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यूपी चुनाव: नरेंद्र मोदी और अमित शाह का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए क्या गेम प्लान है?

कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद से बीजेपी नेता लगातार पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दौरा कर रहे हैं, लेकिन इन दौरों से बीजेपी की स्थिति कितनी बदलेगी.

By BBC News हिन्दी
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नरेंद्र मोदी
PRAKASH SINGH/AFP
नरेंद्र मोदी

कृषि क़ानूनों की वापसी और किसान आंदोलन के ख़त्म होने के बाद भाजपा अब फिर से पश्चिम उत्तर प्रदेश में पूरे दम खम के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है. पार्टी को इस बात का एहसास है कि उसे दुगनी मेहनत करनी पड़ेगी.

इसके लिए उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सबसे पहले 25 नवंबर से ही पश्चिम उत्तर प्रदेश का दौरा किया. 28 नवंबर को भाजपा ने बिजनौर और शामली में किसान ट्रैक्टर रैली निकाली और 2 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने सहारनपुर में माँ शाकुंभरी विश्वविद्यालय की नींव रखी. चुनाव से पहले संगठन को मज़बूत करने के लिए और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए 11 दिसंबर को भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मेरठ में बूथ अध्यक्ष कार्यक्रम रखा.

फिर शुरू हुआ उत्तर प्रदेश में जन विश्वास यात्रा का सिलसिला जिसे 19 दिसम्बर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बिजनौर के चांदपुर से रवाना किया और मुज़फ्फ़रनगर, सहारनपुर, शामली, कैराना, कांधला, छपरौली, बड़ौत, बागपत, मोदीनगर, मुरादनगर, मेरठ होते हुए यह यात्रा गाज़ियाबाद पहुँची.

गाज़ियाबाद में ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस यात्रा का नेतृत्व किया और बाद में यह यात्रा नोएडा, दादरी, बुलंदशहर और हापुड़ पहुंची जहाँ पर एक बार फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यात्रा में शामिल हुए. इसी यात्रा को 30 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह लेकर मुरादाबाद पहुंचे.

किसी सेना की फ़ॉरवर्ड पार्टी की तरह इन नेताओं और इनके अनेक कार्यक्रमों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पश्चिम उत्तर प्रदेश में प्रवेश के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा की कमज़ोरियों और लोगों की नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की.

प्रधानमंत्री ने नए साल में अपनी चुनावी शुरुआत पश्चिम उत्तर प्रदेश के मेरठ से की. जिस तरह प्रधानमंत्री बनारस की सड़कों पर अपनी गाड़ी में निकल पड़े उसी तरह मेरठ में भी उनका काफ़िला लोगों की भीड़ से होकर गुज़रा.

https://twitter.com/AdityaTrivedi_/status/1477539447860129792?s=20

और फिर फिर उन्होंने 700 करोड़ की ध्यानचंद स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी का शिलान्यास किया.

https://twitter.com/BJP4India/status/1477592380731641857?s=20

क्या है भाजपा की पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के शिलान्यास के सरकारी कार्यक्रम में कहा, "पांच साल पहले जो अपराधी यहां अपराध का खेल खेलते थे, आज योगी जी की सरकार उन माफ़ियाओं के साथ जेल-जेल खेल रही है."

अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, "पहले यहां बेटियां शाम होने के बाद घरों से निकलने में डरती थीं, आज यहां की बेटियां पूरे देश का नाम रौशन कर रही हैं."

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी अच्छी है और हर चुनाव में भाजपा पर यहाँ साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के आरोप लगते रहे हैं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2022 की शुरुआत कुछ इस अंदाज़ में की.

उन्होंने कहा, "2017 के पहले उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री के आवास में मुज़फ्फ़रनगर के दंगाइयों और सहारनपुर के दंगाइयों को बुला कर सम्मानित किया जाता था. लेकिन 2017 के बाद मुख्यमंत्री आवास में किसानों का सम्मान किया जाता है और गुरुबाणी का पाठ होता है."

https://twitter.com/bjp4up/status/1477253272364666882?s=21

29 दिसंबर को भी उन्होंने मथुरा में एक भव्य मंदिर बनवाने की बात करते हुए कहा, "हमने कहा था कि अयोध्या में प्रभु राम के भव्य मंदिर निर्माण का कार्य पूरा कराएँगे, मोदी जी ने काम प्रारम्भ करा दिया है ना? खुश हैं? अयोध्या में राम मंदिर बनाने से खुश हैं? सभी लोग? और अब काशी में भगवान विश्वनाथ का धाम भी भव्य रूप से बन रहा है, और फिर मथुरा वृन्दावन कैसे छूट जायेगा. वहां पर भी काम भव्यता के साथ आगे बढ़ चुका है."

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किसानों की नाराज़गी दूर करने की कोशिश

ऐसे बयानों के बावजूद भाजपा को इस बात का इल्म है कि उसे अपनी किसान विरोधी छवि को दुरुस्त करने की कोशिश भी करनी है. इसलिए, देश के किसानों से माफ़ी मांग चुके प्रधानमंत्री को किसानों का हितेषी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है.

1 जनवरी को प्रधानमंत्री ने किसान सम्मान निधि की दसवीं किश्त जारी की और उत्तर प्रदेश के 2 करोड़ 37 लाख 26 हज़ार किसान खातों में ₹4,845 करोड़ की किसान सम्मान निधि पहुँचाने का दावा किया.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में पार्टी के कार्यक्रमों, ख़ास तौर से प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के कार्यक्रमों का ज़िम्मा पार्टी के पश्चिम यूपी के अध्यक्ष मोहित बेनीवाल को सौंपा गया है.

बड़े नेताओं की जनसभाओं की भीड़भाड़ और चकाचौंध से हट कर भाजपा का संगठन भी बड़े पैमाने पर पार्टी को किसानों का हितैषी साबित करने के प्रयास कर रहा है.

https://twitter.com/MohitBeniwalBJP/status/1463866573710446598?s=20

मोहित बेनीवाल कहते हैं, "बड़ी-बड़ी रैलियों के साथ-साथ भाजपा के संगठन से जुड़े तमाम मोर्चों के कार्यक्रम भी चल रहे है. मैंने ख़ुद बागपत में युवाओं के सम्मलेन में शिरकत की. हम लोग बूथ प्रबंधन करके अपने संगठन को मज़बूत करने में लगे हुए हैं. मंगलवार को मुख्यमंत्री देवबंद में एटीएस यूनिट का शिलान्यास करेंगे. तो ऐसे कार्यक्रम हमारे लगातार लगेंगे.

किसानों के बीच में हमलोग निरंतर बने रहे. हमने 14 प्रशासनिक ज़िलों से जन विश्वास यात्रा निकाली. मोदी जी आए थे, उस कार्यक्रम में कितना विशाल जनसमूह देखने को मिला. जनता मोदी जी के काम को सराह रही है, लोग योगी जी की प्रशासनिक व्यवस्था की प्रशंसा कर रहे हैं. हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी मंडलों की इकाई में शक्ति केंद्रों पर बूथ स्तर पर संगठनात्मक क्षमता को और मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं."

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मोदी
Twitter/BJP4UP
मोदी

क्या नुक़सान की भरपाई कर पाएगी बीजेपी?

मेरठ से वरिष्ठ पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा का मानना है कि कृषि क़ानूनों की वापसी के बाद भाजपा नेता फिर से गांव में जाने लायक हो गए हैं.

वो कहते हैं, "जब किसान आंदोलन चल रहा था तो उस समय हालत यह थी कि जो भी भाजपा के नेता थे वे जन सभा भी नहीं कर पा रहे थे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के गांवों तक ज़्यादा असर था. कृषि क़ानूनों के बाद जो नुक़सान होना था, वो तो हो गया था क्योंकि जाट और मुसलमान एक मंच पर आने लगे थे.

इसका मतलब यह था कि भाजपा का 2013 का मुज़फ्फ़रनगर मॉडल थोड़ा टूट गया था और यह लगने लगा था कि जो ध्रुवीकरण की राजनीति यह लोग करते हैं उसमें शायद नुक़सान हुआ है. जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे किसी चीज़ का असर कम होता है और यह किसान आंदोलन पर भी लागू होता है.

लखीमपुर खीरी भी किसी तरह मैनेज हो गया था. तो अब भाजपा को फिर से पश्चिम में घुसने का एक मौका मिल गया. जन विश्वास यात्राओं से भी भाजपा जनता के बीच वापस जा सकी है."

https://twitter.com/BJP4UP/status/1477582310094487552

क्या भाजपा का पश्चिम में ग्राफ़ बदल रहा है?

मेरठ में नव भारत टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "किसान आंदोलन के बाद जो नाराज़गी पनपने की बात आई थी उसके बाद जिस तेज़ी से उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश को टारगेट किया है तो वो एक तरह से अपनी कमज़ोरी कबूल रहे हैं और उसकी भरपाई करने की यह सब क़वायद हो रही है.

इसमें कोई शक़ नहीं है कि इतनी क़वायद होगी तो फिर कुछ भरपाई तो होगी, लेकिन बड़े पैमाने पर होगी या नहीं, इसमें अभी शक़ है. भाजपा में कोशिश बहुत चरम स्तर पर है, लेकिन यह पूरा-पूरा जाट किसानों पर निर्भर करता है क्योंकि वो आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे.

उसके पीछे दूसरे नंबर पर मुसलमान आते हैं. आंदोलन की समाप्ति के बाद राकेश टिकैत पश्चिम उत्तर प्रदेश और देश के दूसरे हिस्सों में जो कार्यक्रम कर रहे हैं उसमें बड़ी तादात में भीड़ जुट रही है. यह भीड़ कहीं भाजपा के सियासी सपनों पर पानी न फेर दे, यह भी हो सकता है."

https://twitter.com/BJP4UP/status/1477572876987338752

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशें

मेरठ की रैली में मुद्दों के मिश्रण और प्रधानमंत्री के अंदाज़ के बारे में पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं, "प्रधानमंत्री दिल्ली से मेरठ एक्सप्रेस-वे से पहुंचे. कोई और नेता होता तो ख़राब मौसम की वजह से अपना कार्यक्रम रद्द कर देता. बाद में वे गाड़ी में घूमे, पुराने मेरठ में घूमे, बाबा औघड़नाथ मंदिर पहुंचे जिसकी 1857 के स्वतंत्र संग्राम से जुड़ी ख़ास अहमियत है और वो एक क्रान्ति का प्रतीक है.

अपने भाषण में मोदी ने इन चीज़ों का ज़िक़्र भी किया और अपने आप को मेरठ से जोड़ने की कोशिश की. लेकिन वहां पर बिना हिन्दू-मुस्लिम का नाम लिए यह कहा कि 'पहले यहाँ माफ़िया खेलते थे लेकिन अब यहाँ अच्छे खिलाड़ी खेलेंगे'. उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम नहीं कहा, लेकिन सबको मालूम है कि जब भी लॉ एंड ऑर्डर की बात होती है तो हिन्दू-मुस्लिम की बात होती है.

एक बार फिर बिना हिन्दू-मुस्लिम कहे उन्होंने कहा कि लड़कियों की छेड़खानी होती थी वो नहीं होगी. लॉ एंड ऑर्डर की बात छेड़ कर, माफ़ियाओं की बात करके उसी बात को नरमी से रखा जा रहा है."

https://twitter.com/BJP4UP/status/1477564085411594244

सत्यपाल मालिक की आक्रामकता

पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़े भाजपा के एक और कद्दावर नेता और मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक इन दिनों अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं.

सोमवार को उनका एक ताज़ा बयान सामने आया जिसमें वो यह कहते नज़र आये कि जब वो पीएम मोदी से कृषि क़ानूनों को लेकर मिले तो प्रधानमंत्री "घमंड में थे और जब मैंने उनसे कहा कि हमारे 500 लोग मर गए तो उन्होंने कहा - मेरे लिए मरे हैं?" इसी बयान में वो प्रधानमंत्री पर क़ानून वापसी का दबाव डालने का श्रेय लेते नज़र आए.

हालांकि अगले दिन उन्होंने ये कह कर सफ़ाई दी कि उनके बयान को मीडिया में तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है.

सत्यपाल मलिक उत्तर प्रदेश के राजनीति में बागपत से पुराना चेहरा हैं और एक जाट नेता होने के नाते उनका अपना प्रभाव है.

ऐसे में चुनावी माहौल में इस तरह की बयानबाज़ी का क्या मतलब निकाला जाए और क्या वो पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी ही पार्टी पर हावी हो सकते हैं?

सत्यपाल मलिक की राजनीति को लम्बे समय से देखते आ रहे पत्रकार पुष्पेंद्र शर्मा का कहना है, "मुझे ऐसा लगता है कि सत्यपाल मलिक शायद यह चाहते हैं कि भाजपा उन्हें राज्यपाल पद से हटा दे और वो यह भी जानते हैं कि इस समय वो हटा नहीं पाएगी. सत्यपाल मलिक की राजनीतिक सत्यनिष्ठा बदलती रही है. एक ज़माने में वो चौधरी चरण सिंह के बेटे समान थे, उनकी लेगेसी से वो आगे बढ़े, फिर वो कांग्रेस में चले गए, अब वो भाजपा में हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि जब से उन्हें जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल के पद से हटाया गया है तभी से वो ख़फा हैं. हो सकता है कि उन्हें लगता है कि भाजपा से उन्हें कुछ और मिलना नहीं है. तो अपने आपको किसानों का हितैषी दिखाकर उन्हें रालोद या किसी दूसरे दल में वापसी का रास्ता दिखता है. तो कुछ लोगों का मानना है कि आजकल उनकी सोच कुछ ऐसी है. अब मुझे नहीं मालूम कि भाजपा उन्हें हटाएगी या नहीं, लेकिन वो अपने आपको किसानों का हितैषी बताकर ज़रूर कोई नई पारी खेलना चाहते हैं."

सत्यपाल मालिक के इन बयानों के बारे में पत्रकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह वीडियो पुराना है, जब किसानों की मौत का आंकड़ा 500 हुआ था. उस समाय सत्यपाल मलिक पूरे मुखर थे, और सत्यपाल मलिक इसलिए आक्रामक हैं क्योंकि वो जाट हैं. उनकी उम्र के लिहाज़ से उनकी सियासी पारी पूरी हो चुकी है. राज्यपाल बन गए तो फिर सियासी पारी वैसे ही पूरी मान ली जाती है.

दोबारा फिर से सक्रिय राजनीति में आना मुश्किल होता है. भाजपा में कोई भी बाहर का चेहरा आया हो, तो वो कुछ बड़ा नहीं कर पाया है, चेहरा नहीं बन पाया है. गुमनाम-सी ज़िन्दगी होती है. इनको ऐसा लगता है कि अब जो भी सियासत करनी है, अपनों के बीच करनी है, अपनों में करनी है. मुझे लगता है कि वो अपने भविष्य की सक्रिय राजनीति तलाशने की स्थिति में हैं, और इसलिए इनका किसान प्रेम जाग रहा है."

https://www.youtube.com/watch?v=57LQmgRiZ_g&feature=emb_title

भाजपा की कोशिशों पर सपा-आरएलडी का रुख़?

एबीपी न्यूज़ और सी वोटर के 31 दिसंबर के सर्वे के मुताबिक़ 136 सीटों वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा को 40%, सपा और आरएलडी को 33%, बसपा को 15% और कांग्रेस को 7% वोट मिलने का अनुमान है.

https://twitter.com/abpganga/status/1476904441970184192?s=21

ज़ाहिर है यह रुझान आगे बदल सकते हैं क्योंकि अभी तो यह भी तय नहीं है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का चुनाव कौन से चरण में होने जा रहा है.

2017 उत्तर प्रदेश विधान सभा की बात करें तो वो चुनाव पश्चिम से ही शुरू हुए थे और भाजपा उस समय पश्चिम में काफ़ी मज़बूत थी.

भाजपा की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ती कोशिशों के बारे में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हाफ़िज़ गाँधी का कहना है, "सबसे ज़्यादा नुक़सान भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होने वाला है. जिस तरह की सक्रियता प्रधानमंत्री की पूर्वांचल में देखने को मिली, वैसा पश्चिम में नहीं है.

अभी भी बीजेपी पश्चिम से आशंकित है. उसे पश्चिम में वो भरोसा नहीं है जो उसे 2017 में था, या 2014 में था. पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति पर किसान हावी होते हैं तो यहाँ पर भाजपा की दाल इस बार नहीं गलने वाली है.

जो सांप्रदायिक सौहार्द इन्होंने पहले के चुनावों में बिगाड़ा था, उसे किसान समझ चुका है. ख़ास तौर से जाट और मुस्लिम समुदाय पश्चिम में सौहार्द से रहते आए थे जिसको 2013 और 2014 में नुक़सान हुआ था और भाजपा ने ध्रुवीकरण का फ़ायदा उठाया था."

7 दिसंबर को अखिलेश यादव और जयंत चौधरी दोनों ने मिल कर मेरठ की संयुक्त रैली में गठबंधन की मज़बूती का शक्ति प्रदर्शन किया था.

रैली में उमड़ी भीड़ से लोगों ने अंदाज़ा लगाने की कोशिश की थी कि शायद पश्चिम में सपा-रालोद के पक्ष में हवा अब भी है.

लेकिन अब उस रैली को हुए एक महीना बीत चुका है तो क्या अब पश्चिम की फ़िज़ा बदल रही है?

इस बारे में आरएलडी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद का कहना है, "किसानों को मालूम है कि यह क़ानून वापसी सिर्फ़ चुनावों के लिए हुई है और चुनाव के बाद वो काले क़ानून फिर जस के तस वापस आ जाएंगे, क्योंकि यह सरकार पूंजीपतियों की हितैषी है.

ये घबराए हुए हैं. इनके ख़िलाफ़ पूरे प्रदेश में माहौल है और चौधरी जयंत और अखिलेश यादव ने गठबंधन कर लिया है. वो चुनावी मैदान के लिए तैयार हैं. मैं समझता हूँ कि इसी घबराहट में भाजपा के बड़े-बड़े नेता मैदान में उतर पड़े हैं और सरकारी कर्मचारियों को, भाड़े की भीड़ को ला रहे हैं. लेकिन इनकी कोई रैली कामयाब नहीं हो रही है. अब जनता इनके झूठ में और झांसे में आने वाली नहीं है."

आंदोलन ख़त्म होने के बावजूद मोदी सरकार पर राकेश टिकैत का ख़तरा अब भी बरक़रार है. कुछ दिनों पहले उन्होंने केंद्र सरकार को एक बार फिर चेताया था जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का एक बयान मीडिया में सामने आया जिसमें उन्होंने कृषि क़ानूनों की वापसी के सन्दर्भ में कहा था, "भले ही हमने एक क़दम वापस लिया हो, लेकिन हम फिर आगे बढ़ेंगे."

इस बयान पर विवाद हुआ और कृषि मंत्री को इस पर सफ़ाई देनी पड़ी. लेकिन किसान नेता राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को चेतावनी दी, "नागपुर में कृषि मंत्री का यह बयान देशभर के किसानों के साथ छल वाला और देश के प्रधानमंत्री को भी नीचा दिखाने वाला है. भाकियू ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान की घोर निंदा करती है. स्मरण रहे किसानों के लिए दिल्ली दूर नहीं."

https://twitter.com/rakeshtikaitbku/status/1475048805082939401?s=21

ज़ाहिर है भाजपा के लिए भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनावी खेल अब भी ख़तरों से खाली नहीं है.

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English summary
strategy of Narendra Modi and Amit Shah for western Uttar Pradesh?
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