राजस्थानः दलितों के मंदिर प्रवेश पर विधायक गिरफ़्तार
जालोर ज़िले में दलितों के साथ मंदिर प्रवेश को लेकर गांव में तनाव.
राजस्थान के जालोर ज़िले में दलितों के मंदिर प्रवेश को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ है. प्रशासन ने हुजूम के साथ मंदिर कूच करते विधायक डॉ किरोड़ी लाल मीणा को गिरफ्तार कर लिया.
विधायक का आरोप है कि रेगिस्तान के कुछ ज़िलों में दलितों के साथ अब भी छुआछूत का बर्ताव किया जाता है. हालांकि प्रशासन ने इन आरोपों को निराधार बताया है.
दलितों का कहना है मंदिर की देहरी पर जाते है उन्हें दूर से दर्शन के लिए कहा जाता है.
विधायक मीणा ने रविवार को जब जालोर के शंखवाली गांव का कूच किया तो उनके साथ बड़ा हुजूम था.
वे शंखवाली गांव के एक मंदिर में दलितों के साथ दाखिल होना चाहते थे. लेकिन वहां तनाव पैदा हो गया. दूसरी तरफ़ गांव में भी लोग जमा थे.
जिला प्रशासन ने मीणा और उनके समर्थकों को बीच रास्ते ही गिरफ्तार कर लिया.
जमानत पर रिहा होने के बाद डॉ मीणा ने बीबीसी से कहा, "मुझे दलित और आदिवासियों ने शिकायत की थी कि उन्हें मंदिरों में दाखिल नहीं होने दिया जाता. सार्वजिनक स्थानों पर पीने के पानी में भी भेदभाव किया जाता है. कोई दलित दूल्हा जब घोड़ी पर सवार होता है, उसे रोका जाता है."
वो कहते हैं कि 'इस क्षेत्र में तीन चार जिलों में ऐसी बहुत शिकायतें हैं. इसे रोकना होगा.'
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जालोर के जिला कलेक्टर बाबू लाल कोठारी ने इन आरोपों को ग़लत बताया. उन्होंने कहा कि 'जिस मंदिर की बात की जा रही है, वो निर्माणाधीन है और उसमें अभी मूर्ति भी नहीं है.'
क्षेत्र के उपप्रधान नैन सिंह राजपुरोहित उसी शंखवाली गांव के हैं. वे बीजेपी के नेता भी हैं. राजपुरोहित कहते हैं, "इस पूरी घटना से वे बहुत शर्मिंदा हैं. वहां कोई भेदभाव नहीं किया जाता. हम लोग उनके स्वागत के लिए खड़े थे. अब कोई दूसरे क्षेत्र से आकर राजनीति करे तो वे भी क्या करें."
उन्होंने कहा कि गांव में सभी जातियों के लोग मिलजुल कर रहते हैं.
विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्षक नरपत सिंह शेखावत मंदिर प्रवेश के विरोध को ग़लत बताते हैं, "हम लोग एक शमसान ,एक पूजा स्थल और एक कुएं की नीति पर जोर देते हैं."
लेकिन दलित संगठन विहिप के इस दावे से सहमत नहीं हैं. डॉ एमएल परिहार उसी वर्ग से आते हैं और लम्बे समय से दलित अधिकारों पर काम कर रहे हैं. वे राज्य सरकार में वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं.
डॉ परिहार कहते हैं, "राजस्थान में जगह जगह ही ऐसी स्थिति है. दलित अपने दम पर अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं."
डॉ परिहार का गांव जालोर के पड़ोस के पाली जिले में है. वे कहते है, "मेरे गांव में मैं मंदिर नहीं जा सकता. मैंने मंदिर जाना ही छोड़ दिया है. अब दलित अपने आसपास मोहल्ले के मंदिर में अपनी आस्था व्यक्त कर लेते हैं."
वे कहते हैं कि 'बड़े मंदिरों में दलित जाते हैं. क्योंकि वहां किसी को पता नहीं चलता. फिर दलित चढ़ावा भी देते हैं. मगर हालात ठीक नहीं है.'
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