शिक्षक दिवस: राजेश कुमार शर्मा दिल्ली में ब्रिज के नीचे चला रहे फ्री स्कूल, 250 बच्चों को कर रहे शिक्षित
शिक्षक दिवस: राजेश कुमार शर्मा दिल्ली में ब्रिज के नीचे चला रहे फ्री स्कूल, 250 बच्चों को कर रहे शिक्षित
नई दिल्ली, 5 सितम्बर: जहां प्राइवेट स्कूल शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूल रहे हैं वहीं शिक्षक दिवस पर एक दिल्ली के ऐसे शिक्षक से मिलवाने जा रहे जो एक दो नहीं 250 बच्चों को निशुल्क शिक्षा दे रहे हैं। संसाधन ना होने के बावजूद इन्होंने इतनी बड़ी संख्या में वंचित बच्चों को शिक्षित करने करने का बीड़ा उठाया है।
जिन बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है वो हैं यहां के स्टूडेंट
दिल्ली के ये शिक्षक पुल के नीचे वंजित बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल चला रहे हैं। इस स्कूल में ऐसे बच्चें आते हैं जिन बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है या किसी कारण से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।
ब्रिज के नीचे हर रोज चलती हैं कक्षा 1 से 8 तक क्लास
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस के रहने वाले 52 वर्षीय राजेश कुमार शर्मा दिल्ली में यमुना बैंक डिपो के पास एक फ्लाईओवर के नीचे कक्षा एक से आठ तक के लिए मुफ्त 'स्कूल' चलाते हैं। शर्मा 2006 से इस स्कूल को चला रहे हैं और यमुना नदी के पास स्थित झुग्गी बस्तियों के छात्रों को पूरा करते हैं।
2006 में शुरू किया था ये स्कूल
राजेश कुमार शर्मा ने बताया कि उनके नि:शुल्क स्कूल में आसपास के इलाकों के करीब 250 छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। शर्मा ने कहा, "जब मैंने 2006 में इसे शुरू किया था, तब केवल दो छात्र थे। मैं उन्हें एक पेड़ के नीचे पढ़ता था, लेकिन अब छात्रों की संख्या बढ़कर 250 हो गई है।"
दो पालियों में कक्षाएं चलती हैं
वर्तमान में स्कूल में चार स्वयंसेवी शिक्षक राजेश कुमार शर्मा, लक्ष्मी चंद्रा, कंचन और श्याम महतो हैं और स्कूल में सोमवार से शनिवार तक दो पालियों में कक्षाएं चलती हैं। कक्षा की पहली पाली सुबह 9.30 से 11 बजे तक और शाम की पाली 2 से 5 बजे तक चलती है। शर्मा ने बताया , "अब लगभग 250 छात्र हैं - सुबह की पाली में 150 लड़कियां और दोपहर की पाली में 100 लड़के। जब मैंने शुरुआत की, तो यह सिर्फ मैं था। लेकिन अब चार अन्य शिक्षक हैं जो स्वैच्छिक आधार पर पढ़ाते हैं।"
गरीबी के कारण राजेश को बीच में छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई
उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के मूल निवासी राजेश कुमार शर्मा इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वह अपने सपने को पूरा नहीं कर सके। उन्होंने 1995 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और आजीविका के लिए दिल्ली आ गए। अपने संघर्ष के शुरुआती दिनों को याद करते हुए, शर्मा ने कहा, "मैं इंजीनियरिंग करना चाहता था लेकिनआर्थिक संकट के कारण नहीं कर सका। यहां तक कि मैंने साइंस ग्रेजुएकशन की डिग्री बीच में ही छोड़ दी और रोजी रोटी के लिए दिल्ली आया।
बच्चों का सरकारी स्कूलों में करवाते हैं एडमीशन
शुरूआत में बहुत कुछ किया और शुरू में एक छोटी सी किराने की दुकान भी शुरू की। अपनी आजीविका के स्रोत के साथ, मैंने बच्चों को एक पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू किया जो अब एक स्कूल जैसा हो गया है।" "शिक्षा प्रदान करने के अलावा, हम उन छात्रों को उनके नामांकन के लिए सरकारी स्कूल में भी ले जाते हैं जो आगे पढ़ना चाहते हैं। चूंकि हमारा स्कूल पंजीकृत नहीं हैं, इसलिए हम छात्रों को सरकारी स्कूल में उचित दस्तावेज और अन्य औपचारिकताओं और सहायता के साथ इंटरव्यू दिलवाकर एडमीशन करवाने में मदद करते हैं।
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