4 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर सीनियर वकीलों और रिटायर्ड जजों ने क्या कहा, पढ़िए...
नई दिल्ली। देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 सीनियर जजों ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर खलबली मचा दी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जज जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रंजन गोगोई ने मीडिया से बातकर शीर्ष अदालत के प्रशासन में अनियमितताओं पर सवाल खड़े किए है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रिटायर्ड जस्टिस आरएस सोढी ने कहा कि, मुझे लगता है कि इन चारों जजों को अब वहां बैठने का अधिकार नहीं है। लोकतंत्र खतरे में है तो संसद है, पुलिस प्राशासन है। यह उनका काम नहीं है। इस मुद्दे से कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह प्रशासनिक मामले पर उनकी शिकायत है। वे चार लोग हैं। जबकि वहां 23 और लोग है। चारों ने एक साथ मिलकर यह दिखाने की कोशिश की है कि मुख्य न्यायाधीश कमजोर है। यह अपरिपक्व और बचकाना व्यवहार है
इसी मुद्दे पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील केटीएस तुलसी ने कहा कि, 'यह बेहद ही चौंकाने वाला है। कोई बड़ा कारण रहा होगा जिसके चलते मोस्ट सीनियर जजों को शिकायत करनी पड़ी। जब वे बोल रहे थे तब उनके चेहरे पर दर्द दिख रहा था।
मुंबई हाई कोर्ट के सीनियर अधिवक्ता उज्जवल निकम ने इस मुद्दे प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, यह न्याय व्यवस्था के लिए काला दिन है। आज की प्रेस कॉंफ्रेंस खराब मिसाल पेश करेगी। अब आम आदमी न्यायपालिक के आदेशों को संदेह की नजर से देखेगा। हर फैसले पर सवाल उठाए जाएंगे। चारों जजों को यह नही करना चाहिए था। अगर आपस में किसी तरह का विवाद या मसला था तो इसे आपस में ही सुलझाया जाना चाहिए था।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, मुकुल मुद्गल ने कहा कि, इसके पीछे कोई गंभीर वजह होनी चाहिए कि जजों के पास प्रेस कॉन्फ्रेंस के अलावा कोई और चारा नहीं था। लेकिन इसका लोया से क्या मतलब है? यह मुझे नहीं पता।
सुप्रीम कोर्ट की सीनियर जज इंदिरा जयसिंह ने कहा कि, मुझे लगता है कि यह ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेस थी। यह बिलकुल ठीक हुआ है। भारत के लोगों को जानने का अधिकार है कि देश की न्याय व्यवस्था में क्या चल रहा है। मैं इसका स्वागत करता हूं।