूर से संबधित है, उन्हें तीन साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।
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