
सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और मीडिया को चेताया, क्रिमिनल मामलों के सबूतों ना बनें टीवी बहस का हिस्सा
नई दिल्ली, 20 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर आपराधिक मामलों के सबूतों को टीवी चैनलों को लीक कर दिए जाने और इस पर बहस को लेकर नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया और पुलिस को चेताते हुए इस पर सावधानी बरतने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जांच अधिकारियों और मीडिया दोनों को चेतावनी दी कि इस तरह का आचरण कर्तव्य की उपेक्षा और आपराधिक प्रशासन में हस्तक्षेप के समान है।

अदालत की ये टिप्पणी मंगलवार को एक फैसले के दौरान आई हैं। ये मामला 1999 में बेंगलुरू में डकैती के आरोपों का है। सुप्रीम कोर्ट ने डकैती के आरोपी चारों लोगों को बरी कर दिया गया। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए सबूतों में कई चीजें मिस हैं। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी, जिसे कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उम्रकैद में बदल दिया था।
फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि मामले में एक बहुत ही परेशान करने वाले पहलू ये है कि पुलिस ने उस डीवीडी को ही एक निजी न्यूज चैनल को लीक कर दिया, जिसमें आरोपी के बयान का बयान रिकॉर्ड किया गया था। जस्टिस यूयू ललित और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, बयानों की डीवीडी का एक निजी टेलीविजन चैनल के हाथों में जाना ताकि इस पर कार्यक्रम किया जा सके, कर्तव्य की उपेक्षा और न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप के अलावा और कुछ नहीं है।
पीठ ने कहा, किसी टीवी चैनल पर इस तरह की कोई भी बहस जो उन मामलों को छूती है जो अदालतों के क्षेत्र में हैं, आपराधिक न्याय के प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप के समान होंगे। अदालत ने आगे कहा कि सार्वजनिक मंच इस तरह की बहस या सबूत के लिए जगह नहीं है।
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