सोनभद्र नरसंहार: निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का नतीजा, जानिए मकड़जाल की पूरी कहानी
नई दिल्ली। अंग्रेज चले गये लेकिन 'गुलामी’ बाक़ी है, जमींदार चले गए लेकिन 'जमींदारी’ बाकी है और रसूखदार चले गए लेकिन 'रंगदारी’ बाक़ी है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की तहसील घोरावल की ग्राम पंचायत मूर्तिया के उभ्भा में हुआ नरसंहार इन्हीं परिस्थियों में दशकों से चले आ रहे घालमेल का नतीजा है। सरकारें बदलीं लेकिन हालत नहीं बदले। इसी का परिणाम है कि दिन के उजाले में दनादन गोलियां बरसीं, दस लोग मौत के घाट उतार दिए गए। खासबात है कि खूनी संघर्ष आदिवासियों के दो गुटों के बीच हुआ। एक तरफ ग्रामीणों का झुण्ड था तो दूसरी तरफ ग्राम प्रधान का गिरोह। इस नरसंहार के बाद सरकार भी जागी है और राजनीतिक दल भी। एक तरफ कारवाई हो रही तो दूसरी तरफ राजनीति।
‘सिस्टम’ में धीरे धीरे लगा घुन
वैसे यह राजनीति का मुद्दा नहीं है क्योंकि लगभग सात दशक जो खिचडी धीरे-धीरे पकी उसमें दौरान कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा की सरकारें बारी बारी से रहीं लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। जब नरसंहार हुआ तो शासन को साठगांठ का पता चला। शासन की फौरी कार्रवाई में घोरावल के एसडीएम, डिप्टी एसपी, एसएचओ और बीट के सिपाहियों को निलंबित कर दिया गया। प्रदेश सरकार ने इन परिस्थितियों के लिए कांग्रेस की तत्कालीन सरकार को जिम्मेदार ठहराया लेकिन वर्तमान सरकार का कोई बड़ा मंत्री या नेता तीसरे दिन तक घटनास्थल पर नहीं गया था। दूसरी तरफ कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी पीड़ितों के परिवार से मिलने के लिए सोनभद्र कूच कर गईं लेकिन उनको मिर्जापुर में ही रोक दिया गया। धारा 144 लागू होने के कारण प्रशासन ने उन्हें हिरासत में ले लिया और चुनार किला के गेस्ट हाउस में डाल दिया। सपा नेताओं को भी सोनभद्र जाने से रोका गया। इस राजनीतिक गरमी के बीच सरकार ने अपर मुख्य सचिव राजस्व की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की है जो दस दिन में विस्तृत रिपोर्ट देगी। अब सबसे बड़ा सवाल इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार कौन? प्रत्यक्ष तौर पर तो उभ्भा में हुए नरसंहार के लिए वहां का ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया जिम्मेदार है जो 32 ट्रैक्टर और करीब 200 समर्थकों के साथ उभ्भा में खेतों पर कब्जा करने पहुंचा था क्योंकि उसके पास करीब 148 बीघा खेतों की रजिस्ट्री थी। प्रथम दृष्टया यह मामला अनुसूचित भूर्तिया जनजाति के ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के पक्ष में दिखता है लेकिन असलियत में मामला काफी उलझा हुआ है। जिन खेतों का बैनामा लेकर यज्ञदत्त कब्ज़ा लेने पहुंचा था उन पर उभ्भा के अनुसूचित गोंड जनजाति के लोग तीन पीढ़ियों से भी पहले से खेती कर रहे थे। विवादित भूमि पहले किसकी थी, किसने किससे खरीदी, इस पर मालिकाना हक किसका था? इन सब सवालों का जवाब खोजने के लिए थोडा पीछे जाना होगा।
अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपनों को दे
आज का सोनभद्र ज़िला पहले राबर्ट्सगंज था जो मिर्जापुर जिले का हिस्सा था। सोनभद्र ज़िले का मुख्यालय राबर्ट्सगंज है। सोनभद्र जिले का गठन 4 मार्च 1989 को मिर्जापुर जनपद के दक्षिणी हिस्से को अलग करके हुआ। इस शहर का नामकरण ब्रिटिश-राज में अंग्रेजी सेना के फील्ड मार्शल फ्रेडरिक रॉबर्ट के नाम पर हुआ था। 1928 में ब्रिटिश हुकूमत में सेना के फिल्ड मार्शल थे फ्रेडरिक रॉबर्ट। इसी तरह घोरावल का नाम गहरवार के राजा उदित नारायण के नाम पर पड़ा। अंग्रेज हुकूमत के पहले घोरावल, गहरवार राजघराने के नियंत्रण में था। देश आजाद होने के बाद स्थितियां भी भिन्न होती गईं और भूमि की बंदरबांट होने लगी। जो प्रभावशाली था वह अपने हिसाब से नियम बनवाने लगा।
भू-माफियाओं व अधिकारियों की साठगाँठ
उभ्भा गांव में हुए नरसंहार के तार दिल्ली और बिहार से भी जुड़े हुए हैं। यहां करीब 148 बीघा जमीन के चक्कर में भू-माफियाओं व अधिकारियों की साठगाँठ के चलते इतना बड़ा बखेड़ा हो गया।
लोग बताते हैं कि मूर्तिया ग्राम पंचायत के उभ्भा में करीब 1940 से ही वहां के आदिवासी जमीन पर काबिज थे और जोताई-बोआई कर रहे थे। इसी बीच 17 दिसंबर 1955 को बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने एक आदर्श कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर यहां की जमीन को सोसाइटी के नाम करा लिया। जबकि यह नियम विरुद्ध था। ग्राम पंचायत मूर्तिया में करीब छह सौ बीघा जमीन विवादित भूमि के 12 पट्टेदार हैं। बताया जाता है कि दबंग प्रधान विवादित भूमि पर खेती करने वाले आदिवासियों से प्रति बीघा लेवी वसूलता था। वसूले गए रुपये में आधा वह पटना भेजता था और बाक़ी स्वयं रखता था। प्रधान ने भूमि मालिक पट्टेदार को यह कहकर भरोसे में लिया था कि जमीन पर काबिज लोग उसके आदमी हैं और वह जो कहेगा वही करेंगे। इसी लालच में पट्टेदार ने प्रधान को 148 बीघा बैनामा कर दिया और इसकी भनक ग्रामीण आदिवासियों को नहीं हो सकी। प्रभात कुमार मिश्र का कहना है कि 20 साल से वह घोरावल नहीं गए और भूमि को लेकर कोई विवाद है इसकी जानकारी उनको नहीं थी। 2017 में पावर ऑफ़ अटार्नी के जरिये जमीन का बैनामा प्रधान यज्ञदत्त के नाम कर दिया था। नरसंहार का उन्हें दुःख है लेकिन इसके लिए वह जिम्मेदार नहीं। जबकि पीड़ित आदिवासियों के वकील नित्यानंद द्विवेदी का कहना है कि यह सोसायटी भी अवैध थी और बैनामा अवैध है।
रसूखदार परिवार के आगे सब नतमस्तक
आरोप है कि महेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने उस समय के तहसीलदार को प्रभाव में लेकर 639 बीघा जमीन सोसाइटी के नाम करा ली थी जबकि ऐसा करना तहसीलदार के अधिकार क्षेत्र से बाहर था। बाद में महेश्वरी प्रसाद ने अपने आइएएस दामाद प्रभात कुमार मिश्र के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए सोसाइटी की 37.022 हेक्टेयर यानी करीब 148 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्र यानी प्रभात कुमार मिश्र की पत्नी के नाम करा दिया। इसी जमीन को बाद में आशा मिश्र की पुत्री विनीता शर्मा उर्फ किरन और उनके आइएएस पति भागलपुर निवासी भानू प्रसाद शर्मा के नाम करा दिया गया। भानु प्रताप शर्मा रसूख वाले काबिल अधिकारी माने जाते हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने 2018 में बैंक बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया है। भानु प्रताप शर्मा वर्तमान में डीआरडीओ में रिक्रूटमेंट और असेसमेंट के चेयरमैन हैं और डीओपीटी और हेल्थ विभाग के सेक्रेटरी रह चुके हैं। इसके बाद गांव के लोग जमीन पर जोताई-बोआई करते और जमीन में होने वाली ऊपज का पैसा आइएएस परिवार को पहुंचाते रहे। इसके बाद 17 अक्टूबर 2017 को किरन कुमार ने जमीन को गांव के प्रधान को बेच दिया। इसका विरोध ग्रामीणों ने किया लेकिन ग्राम प्रधान के दबाव में प्रशासन ने उनकी सुना तक नहीं। अंतत: 27 फरवरी 2019 को जमीन की खारिज दाखिल भी हो गई। इसके बाद प्रधान उक्त जमीन पर अपना कब्जा करने पहुंचा था। नरसंहार का मास्टरमाइंड यज्ञदत्त उल्टे ग्रामीणों पर गिरोह बना का भूमि पर कब्जे का आरोप लगा रहा। अब जांच चल रही है। अगर जांच ठीक से हुई तो सच सामने आ जायेगा और ऐसे में राजस्व विभाग के कई अधिकारी नप सकते हैं।