महिला जो पति के लिए मांग रही थी जेल, चीफ जस्टिस रमन्ना की बात से साथ रहने को हुई तैयार
नई दिल्ली, 29 जुलाई। मियां-बीवी के बीच पिछले 20 सालों से जारी कलह को भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने सिर्फ बातचीत से ही सुलझा दिया। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में आंध्र प्रदेश स्थित विवाहित जोड़े के बीच विवाद को सुलझाने में सीजेआई एनवी रमन्ना ने प्रमुख भूमिका निभाई। उनके समझाने पर साल 2001 से चला आ रहा पति-पत्नी के बीच विवाद समाप्त हो गया और अब दोनों ने साथ रहने का फैसला किया है। इस खबर के सामने आने के बाद लोग इस बात से हैरान हैं कि आखिर मुख्य न्यायाधीश ने मियां-बीवी से ऐसा क्या कहा जो वह फिर से एक साथ रहने को राजी हो गए।
20 साल से चला आ रहा था पति-पत्नी का झगड़ा
दरअसल, 20 साल पहले महिला ने अपने पति पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए उसकी शिकायत दर्ज की थी। न्यायालय ने उसे दोषी मानते हुए जेल की सजा भी सुनाई थी लेकिन उसकी रिहाई पर पत्नी ने कोर्ट से पति के लिए जेल की सजा बढ़ाने की मांग की थी। इस बीच देश के 48वें सीजेआई एनवी रमन्ना ने महिला से बात की और मासिक मुआवजे के नुकसान के बारे में उसे उसकी स्थानीय भाषा तेलुगु में समझाया। सीजेआई ने महिला और उसके पति से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की थी।
महिला को उसकी भाषा में समझाई बात
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महिला को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी और हिंदी में भी वह सहज नहीं थी, ऐसे में मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने महिला से तेलुगु में बातचीत की और साथी न्यायाधीश को अपना बयान अंग्रेजी में ट्रांसलेट करके बताया। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में आधिकारिक भाषा अंग्रेजी को ही माना जाता है। सीजेआई ने महिला से कहा, 'अगर आपका पति जेल जाता है तो आपको मासिक मुआवजे का नुकसान होगा।'
सीजेआई एनवी रमन्ना ने महिला से ऐसा क्या कहा?
महिला को होने वाले नुकसान के बारे में समझाते हुए सीजेआई ने आगे कहा कि आपका पति अगर फिर जेल गया तो उसकी नौकरी चली जाएगी, ऐसे में उसे मासिक मुआवजा भी नहीं मिल सकेगा। बता दें कि जिस शख्स पर महिला ने आरोप लगाया था वो आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में राज्य सरकार का कर्मचारी है। आरोपी पति के वकील ने कहा, 'सीजेआई ने महिला को समझाया कि अगर उसके पति की जेल की सजा बढ़ा दी जाती है, तो उसे मासिक मुआवजा छोड़ना होगा।'
इस शर्त पर पति के साथ रहने को राजी हुई महिला
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई कर रही बेंच में दूसरे जज जस्टिस सूर्यकांत थे। सीजेआई उन्हें अपनी बात अंग्रेजी में समझा रहे थे। पीटीआई ने वकील के हवाले से बताया कि महिला ने सीजेआई की सलाह को ध्यान से सुना और फिर अपने पति के साथ रहने के लिए राजी हो गई। हालांकि उसने यह भी शर्ती रखी कि उसके पति को उसका और इकलौते बेटे का ठीक से पालन-पोषण करना होगा। सीजेआई के समझाने के बाद दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के खिलाफ अपनी-अपनी याचिकाओं को वापस लेने पर सहमत हो गए।
1998 में हुई शादी, तीन साल बाद ही दर्ज कराया केस
बताया जा रहा है कि दोनों की शादी वर्ष 1998 में हुई थी, लेकिन जल्द ही उनके रिश्ते में खटास आ गई। इसके बाद महिला ने अपने पति पर आपराधिक मामला दर्ज कराया, शिकायत में उसने अपनी सास और भाभी का भी नाम शामिल किया था। इस मामले में कई कोर्ट में सुनवाई के दौरान मध्यस्थता की सलाह दी गई लेकिन सभी कोशिशें विफल रहीं। पत्नी की शिकायत पर पति को एक साल के लिए जेल भी जाना पड़ा लेकिन महिला सजा को बढ़वाना चाहती थी। महिला ने इसके लिए सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
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