क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

ग्राउंड रिपोर्ट: आधार कार्ड होने पर भी झारखंड में नहीं मिल रहा राशन

कहीं आधार कार्ड नहीं है तो कहीं अंगूठे का निशान मैच नहीं हो रहा- झारखंड के साहिबगंज की ज़मीनी हक़ीकत.

By रवि प्रकाश - झारखंड के साहिबगंज से, बीबीसी हिंदी के लिए
Google Oneindia News
आधार कार्ड होने पर भी झारखंड में नहीं मिल रहा राशन

सोना मुर्मू की उम्र 55 साल है. चेहरे पर झुर्रियों ने दस्तक दे दी है. बालों की सफ़ेदी इस तथ्य की मुनादी है कि उन्होंने 'अनुभवी' पुकारे जाने लायक दुनिया देख ली है. इसके बावजूद उन्हें इस बात का अनुभव नहीं कि जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों में नियमित तौर पर राशन कैसे मिलता है.

वह मंडरो प्रखंड के सिमड़ा गांव की निवासी हैं. यह झारखंड के अति पिछड़े साहिबगंज ज़िले का हिस्सा है. उन्हें जुलाई 2016 में राशन दुकान से अंतिम बार चावल मिला था.

आधार ने मिलवाया झगड़ू को अपने बिछड़े बेटे से

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है

झारखंड में जन वितरण प्रणाली को आधार आधारित कर दिया गया है. इसके तहत पिछले कुछ महीने से राशन का वितरण बायॉमैट्रिक सिस्टम से किया जा रहा है. इस कारण कई लोगों को परेशानियां हो रही हैं.

सोना मुर्मू के राशन डीलर ने उन्हें बताया है कि उनके अंगूठे का मिलान पीओएस (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन से नहीं हो पा रहा है क्योंकि उनके आधार कार्ड का डेटा पीओएस मशीन के सर्वर में अपलोड नहीं है. इस कारण उन्हें चावल नहीं मिल सकता.

वह सिर्फ केरोसिन तेल पाने की हकदार हैं. इसके लिए अंगूठे का मिलान अनिवार्य नहीं है.

क्या ख़तरनाक है आपके लिए आधार कार्ड?

सोना मुर्मू ने बीबीसी से कहा, "राशन डीलर सिर्फ केरोसिन तेल देता है. उसने मेरे अंगूठे का छाप लिया लेकिन वह मशीन से नहीं मिला. इसलिए वह पिछले एक साल से मुझे चावल नहीं दे रहा है. पहले जब चावल मिलता था तो घर में खाने की दिक्कत नहीं थी. अब हमलोग किसी तरह पेट भर रहे हैं. मेरे दो बच्चों की शादी भी हो गई लेकिन राशन कार्ड में सबका नाम नहीं चढ़ा है."

क्या डीलर कर रहे मनमानी

भीमसेन हेंब्रम की पत्नी सोनामुनी हांसदा जून महीने में राशन नहीं ले पाईं क्योंकि उनके पास राशन लेने के लिए पार्याप्त पैसे नहीं थे. डीलर ने उन्हें राशन वितरण के महज़ एक दिन पहले बताया कि वह कल आकर अपना राशन ले लें.

आधार कार्ड ना बनवाने की सात वजहें

पेशे से मज़दूर सोनामुनी हांसदा इतनी जल्दी पैसे की व्यवस्था नहीं कर सकीं. डीलर ने बाद में उन्हें राशन देने से मना कर दिया. उनकी बेटी जेनिफ़र हेंब्रम ने बताया कि उन्हें जुलाई का भी राशन नहीं मिला है.

राशन कार्ड ही नहीं बना

इसी गांव के 33 वर्षीय मंजू टुडू का राशन कार्ड ही नहीं बना है. मंजू और उनकी पत्नी हंजी मुर्मू के पास आधार कार्ड है. लेकिन मुखिया से कहने के बावजूद उनका राशन कार्ड नहीं बनाया जा सका.

पैन और आधार लिंक ना किया तो क्या होगा?

मंजू टुडू ने बीबीसी से कहा, "मेरे परिवार में नौ लोग हैं. मुझे बाज़ार से राशन ख़रीदना पड़ता है. यह काफी महंगा है. मज़दूरी से उतना पैसा भी नहीं मिलता कि भरपेट खाना खा सकें. कई दफ़ा सिर्फ़ बच्चों के लिए ही खाना बन पाता है. मैं और मेरी पत्नी ने कई रातें भूखे सोकर गुज़ारी हैं."

क्यों नहीं बना राशन कार्ड

सिमड़ा की मुखिया ललिता सोरेन ने स्वीकार किया कि उनके पंचायत में पिछले तीन साल से नया राशन कार्ड नहीं बना. इसके लिए सर्वे कराया जाना चाहिए ताकि सबका राशन कार्ड बन सके और छूटे हुए लोगों के नाम भी जोड़े जा सकें.

उनके पति और मोतीझील के ग्राम प्रधान बाबूलाल हांसदा ने बीबीसी से कहा, "इधर के गांवों में पदाधिकारी कम ही आते हैं. गांव के लोग भी जागरुक नहीं हैं. इस कारण उनकी मांग कारगर तरीके से सिस्टम तक नहीं पहुंच पाती."

सर्वे में हुआ ख़ामियों का ख़ुलासा

दरअसल, आइआईटी दिल्ली की प्रोफेसर रितिका खेड़ा, मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ और उनकी टीम ने पिछले महीने आधार आधारित पीडीएस के प्रभावों को लेकर एक सर्वे किया. राजधानी रांची समेत झारखंड के आठ ज़िलों में हुए सर्वे के दौरान इन्हें कई ख़ामियां मिलीं.

ज्यां द्रेज़ ने बताया कि साहिबगंज ज़िले में सबसे ख़राब हालत है. बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने स्मार्ट कार्ड जैसे सिस्टम की वकालत की. ताकि ग़रीबों को उनका अनाज हर महीने मिल सके. उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कहते कि आप फिर से रजिस्टर वाला सिस्टम शुरू कर दीजिए. लेकिन ज़मीनी हकीकत की जांच भी आवश्यक है.

'गड़बड़ियों की जांच कराए सरकार'

ज्यां द्रेज़ ने बीबीसी से कहा, मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ सर्वे के दौरान पता चला है कि नए सिस्टम (आधार आधारित) के कारण कई लोग अनाज पाने से वंचित हो रहे हैं. जिनके पास मोबाइल फ़ोन नहीं हैं. उन्हें ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) नहीं मिल पा रहा. कई लोगों के अंगूठे का मशीन से मिलान नहीं होने के कारण डीलर अनाज नहीं दे रहे. ऐसे में जिन लोगों को अनाज नहीं मिला. उनके अनाज का क्या हुआ, यह बड़ा सवाल है. सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए.मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़

आधार को पैन कार्ड से जोड़ना कितना ख़तरनाक है?

पर ये हैं 'सरकारी' दावे

इधर झारखंड सरकार ने दावा किया है कि राज्य के 57 लाख 29 हज़ार 416 परिवारों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के तहत एक रुपये प्रति किलो की दर से चावल और गेहूं उपलब्ध कराया जा रहा है. खाद्य, आपूर्ति व उपभोक्ता विभाग के सचिव विनय कुमार चौबे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह दावा किया.

लेकिन सवाल कायम है

तो क्या सोना मुर्मू और उनकी तरह के सैकड़ों लोगों की गिनती भी इन 57 लाख लोगों में कर ली गई है. इस सवाल का जवाब देने में किसी की रुचि नहीं.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Ration not found in Jharkhand even if Aadhar card
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X