क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

56 साल पुरानी शिवसेना में 'ठाकरे' युग खत्म हुआ, या अभी उद्धव में राजनीतिक दम है बाकी ? जानिए

Google Oneindia News

मुंबई, 20 जुलाई: शिवसेना इस समय सुप्रीम कोर्ट में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए पहुंच चुकी है। महाराष्ट्र की यह पार्टी इस समय दो गुटों में बंटी है। एक की कमान अभी भी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के हाथों में है। लेकिन, शिवसेना के ज्यादातर विधायक और सांसद मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ जा चुके हैं। ऐसे में सवाल है कि उद्धव ठाकरे में क्या अपने पिता की राजनीतिक विरासत बचाए रखने का हौसला अभी भी बचा हुआ है ? या उनके पिता के चेले शिंदे ने उन्हें शिवसेना की सियासी विरासत से हमेशा के लिए पैदल कर दिया है ?

विधायकों-सांसदों पर से उद्धव का कंट्रोल खत्म

विधायकों-सांसदों पर से उद्धव का कंट्रोल खत्म

अब इस बात कोई दो राय नहीं रही कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पार्टी के एमएलए और लोकसभा सांसदों पर से अपना कंट्रोल खो दिया है। लेकिन, राजनीति के कुछ जानकारों की मानें तो इतने भर से यह मान लेना कि ठाकरे परिवार की विरासत खत्म हो रही है तो यह जल्दबाजी होगी। पिछले महीने शिवसेना का विधायक दल टूट गया था और मंगलावर को उद्धव गुट को तब बड़ा झटका लगा, जब पार्टी के 19 लोकसभा सांसदों में से भी 12 एकनाथ शिंदे गुट की ओर शिफ्ट कर गए।

ठाणे में जमीनी कार्यकर्ताओं ने भी मुंह फेरा

ठाणे में जमीनी कार्यकर्ताओं ने भी मुंह फेरा

मुंबई से सटा ठाणे जिला शिवसेना का गढ़ रहा है। लेकिन, यहां भी पार्टी के कई जमीनी कार्यकर्ता मुख्यमंत्री शिंदे के साथ जा चुके हैं। शिवसेना में ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई है? इसपर एक राजनीतिक पर्यवेक्षक का कहना है कि बाल ठाकरे, जिन्होंने 1966 में शिवसेना बनाई और उद्धव ठाकरे में बुनियादी अंतर है; और इस वजह से पिता की गैरमौजूदगी में पार्टी अपने इतिहास की सबसे बड़ी बगावत देख रही है।

'बाय डिफॉल्ट मिली शिवसेना की विरासत'

'बाय डिफॉल्ट मिली शिवसेना की विरासत'

राजनीतिक पर्यवेक्षक ने इसकी वजह बताई कि 'बेटे को पिता की विरासत बाय डिफॉल्ट प्राप्त हुई थी, क्योंकि दूसरे ने उनमें नेतृत्व की भूमिका को स्थापित किया था। उद्धव ठाकरे ने कभी भी उस विरासत को भुनाया नहीं और अपने नेतृत्व को साबित करने के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने हर किसी को हल्के में लिया।' 2003 में जबसे उद्धव ठाकरे को शिवसेना का नेतृत्व दिया गया है, उन्हें नारायण राणे (भाजपा के केंद्रीय मंत्री) और अपने चचेरे भाई राज ठाकरे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख) के विरोध का सामना करना पड़ा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि 'विरासत गंवाने और पार्टी पर से पकड़ खोने की चरम सीमा पिछले महीने एकनाथ शिंदे के विद्रोह के तौर पर देखने को मिली, जब बाल ठाकरे उनके पास नहीं हैं।'

'भविष्य की भूमिका को लेकर भ्रमित हैं'

'भविष्य की भूमिका को लेकर भ्रमित हैं'

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के गुजरे हुए करीब एक दशक गुजर चुके हैं। उनके व्यक्तित्व और उनके बेटे के व्यक्तित्व में आकाश-पाताल का अंतर रहा है। कुछ इसी बात की ओर इस पर्यवेक्षक ने भी इशारा किया है। उन्होंने कहा, 'उद्धव ठाकरे से ज्यादा कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि वे अपने भविष्य की भूमिका को लेकर भ्रमित लगते हैं। वे उनपर दोषारोपण कर रहे हैं, जिन्होंने उनका साथ छोड़ दिया है, लेकिन फिर उसी समय उन्हें वापस साथ भी लेना चाहते हैं। उनसे सुलह करें या आखिरी सलाम कह दें, इसपर वह अपना मन नहीं बना सकते। '

'अभी उद्धव के भविष्य पर कुछ भी कहना जल्दबाजी'

'अभी उद्धव के भविष्य पर कुछ भी कहना जल्दबाजी'

लेकिन, सभी जानकारों की राय एक जैसी नहीं है। एक ने कहा है कि ठाकरे की विरासत के बारे में अंतिम रूप से कुछ भी कह देना अभी बहुत ही जल्दीबाजी है, क्योंकि शिवसेना में आए संकट का अभी करीब एक महीना ही हुआ है। उनका कहना है, 'पार्टी की संरचना और उसके काम करने के तरीके को देखते हुए, इस तरह के घटनाक्रम अप्रत्याशित थे। यह जानना होगा कि आम शिवसैनिक इतने बड़े पैमाने पर विद्रोह पर चुप क्यों हैं?' बाल ठाकरे ने 56 साल पहले मराठी गौरव के मुद्दे पर शिवसेना बनाई थी और 1990 के दशक से हिंदुत्व के एजेंडे की ओर बढ़ गए थे। पहली बार पार्टी (उद्धव गुट) इसी एजेंडे को लेकर सवालों से घिरा हुआ है।

इसे भी पढ़ें- शिवसेना संकट: ....तो लोकतंत्र खतरे में है, SC में उद्धव के वकील कपिल सिब्बल की दलीलइसे भी पढ़ें- शिवसेना संकट: ....तो लोकतंत्र खतरे में है, SC में उद्धव के वकील कपिल सिब्बल की दलील

'उनके गुट में ठाकरे की विरासत जारी रहेगी'

'उनके गुट में ठाकरे की विरासत जारी रहेगी'

राजनीति के एक और जानकार का कहना है कि शिवसेना को दो फाड़ होने से बचाया नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा, 'विद्रोही शिवसेना से बाहर नहीं होना चाहते हैं। उन्हें पार्टी चाहिए और बीजेपी, शिवसेना को मातोश्री (मुंबई में बाल ठाकरे परिवार का आवास) से बाहर करना चाहती है।' उनका कहना है, 'उद्धव ने पहली बार बहुत बड़े विद्रोह का सामना किया है, जब उनके पिता उनके पास नहीं हैं। उनके गुट में ठाकरे की विरासत जारी रहेगी, लेकिन एकमात्र स्वामित्व नहीं रह जाएगा।' उन्होंने कहा कि बागियों के साथ पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी पर नियंत्रण को लेकर उन्हें अभी लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। सीएम शिंदे से पहले राणे और राज ठाकरे के अलावा छगन भुजबल भी शिवसेना नेतृत्व से बगावत कर चुके हैं, जो इस समय शरद पवार की एनसीपी में हैं। (पीटीआई इनपुट)

Comments
English summary
Maharashtra:The Thackeray family's dominance over Shiv Sena may be extinct. However, Uddhav Thackeray's dominance over his faction will continue
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X