चीन क्यों नहीं चाहता मसूद अजहर पर बैन, ये हैं 6 वजहें
नई दिल्ली। 15 अक्टूबर को गोवा में आंठवें ब्रिक्स सम्मेलन का आगाज होगा। इस सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी आएंगे और उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी।
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यहां आने से पहले ही जिनपिंग ने साफ कर दिया है कि वह पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर मौलाना मसूद अजहर पर बैन की कोई मंशा नहीं रखता है।
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भारत की ओर से मांग की गई है कि अजहर को यूनाइटेड नेशंस (यूएन) प्रतिबंध की धारा 1267 के तहत मसूद अजहर पर कार्रवाई करे और उसे बैन करे।
भारत का मानना है कि अगर यूएन यह कदम उठाता है तो दुनिया में मौजूद आतंकियों और इसे पनाह देने वाले देशों को एक कड़ा संदेश जाएगा।
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चीन ऐसे ही अजहर पर बैन लगते नहीं देखना चाहता है। इसके पीछे कुछ तो उसकी भारत से पुरानी दुश्मनी है तो कुछ पाक के साथ बढ़ती नजदीकियां।
तो आइए आपको ऐसी ही कुछ वजहों के बारे में बताते हैं जो चीन को मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने वाले कदम में मदद करने से हमेशा रोक देती हैं।
भारत का दलाई लामा को समर्थन
जी हां यह एक मसला है जो चीन को हमेशा खटकता है और चीन की मीडिया हमेशा से दलाई लामा को समर्थन और उन्हें शरण देने के लिए भारत की आलोचना करता है। वर्ष 2010 में दलाई लामा ने गुजरात में अंतराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन में कहा था, 'हावभाव में बिल्कुल तिब्बती हूं लेकिन अध्यात्म में एक भारतीय हूं।' सिर्फ इतना ही नहीं दलाई लामा कुछ मौकों पर खुद को 'भारत का बेटा' कहकर संबोधित कर चुके हैं। वर्ष 2008 में दलाई लामा ने पहली बार यह बात कह डाली थी अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। इसके पीछे दलाई लामा ने वर्ष 1914 में हुए अनुबंध का हवाला दिया थ।
अक्साई चिन का विवाद
चीन और भारत के बीच हमेशा से ही अक्साई चिन को लेकर विवाद होता आया है। अक्साई चिन पर दावा तो भारत करता है लेकिन इसका शासन चीन के जिनजियांग प्रांत से नियंत्रित होता है। भारत इसे जम्मू कश्मीर का हिस्सा बताता है और यह लद्दाख क्षेत्र में आता है।
अमेरिका, जापान और भारत का त्रिकोण
चीन को घेरने के लिए अमेरिका, भारत और जापान अब साथ आ गए हैं। तीनों देशों की नौसेनाओं ने पिछले वर्ष जहां संयुक्त अभ्यास किया था तो इस वर्ष भर भी जून में तीनों देशों की सेनाएं साथ थीं। इस एक्सरसाइल को 'मालाबार एक्सरसाइज' नाम दिया गया है। यूं तो इसकी शुरुआत वर्ष 1992 में हुई थी लेकिन जब वर्ष 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका ने इसे कैंसिल कर दिया। इसके बाद वर्ष 2001 में जब अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ तो उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने फिर से इसे शुरू किया। 2015 से यह एक्सरसाइज तीनों देशों के बीच एक नियमित प्रक्रिया बन गई है। तीनों ही देश चीन के लिए सिरदर्द हैं और यह एक वजह भी भारत के इस प्रस्ताव पर अड़ंगा डाल रही है।
भारत के सैटेलाइट से चीन पर नजर
इस वर्ष की शुरुआत में भारत के इस ऐलान ने चीन का सिरदर्द बढ़ा दिया। यहीं से पहली बार चीन ने मसूद अजहर को बैन करने वाली याचिका में रुकावट पैदा करना शुरू किया। भारत की ओर से जानकारी दी गई कि वह एक ऐसा सैटेलाइट ट्रैकिंग ओर इमेजिंग सेंटर दक्षिणी विएतनाम पर स्थापित करेगा जो विएतनाम को इस क्षेत्र की सैटेलाइट से खीचीं हुई तस्वीरें हासिल करने में मदद करेगा, जिसमें चीन और साउथ चाइना सी का हिस्सा भी शामिल होगा।
पीओके कॉरिडोर से ध्यान हटाए भारत
इस वर्ष जून में यानी एनएसजी सदस्यों की मुलाकात से पहले चीन की ओर से एक बयान आया। इस बयान में चीन ने भारत को धमकी देने के अंदाज में कहा था कि भारत साउथ चाइना सी में तेल का पता नहीं लगा सकता है। उसने भारत को साउथ चाइना सी से दूर रहने की हिदायत भी दी। इसके अलावा चीन ने पीओके में बन रहे आर्थिक कॉरिडोर यानी सीपीईसी से दूर रहने और इससे ध्यान हटाने को भी कहा।
भारत ने लद्दाख में बनाया मिलिट्री बेस
लद्दाख में स्थित दौलत बेग ओल्डी वह मिलिट्री बेस जो अक्साई चिन से सिर्फ आठ किलोमीटर दूर और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी के उत्तर पश्चिम में पड़ता है। काराकोरम रेंज में स्थित इस मिलिट्री बेस पर भारत ने 20 अगस्त 2013 में इंडियन एयर फोर्स के खास ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट सी-130जे सुपर हरक्यूलिस की लैंडिंग कराई। यह लैंडिंग उसी वर्ष अप्रैल में हुई उस घटना के मद्देनजर की गई थी जिसमें चीन के सैनिकों ने इस हिस्से में घुसपैठ की कोशिश की थी। भारत ने 62 और 65 के बाद से मिलिट्री बेस को ऑपरेट नहीं किया था। फिर वर्ष 2008 में यानी करीब 43 वर्ष बाद यहां पर इंडियन एयर फोर्स ने अपनी गतिविधियां बढ़ानी शुरू की थीं। लेकिन सी-130 की लैंडिंग को भारत की ओर से एक बड़ा रणनीतिक कदम माना गया।